विश्वास की डोर – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

 रवि किशन जी और सुषमा जी दोनों दंपत्ति अब धीरे धीरे बुढ़ापे की चादर ओढ़ते जा रहे थे ! दोनों की ही उम्र और बालों की सफेदी उनसे दूरियां बनाने लगी थी मगर  रवि किशन जी का जिंदादिली स्वभाव सुषमा जी को जीने की बहुत बड़ी वजह देता जा रहा  था !

जब भी वक्त मिलता दोनों एक दूसरे का हाथ थामें पार्क  की गलियारों में घूमते रहते और कभी अपने पुराने साथी आम का पेड़ के नीचे लगी बेंच पर जाकर बैठ जाते थे ! 

दोनों घंटो एक दूसरे से हंसते मुस्कुराते बीते दिनों को याद करते हुए गुजार देते ! सच कहूं तो  जिंदगी में सुख दुख के मेले तो लगे ही रहते हैं! 

अब यह तो हम पर ही निर्भर करता है ! हम खुशियों के फूल चुनते हैं या गम की चादर ओढ़ कर चुपचाप आंसू बहाते रहते हैं! पूरी सोसाइटी में रवि किशन जी और सुषमा जी दोनों का ही उम्र की इस दहलीज पर खड़ी जिंदगी में भी सबके साथ हंसना मुस्कुराना एक बहुत बड़ी मिसाल बन चुका था ।

 सोसाइटी के जिस घर में भी थोड़ी तकलीफ होती । सुषमा जी दौड़ी दौड़ी चली जाती और उसका तकलीफ कम करने के लिए कभी किसी को हाथों का सहारा देती तो कभी अपने मीठे शब्दों से मरहम लगाने की कोशिश करती।

 सुषमा जी के हाथों का अचार तो जिस किसी के जुबान पर एक बार चढ़ जाता तो वह बार-बार खाने को मजबूर हो जाता । रवि किशन जी भी हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते। महरी शीला भी वर्षों से दोनों के साथ घर पर रहती आई थी । सब कुछ ठीक चल रहा था मगर आज अचानक सुषमा जी को टेबल पर रखी हुई सोने की चेन नहीं मिल रही थी। 

वे परेशान हो उठी क्योंकि आज तक ऐसा नहीं हुआ था कि रखी हुई चीज इस तरह घर से गायब हो जाए। जब शीला भी हर जगह ढूंढ कर हार गई और चैन नहीं मिली तो उसने सुषमा जी से कहा।  दीदी जी आज दिन में मेरा बेटा राजू मुझ से मिलने आया था। 

मुझे लगता है हो ना हो यह उसकी करतूत हो सकती है क्योंकि आजकल घर पर देखती हूं। उसके रंग-ढंग बहुत बदल गए हैं ।उसकी इच्छाएं बहुत बढ़ गई है ।नए-नए यार दोस्त बनाने लगा है। आजकल पढ़ने में भी उसका मन नहीं लग रहा है दीदी जी। आप चिंता ना करें आज रात को मैं घर जाऊंगी और उस से पूछूंगी। 

यह बात सुनते ही सुषमा जी ने शीला से कहा। देख शीला बढ़ती हुई उम्र है । जरा समझदारी से काम लेना। ठीक है दीदी जी कहकर शीला चुप हो गई।

रात को शीला घर पहुंच कर राजू को चॉकलेट देते हुए बोल उठी ।राजू बेटा यह ले तेरी मनपसंद चॉकलेट। अपनी मां की बात सुनते ही राजू बोल उठा। 

मां मुझे चॉकलेट नहीं खानी है ।मां मेरे लिए आप बर्गर पिज़्ज़ा यह सब क्यों नहीं लाती हो ।मेरे मित्र तो ये सब खाते ही रहते हैं सिर्फ एक मैं ही हूं। जो यह सब नहीं नहीं खा पाता हूं  । मुझ से ऐसी जिंदगी जी नहीं जाती मां ।

 मुझे मेरे मित्रों के सामने अपमान जैसा महसूस होता है मगर अब ऐसा नहीं करना पड़ेगा क्योंकि अब बहुत जल्द हमारे पास भी बहुत सारे पैसे होंगे । तब शीला अपने बेटे राजू को समझाते हुए कहने लगी। 

बेटा मित्र उसे ही बनाओ जो तुम्हें समझ सके क्योंकि मित्रता हर दिखावट से दूर होती है अगर तुम्हें अपने मित्रों के सामने अपमान जैसा महसूस होता है तो वह तुम्हारे मित्र है ही नहीं।

 बेटा रही बात बर्गर पिज़्ज़ा की  तो वो ना  तो स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यवर्धक होते हैं और ना ही किफायती तो हम बेवजह इतनी मेहनत से कमाए हुए पैसों की बर्बादी क्यों करें । तुमने अभी-अभी कहा कि अब हमारे पास बहुत पैसे होंगे वह कैसे बेटा ??

