Moral stories in hindi : किचन की खिड़की बंद करते हुए सौम्या ने घड़ी की ओर देखा जो रात के साढ़े दस बजा रही थी।
“ओफ़्फ!आज फिर से साढ़े दस बज गये।मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, फिर भी दस तो बज ही जाते हैं।अब तक तो सुकेश भी खर्राटे भरने लग गये होंगे।” खुद-से बातें करती हुई वह बेडरूम में गई और पानी का गिलास टेबल पर रखकर हौले-से सुकेश को जगाने लगी, ” सुनो…।” कहते हुए उसके बालों में अपनी अंगुलियाँ फिराने लगी।
” ओफ़्फो…मुझे सोने दो,कल बात करते हैं।” बंद आँखों से ही सुकेश ने झल्लाते हुए सौम्या का हाथ झटक दिया और मुँह ढ़ाँप कर सो गया।सौम्या समझ गई और अपनी इच्छाओं को दबाकर वह भी सोने की कोशिश करने लगी।
एक दिन सौम्या की बाई ने छुट्टी कर ली, उसी दिन बेटी के स्कूल का ऑटो-ड्राइवर भी बीमार पड़ गया।दिन-भर वह इधर से उधर भागती रही।घर का काम,बेटी का लंच,पति का लंच, बेटी को स्कूल छोड़ना-लाना….।सब करते हुए रात के ग्यारह बज गये।थककर वह बिस्तर पर निढ़ाल हो गई।तभी उसने अपनी कमर पर सुकेश की अंगुलियों के स्पर्श को महसूस किया।इतनी थकान के बाद ये सब…..।उसने अनमने भाव से कहा,” मैं बहुत थक गई हूँ।आज तो न बाई आई थी और न ही…।”
” तुम्हारा तो रोज का ही यही नाटक है।आखिर तुम्हारा पति हूँ।तुम पर मेरा पूरा अधिकार है और मेरी इच्छा-पूर्ति करना तुम्हारा कर्तव्य है।” सौम्या का हाथ पकड़ते हुए सुकेश तीखे स्वर में बोला तो सौम्या भड़क उठी।ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं था।जब भी वह अपनी इच्छा जाहिर करती तो सुकेश कोई न कोई बहाना बना देते और उसकी इच्छा जाने अपनी मर्ज़ी उस पर थोप देते।
इतने महीनों का गुबार उसने आज निकाल ही दिया।बोली, “अच्छा! तो आज आपको पति के अधिकार की याद आई।आपका मन करे तो पति का अधिकार और मेरा मन करे तो दुत्कार।आपको ना कहने का अधिकार है और मुझे नहीं।तो सुनिये पतिदेव जी!…., शादी में जितने मंत्र आपने पढ़े थे उतने ही मैंने भी और जितने फेरे आपने लिए, उतने ही मैंने भी लिये थे,इसलिये तेरे-मेरे की बात तो करिये मत।
इस कहानी को भी पढ़ें:
उस दिन फ़ोन पर तो अपनी बहन को अधिकार की लम्बी-चौड़ी परिभाषा बताते हुए कह रहे थे कि तुम्हें भी अधिकार है घूमने-फिरने का, नरेन(बहन का पति)को तुम्हें मना करने का कोई अधिकार नहीं है।क्यों…आप पति हैं और नरेन जी नहीं।” कहते हुये उसने एक गहरी साँस ली।
फिर बोली, ” अब रही बात ‘रात’ की तो आप मुझे ना कह सकते हैं तो मुझे भी आपको तुम्हें ना कहने का अधिकार है और ये अधिकार मुझे भारत के कानून ने दिया है।जब किसी महिला ने एक बार ना कह दिया तो वह उसकी असहमति होती है।इसके बाद भी सामने वाले ने जबरदस्ती की, चाहे उसका पति ही क्यों न हो तो वह
‘ बलात्कार ‘ कहलाता है और इसकी सज़ा तो आप जानते ही हैं।पिछले दिनों न्यूज़ में तो आपने देखा ही था कि एक पत्नी ने अपने पति पर…., अब बोलिये.. क्या कहना है।” उसने तकिये को ज़ोर-से पटका और पीठ घुमाकर सो गई।
पत्नी का ऐसा रौद्र रूप सुकेश ने पहली बार देखा था।उसे याद आया, कुछ दिनों पहले ही अग्रवाल साहब उसे ऐसा ही कुछ बता रहें थें।बाप रे!…, वह बुदबुदाया, कमबख़्तों ने पढ़ी-लिखी पत्नी के फ़ायदे तो चुन-चुनकर गिनाये लेकिन नुकसान एक भी नहीं बताया, सत्यानाश हो उनका…और फिर वह भी करवट बदलकर सोने का प्रयास करने लगा क्योंकि अब कोई चारा नहीं था।
विभा गुप्ता
स्वरचित