“लता, गुनगुन को मेरे साथ शहर भेज दो, शहर में पढ़ लिख कर कुछ काबिल बन जाएगी। यहां गाॅ॑व में देवर जी के गुजर जाने के बाद तुम बड़ी मुश्किल से खेतों में काम करके अपना गुजारा चलाती हो। कैसे इसको 12वीं के बाद पढ़ा पाओगी? अभी आठवीं में है, शहर से बारहवीं करवा कर मैं कॉलेज में एडमिशन दिला दूंगी, घर में रहेगी। आखिर ताईजी-ताऊजी कब काम आएंगे?”
“दीदी, लेकिन मैं ऐसे कैसे अपने दिल के टुकड़े को अलग कर दूं। मैं इनके जाने के बाद गुनगुन के लिए तो जी रही हूॅ॑।” लता ने जेठानी रोहिणी से कहा
“अरे! हम कोई और नहीं तुम्हारे अपने हैं। सोच लो, गुनगुन को इस गाॅ॑व में तुम क्या दे पाओगी। शहर में उसके लिए कितने ही रास्ते खुल जाएंगे। गुनगुन जो चाहेगी, हम उसे पढ़ाएंगे। गुनगुन और रोली में मेरे लिए कोई फर्क नहीं है। अब तुम सोच लो, हम लोग कल निकल रहें हैं।” रोहिणी ने मिश्री घोलते हुए मीठी आवाज़ में कहा
लता सोचने पर मजबूर हो गई- गुनगुन पढ़ाई में बहुत अच्छी है, पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी। आखिरकार बेटी की भलाई का सोचकर दिल पर पत्थर रख उसने गुनगुन को जेठ-जेठानी के साथ भेज दिया।
जाते-जाते रोहिणी ने उसे आश्वस्त किया कि हर हफ्ते फोन पर बात करवा दिया करेंगे। जाते वक्त गुनगुन बहुत उदास थी। आखिरकार बच्ची ही तो है,पहले पिता चले गए अब माॅ॑ का साथ भी छूट रहा है। लता का भी दिल बेटी के साथ ही मानो जा रहा था।
लता को रोहिणी ने कहा कि उसे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, वे लोग छुट्टियों में गुनगुन को मिलवाने ले आया करेंगे। लता गांव में रहकर अपना और सासु माॅ॑ का ख्याल रखे।
शहर आकर शुरू में तो गुनगुन के हर हफ्ते फोन आते और
गुनगुन के साथ रोहिणी से भी बात हो जाती। रोहिणी ने बताया कि अच्छे स्कूल में गुनगुन का एडमिशन करवा दिया है, रोली के स्कूल में नहीं हो पाया क्योंकि गुनगुन की पढ़ाई का स्तर गांव में पढ़ने के कारण कमतर है। लता निश्चिंत थी कि गुनगुन घर पर अपनों के बीच में है। पढ़ाई लिखाई कर रही है।
दो महीने बाद फोन आने का अंतराल बढ़ने लगा। महीने में एक बार ही बात हो पाती। उसमें भी रोहिणी साथ ही बात करती। रोहिणी लता को बताती कि गुनगुन की पढ़ाई के लिए वे लोग काफी मेहनत कर रहे हैं ताकि शहर के बच्चों के समान उसका लेवल आ सके, ट्यूशन भी लगवा दिया है।
लता जेठ-जेठानी के एहसान तले दब जाती। सासु माॅ॑ भी अपने बड़े लड़के-बहू यानि लता के जेठ और जेठानी रोहिणी का गाॅ॑व भर में गुणगान करते न थकतीं।
समय बीता, गुनगुन को गए एक साल हो गया। गर्मियों की छुट्टियां पड़ गई। लता गुनगुन के आने का रास्ता देख रही थी तभी रोहिणी का फोन आया कि वे लोग हिल स्टेशन घूमने जा रहें हैं , गुनगुन ने कभी पहाड़ देखें नहीं हैं तो उसे भी ले जा रहें हैं इस कारण इस बार गर्मियों की छुट्टियों में नहीं आ पाएगी।
मौसम बदला, सर्दी की छुट्टियां भी आकर निकल गई परंतु गुनगुन नहीं आ पाई क्योंकि रोहिणी का पथरी का अचानक ऑपरेशन कराना पड़ा। लता ने चिंता व्यक्त करते हुए गुनगुन को गर्मी की छुट्टियों में आने को कहा।