तब राजू ने भोलेपन में वह चैन निकालकर मां के सामने रख दी और कहने लगा। मां इसे हम बेचकर बहुत सारे पैसे ले आएंगे ।चैन देखते ही शीला बोल उठी। राजू यह चैन तो दीदी जी की है तुम इसे कैसे ले सकते हो??

 मां आंटी को एक चैन से क्या फर्क पड़ेगा मगर हमारी जिंदगी सुधर जाएगी। तब शिला राजू को समझाते हुए बोल उठी । दूसरों के धन पर अपनी नजर रखना बहुत गलत है। तुम्हारे जीवन पर लगा हुआ ये दाग  जिंदगी भर सुकून की नींद  तुम्हें सोने नहीं देगा। 

 मान लो कल को तुम बहुत सारा पैसा कमा लेते हो मगर यह चुराई हुई चैन तुम्हारे जीवन का चैन छीन लेगी। जरा सोचो बेटा तुम्हारी मां हमेशा सुषमा आंटी के घर इतनी ईमानदारी से रहती आई है। 

आज तुम्हारी मां के आंचल में भी एक दाग लग जाएगा अगर यह चैन हम अपने घर रख लेते हैं तो मेरे और सुषमा आंटी के बीच जो विश्वास की डोर है वह भी टूट जाएगी।

 हम गरीब जरूर है बेटा पर हमारे संस्कार इतने सस्ते नहीं होने चाहिए कि थोड़े से पैसे के लिए बिक जाए । दाग लगी चुपड़ी हुई रोटी  से ईमानदारी की सूखी रोटी भली।  मुझे लगता है शायद हमारे ही संस्कारों में कमी रह गई थी बेटा। 

जो आज तुम इतने नीचे गिर गए कहकर शीला रोने लगी। राजू से यह सब देखा ना गया ।वह वह नज़रें झुकाए रोते हुए ही  कहने लगा । नहीं मां अब मैं समझ गया हूं । मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी है ।मैं वादा करता हूं ।

अब मैं वैसे मित्र नहीं रखूंगा। जो मुझे समझ नहीं पाए और सुषमा आंटी को मैं खुद यह चैन ले जाकर दूंगा और सॉरी भी बोलूंगा। मैं बहुत मन लगाकर पढ़ूंगा मां और एक दिन बहुत बड़ा अफसर बनूंगा और आपकी बहुत सेवा करूंगा । 

आप इस तरह आंसू नहीं बहाए मां ।मुझ से आपके आसूं देखे नहीं जा रहे है कहकर राजू भी अपनी मां से लिपट कर रोने लगा। दूसरे दिन शीला और राजू सुषमा जी के घर पहुंच गए।  राजू ने जाते ही सबसे पहले रवि किशन जी और सुषमा जी से क्षमा मांगी और कहने लगा । 

आंटी आप मुझे क्षमा कर दें । कल यहां टेबल पर पड़ी चैन देखकर मेरा मन बिगड़ गया और मैंने यह चैन उठा ली । यह लीजिए आपकी चैन। मुझे आप इतना आशीर्वाद दें । मैं बड़ा होकर खूब पढ़ लिख कर बड़ा अफसर बन जाऊं और आज के बाद इस तरह चोरी वाला काम कभी ना करूं।

 शाबाश बेटा मुझे तुम पर और शीला के दिए हुए संस्कार पर भरोसा है । तुम आगे चलकर एक दिन बहुत अच्छा अफसर बनोगे और एक बात के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देना चाहूंगी बेटा ।तुमने मेरे और शीला के बीच जो विश्वास की डोर थी । उसको टूटने नहीं दिया क्योंकि बेटा एक बार अगर विश्वास की डोर टूट जाए तो बड़ी मुश्किल से जुड़ती है और अगर जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ जरूर पड़ जाती है खैर ।

अब इस बात को भूल भी जाओ और एक अच्छी जिंदगी जियो कहकर सुषमा जी मुस्कुराने लगी। जी दीदी जी मेरे बेटे को क्षमा कर दीजिए आगे से वह कभी भी इस तरह की हरकत नहीं करेगा कहकर शीला भी मुस्कुराने लगी। रवि किशन जी ये सब देख कर सुकून से भर उठे थे क्योंकि आज उनकी पत्नी सुषमा जी और महरी शीला के बीच की विश्वास की डोर टूटने से जो बच गई थी।

 स्वरचित 

सीमा सिंघी  

गोलाघाट असम

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