किसी ने सच ही कहा है कि हर इन्सान को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है और यह भी
सच है कि इसी धरती पर भुगतना पड़ता है। अगला जन्म, दूसरा जहान, नर्क – स्वर्ग किसने देखा है। जब कोई
व्यक्ति अपनी अच्छी उम्र , अच्छा जीवन भोग कर जाए तो सब यही कहते है कि चलो एक दिन जाना तो सभी को
है। जितना भी जीवन मिला अच्छा ही मिला।कुछ अच्छे कर्म किए होगें जो बिना किसी बीमारी के, किसी से बग़ैर सेवा
करवाए प्रभु चरणों में स्थान पाया। लेकिन जब किसी को बचपन में या जवानी में उपर से बुलावा आ जाए तो क्या
कहे। अब उसे आख़िर ये सजा क्यों मिली। फिर तो यही कह कर मन को तसल्ली दी जाती है कि ये सब पिछले करमों
का फल है। जाने वाला तो चला गया, लेकिन जो उसके प्रियजन यहां पर है, अब उन्कों किस जन्म की सजा मिल
रही है। ये सब ऐसे सवाल है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं। सब जानते है कि दुनिया रैन बसैरा है, हम सब यहाँ
पर एक मुसाफ़िर की तरह है, जब जब जिसका स्टेशन आएगा, सब उतरते जाएँगें , फिर भी सब डेरा जमाना चाहते
है।
यह भी ठीक है कि दुनिया में आए हैं तो दुनियादारी भी निभानी जरूरी है, लेकिन हर बात की हर
चीज की कुछ तो सीमा होती है, लेकिन इन्सान समझता कहाँ है। कितने बड़े बड़े उदाहरण हमारे सामने है, याद
हिटलर को भी करते है, और मदर टेरेसा को भी। याद जालिमों को भी करते है और भलेमानसों को भी, लेकिन सोचने
वाली बात है कि कैसे याद किया जाता है। ये बातें तो बहुत बड़े लोगों की है, अपने परिवार, गली मुहल्लों में भी हर
प्रकार के लोग मिल जाऐगें। अच्छे से अच्छे भी और बुरे से बुरे भी। जब एक न एक दिन जाना सभी को है तो क्यों
नहीं हर इन्सान अच्छे कर्म करके जाता। पंरतु न जाने इंसान को ईशवर ने कितनी प्रकार की भूख देकर इस पृथ्वी पर
भेजा है, जो कभी शांत होने का नाम ही नहीं लेती। कभी पैसे की भूख तो कभी पद और सत्ता की भूख। ज़मीन,
जायदाद न जाने कितने प्रकार की भूख। खाने से तो पेट भर जाता है, मगर इन चीजों से पेट नहीं भरता।
पार्क में बैठा करन इन्हीं विचारों में गडमड हो रहा था। करोना का वेग अब कुछ कम हो चला था तो
लोग अपने अपने घरों से निकलने लगे थे। बिना निकले गुजारा भी कहाँ था। जिन लोगों ने ये समय देखा भुगता है,
वो कभी इसे भूल नहीं पाऐगें। वैसे तो कहते है कि समय बहुत बलवान है। धीरे धीरे सब इतिहास में बदल जाता है।
आज तपेदिक, चेचक जैसी बीमारियों से भले ही कम डर लगता हो, लेकिन एक समय था कि गाँव के गाँव इसकी
चपेट में आ गए थे। करन के आसपास कई लोग करोना की चपेट में आए, कुछ जाने, बहुत से अनजाने चल बसे।
कईयों के बारे में तो खबर ही नहीं मिली, मिली भी तो कई महीनों बाद। खबर मिलने पर भी कहाँ जाना संभव हुआ।
लेकिन सिरफ करन ही नहीं, दुख तो सभी को ही हुआ। बात फिर वही कि अच्छे और बुरे लोगों को याद करने का
तरीका अलग अलग होता है। एक दिन अचानक करन को पता चला कि पिछली गली में रहने वाले डाक्टर प्रेम और
उसकी डाक्टर पत्नी विद्या का देहान्त भी करोना काल में हो गया।
यह सुनकर एकबार तो करन सचमुच ही चौंक गया। एक ही महीनें में दोनों चले गए, यह जानकार दुख
तो होना स्वाभाविक ही है। डाक्टर को तो धरती पर भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। यह भी सच है कि इस
दौरान कितने ही अनमोल डाक्टर इस दुनिया में लोगों की जान बचाते हुए ख़ुद चल बसे। सारे देश को इस बात का
सदमा लगा, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था। धीरे धीरे लोग बाहर निकलने लगे और बाजार, मंदिर , गुरूद्वारे,
यहाँ वहाँ मिलने लगे। चर्चा का विषय करोना ही होता। आपस में सुख दुख की, रिशतेदारों की बातें होती , जो इस
बीमारी में चले गए उनकी बातें होती। माहौल गमगीन हो जाता, लेकिन जब डाकटर प्रेम और विद्या की बात होती तो
लोग चुप से हो जाते। करन एक बैंक आफिसर था, किसी और शहर से बदल कर जब वो इस नए शहर में आया तो
कुछ महीने बाद ही करोना का प्रकोप छा गया। अभी वो अपना परिवार साथ नहीं लाया था, क्योकि बच्चों की पढाई
का सेशन चल रहा था। फिर तो वो अकेला ही यहाँ रहा। कभी मौका मिलता तो घर हो आता, वैसे भी दो घंटे का ही
रास्ता था। उसकी जान पहचान भी बहुत कम लोगों से थी, क्योकि वो ऐसा समय था कि लोग अपनों से ही बात नहीं
करते थे, बेगानों को कौन पूछता।
वैसे भी करन मितभाषी था लेकिन हालात कुछ ठीक हुए तो उसका भी मन यहाँ वहाँ जाने को हो
जाता। अभी वो अपने परिवार को लेकर नहीं आया था। पार्कों में अकसर शाम को लोग बैठे होते तो वो भी जाकर बैठ
जाता। एक दिन इतवार को वो टहलने गया तो पार्क में हमेशा की तरह बैठे लोग गपशप कर रहे थे। बीच बीच में हसीं
मज़ाक वगैरह भी चल रहा था तो अचानक सभी को रमेश कुमार की याद हो आई। करोना काल में वो चल बसा
था।वैसे तो काफी उम्र का था, लेकिन बहुत ही प्रभावशाली और ज़िंदादिल। इनंसान था। जहाँ भी बैठता अपनी शायरी से
रंग जमा देता। उसकी बात हुई तो माहौल गमगीन सा हो गया। फिर तो एक एक करके पाँच छ: लोगों की याद आ
गई, जो कि उसी एरिया में रहते थे और मुए करोना की भेंट चढ़ गए थे । एक डेयरी मालिक था। सभी ने उसकी बहुत
तारीफ़ की, कि हमेशा वो शुद्ध माल ही बेचता था, कभी भी उसने मिलावट नहीं की। इसी प्रकार एक रिटायरड
अध्यापक की बात चली तो उसकी भी जम कर तारीफ़ हुई कि कैसे वो शाम को ग़रीब बच्चों को मुफ़्त तालीम देता
था।दो लेडीज़ को भी याद किया गया जो कि बहुत अच्छी समाज सेविका थी।
कुछ आसपास रहने वाले उन लोगों की भी बात चली, जिन्होनें उस दौरान अपनी जान की परवाह
न करते हुए जनसेवा की और उपरवाले की कृपा से वो आज ठीकठाक है। सबसे ज्यादा प्रशंसा मनप्रीत और सुरेश की
हुई, जिनहोनें ज़रूरतमंदों को राशन , सब्ज़ी एवम् ज़रूरत की अन्य वस्तुएँ पहुँचाई। राजबीर के बारे में तो सब जानते
है कि जब भी वो दूध या सब्ज़ी लेने बाहर निकलता तो दो चार पैकेट दूध और कुछ सब्ज़ी आसपास के घरों के बाहर
रख आता ताकि लोग जितना हो सके घर के अंदर ही रहे और दूसरों के सम्पर्क में कम से कम आए। चलते चलते
बात बीमारी पर आ गई। करोना के साथ साथ बाकी रोज़मर्रा की बीमारियाँ भी तो थी। जाहिर है कि मुहल्ले में रहने
वाले डाक्टर कपल की बात भी आनी थी। दोनों की उम्र पचपन छपन के बीच रही होगी। सरकारी नौकरी छोड़कर
लगभग दस वर्ष पहले वो इस मुहल्ले में आए थे।आम तौर पर वहाँ मिडिल या कुछ मध्यम मिडल क्लास लोग ही
