दिखावे से परे प्रेम, पिता – मंजू तिवारी

जब बचपन में घर के बाहर खेलते खेलते गिर गई तो मम्मी ने पापा से उठाने के लिए कहा  संयुक्त परिवार था लेकिन इत्तेफाक से घर में कोई नहीं था मम्मी घर से बाहर नहीं निकलती थी और पापा को उठाने में बड़ी झिझक लग रही थी,,,,,,, पापा ने प्यार से बुलाया उत्साहित  किया और … Read more

फर्क – गुरविंदर टूटेजा 

शालिनी सुबह से तैयारियों में लगी हुई थी उसने घर की हालत ही बदल दी थी  कमरों में नई चद्दरें , नये टॉवल व नैपकिन और क्रॉकरी भी सारी अंदर से नई वाली निकाली थी…वो तो हाल में भी ए.सी. लगाने की जिद्द कर रही थी अजय ने मना कर दिया कि अभी नहीं लगा … Read more

 पुरषोचित अहम – शिप्पी नारंग

रेस्त्रां में घुसते ही सौम्या ने नजरें इधर उधर दौड़ाई और उसकी नजर एक टेबल पर जाकर स्थिर हो गई और वह उस टेबल की तरफ बढ़ी जहां बैठे रंजीत ने उसे देख लिया और खड़ा हो गया । दोनों ने एक मुस्कुराहट के साथ एक दूसरे का स्वागत किया और बैठ गए । औपचारिक … Read more

खुशी का दिखावा – प्रीती वर्मा

ब्याह के बाद पहली बार मानसी अपने मायके के किसी कार्यक्रम में शामिल होने आई थी।साथ में उसकी सास भी आई थीं।खूब अवभागत हुई उनकी, आखिर वो बेटी की सास जो थी।उनकी आवभगत में कोई कमी कैसे रहती भला? मौका था मानसी के चचेरे भाई की सगाई का।उसके पहुंचते ही घर गुलजार हो गया।सभी भाई … Read more

चौबाइन चाची – कनक केडिया

कुछ काम से,रास्ते मे आज बाजार जाना हुआ। रास्ते में ममतालु से चेहरे वाली गोल गोल एक अधेड़ औरत को देख जाने क्यूँ मायके की चौबाइन चाची की याद आ गयी। याद जब आ ही गयी है तो उस याद को आप सब से बाँटने का मन हो रहा है। सही बात तो ये है … Read more

उधार की खुशियां – सारिका चौरसिया

सुधाकर की नौकरी पक्की हो गयी थी और यह सूचना ले कर वह सबसे पहले आरती के पास पहुंचा था।आता भी क्यों न? एक आरती ने ही तो उसके इस उलझन भरे हतोत्साहित करने वाले समय में उसके हिम्मत को बढ़ाये रखा था।अंतर्मुखी सुधाकर मेघावी होते हुए भी हर बार जब एक-एक नम्बर से पीछे … Read more

दिखावे का हश्र – पूनम अरोड़ा

करीब आठ दस पहले हमारी सोसाइटी की एक सदस्या ने लकी ड्राॅ  वाली किटी स्टार्ट  की। उसमें  विशेष आकर्षण था कि जैसे जैसे किटी निकलती जाती थी उसके सदस्यों  को आगे की किश्त का भुगतान नहीं  करना पड़ता था साथ ही सदस्यों  को किटी की मेम्बरशिप  के लिए एक गिफ्ट  भी दिया जा रहा था … Read more

  थी … – निवेदिता श्रीवास्तव ‘निवी’

सच कब से इधर से उधर भटकती वो सबके मुँह से बस यही सुन रह थी … पहले के कुछ शब्द अलग – अलग से  होते ,परन्तु अंत मे यही ‘थी’  ही आ कर वाक्य को पूर्ण कर रहा था। कहीं सच मे कुछ नम तो कुछ बहती हुई पलकें थीं ,तो कहीं मन की … Read more

सुहाग चिन्ह – डाॅ उर्मिला सिन्हा

   गंगा कावेरी दोनो बचपन की सहेलियां थी।दांतकाटी मित्रता थी दोनो में।साथ-साथ बडे़ हुये ,खेला पढाई की।गुड्डे गुड्डियों की व्याह रचायी ।गर्मी के दोपहरी में  कच्ची अंबिया पिछवाडे़ से तोड़ नमक-मिर्च लगाकर चटखारे एक साथ लिये।   “चल सावन के झूले लगे!”  “हां हां कजरी गायेंगे।”संग संग सावन में पींगे भरी। सर्दियों में लाल पीली हरी नीली … Read more

“खानदानी जेवर” – रणजीत सिंह भाटिया

” अरे भाई मंजू जल्दी करो रास्ते में ट्राफिक भी बहुत होगा”  मिस्टर प्रेम पगारे अपनी पत्नी को पुकार रहे थे…जी बस 5 मिनट में आई अंदर से मंजू की आवाज आई… I            ड्राइवर कार को अच्छी तरह से चमका कर तैयार खड़ा था, मिस्टर पगारे उनकी पत्नी मंजू और उसका बेटा राकेश कार में … Read more

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