रामपुर एक छोटा-सा गाँव, जहाँ ज़िंदगी आज भी पुराने ढर्रे पर चलती थी। मिट्टी के घर, पेड़ की छाँव में बैठकर बतियाते लोग, और खेतों की हरियाली में खिलखिलाते बच्चों की आवाज़ें ,यही पहचान थी इस गाँव की। इसी गाँव के एक कोने में,
एक कच्चे घर में रहते थे हरिशंकर जी और उनकी पत्नी ललिता देवी। उम्र ढल चली थी, पर मन अब भी आशाओं से भरा था।दोनों की ज़िंदगी सादगी से भरी थी, पर रिश्तों की गर्माहट उसमें मिठास घोलती थी।
उनका इकलौता बेटा अर्जुन पढ़-लिखकर शहर चला गया था। वहाँ उसने एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली थी। शुरुआत में आता-जाता रहा, फिर व्यस्तता बढ़ी और समय का बहाना बनाकर वह बस फोन तक ही सीमित रह गया। हर महीने पैसे भेज देता, ज़रूरत की चीज़ें भी भिजवा देता,
रोज टेलीफोन पर बात कर माता- पिता का हाल-चाल लेता लेकिन माँ-बाप की आँखें तो उसे देखने के लिए तरसती थीं। माँ कहती, “बेटा तो जैसे पराया हो गया है।”
गाँव वालों की बातें भी तीर सी चुभतीं — सभी कहते अब अर्जुन कहाँ लौटेगा इस गाँव में?
शहर की चकाचौंध में बूढ़े माँ-बाप को भला कौन याद रखता है?
पर हरिशंकर जी मुस्कुरा कर कहते, “अर्जुन व्यस्त है पर वादा किया है उसने ज़रूर लौटेगा। हमारे रिश्ते खून के नहीं, विश्वास की डोर से बँधे हैं। और विश्वास की डोर कभी नहीं टूटती।
ललिता देवी हर रोज़ भगवान के सामने दीपक जलाकर बेटे की कुशलता की प्रार्थना करतीं। उनका मन कब से उसे देखने को तरस रहा था। तस्वीरों को निहारते हुए वे अक्सर आँसू पोंछ लेतीं, क्या सच में वो लौटेगा?
हरिशंकर का वही एक उत्तर होता, हाँ, क्योंकि उस डोर में भावनाएँ हैं, स्नेह है, और अटूट विश्वास है।
हरिशंकर जी की बातें उन्हें धीरज देती पर माँ तो माँ होती है।ललिता देवी अक्सर अर्जुन को याद कर अकेले में रोया करती थी।
आखिर माँ का हृदय अपने एकलौते बेटे को देखने के लिए बेचैन हो जाया करता था।आँखों में नमी लिए अपने आप बुदबुदाती क्या सच में अर्जुन गाँव लौटेगा?उनकी बूढ़ी आंखे बेटे की राह देखती थी। समय ऐसे ही बीत रहा था।
बरसात के दिनों की बात है रामपुर में इस बार बहुत बारिश हुई।नदी, नाले, ताल सब पानी से लबालब भरे हुए थे।बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी।एक दिन गाँव में बाढ़ आ गई। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई।लोग जान बचाकर सुरक्षित स्थानों पर भागने लगे।
हरिशंकर का घर भी पानी से घिर गया। पर बुज़ुर्ग दंपत्ति कहीं जा न सके। वो घर मे ही तख्ते पर चढ़ कर खड़े हो गए।उसी रात जब अर्जुन का फोन आया तो नेटवर्क बंद था। वो बेचैन हो उठा और तुरंत गाँव के लिए निकल पड़ा।बस में बैठ गया था पर उसका मन बहुत घबरा रहा था।
उसकी आँखों से आंसू बह निकले।तभी रेडियो पर समाचार सुनाई दिया कि रामपुर गाँव मे बाढ़ आ गयी है ।उसने तुरंत बस रोका और उतर गया।अगले दिन सुबह-सुबह गाँव में हेलिकॉप्टर उतरा। गाँव वाले हैरान थे- अर्जुन राहत कर्मियों के साथ उतर रहा था।
उसके आँखों में आँसू थे। माँ! बाबा!चिल्लाता हुआ वह भागकर घर पहुँचा। दोनों किसी तरह बच गए थे, पर रात भर तख्त पर खड़े रहने से बुरी तरह थक चुके थे।
माँ ने कांपती आवाज़ में पूछा, तू आ गया बेटा?
अर्जुन ने उन्हें सीने से लगाते हुए कहा,हा माँ जिस डोर से बँधा हूँ, उसे कैसे तोड़ सकता हूँ ? विश्वास की डोर ने ही तो मुझे यहाँ खींच लाया।वृद्ध दंपति की खुशी का ठिकाना न था ।
गाँव के लोगों की आँखों में नमी थी और चेहरे पर खुशी।आज सभी ने जाना जब संबंधों की बुनियाद विश्वास पर हो, तो कोई दूरी, कोई समय, कोई संकट उसे तोड़ नहीं सकता।
प्रतिमा पाठक
दिल्ली