दोहरा चरित्र – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अमित को नौकरी के सिलसिले में बहुत आना- जाना पड़ता था। शुरू – शुरू में तो उसके साथ गीत भी गई लेकिन अमित उसे वक्त ही नहीं दे पाता था।गीत भी होटल के कमरे में पड़े – पड़े बोर हो जाती। नया शहर नए लोग करे तो क्या करें,

इसलिए उसने साथ जाना बंद कर दिया। उसे लगता की इससे बेहतर है अपने घर में मजे से रहो। कामकाज में वक्त निकल ही जाता है फिर कहीं घूमने भी चले जाओ और दोस्तों के साथ मिलना-जुलना भी हो जाता था।

गीत अकेली रहती है तो सास – ससुर जी आ गए रहने साथ में। गीत ने भी सोचा अच्छा ही तो है सब साथ – साथ रहेंगे। मुझे भी मां जी को समझने और उनके तजुर्बे से कुछ ना कुछ तो सीखने ही मिलेगा।घर ठीक – ठाक था तो कोई परेशानी भी नहीं थी।

धीरे – धीरे अम्बा जी ने अपने पैर पसारने और रंग दिखाने शुरू कर दिए।  अब पूरा घर उनके कब्जे में करना शुरू कर दिया था। पापा जी तो हिलते ही नहीं थे, सुबह से सोफे पर जो जम जाते और न्यूज़ चैनल चल जाता तो वहीं खाना – पीना और सोना।ये सिलसिला तो अब रोज का हो गया था। गीत को टीवी देखने ही नहीं मिलता था।

रसोई घर में तो सासू मां के नियम चलने लगे थे। क्या बनेगा, कितना बनेगा और बाई को दिन भर टोका टाकी करना, काम और पैसों के लिए ताने बाजी करना कि,” बेटा बेचारा घर का सुख ही नहीं उठा पाता है और यहां महारानी ऐश आराम में पैसे उड़ानें से बाज नहीं आतीं हैं।”

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गीत को लगता की पहली बार मां जी पापा जी आएं हैं और अमित भी यहां नहीं हैं तो मेरा कुछ कहना – सुनना सही नहीं रहेगा और वो कभी भी अमित को घर में चल रहे माहौल के बारे में नहीं बोलती। अमित क्या सोचेंगे की चार दिन भी एडजस्ट नहीं कर सकती है और अच्छा थोड़े  ही लगता है कि उनके माता-पिता की चुगली उनसे करूं।वो बेचारे फालतू में परेशान होंगे।

अमित जब आए तो मां जी पिता जी के व्यवहार में बदलाव आ गया था।वो तो ऐसा दिखाती की कितना ख्याल रखती हैं मेरा।शायद मेरी मां भी मुझे इतना प्यार नहीं करती होंगी।गीत हैरान थी सासू मां के ‘दोहरे चरित्र ‘को देख कर।

इस तरह तो अमित इन लोगों की सच्चाई तो जीवन भर नहीं देख पाएंगे।

अब तो गीत का बाहर आना-जाना सब पर पाबंदी लग गई थी और अमित के सामने जुबान ही बदल गई थी कि,” बेटा बहू को बहुत कहतीं हूं कि घूमने – फिरने जाया कर लेकिन शायद हमारी वजह से बेचारी कहीं जाती ही नहीं है। तुम आए हो तो घूमा – टहला दो। ” जब भी अमित कहीं घूमने की सोचते कि इतने दिनों बाद गीत के साथ वक्त बिताने का मौका मिलता है

तो कहीं घुमा और कुछ खिला कर लाता हूं तो सासू मां खुद भी तैयार हो जाती साथ चलने को।एक बहुत बड़ी दर्द भरी कहानी के साथ कि,” हमारी तो पूरी जिंदगी ही निकल गई तुम लोगों की पढ़ाई लिखाई और देखभाल में। तुम्हारे पापा तो घर गृहस्थी में उलझाकर रख दिए थे मुझे और इतने पैसे कहां थे हमारे पास की घूमने में उड़ाते”।

थोड़ी देर में मां जी और पापा जी गीत और अमित से पहले तैयार हो जाते।एक – दो बार की बात है तो कोई बात नहीं। सही है ना कुछ दिनों के लिए आएं हैं तो सभी साथ – साथ जाएंगे तो उन लोगों को भी अच्छा लगेगा दोनों यही सोचते।

घर में अमित को पापा जी ऐसा बातों में उलझाकर रखते की वो गीत के साथ अकेले में वक्त ही नहीं बिता पाता था। पूरे घर में मम्मी और पापा का कब्जा हो गया था।उनका कमरा भी ऐसा था कि मम्मी किसी ना किसी बहाने वहां बैठी रहती थीं।

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गीत को इस बात का एहसास होने लगा था कि मां जी नहीं चाहतीं हैं कि वो अमित के साथ ज्यादा वक्त बिताए और ऐसा तो नहीं है कि हमारी चुगली करती हो शायद इस बात का डर रहा होगा मन में क्यों कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है।

अमित अपने टूर पर चले गए थे और मां जी का अच्छी सास वाला अवतार बदल गया था और फिर से असली रूप में आ चुकी थीं। गीत को समझ में नहीं आ रहा था कि वो लोग कब जाएंगे क्योंकि उन दोनों ने तो बुलाया भी नहीं था ना ही जाने को कुछ कह सकती थी।

सासू मां तो ससुर जी के साथ आए दिन घूमने भी निकलने लगी थी और गीत अब घर में कैद रहने लगी थी। बहुत सारी बंदिशें खाने – पीने, उठने – बैठने और पहनने ओढने में यहां तक की गीत की दोस्त भी नहीं आ सकती थी।

गीत का अपने ही घर में अब दम घुटने लगा था और उसे लगने लगा था कि कब ये लोग जाएंगे और वो अपने ही घर में चैन से रह पाएगी।

एक दिन मौसी सास का फोन आया था तो मां जी उनसे कह रहीं थीं कि हम तो रोज ही कहते हैं कि टिकट करा दो लेकिन अमित जाने ही नहीं देता है, कहता है कि गीत अकेली है तो आप सब रहते हैं तो मैं चैन से नौकरी कर पाता हूं और बातचीत से पता चला कि अपने घर में एक कमरे में सारा सामान समेट कर,पूरा घर किराए पर उठा दिया है और यहां परमानेंट रहने की योजना बना कर आईं हैं सासू मां।

गीत के तो होश उड़ गए कि ससुराल होता तो वो किसी बहाने वहां से निकल भी लेती पर ये तो उसका ही घर है, कहां जाएगी भाग कर। मां जी इतनी चालकी से सारे काम करतीं थीं कि गीत का दिमाग ही नहीं काम करता था कि वो क्या करे।

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घर में कभी किसी को इस तरह से दांव-पेंच खेलते नहीं देखा था तो समझ ही नहीं पाती थी कि मां जी कहां क्या कर बैठेगी। अमित से अलग तरीके से बातचीत और गीत के साथ अलग तरीके से।

मां जी सुबह – सुबह गीत पर बरस पड़ी थी क्योंकि गीत की तबीयत ठीक नहीं थी और वो सुबह उठ कर चाय नाश्ता नहीं बनाई थी।

आजकल की लड़कियों के बहुत नाटक हैं जरा सा कुछ हुआ की बिस्तर पकड़ लेती हैं और काम ना करने के सौ बहाने चाहिए बस।हम लोगों की तो हिम्मत ही नहीं थी कि इतनी देर तक बिस्तर तोड़ते रहो।सास – ससुर भूखे पेट हैं और अभी तक कुछ बना नहीं है।

गीत किसी तरह उठी, उसे तेज बुखार था फिर भी पोहा बनाया और चाय बना कर देकर अपने कमरे में आ कर लेट गई ‌। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि गीत ने कुछ खाया की नहीं दवाइयां ली की नहीं।

अमित का फोन आया तो ऐसा बोल रहीं थीं कि गीत का कितना ख्याल रख रहीं हैं वो।

अमित को गीत की फ़िक्र हो रही थी तो बिना घर में बताए अचानक से आ गया। उसने जो देखा और सुना तो उसके होश उड़ गए। गीत रसोई घर में खाना बना रही थी और उसकी तबीयत ठीक नहीं थी और मां खूब सुनाए जा रहीं थीं कि कल पोहा अच्छा नहीं बना था बहू। खाना बनाने में तुम्हारा मन ही नहीं लगता है। ऐसा खाना बनाती हो कि जानवर भी ना खाए।

मां का ये कौन सा रूप है? ये मेरी ही मां हैं जो मुझे फोन पर कितनी कहानियां सुना रहीं थीं कि गीत दिन भर आराम करती है,ये तो अच्छा है कि हम लोग साथ में हैं वरना ऐसे समय में गीत अकेली पड़ जाती और कौन उसका ख्याल रखता।

