” नीला, मैं जरा सेठ जी से मिलकर आ रहा हूँ |तबतक तुम कमरे की सफाई ठीक से कर लो और देख लो खाना बनाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए |”अपनी पत्नी से कहते हुए रामू कमरे से बाहर निकल कर हवेली की ओर चल पड़ा | रामू चल तो पडा़, पर उसके कदम न उठ रहे थे |वह बेहद घबराया हुआ था |उसे सेठ जी के गुस्से से बहुत डर लग रहा था | चार दिन की छुट्टी लेकर गया था और पूरे पंद्रह दिन के बाद आ रहा था , पर वह भी क्या करता ? परिस्थितियां ही ऐसी हो गई थी |
उसका घर इस शहर से दूर पहाडो़ के नीचे एक छोटे से गाँव मे था |गाँव अत्यंत पिछड़ा, सुविधा बिहीन था | सिर्फ एक स्कूल के वहां कोई साधन नहीं था |उसने दसवीं तक की शिक्षा वहीं से पाई थी |आगे गाँव में स्कूल नहीं था और शहर जाकर पढने लायक उसकी स्थिति न थी |वह खेती में अपने पिता की मदद करने लगा | किसी तरह घर का खर्च चल जाता था , पर जब उसकी शादी हो गई और दो बच्चे हो गए, तब बहुत मुश्किल हो गई |वह अपने एक दोस्त के साथ इस शहर में आ गया, जो पहले से ही यहाँ रहता
था और ड्राइवर का काम करता था |
उसने उसे अपने साथ रखा और गाड़ी चलाना भी सिखाया | अपने साहब से कहकर उनके एक दोस्त के यहाँ ड्राइवर की नौकरी भी दिलवा दी |
रामू के साहब सेठ सोहन लाल शहर के जाने माने रईस थे |
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शहर के बीच में एक बड़ी सी हवेली थी उनकी |जिसमें वे अपनी वृद्ध माँ, पत्नी, बेटा, बहू और एक पोते के साथ रहते थे |हवेली के पीछे वाला कमरा उन्होंने
रामू को रहने के लिए दे दिया था | जिसमें वह पीछे के गेट से आया-जाया करता था |कमरे और पिछले गेट की चाबी उसी के पास रहती थी | वह वहाँ बहुत खुश था | सेठ जी थोडे़ कड़क तो जरूर थे, पर दिल के अच्छे थे |हां, नियम कायदे के पक्के थे और झूठ से उन्हें नफरत थी | वह वहां कम खर्च में आराम से रहता था और अपने परिवार को पैसे भी भेजता था |उसके पिता जी का देहांत तीन साल पहले हो गया था | तब उसने अपने परिवार को यहाँ लाना चाहा था, पर मां आने को तैयार न थी और वह गाँव में माँ को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था |वह और उसका दोस्त बारी-बारी से गाँव जाते और
एक दूसरे के परिवार से मिल कर आते |
इसबार गाँव से आने पर उसके दोस्त ने बताया कि उसकी माँ बहुत बिमार है और उसे बहुत याद कर रही है | इसीलिए वह सेठ जी से छुट्टी लेकर
गाँव गया था |सेठ जी ने उसे चार दिन की छुट्टी दी थी, पर उसकी माँ उसके जाने के दो दिन बाद ही चल बसी |ऐसा लगता था कि उसे देखने के लिए ही उसकी माँ की सांसें चल रही थी | माँ की मृत्यु हो जाने से उसके क्रिया कर्म करने और घर को व्यवस्थित करने में वह उलझ गया | शहर आते समय अपने परिवार को भी साथ लेता आया ताकि सब साथ रहें और बार-बार गाँव न जाना पडे | बस इसी सब में उसे पंद्रह दिन लग गए | कल देर रात वह लौटा और पिछले गेट से अपने कमरे में आ गया | सुबह होते ही वह सेठ जी से मिलने आ गया |
“पता नहीं, सेठ जी कितना गुस्सा करेंगे? ” उसने सोचा और डरते-डरते काॅल वेल बजाया |दरवाजा खुला|
“कौन है? ” अंदर से आवाज आई |
“मैं हूँ, रामू |” कहते हुए रामू अंदर आ गया |सेठ जी सोफे पर बैठकर चाय पी रहे थे |
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“प्रणाम सेठ जी |” रामू ने सेठ जी को प्रणाम किया |
