जिंदादिली – संगीता अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi

वह पैंतीस वर्ष की एक जिंदादिल महिला थी अभी दो महीने पहले ही इस सोसायटी में आईं थीं तो लोगों से ज्यादा परिचय नहीं था उसका वैसे भी सुबह नौ बजे नौकरी पर निकल जाती थी और शाम को सात बजे वापिस लौटती थी। छुट्टी वाले दिन बाज़ार के काम निपटाती थी…अकेली रहती सब संभालती पर किसी ने भी उसके चेहरे पर शिकन नहीं देखी…जब भी सोसायटी की किसी महिला से टकरा जाती हंस कर अभिवादन जरूर करती थी…पर कुछ महिलाओं को उसकी निजी जिंदगी के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी…कहां से आई है…क्या करती है…अकेली क्यों रहती है…पति बच्चे कहां है…कहीं तलाक तो नहीं हो गया वैसे भी ऐसी आधुनिक औरतें कहा पति बच्चों के झंझट में पड़ना चाहती हैं। उन औरतों के मन में अनेक सवाल घूमते। वो कहते हैं ना हमारे भारत में कुछ लोगों को अपने घरों से ज्यादा पड़ोसी के घर में झांकना अच्छा लगता है।

“हैलो जी मैं परमजीत हम सब इसी सोसायटी में रहती है आपको देखते तो रोज हैं पर कभी परिचय नहीं हुआ ठंग से तो सोचा आज कुछ परिचय शरीचय हो जाए!” एक रविवार सारी महिला मंडली ने आखिरकार धाबा बोल ही दिया उसके घर।”

” जी मैं अर्चना..बहुत अच्छा लगा आप सब आए आइए अंदर आइए!” अचानक से सबको आया देख एक मिनट को झेंप गई वो पर तुरन्त होठों पर चिर परिचित मुस्कान ला सबका स्वागत किया। 

” आप यहां अकेले रहते हो आपका घर परिवार कहां है …आप कहां काम करते हो …इससे पहले आप कहां रहते थे?”…ऐसे अनेकों सवालों की बारिश सी हो गई अर्चना पर !

” पहले कुछ नाश्ता पानी हो जाए फिर परिचय शुरू करते हैं !” अर्चना मुस्कुरा कर बोली और रसोई में चली गई ।

” देख देख घर कितने अच्छे से सजाया हुआ है इसने…इसकी मुस्कान भी कितनी प्यारी है ना!…अरे मुस्कान पर मत जाना ये अकेली रहने वाली औरतें बहुत शातिर होती है।” अर्चना के रसोई में जाते ही खुसर पुसर शुरू हो गई।

“चुप चुप देख वो आ रही है!” तभी अर्चना को आता देख एक बोली।

” लीजिए आप लोग पहले नाश्ता पानी लीजिए फिर बातें करते हैं!” अर्चना सबको कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स देते हुए बोली।

” अर्चना जी ये सब आपने खुद बनाया है?” नाश्ते में कई चीजें  देख परमजीत हैरानी से बोली।

” जी कुछ खुद बनाया कुछ बाज़ार से मंगाया हुआ रखा था!” अर्चना हंसते हुए बोली।

“आपके पति कहां हैं?” एक औरत ने साइड टेबल पर रखी एक तस्वीर की तरफ इशारा कर पूछा जिसमें अर्चना एक आदमी के साथ थी।

” जी क्या कीजियेगा जान कर ऐसे राज को जिनसे मैं खुद भाग कर यहां आईं हूं!” अर्चना की अचानक आंख भर आईं।

” कुछ राज बांटने से दर्द कम हो जाते हैं अर्चना जी!” एक पड़ोसन उसके आंसू देख बोली।

“मेरे पति तो क्या मेरा दुनिया में कोई भी नहीं है… एक वक़्त अच्छा खासा खुशहाल जीवन था मेरा प्यारे प्यारे मां बाप पति और एक नन्हे से मेहमान के आने की आहट…. फिर अचानक सब ख़तम हो गया सिवा मुझे छोड़ !” अर्चना सिसकते हुए बोली।

