अब और नहीं सहना – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

   सुबह सुबह निशा तेजी से हाथ भी चला रही थी और माला के लिए कुछ भला बुरा बोलने के साथ साथ चितिंत भी थी। माला उसकी मेड थी, जो घर का सारा काम संभालती थी। दो दिन से उसके न आने से घर का सारा काम बिखरा पड़ा था।निशा किसी तरह काम निपटा कर आफिस पहुंची। 

      अशुंल को स्कूल छोड़ने की डयूटी उसके पापा रोहण की थी। आजकल  पांच साल का अशुंल भी छुट्टी के बाद वहीं स्कूल में डे केयर में रहता नहीं तो वो तीन बजे बस से घर आ जाता और छः बजे तक माला के साथ खुश रहता। वही उसे खिलाती पिलाती,चेंज करवाती और अगर वो सो जाता तो ठीक नहीं तो उसको कुछ कुछ पढ़ा भी देती। 

     पच्चीस वर्षीय माला दसवीं पास थी। उत्तर प्रदेश के किसी गांव की रहने वाली माला में हर खूबी थी, सिवाय किस्मत के। घर से गरीब तो थी ही, पास के गांव वाला हरीश गाजियाबाद में कहीं नौकरी करता था। अठारह साल की उम्र में शादी हो गई और हर लड़की की तरह नए अरमान लिए वो शहर में आ गई।ससुराल भी गांव में ही था। 

        हरीश किसी प्राईवेट दफ्तर में चपड़ासी था और वो दसवीं पास भी नहीं कर पाया था।कुछ दिन तो सब ठीक रहा फिर खर्चे की चिक चिक शुरू हो गई। माला के लिए नौकरी की तलाश तो की लेकिन दसवीं पास को कहां आजकल नौकरी मिलती है। 

     वो तो कम्पयूटर सीखना चाहती थी लेकिन पैसे कहां से लाए। एक बात और भी थी, हरीश को पुरूष होने के दंभ के साथ साथ ये भी था कि माला पहले से ही दसवीं में अच्छे अंकों से पास है, आगे पढ़ लिया तो उस पर ही हावी न हो जाए। 

       पैसों की तंगी के चलते वो घरों में सफाई बर्तन का काम करने लगी और पिछले साल से वो निशा के घर काम  करने लगी। काम करने की इजाजत देकर भी मानों कोई बहुत बड़ा अहसान कर दिया हो, और पैसों का भी पूरा हिसाब लेता। 

        मौका मिलता तो हरीश मारपीट भी कर लेता और अब तो बच्चा पैदा न होने का सारा दोष भी माला के सिर था। दो दिन से माला आई भी नहीं

और फोन भी नहीं उठाया।अगले दिन इतवार था तो निशा ने चैन की सांस ली और देर तक सोने की इच्छा भी थी। पहले की तरह जब सुबह जल्दी ही माला ने घंटी बजाई तो उसे देखकर निशा खुश होकर मजाक में बोली” आ गई महारानी, कहां रही दो दिन, न मैसेज , न फोन”। 

     सच में ही आजकल जितनी खुशी घर में कामवाली बाई के आने पर होती है, उतनी तो अपने किसी खास रिश्तेदार या सखी के आने पर भी शायद ही होती हो। 

       बिना कुछ उत्तर दिए नमस्ते कह कर माला अपने काम पर लग गई। निशा से उसके चेहरे की उदासी छुपी नहीं थी, परंतु वो चुप रही। नाशते वगैरह के बाद अंशुल और रोहण को बाजार सामान लेने भेज कर उसने माला से चाय बनाने को कहा। निशा जब भी घर पर होती थी तो एक बार जरूर माला के साथ चाय पीती और उससे बातचीत करती और उसका हालचाल भी पूछती।

       निशा का माला से बहुत अपनापन सा हो गया था और माला भी कुछ कुछ बातें उससे कर लेती। आज जब उसने न आने का कारण पूछा तो माला की रूलाई फूट पड़ी। उसने बताया कि शराब पीकर थोड़ी बहुत मार पीट तो उसका पति करता ही है, लेकिन दो दिन पहले तो उसने जरा सी बात पर जोर से धक्का मारा तो उसका सिर दीवार पर जा लगा।

    निशा ने देखा कि सचमुच ही उसके सिर पर चोट लगी हुई थी और उसने दुपट्टे से ढ़का हुआ था।” तूं उसका विरोध क्यूं नहीं करती, पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा” निशा गुस्से से बोली। 

  “  क्या करें मैडम जी, हमारी किस्मत में तो आंसू पीकर रहना ही लिखा है, किसे सुनाऊं अपनी व्यथा। मायके में वैसे ही परेशानी है,

और ससुराल में हमारी कोई सुनता नहीं। अब बच्चा नहीं हुआ तो भी मैं ही दोषी, कितनी बार कहा डाक्टर के पास चलते है, लेकिन वो जाता ही नहीं। शायद डरता है कि उसमें ही न दोष निकल आए” माला ने आंसू पोछतें हुए कहा। 

    नहीं माला , अब और नहीं सहना, जमाना बहुत आगे निकल चुका है। अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। आगे से हाथ उठाए तो करारा जवाब देना, तेरे हाथों में भी ताकत है, पुलिस में रिपोर्ट लिखवा और वुमन सैल भी बने हुए है। मैं भी तेरा साथ दूंगी। तू चाहे तो मैं तेरी पढ़ाई में भी मदद कर दूंगी, निशा ने कहा।

    परंतु मेरा काम न छोड़ना, निशा ने मजाक करते हुए कहा। “ ऐसा कभी नहीं बीबी जी”, अंशुल बाबा को पालने की जिम्मेदारी मेरी है, माला बोली।

     और सच में ही माला में न जाने कहां से हिम्मत आ गई।पुलिस की धमकी से ही हरीश समझ गया कि अब इसे शहर की हवा लग गई है

और इसे मालिकों का साथ भी मिल गया। काम खत्म करके माला कम्पयूटर सीखने जाने लगी और निशा ने उसे आशवासन दिया है कि जो भी बन पाया वो उसके लिए करेगी और हरीश को भी एक बार बुला कर समझा दिया।अब माला को हरीश से कोई शिकायत नहीं और हरीश भी समझ गया। 

पाठकों, मेरा तो ये मानना है कि भलाई करने के लिए हमें कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, अपने आसपास ही बहुत कुछ है करने के लिए।

मुहावरा- आंसू पीकर रह जाना।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

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