ऐसे ही हर साल होता रहा और देखते देखते चार साल बीत गए। रोहिणी ने बताया कि गुनगुन बारहवीं में आ गई। अब काॅलेज जाएगी तो इस साल भी नहीं आ पाएगी। गुनगुन फोन पर हूॅ॑-हां में जबाव देकर रख देती, रोहिणी ही लता से बातें करती।
लता की सासु माॅ॑ भर-भर कर बड़े बेटे-बहू को आशीष देती कि छोटे भाई की बेटी के लिए इतना कर रहा है परंतु अब लता का मन गुनगुन से मिलने के लिए तड़प रहा था।
एक दिन उसने पड़ोसी सुनीता को दो दिन के लिए सासु माॅ॑ की देख-रेख करने को मना लिया। सासु माॅ॑ को बताकर शहर जाने वाली रात की बस में बैठकर गुनगुन से मिलने जा पहुंची।
जेठजी के घर का पता उसके पास था जो सासु माॅ॑ से लिया था।
जेठजी का घर ढूंढने में कुछ समय लगा और वह जेठजी के बंगले के बाहर पहुंच गई।
इस समय सुबह के करीब साढ़े सात बज रहे थे। बंगले का मेन गेट खोलकर कोई दुबली-पतली लड़की झाड़ू लगाते हुए निकली।
नीमा ने उससे कहा कि रोहिणी भाभी से बता दो कि लता आई है।
लड़की का मुंह झाड़ू लगाने के कारण झुका था। लता की बात सुनकर झटके से उसने मुंह उठाया।
नीमा को उस लड़की को देखकर गहरा धक्का लगा।
वो कमजोर दुबली-पतली लड़की और कोई नहीं गुनगुन थी।
लता को देखकर गुनगुन की ऑ॑खों में आंसू बहने लगे। लता को क्षण भर में ही माजरा समझ में आ गया।
झाड़ू फेंक कर गुनगुन का हाथ पकड़कर घर में घुसकर आवाज लगाई,”दीदी, कहां हो आप?”
“अरे लता! तुम यहां कैसे?” रोहिणी अचानक से लता को सामने देखकर बुरी तरह सकपका गई।
बहाने बनाते रोहिणी बोली,” लता, आज काम वाली शांति बाई नहीं आई तो गुनगुन ने झाड़ू लगाने की बहुत जिद की,
मेरे मना करने पर भी मानी नहीं तो मैंने हां कर दी। जाओ गुनगुन बेटा, हाथ धोकर नाश्ता करने आ जाओ।”
गुनगुन हाथ धोकर एक आड़ी-तिरछी स्टील की पुरानी प्लेट लेकर ताई जी के सामने आ पहुंची।
रोहिणी लाड़ दिखाते हुए प्यार से बोली,” क्राकरी वाली प्लेट लाओ बेटा।”
लता सब देख रही थी, हाथ धोकर जब तक वह आई, रोहिणी ने उसका चाय नाश्ता भी लगा दिया था।
तब तक गुनगुन ने प्लेट में नाश्ता लिया और जमीन पर खाने बैठ गई।
रोहिणी बोली,” डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाओ, गुनगुन।”
“ताई जी, मैं तो हमेशा नीचे जमीन पर ..” उसके कुछ कहने से पहले ही रोहिणी ने सैंडविच उसके मुंह में रखते हुए कहा,” खाते हुए बोलते नहीं, गुनगुन बेटा।”
फिर गुनगुन का हाथ पकड़कर कुर्सी पर बिठा दिया
हंसकर लता की ओर मुड़कर रोहिणी बोली,” देखा लता, इतने साल बाद भी भूल जाती है गांव में नहीं शहर में है जब देखो जमीन पर बैठ जाती है। आओ, तुम नाश्ता करों।”
लता मन में सोच रही थी बाहर जो देखा वो सच था या यह सब! शायद शांति बाई के न आने पर गुनगुन ताई जी की मदद कर रही थी इसलिए झाड़ू लगा रही थी। मन को समझाया लता ने ऐसा सोचकर।
इतने में रोली ऊपर से नीचे आती दिखाई दी। सीढियों की ओट में होने के कारण लता तो उसे दिखी नहीं पर गुनगुन को डायनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठा देखकर रोली तमतमाकर चीखी,” यू गंवार! तेरी हिम्मत कैसे हुई चेयर पर बैठने की।”
गुनगुन के साथ से प्लेट छीनकर फेंककर बोली,” मम्मी, इस नौकरानी को साथ में वो भी क्राॅकरी में नाश्ता क्यों दिया?”
