कैसा लगा ससुराल, नीलू ! सास के बिना जेठानी ही तो सास नहीं बन बैठी ? सच बताऊँ, मुझे तो अजीब सा लगता है आज तक , अगर मम्मीजी घर में ना हों । भई , ससुराल तो सास से ही होता है ।
यार , दो ही महीने तो हुए अभी , शुरू में तो सब अच्छा ही होता है । ज़रा होने दो , दो-चार साल , फिर पता चलेगा । अब सास तो है नहीं, क्या बताऊँ , हाँ जेठानी बहुत अच्छी लगी ।
नीलू और उसकी सहेली माला आपस में बातें कर रही थी । उन्होंने इधर-उधर की बातें की और माला के जाने के बाद नीलू सोचने लगी कि उसकी जेठानी महिमा बातें तो मीठी करती है पर कहीं न कहीं नीलू को उनके व्यवहार में ईर्ष्या और बदले की बू आती थी पर जब भी पति सोमेश से वह महिमा के लिए कुछ कहती तो उसका यही जवाब होता-
तुम भाभी को अभी जानती ही कितना हो , ये तो हमारे परिवार की धुरी हैं । हमेशा निगेटिव बातें मत किया करो ।
नीलू ने भी सोचा कि सोमेश को उससे ज़्यादा अनुभव है और सच ही तो है कि उसे आए हुए समय ही कितना हुआ है ।
दिन-महीने बीतते गए और दो साल होने के साथ ही नीलू एक बेटी की माँ बन गई । इस बीच न जाने कितनी घटनाएँ ऐसी हुई कि नीलू अच्छी प्रकार समझ गई कि महिमा दीदी बहुत ही चालाक क़िस्म की औरत हैं , वे बातों को सबके सामने इस तरह पेश करती कि कोई साधारण आदमी, उनकी गलती निकाल ही नहीं सकता था । नीलू सब समझती पर सोमेश भाभी की महानता के गुणगान करने के अलावा कोई बात सुनने को राज़ी ही नहीं दिखता था । नीलू ने भी उसके सामने कहना-सुनना ही छोड़ दिया ।
जब नीलू की बेटी तीन साल की हो गई तो घर और बाहर वाले दूसरा बच्चा करने की सलाह देने तथा माँग करने लगे पर सोमेश ने ऐलान कर दिया कि वह दूसरा बच्चा नहीं चाहता और फिर भाई- भाभी का बेटा नीरव , क्या मानवी का भाई नहीं है?
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नीलू सबकी बातें सुनती पर उसने भी कभी सोमेश से दूसरे बच्चे की बात नहीं कही । हालाँकि महिमा ने स्वयं भी नीलू से कहा-
नीलू, मानवी बड़ी होती जा रही है । लड़का तो होना ही चाहिए ।
दीदी, ज़रूरी तो नहीं कि लड़का ही होगा । और रही भाई की बात तो क्या नीरव मानवी का भाई नहीं है?
नीलू हमेशा गौर करती थी कि जब भी बेटे के रूप में नीरव का नाम लिया जाता था, महिमा के चेहरे का रंग बदल जाता था। वह मुँह से कुछ ओर कहती पर उनके दिल की बात चेहरे से साफ़ झलक जाती थी । नीरव नीलू के विवाह के बाद पैदा हुआ था और वह नीरव को मानवी के समान प्यार करती थी पर जेठानी के व्यवहार के कारण, उसने नीरव से दूरी बना लीं। मानवी भी अपनी माँ के समान नीरव को दिलोजान से चाहती , हर बात में “ भइया-भइया “ कहके , नीरव की अनुपस्थिति में भी, उसकी उपस्थिति का अहसास कराती ।
समय का पहिया पंख लगाकर उड़ता गया और सभी बच्चे बड़े हो गए । अब धीरे-धीरे मानवी भी महसूस करने लगी कि जो अहमियत, वो नीरव को देती है, नीरव नहीं देता । वह कई बार नीलू से भी कहती-
बस मैं ही भइया भइया करके सारी बातें कहती रहती हूँ पर वे तो अपनी बहन रीमा दीदी को ही बस अपना मानते हैं ।
नीलू मानवी को समझा-बुझाकर शांत करती । उसे यक़ीन दिलाने का प्रयत्न करती कि नीरव के लिए दोनों बहनों , रीमा और मानवी में कोई अंतर नहीं है ।
पर नीरव की शादी के अवसर पर , जब नीरव के एक दोस्त ने मानवी को देखकर कहा –
नीरव ,यह तो तुम्हारी बहन है ना ?
नहीं, यह तो मेरी कज़िन है । मेरी बहन तो , वो है ।
उस दिन मासूम मानवी का दिल टूट गया और जब उसने आँखों में आँसू भरकर नीलू की तरफ़ देखा तो नीलू ने बहुत समझाया-
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बेटा, दूसरों को तो बताना ही पड़ता है । इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है ?
पर उस दिन नीलू को भी मन ही मन पछतावा हुआ कि क्यों , उसने समय रहते अपनी बच्ची के बारे में नहीं सोचा ? चाहे दो बहनें ही होती पर अपनी तो होती । समय हाथ से निकल चुका था । आज उसे याद आती हैं, लोगों की समझाई बातें-
दो बच्चे तो होने ही चाहिए एक-दूसरे का सुख-दुख बाँटने के लिए ।
करूणा मलिक