” माफ़ कीजियेगा अर्चना जी हमने आपकी दुखती रग छेड़ दी! ” परमजीत शर्मिंदा हो बोली।

” नहीं नहीं मैं तो खुद चाहती थी कोई ऐसा हो जिसके सामने में अपना दर्द रख दिल का कुछ बोझ उतार सकूं …उस दिन मेरा आइसक्रीम खाने को मन मचल रहा था पांचवा महीना चल रहा था मेरा मैने अपने पति अथर्व से कहा उस वक़्त मम्मी पापा भी मेरे पास आए हुए थे क्योंकि अथर्व का कोई अपना नहीं था तो मेरी देखभाल मम्मी की जिम्मेदारी थी….हम सब गाड़ी में बैठ आइसक्रीम खाने चल दिए रात के ग्यारह बजे थे आस पास कहीं आइसक्रीम वाला नहीं मिला तो अथर्व ने गाड़ी हाईवे पर उतार दी पर सामने गलत साइड से आते ट्रक से टकरा गए और……!” अर्चना जी फफक पड़ी परमजीत ने उठ कर अर्चना को तसल्ली दी।

” अथर्व और पापा आगे बैठे थे और आगे से गाड़ी बिल्कुल पिचक गई मैं तो ये देख बेहोश हो गई और जब होश आया तो सब ख़तम हो चुका था पापा , अथर्व , मेरा अजन्मा बच्चा सब!” अर्चना हिचकी लेती बोली।

” और आपकी मम्मी?” एक ने पूछा।

” मम्मी को हार्ट अटैक आया था ये सब देख चोट ज्यादा नहीं थी पर नाजुक दिल अपना और बेटी का सुहाग एक साथ उजाड़ना सह नहीं पाया और पंद्रह दिन जीवन मृत्यु से लड़ते लड़ते वो भी मुझे छोड़ गई…!” 

” ओह!” सभी एक साथ बोली।

” मुझे संभलने में कई महीने लग गए।  लोग मुझे अभागन बोलने लगे जिसके ना माँ बाप बचे , ना सुहाग ना ही कोख । मन करता था खुद भी जान दे दूँ पर मेरे पापा अक्सर कहा करते थे ईश्वर ने हमें मानव जीवन इसलिए दिया की हम जिंदगी जिंदादिली से जिए भले कितने दुख तकलीफ हो पर ईश्वर की बनाए इस शरीर को नुक्सान ना पहुंचाए बस तब फिर से जीने के लिए इस शहर आ गई सब कुछ बेच कर अपना। जहां नौकरी करती थी उन्होंने मेरा तबादला यहां कर दिया था !” अर्चना बोली और एक गहरी सांस ली।

” ओह माय गॉड अर्चना जी आपकी जिंदादिली देख लगता ही भी की आपके दिल पर इतने जख्म हैं आप तो कितनो की प्रेरणा बन सकती हो!” परमजीत बोली।

” परमजीत जी हमारे पास दो रास्ते होते या तो अपने दुख में दुखी हो दूसरों को भी दुखी करते रहो या फिर अपने दर्द को सीने में छुपा दूसरों के जीवन में खुशी भरते रहो मैने दूसरा रास्ता अपनाया है एक एन जी ओ से जुड़ी हूं खुद को काम में और अनाथ बच्चों में व्यस्त रखती हूं खुद का गम छुपा उनकी जिंदगी में खुशी के रंग भरती हूं बस इतनी सी पहचान है मेरी उम्मीद है अब आपको अपने सवालों के जवाब मिल गए होंगे!” अर्चना आंसू पोंछ बोली।

सारी औरतें उनके सम्मान में ताली बजाने को मजबूर हो गई । उनके मन से थोड़ी देर पहले तक अर्चना को ले जो ख्याल थे वो भी धुल चुके थे और उसकी जगह ले ली थी सम्मान ने। सभी अर्चना को दोस्त बनाने को मचल उठी और अर्चना भी खुश थी पराए देश कोई अपना सा पा कर।

दोस्तों जिंदगी जिंदादिली से जीने वाली अकेली औरतें गलत नहीं होती बल्कि हर किसी के अकेले रहने की एक खास वजह होती और कुछ अर्चना जैसी भी होती जो अपने दिल में इतने गम छुपा कर भी एक प्यारी सी मुस्कान सजाए रखती।

आपको हमारी अर्चना की जिंदादिली और जीवन जीने का जज्बा कैसा लगा बताइएगा जरूर।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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