“अरे नालायक, अब आ रहा
है |कहाँ रह गया था ? चार दिन की
छुट्टी लेकर गया था और पंद्रह दिन बाद आ रहा है |”सेठ जी गुस्से से बोले |
” माँ बिमार थी |देखने गया था, पर वह तो उपर चली गई | उसी के कारण आने में देर हो गया |” रामू धीरे से बोला |
“खबर कर देते कि आने में देर होगी |” सेठ जी डांटते हुए बोले |
“मैंने कोशिश की थी, पर मेरे गांव से फोन ही नहीं लगा और मैं गांव से बाहर जा ही नहीं सका |” रामू सहमते हुए बोला |
“तो अब क्यों आया है ? मैंने तो दूसरे ड्राइवर के लिए बात कर ली
है |एक-दो दिन में आ जायेगा |तुम जाओ, अब तुम्हारी जरूरत नहीं है |” सेठ जी सोफे से उठते हुए बोले |
“ऐसा न कहें मालिक | मैं तो अपनी पत्नी और बच्चों को भी साथ लेता आया हूँ |उन्हें लेकर कहाँ जाउंगा| मैं तो आपके भरोसे ही लाया हूँ उन्हें| मुझे मत हटाइये | माफ कर दीजिए |”
रामू हाथ जोड़कर गिडगिडाते हुए बोला |
” मैं कुछ नहीं जानता |मैं अब तुम्हें नहीं रखूंगा |तुम जाओ |”सेठ जी
भीतर जाने लगे |
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“मुझे माफ कर दीजिए मालिक |आगे से ऐसी गलती नहीं करूँगा |अब गाँव जाकर करूँगा भी क्या ? माँ तो रही नहीं |”रामू रोने लगा |
” आपकी भी तो माँ हैं|उन्हें कुछ होगा तो क्या आप छोड़ देगें ? “
“बदमाश मेरी माँ के बारे में बोलता है |” सेठ जी ने गुस्से में उसे मारने के लिए हाथ उठाया |
“दादा जी, दादा जी, रूकिए |” उनका आठ वर्ष का पोता अंकुर दौडता हुआ आया |उनके हाथ पकड़ लिये |
“क्या है ? ” सेठ जी ने उसकी ओर देखा |
“रामू अंकल आपसे छोटे हैं ना|” अंकुर ने पूछा |
“हां “
” कमज़ोर और गरीब भी |”
‘हां, है |पर तुम क्यों पूछ रहे हो ? ” सेठ जी ने पूछा |
“तब इसे नहीं मारिये |यह अन्याय है |” अंकुर भोलेपन से बोला |
“क्या बोलते हो ? कहाँ से सीखा ये सब |” सेठ जी बोले |
“सर से दादा जी |हमारे सर ने बताया है कि अपने से छोटे, कमज़ोर और गरीब लोगों को नहीं सताना चाहिए, नहीं मारना चाहिए |यह अन्याय है | हमें अन्याय नहीं करना चाहिए |”अंकुर दादा जी से बोला |
“ठीक है, नहीं मारता | जाओ रामू, तुम अपना परिवार लेकर जितनी जल्दी हो, यहाँ से चले जाओ |” सेठ जी ने अंकुर को गोद में उठाते हुए कहा |
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“दादा जी, आप अंकल को मत भेजिए |ये तो मेरे लिए गिफ्ट लेकर आये हैं |” अंकुर बोला |
“गिफ्ट, कैसा गिफ्ट |” दादा जी ने पूछा |रामू भी उनकी तरफ देखने लगा |
“मेरे लिए दो फ्रेंड लेकर आये हैं |मैं ने खिड़की से देखा है |एक मेरे जितना बड़ा है और एक छोटा है |हम तीनों मिलकर खूब खेलेंगे | मैं आपको यही बताने तो आया था | यह अंकल चले गए तो मेरे फ्रेंड भी चले जायेगे ं |आप इन्हें मत भगाईये दादा जी |” अंकुर दादा जी के गले लगते हुए बोला |
अंकुर की भोली -भाली बातों से दादा जी का सारा गुस्सा खत्म हो गया |वे हंसने लगे |
“ठीक है रामू, तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है |यही रहो |” दादा जी ने अंकुर को कसकर गले लगा लिया |”अब तो खुश हो ना |”
“ओह मेरे प्यारे दादा जी, आप बहुत अच्छे हैं |” अंकुर हंसने लगा |
“थैंक्यू सेठ जी, थैंक्यू अंकुर बाबा |” रामू भी रोते-रोते हंसने लगा |
“भगवान आपको सदा सुखी रखें |” उसके ह्रदय से ढेर सारी दुआएँ निकलने लगी |
अन्याय
सुभद्रा प्रसाद ,
पलामू, झारखंड |