बहुत दिनों के बाद मायके आ पाई। मां पापा के साथ भाई बहन -सभी फोन कर करके मनुहार करते रहे–दीदी तू तो हमें भूल ही गई, शायद रास्ता ही भूल गई हो ,हम आ जायें लेने !
मुझे हंसी भी आती और अपने ऊपर गुस्सा भी,पर क्या करें!जब तक बच्चों के पेपर नहीं हो जाते,ट्यूशन कोचिंग की सेटिंग नहीं हो जाती-मै कैसे घर से निकल सकती हूं!घर में कितनी तरह की उलझनें, समस्याएं रहतीं हैं –कुछ का समाधान, कुछ को दबा कर, कुछ को नजरंदाज करके आ ही गई।
घर आते ही मां गले से लग गई – एक साल बाद आई है बिट्टो! कैसी है तू!-मां की आंखें डबडबा आईं, मैं भी भावुक हो गयी,पर कुछ अजीब सा लगा,विदा के समय मां की आंखें छलकती हैं -पर यह मिलने पर!
खैर बात आई गई हो गयी। आराम से बैठ कर सबसे बतियाते हुए भाई ने कहा-जीजी अच्छे समय आईं, परसों शेखर जी के छोटे पोते का तिलक है, तुम भी चलना।
अच्छा! माने सबकी ब्याह शादी निबट गई,ये छोटे का तिलक है!तब तो जरूर चलूंगी,अब जाओगे तुम लोग?
मां कुछ कहते-कहते रुक गई।
मां कुछ कह रही थीं क्या
नहीं नहीं जाना सब,हम लोगों का पुराना संबध है
इससे ज्यादा मां ने कुछ नहीं कहा पर मां पापा दोनों ने जाने से इन्कार कर दिया –अब इस उम्र में ज्यादा जाना अच्छा नहीं लगता, तुम लोग जाओ।
शाम को तिलक का प्रोग्राम था,हम तीनों भाई बहन समय से पहुंच गए नेग भी दिया। दादी से मिले, बड़ी आत्मीयता से मिली,सबके बारे में पूछा, ससुराल की भी हाल खबर दी।दादा जी के समय से ही दोनों परिवारों में बहुत मेल मिलाप है,
तीन जेनरेशन के बाद भी रिश्तों में वही गर्माहट है।घर की सभी बहू-बहने बड़े प्रेम से मिली, पर वह कहां है- मेरी पूनम!जिसे वे सभी लोग कभी पूर्णिमा कभी चांद कभी कुछ कभी कुछ कह कर दुलारते ही रहते थे।
वह मेरी सहेली जरूर थी,पर मुझसे चार साल छोटी थी वह कालिज में मेरी जूनियर थी,पर हम दोनो में इतना अपनापन था कि सब हमलोगों को दो बहनें समझते थे। पूर्णिमा मेरे साथ ही इस कोठी में आई थी ।बड़ी सी कोठी थी, वहां तीन भाइयों का संयुक्त परिवार रहता था- अपना अपना फ्लैट इस कोठी में एक एक फ्लोर पर था,
पर तीज त्यौहार नीचे बड़े से हाल में मनाये जाते थे ।जन्माष्टमी के त्यौहार में बहुत सुंदर कोठी सजती थी, मैं अपने साथ पूनम को भी लेकर गई थी- यह 4 साल पुरानी बात है -दादाजी शेखर जी को पूनम बड़ी पसंद आई अपने छोटे बेटे के लिए। उन्होंने अपने छोटे बेटे गोकुल के रिश्ता मांग लिया ,
जोड़ी सुंदर थी, सभी को बहुत पसंद आई। सब बहुत खुश थे ,बड़े ठाठ बाट से शादी हुई। पर फिर मेरा वहां आना हुआ ही नहीं। सुना था एक साल में ही बेटी हुई थी ,वह भी बड़ी प्यारी थी ।
आज मैं पूनम से मिलने ही आई थी। मैंने सोचा था, शादी के बहाने उससे मिलना हो जाएगा तो शादी के बाद से ही उससे मिलना नहीं हुआ था पर वह मुझे कहीं दिख ही नहीं रही थी शायद किसी कामकाज में व्यस्त होगी।
बड़ी भाभी दिखीं -मैं कुछ कहती इसके पहले ही वह गले मिलकर मेरे हाल-चाल पूछने लगी -बोली तुम्हें सबसे मिलाती हूं ,
बड़े प्रेम से सब लोगों से मिलाया पर भाभी को फुर्सत कहां हर तरफ से पुकार- प्रीति वह सामान कहां है -यह काम किसने किया, यह काम कौन संभालेगा !उनके साथ बैठकर बात करना संभव नहीं था तो मैं दादी के पास चली गई।
दादी जी आप कैसी हो! दादी मेरा चहकता चेहरा देखकर दादी सशंकित सी संभल संभल कर बात कर रही थी। मुझसे रहा नहीं गया,
मैंने कहा दादी पूनम कहां है? मिल हीं नहीं रही! दादी चुप मेरा चेहरा देखने लगी ।दादी की अपनी खास नौकरानी बोल पड़ी -दीदी बहुत दिन बाद आई हो ना आपको मालूम नहीं, पूनम ने तो फांसी लगा ली 1 साल हो गया
मैं स्तब्ध- सब का चेहरा देखने लगी इतनी बड़ी बात किसी ने मुझे बता ही नहीं! मेरे सामने सारी दुनिया घूमने लगी, वही फर्श पर गिर गई मैं धड़ाम से और मुझे होश नहीं रहा ।जब होश आया तो आंखों से झर झर आंसू बहने लगे। दादी के पलंग पर मैं लेटी थी कुछ समझ नहीं आ रहा था कैसे क्या हुआ!दादी पास बैठी धीरे-धीरे मेरे सिर पर हाथ फेर रही थीं ।मेरे सामने नाश्ते की प्लेट थी
पर कुछ छूने का मन भी नहीं हुआ। बड़ी भाभी जरा देर को आकर झांक कर चली गई, बाहर सगाई की रस्में हो रही थी, पंडित जी के मन्त्रों की आवाज़ जोर जोर से आ रही थी- पूनम की शादी में भी ऐसे ही जोर-जोर से मंत्र पढ़े गए थे। अब यह सब क्या हो गया !कैसे हुआ! कब हुआ !दादी पहले चुप रही, पर जवाब तो उन्हें देना ही था मैं हटने वाली नहीं थी बचपन से इस घर में आती हूं ,मेरा स्वभाव वह
जानती हैं धीरे-धीरे बोली -बेटा पूनम बहुत अच्छी लड़की थी सबको इज्जत प्यार देना जानती थी सभी उसे बहुत प्यार करते थे। फिर साल भर में ही उसकी बेटी भी हुई- प्यार से हम उसे परी कहते थे फिर दादी ने लंबी सांस ली दादी आगे बोलना नहीं चाहती थी पर मैं छोड़ने वाली नहीं थी परी के होने के कुछ दिन बाद गोकुल के साथ एक लड़की घर आने लगी श्रेया नाम था उसका। पूनम से खूब बातें
करती घर के लोगों से भी हिल मिलकर बातें करती परी को बहुत प्यार करती, पता नहीं कब कहां सब की कुंडली घूम गई गोकुल ने पूनम से तलाक मांगा सारा घर हिल गया, पूनम तो जड़ हो गई वह राजी नहीं थी डेढ़ साल की बच्ची को वह सीने से चिपकाए किसी सदमे में बैठी रहती थी किसी से बात नहीं करती जैसे उसे बहुत धक्का लगा है ।
कुछ दिन बाद श्रेया से शादी करेगा उसने घर में एलान कर दिया।वह पूनम पर मायके वापस जाने पर जोर देने लगा। घर के लोगों के विरोध की उसे कोई परवाह नहीं थी।
असल में मुझे लगता है दादी आप लोगों ने गोकुल को सही ढंग से संभाला नहीं वरना इतनी प्यारी लड़की जिसमें कोई ऐब खोजे नहीं मिलता- वह उसको छोड़ने को कैसे तैयार हो गया, वह कैसे कह सकता था तलाक की बातें?
देखो बेटा जब बेटा ही कहे कि मुझे इसके साथ नहीं रहना तो जवान लड़के पर किसी तरह जोर नहीं दे सकते थे।
मैं तैश में आ गई ,इतने कम समय में अगर कोई तलाक की बात करता है तो मतलब शादी से पहले ही गोकुल के उस लड़की से संबंध थे !
आप लोगों ने परवाह नहीं की मेरी सखी को बलि का बकरा बना दिया ,पता नहीं उसने खुद फांसी लगाई या आप लोगों ने लटकाया! दादी चौंक कर बोली- यह फांसी वाली बात तुमसे किसने कही! वह अपनी नौकरानी की तरफ घूर कर देखने लगी ।
मेरे तो सोचने से ही रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं -वह मासूम प्यारी सी लड़की कैसे मरने की सोच सकती थी ,कैसे फांसी पर लटक गई क्या किसी ने उसका रुदन नहीं सुना! इतने बड़े घर में इतने सारे लोगों के बीच किसी ने उसका दर्द नहीं बांटा!तलाक के कागज पलंग पर फैलाकर वहीं पंखे से लटक गई? उसके मायके वाले भी चुपचाप चले गए ?
मेरी आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे, जोर-जोर से चीखने का दिल हो रहा था, कैसे दुख में उसे अकेला छोड़ दिया!कैसे अपने खुद के गले में रस्सी लटकायी उसने! क्या यह सब सच है ?
दादी ने कमरे का दरवाजा और खिड़की बंद कर ली थी शायद उनके फोन पर ही मेरी मां और भाई आकर मुझे सहारा देकर ले गए- मां तुमने मुझे बताया नहीं मैं उन कातिलों का मुंह नहीं देखने जाती, मैं क्यों गई! वहां तुमने भी कुछ नहीं देखा था क्या !
मां ने मेरे आंसू पोंछे -नहीं बेटा, ! हमलोग कुछ नहीं कर सके ! हमलोग क्या उसके मायके वाले भी कुछ नहीं कर सके, तो वहां हम क्या कर सकते थे और पैसे में बहुत ताकत है बेटा! पूरा मामला दब गया ,अब गोकुल और उसकी नई बीवी शाम को बच्ची को लेकर बाइक पर घूमने जाते हैं घ
र में बड़ी चहल पहल रहती हैआज तो दरवाजे पर शहनाई बज रही है मंगल काम हो रहे हैं सब खुश हैं घर में आखिरी शादी है ,आज तो दरवाजे पर ही शहनाई बज रही है,खूब जमकर नाच गाना हो रहा है ।
पर क्या सचमुच यह आखिरी शादी ही है! क्या दूसरा तलाक नहीं हो सकता! भगवान ही जाने पैसों की आड़ में क्या-क्या काम और क्या-क्या कहानी होती है! पैसे में सचमुच बड़ी शक्ति है शायद यही इस युग की नियति है।
_________________________
लेखिका : सरिता अग्रवाल