वक्त से डरो – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

हिमाँशु ….. पवन का दोस्त है… दोनों साथ-साथ पढ़ते थे । पढ़ाई खत्म होते ही हिमांशु को बैंक में नौकरी मिल गई थी । उसके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे …. उसकी एक छोटी बहन सुमन है …जो डिग्री कॉलेज में पढ़ रही थी …… वे दोनों मामा के घर में रहते थे । हिमांशु की नौकरी लगते ही मामा ने कहा बेटा आप अपनी और बहन की ज़िम्मेदारी सँभाल लो । अब हिमांशु के ऊपर बहन की शादी की ज़िम्मेदारी आ गई थी ।

उसी समय हिमांशु की नजर पवन पर पड़ी जो एल आई सी में नौकरी कर रहा था । उसने अपनी बहन के रिश्ते के बारे में पवन से पूछा तो पवन तैयार हो गया …… हिमांशु को माँ से मिलवाया क्योंकि उसे सुमन बहुत पसंद थी।

पवन की माँ कौशल्या ने उन दोनों की शादी धूमधाम से करवा दिया । उनकी शादी के बाद सब मिलकर रहने लगे परन्तु सुमन को कौशल्या पसंद नहीं थी …….. वह उन्हें बात-बात पर ताने मारती रहती थी । उसकी इन हरकतों से तंग आकर कौशल्या गाँव के मकान में जाकर रहने लगी ।

पवन के लाख पूछने पर भी कौशल्या ने उसे बहू के बारे में कुछ नहीं बताया । वह बहू बेटे को खुश देखना चाहती थी ।

जब भी उसे बेटे बहू को देखने की इच्छा होती थी तो वह गाँव से दो तीन दिनों के लिए आ जाती थी ।

उनका इस तरह से आना भी सुमन को रास नहीं आता था।

एक साल के बाद जब कौशल्या को पता चला कि सुमन माँ बनने वाली है वह खुशी खुशी सुमन की मदद करने के लिए गाँव से आकर पवन के घर में रहने लगी । सुमन से बिना काम कराए समय – समय पर उसके खाने पीने पर ध्यान देने लगी ।

जब सुमन ने बेटी को जन्म दिया तो तो कौशल्या की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।

यहीं रहकर सुमन की देखभाल माँ से भी ज़्यादा करने लगी इतना करने पर भी वह सुमन का दिल नहीं जीत पाई।

जैसे ही सुमन स्वस्थ हुई और घर के कामकाज करने लगी तो उसने कौशल्या को वापस गाँव भेज दिया । कौशल्या का बहुत दिल करता था ….. वह बेटे के साथ ही रहे ….. वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसके कारण बेटा और बहू में मनमुटाव हो जाए ।

गाँव में भी वह लोगों के घर काम करके अपना जीवनयापन कर रही थी क्योंकि वहाँ उनके खेत वगैरह कुछ भी नहीं थे ।

पवन में इतना दम नहीं है कि वह सुमन से लड़ कर माँ को अपने घर में रख सके । कौशल्या का मन बार-बार बेटे के घर की ओर खिंचता था कहते हैं कि असल से सूद प्यारा होता है ।

उस दिन सुमन ने घर का सारा काम निपटा कर अभी कमरे में जाकर कमर सीधी करने की तैयारी कर रही थी कि घर के सामने रिक्शा आकर रुका उसमें से कौशल्या को नीचे उतरते देख उसका चेहरा एकदम से बदल गया वह सोचने लगी कि अरे! यार इन्हें भी इसी समय आना था क्या?

कौशल्या को तो जैसे आदत सी हो गई थी कि सुमन कभी उसका स्वागत नहीं करती थी और न ही हालचाल पूछती थी ।

कौशल्या के हाथ पैर धोकर आते ही सुमन ने उसे खाना खिलाया और अपने कमरे में चली गई ।

पवन ऑफिस से आकर बरामदे में माँ को बैठा हुआ देख खुश हो जाता है उनके पास बैठकर पूछता है माँ कैसी हैं ? कब आईं हैं ? आपने खाना खाया है या नहीं ?

रसोई में चाय बना रही सुमन का खून खौल उठा कि देखो माँ से कैसे पूछ रहा है ताकि वह बता सके कि मैंने उन्हें खाना खिलाया है या नहीं ?  

