“बूढ़ी सास के साथ यह कैसे,
कर सकतीं हो तुम शुभी “
जेठ जी ने कड़क लहजे में कहा
वही अम्मा डबडबाई आंखों से बोलीं
“क्या गलत है अगर यहाँ रहना चाहतीं हूँ तो आखिर अमन छोटा बेटा हैं मेरा”
“हाँ अम्मा तूं मेरे पास रहेगी”
अमन ने अम्मा के हाथ थामते हुए बोला और सोफा पे बैठा कर पानी देने लगा परिवार के सभी अम्मा के चारों ओर बैठ गयें शुभी की घोर निंदा करने लगे व शुभी अपने कमरे में चलीं जाती है थोड़ी देर में शुभी हाथों में कपड़ा से भरी हुई सूटकेस पकड़ीं निकलतीं है तो बैठक में बैठीं अम्मा और उनके दोनों बेटे रमन- अमन और बडी बहू कलावती व उन के बच्चे टकटकी लगाकर देखने लगते हैं
लेकिन अमन अपने पत्नी से बोलता है
“अब यह नया नाटक क्या है और बिना अनुमति की तुम जा कहाँ रहीं हो तुम मेरी पत्नी हो”
“अच्छा तो आपको याद है आप की पत्नी हूँ मैं “
गुस्से में शुभी ने पलटवार करते हुए बोलीं
फिर कदम आगे बढाने लगीं तो अमन समझ गया आज उसकी चुप्पी उसका घर तोड़ देगा और निर्णय तुरंत लेना होगा अत: वह शुभी के हाथों से सुटकेस लेकर बोलता है
“यह घर तुम्हारा हैं शुभी यूँ नहीं जा सकतीं हो, हम कमरे में बैठकर बात करते हैं”
“नहीं जो कहना है यही बोल दिजिए”
“मुझे थोड़ा सा वक़्त दो”
कहते हुए अमन की आंखें डबडबा जाता है व शुभी का हृदयँ पति के तरफ़ मुड़ गया शुभी बिना कोई शब्द के कमरे में चलीं जाती हैं
सन्नाटा छा जाता है फिर थोड़ी देर में बैठक में अमन पे कटाक्षों का बाण चलने लगता है
जेठानी कलावती बोल उठीं
” इस कहते हैं त्रिया चरित्र अम्मा जी “
बड़े भाई रमन अपने छोटे भाई अमन से कहा
“बिल्कुल जोडू का गुलाम बना गया तू तो”
अम्मा अपनी मुंह खोलकर कहतीं है
“मुझे तो शुरुआत से ही यह नहीं सुहाती थी इसलिए तो आज तक कुछ नहीं दिया बावरी को”
अमन शांति से सब की प्रतिक्रिया सुन रहा था और उसे अपनी पत्नी की बात याद आ रहा था
वह अतित की बात याद कर शुन्य हो रहा था
‘बारह साल की शादी के बाद भी अम्मा ने कभी शुभी को बहू का दर्जा नहीं दी थी। शादी के शुरुआती दिनों में ही आये दिन के कलह से परेशान
अमन शहर में छोटा सा मकान किराये पे लेकर रहने लगा शुभी चुंकि अच्छे परिवार से थी फिर भी मेरे स्वभिमान के खातिर कभी कुछ नहीं मांगी वक़्त के साथ दो बच्चों की माँ और पत्नी के किरदार निभाते हुए शुभी एक बुटीक खोल ली आमदनी दोगुना हुआ और एक मकान बन गया सम्पन्नता आया और नाते रिश्तेदारों का बौछार भी आ गया
देखते देखते अम्मा, भाभी- भाई सभी का आगमन होने लगा शुभी पे कार्यभार बढ़ा मेहमानों के आगमन से बच्चों के पढाई पे असर पड़ा तो दोनों बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में डाल दिये
बच्चों के जाने के उपरांत शुभी चुप रहने लगीं और मेरे गृहस्थी में एक अलगाव आने लगा जो सुख हमने गरीबी में देखीं वह खोता गया व घर में आये दिन कलह पूर्ण वार्तालाप अलग ही रहने लगा।
अगले महीने भैय्या ने कहा मकान मां के नाम पर हो जाता तो हम दोनों भाई एक साथ रहते मुझे भी सही लगा लेकिन शुभी खिलाफ थी उसका कहना था
‘गाँव का घर मकान व पेन्शन सभी कुछ अम्मा ने भाभी के नाम कर दिया है तो फिर यहाँ क्या है? ???
‘देख लेना मेरे हटते ही तुम रास्ते पर आ जावंगे’
बच्चों को तो भेज ही दिये एक दिन मैं भी चलीं जाऊगी।
“अमन ओ अमन मकान का क्या होगा”
भैय्या के जोर से कहा तो अमन वर्तमान में लौट आया
“जी भैय्या होगा क्या वही जो आप चाहते हैं लेकिन उससे पहले अम्मा को गांव के खेत- मकान भी खुद के नाम पर वापस करवाने होगें व पेन्शन तीन हिस्सों में होगें या अम्मा के पास जमा रहेगा”
“क्या बकवास कर रहे हैं बबुआ जी”
कलावती ने कहा तो अमन ने कहा
“वही जो बहुत पहले करना चाहिए था खैर मैं बच्चों को लेने जा रहा हूँ”
कहते हुए अमन घर से निकल जाता है और अम्मा कलावती के साथ समान पैक करने लगीं
शुभी दरवाजे पर खडी़ अपने बच्चों का इंतजार करने लगीं
आज पुनः उसकी मातृत्व वापस मिलने वालें थे अपने पति के लौटे स्वभिमान देखकर प्रफुल्लित थी शुभी।
अभिलाषा श्रीवास्तव
गोरखपुर