साथ ही गुनगुन को डांटकर बोली,” जा जाकर मेरे जूते पॉलिश करके ला।”
रोली ने गुनगुन को चांटा मारने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि लता ने रोली का हाथ पकड़कर एक जोर का थप्पड़ उसे जड़ दिया।
अचानक चाची को देखकर रोली सकपका गई और अपने गाल पर हाथ रख खड़ी रह गई।
लता ने गुस्से में कहा,” दीदी, ये ख्याल रख रही हो आप गुनगुन का। मेरी बेटी को नौकर बना दिया। पढ़ने भी नहीं भेजती होंगी, है ना गुनगुन?
गुनगुन बोली,”माॅ॑, स्कूल की मैंने यहां शक्ल भी नहीं देखी।”
“चल गुनगुन, अब और नहीं सहेगी तू। हम गाॅ॑व जा रहें हैं, अभी।” गुनगुन का हाथ पकड़कर लता जाने लगी
“रुक जा लता, मैं सच में पढ़ाऊंगी गुनगुन को, वो तो इसका मन ही नहीं लगता पढ़ने लिखने में।”
“बस दीदी और झूठ नहीं! हमारे गांव की सबसे होशियार पढ़ने वाली मेरी गुनगुन को अपने नौकरानी बना दिया! आपने जो गलती की है, गलती छोटा शब्द है आपने तो गुनाह किया है। धोखा दिया है हमें, हमारे विश्वास को! रिश्तों को तार-तार कर दिया है आप लोगों ने…आपके साथ भाईसाहब भी बराबर के गुनहगार हैं। सगे भाई की बच्ची को नौकरानी बना दिया। शर्म नहीं आई आप दोनों को! रोली, तुमने अपनी चचेरी बहन से नौकर की तरह व्यवहार किया। इन सब गलतियों की माफी नहीं है। कभी आपका जमीर जगे तो अपनी करनी पर विचार करना। ईश्वर सब देख रहा है कहीं न कहीं, कभी तो आप सभी को अपनी करनी की सजा अवश्य मिलेगी।”
शोर सुनकर रोहिणी के पति और लता के जेठ भी नीचे आ चुके थे। हाथ जोड़कर लता को रोकने की कोशिश की।
लता ने हिकारत भरी नजरों से देखा और कहा,”भाईसाहब, हर गलती की माफी नहीं होती! आपने अपने सगे भाई की बच्ची को नौकर बना दिया, धिक्कार है आप पर! आपने और जेठानी जी ने तो सगे रिश्तों का मान तक नहीं रखा! जेठ जी-जेठानी जी, आपके दिए इस धोखे की माफी आपको कभी नहीं मिल सकती!”
कहती हुई लता, गुनगुन को लेकर चली गई…
दोस्तों, लता के जेठ और उसकी जेठानी रोहिणी जैसे किरदार समाज में जगह-जगह पाए जाए हैं जिनकी नज़र में धोखा देना, बुरा बर्ताव करना साधारण बात है ऐसे लोग खून के रिश्ते भी नहीं देखते, स्वार्थ ही इनके जीवन का परम लक्ष्य होता है। रिश्ते नातों में इनका विश्वास नहीं होता है, समय आने पर किसी को भी बेचकर अपना काम निकाल सकते हैं, ऐसे लोगों से बचकर रहें, घर के होकर भी बड़ी मिश्री घोलकर डसने का एक अवसर जाने नहीं देते ये लोग! इस कहानी के माध्यम से यही बताने की कोशिश की है मैंने कि अपने बच्चों के लिए आज के इस भौतिकवादी युग में किसी पर भी ऑ॑ख मूंदकर भरोसा नहीं करें। धोखा मिल सकता है…. जागरूक रहें, सतर्क रहें!
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
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