अखबार का पन्ना पलटते हुए रूबी सोच रही आज काम पर जायें कि ना जाये ,मन नही कर रहा जाने का, वैसे वो छुट्टी लेती नही पर आज तबियत कुछ ढीली लग रही ,कल रात बारिश में भीगने के कारण नाक में सुरसुरी सी हो रही ,
सोच रही ले ले आखिर सी . एल भी तो बचा है ले भी लेगी तो कोई कुछ कहेगा नही वो बात अलग है कि घर में जरूर सबको अचम्भा लगेगा कि कभी छुट्टी ना लेने वाली आज छुट्टी पर क्यों है , लोग चार तरह की बातें बनायेंगे खुसुर फुसुर होगी मगर सामने से आकर कोई नही पूछेगा ,क्या तबियत………….।
अरे! ना ना तबियत को लेके तो सबको लगता है वो तो पत्थर की बनी है उसे तो कभी कुछ होता ही नही ।पर लोगों को क्या मालूम जो बीमारी दिखती नही यकीनन बहुत घातक होती है।
और जब पता चलता है तो सब कुछ खत्म हो चुका होता है।
बस इसी कसमकस में पड़ी ही थी कि पति देव को आता देख सोचने लगी।ये भी क्या इंसान है , पति की तरह कभी मेरे साथ रहे ही नही वो बात अलग है कि जब शादी हुई तब कुछ महीने ऐसा लगा जैसे जन्नत मिल गई हो ,उसके बाद तो जैसे जैसे समय बीतने लगा इनका लगाव कम होने लगा और उसके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने लगा ,
बढ़े भी क्यों ना जरूरत के लिए ही सही पास तो आते ही थे ना और जब पास आते थे तो परिवार बढ़ना ही था।फिर क्या जैसे जैसे जिम्मेदारियां बढ़ने लगी दोनों को उसको पूरा करने का जरिया ढूंढना पड़ा , पड़े भी क्यों ना इनकी खुद की प्राइवेट जाब थी उसमें में इनकम कम।तो ऐसे में उसे खुद का भी कदम बाहर निकाला और पढ़ाई का फायदा उठाकर एक नौकरी कर ली।
पर धीरे धीरे उसने देखा गृहस्थी का सारा बोझ उसी पर आ गया।कारण यह कि पति देव शारीरिक रूप से अस्वस्थ रहने लगे जिसके कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी
और जब घर पर रहने लगे।तब उन्हें देखकर पहले तो कोफ्त होती थी पर धीरे धीरे आदत सी हो गई ,जब आदत हो गई तो फिर सब कुछ सामान्य हो गया।
बच्चे अपनी पढ़ाई में व्यस्त,वो नौकरी में और पति देव घर में रहकर थोड़ा बहुत घर का ही काम देखने लगे।
जब वो देखने लगे तो वो सोची चलो कोई बात नही कोई एक लोग तो घर पर रहते है इससे बच्चे क्या कर रहे है कौन आ रहा कौन जा रहा वगैरा वगैरा बातें पता तो चली है बस यही सब सोच कर वो खुश रहने लगी।
वो सोच ही रही थी कि सामने खड़े रोहित के शब्दों ने उसकी तन्मयता को ” अरे तुम गई नही , क्या हुआ तबियत ठीक नही या फिर कोई और बात है।
” ने उसकी तन्मयता को भंग किया।चलो कोई बात नही बहुत सालों के बाद आज वर्किग आवर में तुम घर पर और हो तो बड़ा अच्छा लगे रहा ,चलो आज मैं तुम्हें अदरक वाली चाय बना कर पिलाता हूँ कहते हुए बिना जवाब सुने किये वो रसोई में चले गए और कड़क गरमा गरम अदरक वाली चाय बना कर ले आये।
ये देख आज सोचने पर मजबूर हो गई कि देखो ना समय के साथ ये कितना बदल गए है जो कभी मेरे सुख दुख से मतलब नही रखते थे। आज वो कितने केयरिंग हो गये।
फिर तो पक्का हो गया कि आज वो काम पर नही जायेगी। वर्षो बाद जो अपने पति के मुंह से हमदर्दी के दो बोल सुनी थे।
सच औरतों को क्या चाहिए सिर्फ़ दो शब्द प्यार के फिर तो वो अपना सब कुछ निछावर कर देती है कुछ कहने की जरूरत नही।
अप्रकाशित ,स्वरचित ,मौलिक कहानी
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज