विश्वास की डोर – सुभाष मौर्य : Moral Stories in Hindi

सुमन एक छोटे से गाँव, हरियाली में बसे मधुरपुर में अपनी माँ कमला और छोटे भाई रमेश के साथ रहती थी। यह गाँव प्रकृति की गोद में था, जहाँ खेतों की हरी-भरी फसलें और नदियों का संगीत जीवन का आधार थे। लेकिन सुमन के परिवार के लिए यह सुंदरता एक खोखली तस्वीर थी। पाँच साल पहले, उसके पिता एक सड़क दुर्घटना में चले गए थे।

एकमात्र कमाने वाले की मृत्यु ने परिवार को आर्थिक और भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था। कमला, एक साधारण ग्रामीण औरत, ने हिम्मत जुटाई और खेतों में मजदूरी करने लगी। दिनभर की थकान के बाद भी, उन्हें घर संभालना था—रमेश को स्कूल भेजना, खाना बनाना, और सुमन का हौसला बढ़ाना।सुमन 17 साल की थी, और उसकी जिंदगी दोहरी जिम्मेदारियों से भरी थी।

सुबह वह अपने भाई के साथ स्कूल जाती, फिर दोपहर में खेतों में माँ की मदद करती। रात को वह अपनी पुरानी कॉपियों में पढ़ाई पूरी करने की कोशिश करती, लेकिन आँखों के सामने माँ की थकी हुई सूरत और रमेश का भूखा पेट हमेशा उसे परेशान करता। एक दिन, कमला ने थकान से भरे स्वर में कहा, “सुमन, तेरे पिता नहीं रहे, अब हमें मिलकर जिंदगी संभालनी है। तेरी पढ़ाई भी जरूरी है,

लेकिन घर का बोझ भी बाँट ले।” सुमन ने सिर हिलाया, लेकिन मन में एक गहरी उदासी थी। वह सोचती, “क्या यह जिंदगी हमेशा यूं ही चलेगी?”इसी बीच, गाँव में एक नई हलचल शुरू हुई। 30 जून से 6 जुलाई तक, एक साप्ताहिक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था, जिसका विषय था “विश्वास की डोर”। यह एक पहल थी, जहाँ लोग अपनी जिंदगी की कहानियाँ साझा कर सकते थे। पोस्टर पर लिखा था, “दोस्तों, आज 30 जून सोमवार से और दिन तक साप्ताहिक विषय पर अपनी नई-नई

कहानियाँ रच सकते हैं। आप अपनी प्रविष्टि 6 जुलाई तक भेज सकते हैं।” नीचे एक ईमेल और व्हाट्सएप नंबर दिया गया था   —[email protected] और 8130721728। यह भी कहा गया कि चुनी गई कहानियों को मदद मिल सकती थी। सुमन ने सोचा, “शायद यह मेरे परिवार के लिए कोई रास्ता हो।”रात को, सुमन ने अपनी पुरानी डायरी निकाली। उसने मोमबत्ती की रोशनी में लिखना शुरू किया। उसने अपनी माँ की मेहनत को शब्दों में पिरोया—कैसे कमला सुबह चार बजे उठती,

ठंड में भी खेतों में काम करती, और फिर घर लौटकर रोटियाँ सेंकतीं। उसने रमेश के सपनों का जिक्र किया, जो इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन फीस की कमी के कारण स्कूल छोड़ने की कगार पर था। और फिर अपनी अपनी कोशिशों को—कैसे वह माँ की मदद करती, लेकिन मन में एक आशा की किरण जलाए रखती थी। आखिर में उसने लिखा, “मेरा विश्वास है कि एक दिन हमारा जीवन

बदलेगा।”6 जुलाई की सुबह, सुमन ने अपनी कहानी ईमेल कर दी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, लेकिन वह चुपचाप प्रार्थना कर रही थी। अगले दिन, दोपहर 2 बजे, उसके पुराने मोबाइल पर एक कॉल आई। फोन पर एक सौम्य आवाज थी, “सुमन, मैं रीता हूँ। मैं एक एनजीओ से हूँ। तुम्हारी कहानी ने हमें गहराई से प्रभावित किया। क्या हम तुमसे मिल सकते हैं?” सुमन का गला रूंध गया।

उसने हाँ कहा, और अगले हफ्ते एनजीओ की टीम गाँव पहुँची।रीता और उनकी टीम ने कमला से मुलाकात की। उन्होंने कमला को सिलाई का प्रशिक्षण देने और एक छोटी सी दुकान शुरू करने का प्रस्ताव रखा। सुमन के लिए, उन्होंने एक स्कॉलरशिप की व्यवस्था की, जिससे वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकती थी। रमेश के लिए भी एक छोटी सी मदद दी गई, ताकि वह स्कूल वापस जा सके।

कमला की आँखों में आँसू थे, लेकिन यह खुशी के थे। सुमन ने कहा, “यह मेरा विश्वास था जो हमें इस डोर से जोड़ा।”कुछ महीनों बाद, कमला की दुकान चल निकली। सुमन ने अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया, और रमेश ने भी मेहनत शुरू कर दी। गाँव वाले इस बदलाव को देखकर हैरान थे। सुमन ने अपनी डायरी में लिखा, “विश्वास की डोर कभी टूटती नहीं। यह हमें एक-दूसरे से जोड़ती है

और उम्मीद की किरण दिखाती है।” उसने फैसला किया कि वह पढ़-लिखकर गाँव की औरतों को सशक्त करेगी। उसने मंदिर के पास एक छोटी सी पढ़ाई की जगह शुरू की, जहाँ महिलाएँ जमा होतीं और एक-दूसरे का हौसला बढ़ातीं।एक साल बाद, जब सुमन ने अपनी पहली परीक्षा पास की,

तो माँ ने उसे गले लगाया और कहा, “तूने हमारी जिंदगी बदल दी, बेटी।” रमेश भी स्कूल में अच्छा करने लगा। सुमन की कहानी गाँव में प्रेरणा बन गई। हर साल “विश्वास की डोर” के दौरान, वह दूसरों को अपनी बात कहने के लिए प्रोत्साहित करती। उसका मानना था कि हर मुश्किल में एक उम्मीद छुपी होती है, बस उसे थामे रहने की हिम्मत चाहिए।

लेखक की टिप्पणी: यह कहानी मेरे दिल के करीब है, क्योंकि यह मेरे आसपास के लोगों की असली जिंदगी से प्रेरित है। प्रयागराज की धरती ने मुझे यह सिखाया कि विश्वास और मेहनत से हर अंधेरे में उजाला मिलता है।

लेखक: सुभाष मौर्य, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज

Leave a Comment

error: Content is protected !!