Moral stories in hindi : 24 वर्षीय अनन्या संगीत स्कूल में प्राध्यापिका है ।सहज ,सुंदर सरल अनन्या अपने पापा की बहुत चहेती रही है ।बचपन से लेकर बड़े होने तक पापा, पापा करती रही ।सभी उसे पापा की परी के नाम से जानते है ।
बहुत लाडली थी पापा की।
पापा संगीत स्कूल में अध्यापक थे। संगीत के प्रति समर्पित था उनका जीवन।
कमाई तो बहुत अधिक नहीं थी लेकिन जीवन में संतोष था। अनन्या उनकी इकलौती बिटिया बहुत सहेज कर बड़ा किया। उन्होंने संगीत की शिक्षा भी दी और इसके साथ ही जीवन जीने की कला भी सिखाई। हमेशा अपनी बिटिया को कहते रहते “जीवन क्या है ,”
एक बूंद ओसकी”
कब बन जाए ,कब बिगड़ जाए कुछ कह नहीं सकते। अनन्या उनके प्यार में पली-बड़ी दुनिया को देखना सीख रही थी कि एक दिन पापा संगीत स्कूल से आते समय सामने आ रहे ट्रक की चपेट में आ गए, और दुर्घटना इतनी भयानक थी की ओस की बूंद के समान जीवन खत्म हो गया। अनन्या और उसकी मम्मी के लिए जीवन के मायने ही बदल गए। उसने अपना तानपुरा रख दिया। अनन्या की मम्मी बड़े ही प्यार से उसे समझाती कि अपने पापा के सपने को पूरा करो, अपने संगीत की शिक्षा पूरी करो।
मम्मी ने आर्थिक अभाव के बावजूद अपने समर्पण और साहस से अनन्या की संगीत शिक्षा पूरी करवाई, और उसे संगीत विद्यालय में प्राध्यापिका बनने का गौरव प्राप्त हुआ। अनन्या हर पल अपने पापा को अपने पास महसूस करती, और हर दिन ,हर समय एक डायरी अपने पास रखती और उसमें हर बात अपने पापा से शेयर करती, और हमेशा उनकी उपस्थिति को अपने आसपास महसूस करती। यह जुनून इस तरह बढ़ गया कि वह अपने पापा को डायरी लिखकर सदैव पास में महसूस करती ,किंतु आसपास की चीजों में उसकी कोई रुचि नहीं।
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किसी को देखती नहीं, हंसती नहीं, संगीत और पापा के लिए लिखना, पापा को याद करना यही उसके जीवन का मकसद था।
संगीत की उसकी प्रतिभा निखर रही थी और उसे मुंबई से लाइव कॉन्सर्ट के लिए बुलावा आया। फ्लाइट की टिकट है और मन ही मन पापा से बात करती हुई उसने मुंबई जाने का मन बनाया।
यह उसकी पहली हवाई यात्रा थी, उसे डर भी लग रहा था ।जब वह लाउंज में बैठी थी, तब उसके पिता की उम्र के ही एक सज्जन उसके पास बैठे और उससे बात करने लगे ।
वे समझ गए अनन्या अपने पापा की बातों के सिवा जीवन के दूसरे रूप को समझ ही नहीं रही। उन्होंने बातचीत करके उसे समझाने की कोशिश की कि “जीवन चलने का नाम है,। अनन्या का लाइव कंसर्ट बहुत अच्छा रहा ।सभी ने बहुत तारीफ की।
वहां पर भी अनन्या मन ही मन अपने पापा को बहुत याद करती रही। जब फ्लाइट से वापस आ रही थी तब उसकी पास की सीट पर सात आठ साल की प्यारी सी बिटिया बैठी थी। वह बहुत चहक रही थी ।उड़ान पर उसे कभी डर लगता है तो वह अनन्या से चिपक जाती। उसे देखना अनन्या को बहुत अच्छा लग रहा था ।इसके साथ ही बादलों को देख कर भी उसे अच्छा लग रहा था ।इस लाइव कॉन्सर्ट ने उसके जीने का अंदाज बदल दिया था ।
फ्लाइट में जाते समय पापा की उम्र के सज्जन की बातें और आते समय चहकती हुई बिटिया की बातें सुनकर उसे जिंदगी की समझ हो रही थी। वह सोचने लगी उसे पापा की सारी बातें याद है, लेकिन पापा ने जिंदगी के बारे में जो बात कही थी कि” जिंदगी को हंसकर जीना चाहिए, खुल कर जीना चाहिए, जीवन तो ओस की एक बूंद है, क्या पता कब पिघल जाए, यह बात उसे याद नहीं रही ।
टैक्सी करके वह घर आई। घर के आंगन में गुलाब खिले थे और वासंती मौसम में गुलाब के फूल पर ओस की बूंदे फैली थी। अनन्या को उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा। मम्मी उसकी प्रतीक्षा ही कर रही थी। उसने बहुत दिनों बाद अपनी मम्मी की तरफ प्यार भरी नजर से देखा। मम्मी उम्र से ज्यादा थकी हुई नजर आ रही थी। उस एहसास हुआ कि पापा को याद करने में मैंने अपनी मम्मी को तो कभी देखा नहीं, जबकि मेरी मम्मी को भी मेरे प्यार की कितनी जरूरत थी। वह अपनी मम्मी के गले लग गई और कहा “मम्मी चाय बना कर लाओ, आज हम दोनों बाहर बैठकर चाय पीते हैं ,जैसे पापा के साथ पीते थे,” मम्मी खुश हो गई बहुत दिनों बाद उन्हें लगा कि अनन्या जीवन को सहज रूप में जीने की कोशिश कर रही है ,और जीवन की सार्थकता खोजने की कोशिश कर रही है, वह अपने दिल में बहुत प्रसन्नता का अनुभव करने लगी।
सुधा जैन
लघु कथा मौलिक