रहते थे। वैसे भी इस मंहगाई के जमाने में पैसे की क़िल्लत सभी को रहती है।उन्होनें दो प्लाट लेकर अच्छा घर और
छोटा सा क्लीनिक बनाया। आसपास के लोग बहुत खुश थे कि घर के पास ही मैडीकल सुविधा रहेगी।
वैसे भी धरती पर डाक्टर को भगवान ही माना जाता है। कहते है कि एक बार किसी की सपने
में भगवान से मुलाक़ात हो गई। बातों ही बातों में बात हो गई। बंदें ने पूछा,भगवन, ये डाक्टर कैसे होते है
भगवान ने कहा, विशवास करना इन पर, बस यूँ समझों कि कुछ कुछ मेरे जैसे ही होते है। तो डाक्टर के बारे में तो
सभी की यही राय है। लेकिन इस कपल के बारे में लोगों का भ्रम जल्दी ही टूट गया। सबसे पहले तो उनकी फ़ीस ही
बहुत ज्यादा थी। फिर बर्ताव भी बहुत रूखा। जो एक बार गया वो दोबारा शायद ही गया या फिर बहुत ही मजबूरी में।
उस समय जब बातें चल रही थी तो एक बुजुर्ग ने बताया कि एक रात उनकी पत्नी की तबियत बहुत खराब हो गई।
मुहंमागी फ़ीस देने पर भी वो घर पर आने को राजी नहीं हुए। उस समय उनका बेटा भी घर पर नहीं था, पड़ौसी
हस्पताल लेकर गए। तभी किसी दूसरे शख़्स ने कहा कि टैस्ट भी उसी लैब के मानते थे, जिसे वो रैफर करते थे। अब
जब बात चल ही निकली तो सबने अपने मन की भड़ास निकाली।करन तो किसी को ज़्यादा जानता नहीं था। लेकिन
कुछ हद तक बातें उसे भी ठीक लगी। एक आदमी ने बताया कि उसकी प्रैगनैंट बहू की तबियत एक दम से खराब हो
गई तो इतवार होने के कारण उन्होनें दरवाज़ा ही नहीं खोला।
इसी प्रकार एक और बंदे ने बताया कि उसका बच्चा अचानक सीढ़ियों से गिर कर लहूलुहान हो
गया, लेकिन उन्होंने कहा कि वो दिन में दो से पाँच के बीच कोई मरीज़ अटैंड नहीं करते। ऐसी और भी बातें सामने
आई।। भले ही किसी ने मुँह से ये नहीं कहा कि अच्छा हुआ वो इस दुनिया से रूखसत हुए, लेकिन किसी ने उनकी
अच्छाई नहीं की और न ही कोई अफ़सोस जाहिर किया। सबको पता था कि उनके दोनों बच्चे विदेश में रहते हैं। दोनों
का अंतिम संस्कार हस्पतालों में ही हुआ। कोई रिशतेदार नहीं आया। कुछ तो उस समय हालात ही ऐसे थे और बाकी
की उनके बर्ताव का सबको पता था। पिछले दस सालों में वहाँ पर किसी से भी उनका अपनापन नहीं था, बिलकुल
अपने आसपास वालें से भी कोई दुआ सलाम नहीं। एक व्यक्ति जो उन्के यहाँ काम करता था, ताला लगा कर चला
गया। सुनने में आया है कि कोठी सेल पर लगी है। करन पास बैठा सबकी बातें सुन रहा था। किसी की बुराई सुनना
या करना उसे पंसद नहीं था। लेकिन इस समय हालात कुछ और थे।
जो कुछ नहीं बोले या जिनका उनसे राफ्ता नहीं हुआ वो सोच रहे थे , माना कि अपनी योग्यता के
अनुसार सभी को कमाई करने का हक है, लेकिन इंसानियत सबसे पहले है। धीरे धीरे शाम घिर आई तो सब उठ कर
चलने को हुए। आज की महफ़िल बहुत ही उदासीपूरण वातावरण में समाप्त हुई थी। जितने लोगों की भी आज बातें हुई
करन भले ही उनको नहीं जानता था लेकिन सोच रहा था कि यह तो अटूट सत्य है कि सभी का अंत निशचित है।
कोई हमें याद भले ही न करे लेकिन अगर कोई करे तो अच्छे मन से करे और दो आँसू भी बहाए तभी जीवन सफल
है। वरना तो दुनिया में आया न आया एक समान है, तो ऐसे कारज कीजिए——-
विमला गुगलानी