पोती पिंकी भी दादी को देख खुश हो जाती है क्योंकि दादी उसे बहुत सारी कहानियाँ सुनाती हैं ।

यहाँ पवन के घर में भी कौशल्या एक मिनट खाली नहीं बैठती थी ……. दिनभर कुछ न कुछ काम करती रहती थी ।

दोपहर को एक आधा घंटा लेटती थी बस ………  उस दिन भी इसी तरह वह लेटी हुई थी कि उसे सुमन की बातें सुनाई दी वह पड़ोसन से बात कर रही थी ।

उसने कहा …. अरे ! सुमन तुम्हारी सास एक महीने पहले ही आकर गई थी अभी फिर से आ गई है ।

 सुमन क्या करूँ मैं इनके बारे में बिना बताए टपक जाती है …… यह कहते हुए कि बेटे को देखना है आजकल पोती का बहाना भी है उसको देखना है कहते हुए यहाँ टपक जाती है मैं तो इनसे तंग आ गई हूँ ।

कौशल्या उसकी बातों को सुनकर दुखी हो जाती है और शाम को ही बेटे के आते ही वापस गाँव लौट आती है । पवन बचपन में उसका पल्लू पकड़कर घूमता रहता था ……. आज अपनी माँ को ही अपने घर नहीं रख सकता था।

सुमन के सामने उसकी बोलती बंद हो जाती है । खैर वह अपने घर में खुश है तो बस है मैं कितने दिन जी लूँगी सोच कर उसने अपने मन को समझा लिया ।

इस बार कौशल्या को सुमन फिर से माँ बनने वाली है …… यह खबर मिली। कौशल्या को खुशी हुई कि इस बार जरूर उसे पोता ही होगा ।

पवन ने माँ से सुमन की तबीयत के बारे में नहीं बताया ……इधर पिंकी की छुट्टियाँ चल रही थी ……. उसे सँभाल पाना दोनों के लिए मुश्किल हो रहा था उसी समय हिमांशु सुमन को देखने के लिए आता है ।

हिमांशु दो दिन रहकर जाते समय पिंकी को अपने साथ ले जाने की बात कहता है । सुमन खुशी से उसे भेजने के लिए तैयार हो जाती है ।

पिंकी को गए हुए एक हफ़्ता हो गया था ..,,., सुमन ने अपने सारे काम निपटा लिए जो पिंकी के रहते हुए नहीं कर पा रही थी ।

उसकी तबीयत भी ठीक हो गई थी । पवन पिंकी को देखने के लिए तड़पने लगा ।

सुमन पहले चुप थी जब सारा काम ख़त्म हुआ और तबियत ठीक हो गई तब वह भी पिंकी को मिस करने लगी।

पति – पत्नी दोनों एक पल भी पिंकी के बिना रह नहीं पा रहे थे । उनकी बातें पिंकी से शुरू होती थीं और अंत पिंकी से ही होता था ।

एक दिन ऑफिस से आकर वह कमरे में बैठ कर अपने आप में सोच रहा था कि देखो तो पिंकी को चार साल पालपोसकर बड़ा किया है और आज हम बच्ची को छोड़कर नहीं रह पा रहे हैं …..  माँ ने तो मुझे माँ- बाप दोनों बनकर पाला पोसा और बड़ा किया आज वह इतने सालों से मुझे छोड़कर अकेली रह रही है …… बिचारी कैसे रह रही होगी । इन्हीं सब बातों को सोचकर पवन उदास हो गया था ।

यही बातें सुमन के ज़ेहन में आती जा रहीं थीं …… उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा । उसने पवन से कहा कि हिमांशु भाई को फोन कीजिए पिंकी को लेकर आ जाएँ …… मेरा तो उसके बिना एक – एक पल कटना मुश्किल हो रहा है। पवन ने हिमांशु को फोन किया और पिंकी के बिना सुमन बावरी हो रही है प्लीज़ उसे यहाँ वापस पहुँचा दो।

हिमांशु दूसरे दिन पिंकी को लेकर घर आ गया । पिंकी को देखकर पवन और सुमन उसे गले लगाकर रोने लगे।

उसी समय हिमांशु ने कहा ….. सुमन “ वक्त से डरा करो “ तुम अपनी बिटिया को छोड़कर कुछ दिन नहीं रह सकी और कौशल्या जी से आशा करती हो कि वे अपने बेटे से दूर रहें यह सही है क्या?

सुमन का सर पश्चाताप से झुक गया और वह हिमांशु से तथा पवन से माफी मांगने लगी ।

 उसी समय घर के सामने रिक्शा रुका

 उसमें से कौशल्या उतरी और पिंकी कहते हुए घर में घुसी …… पिंकी दौड़कर दादी के पास आ जाती है।  पवन और सुमन ने कौशल्या के पैर छुए ….. उनसे माफी भी माँगी और अपने साथ ही रहने के लिए उन्हें मना लिया ।

हिमांशु ने किसी को नहीं बताया ….. परन्तु यह उसका ही प्लान था।  

वह एक साल से सुमन को देख रहा था …… कैसे वह सास को परेशान कर रही है ।

 यह तो पवन की अच्छाई थी ….. या कमजोरी पता नहीं है ….. वह सुमन को कुछ नहीं कह पा रहा था …. इसलिए उसने कौशल्या की मदद करनी चाही और पिंकी को अपने घर ले जाने का निर्णय लिया । उसका प्लान कामयाब हो गया और कौशल्या अपने बेटे के पास आ गई थी ।

के कामेश्वरी

वक्त से डरो ( साप्ताहिक विषय)

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