अचानक से अमित को सामने देखकर उनकी तो बोलती बंद हो गई। अरे!” अमित तुम आने वाले हो बताया भी नहीं।देखो ना गीत को कितना मना किया फिर भी जबरदस्ती रसोई घर में चली गई। मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है।सब अपने मन के हो गए हैं।जरा सा बीवी बीमार क्या हुई की छुट्टी लेकर घर ही आ गए।” उनको सहन नहीं हुआ था अमित का इस तरह आना।

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अमित का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। वो जल्दी से रसोई घर में गया और गीत की हालत देखकर घबरा गया।

” गीत तुमने मुझे क्यों नहीं कुछ बताया। तुम अकेली सब कुछ झेलती रही, चलो कमरे में आराम करो। कुछ खाई की नहीं और डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया” अमित बहुत परेशान हो गया था।

” तुमने बताया ही नहीं की आ रहे हो? गीत ने कहा।

” अच्छा हुआ की मैंने नहीं बताया नहीं तो मम्मी के इस रूप के बारे में पता ही नहीं चलता मुझे और तुमने कुछ तो कहा होता।”

अमित गीत को डाक्टर के पास ले गया। गीत बहुत कमजोर हो गई थी शायद कई दिनों से ढंग से खाना नहीं खाई थी।

अमित ने पापा के हांथ में टिकट पकड़ाते हुए बोला कि,” बहुत दिनों से आप घर बंद करके आएं हैं । रविवार की गाड़ी है  ,आप लोग तैयारी कर लीजिए जाने की और हां गीत की फ़िक्र करने की जरूरत नहीं है मैं अपने साथ लिवा जा रहा हूं और जब तक ठीक नहीं होगी मैं छुट्टी लेकर उसके साथ ही रहूंगा।आप लोगों ने बहुत देखभाल कर लिया है।”

मम्मी जी के तो होश उड़ गए थे। उन्होंने सपने में भी ऐसी उम्मीद नहीं की थी उनका बेटा उनके साथ ऐसा व्यवहार करेगा।

पापा जी कमरे में मम्मी को डांट रहे थे कि तुम जो बोल रही थी अमित ने शायद सब सुन लिया था और तुम कैसी औरत हो दो दिन बहू को आराम नहीं दे सकती थी। वहां तो सारा काम करती थी।सब बने बनाए काम पर पानी फेर दिया। यहां चैन से थे हम लोग पैसे रूपए भी बच रहे थे।अब तो किराएदार को हटाना पड़ेगा। चलो सड़ो वहीं इसी लायक हो तुम।

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मुझे तो लगता है कि बहू ने जानबूझकर अमित को बुलाया और हमें निकालने के लिए चाल चली होगी और रसोई घर में काम का दिखावा कर रही थी। अगर इतनी बीमार थी तो लेटी रहती” मम्मी जी के दांव-पेंच उन्हीं पर उल्टे पड़ गए थे।

बेटा ही जब अपना नहीं है तो बहू कहां से होगी मम्मी जी बड़बड़ाती हुई सामान समेट रहीं थीं क्योंकि कुछ भी कहने – सुनने या यूं कहें कि बात बनाने का मौका नहीं मिला था।जाना पक्का हो गया था अब तो और बड़े बेमन से दोनों लोग चले गए थे।

अमित ने छुट्टी ली थी और गीत का अच्छी तरह से ख्याल रखा था एक अच्छे जीवनसाथी की तरह। गीत भी ठीक हो गई थी और कितने वक्त के बाद अपने ही घर में शुकून से थे दोनों।

हर बार बहुएं ही गलत नहीं होती हैं।सास के अत्याचार भी होते हैं जो बने – बनाई गृहस्थी को उजाड़ देती हैं। गीत किस्मत वाली थी की उसको अमित जैसा समझदार जीवनसाथी मिला था वरना ज्यादातर लोग मां की ही सुनते हैं।उस दिन अमित अपने कान से सुना नहीं होता

या गीत को देखा नहीं होता काम करते तो शायद वो भी मां के झांसे में आ जाता।एक अच्छी पत्नी की तरह गीत ने भी कोई शिकायत नहीं कर के अमित को परेशान किया था तो अमित ने भी सब कुछ अच्छी तरह से समझ कर सही निर्णय लिया था।

                        प्रतिमा श्रीवास्तव                        नोएडा यूपी

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