आज सुनंदा मिश्रा दुख से पागल थी। आंखों से सावन भादो की बरसात हो रही थी।कारण औलाद ऐसा करेगा वह कभी सोची न थी।
हुआ यह कि मकान बेचने के बाद इसका बेटा रोहित कार में लेकर एयरपोर्ट चला रास्ते में करोलबाग वृद्धाश्रम के पास उस पेड़ के नीचे इसे उतार कर इसका बैग भी रखकर -मां आप थोड़ा रूकना, मैं एक काम निपटा कर जल्दी आता हूं।
फिर इसके उत्तर को सुनें बिना वह चला गया और यह बैठी रही।
फिर तो दो घंटे,तीन घंटे —रात हो गयी ।अब यह घबड़ा गयी तभी अचानक -सुनंदा मैम आप यहां -यह पलटकर देखी तो रागिनी मैडम थी।
अब यह रोने लगी और पूरी कहानी बता दी कि बेटा अमेरिका ले जा रहा था , फिर बहाना बनाकर वृद्धाश्रम के पास बैठा गया।
“मैम आप मेरे साथ चलिए वह कभी नहीं आयेगा।वह अमेरिका चला गया।”-
क्या मेरा सगा बेटा-ऐसा कैसे-वह फिर से रोने लगी।
अरे कर गया,आपने पी एफ दे दिया,मकान बेचकर पैसे दे दिए।आपसे उसने पैसे ले लिया।अब आपको ले जाकर खर्चा क्यों करे?-सो वह यहां बिठाकर भाग गया-रागिनी ने सपाट स्वर में कहा।
यह तो धोखाधड़ी है।उसने #विश्वास की डोर काट दी।-यह रोते बोली।
अब यह मजबूरी में रागिनी मैडम के घर पहुंची।रात के नौ बजे थे।दिन भर अदालत का चक्कर घर बेचकर अपना जरूरी समान बैग में रखना इन सबमें खाना पीना नहीं हो पाया था।
सो जब आराम से खाना खाकर गेस्ट रूम में बैठी तो रागिनी बोली-देखो सुनंदा,अब जो होना था सो हो गया। मैं यहां अकेली हूं। तुम मेरे साथ रहो और श्रीराम बालिका विद्यालय का काम देखना शुरू कर दो। पच्चीस हजार महीने का वेतन मिल जाएगा, अकेले के लिए काफी है।
ठीक है कहकर वह काम न लग गयी।आज सोओ कल दस बजे चलेंगे।
फिर तो यह लेट गई और चली गई अतीत में। बनारस की रहनेवाले सुनंदा के पिता लखनऊ में नौकरी करने आये तो सुनंदा साथ थी। फिर तो तीस साल की नौकरी, इंदिरा नगर में मकान बनवाया।इधर एम एस सी,बी एड करके सरकारी विद्यालय में शिक्षिका बन गयी।इसकी शादी रमेश भटनागर से हुई।माता पिता ने मना किया मगर इसने जिद कर प्रेम विवाह किया।
अच्छे स्वभाव का प्रेम घर का सारा काम करता।इधर इसके बेटे रोहित का जन्म सालभर के अंदर हो गया था।अब तो सभी खुश थे मगर अचानक मां पापा और रमेश तीनों काम से जा रहे थे, अचानक दुर्घटना और सब खत्म।
अब यह क्या करें?सातवीं में रोहित था। हिम्मत कर पढाया ,एम एस सी,एम बी ए कराया ।पढ़ने में तेज रोहित एम एन सी कंपनी में नौकरी पाकर अमेरिका चला गया।पहले हर रोज , फिर पंद्रह दिन पर फोन करता ।बाद में वहीं की लड़की रोजी से शादी कर बस गया।अभी दस साल पहले इसके रिटायरमेंट पर आया था तो पी एफ के मिले पूरे चालिस लाख घर खरीदने के नाम पर ले गया।
अरे मरने के बाद सब उसी का है न जिंदा में दे दो।सुखी रहेगा।-ऐसा सोच पूरा पैसा दे दिया।
फिर तो लापता हो गया।पांच दिन पहले अचानक आया।
मां,आप कमजोर हो गयी हो-वह गले में लिपटते बोला।
यह भी प्यार पाकर निहाल थी। अकेले रहते रहते थक गई थी।सो जब बेटे ने घर बेचकर वहीं चलने की बात कही तो झट मान गयी।आज पंद्रह साल से बेटा अमेरिका में हैं अपना मकान है।पोता पोती भी है। मगर आज तक —-
सो आज यह मकान बेचकर पूरा पैसा बेटे के एकाउंट में जमा करा कर जरूरी समान बैग में ले फर्नीचर और चीजें शुक्ला जी को दे दिया। कुछ कबाड़ भी दस हजार का बेच कार से एयरपोर्ट चल दिए। रास्ते में करौलबाग के पास उस पीपल पेड़ के नीचे इसे बिठाकर और बैग रखकर चला गया।आज भला हो रागिनी का—।
बेचारी ने देखा और अपने साथ ले आयी।अब फिर से कमाना और जिंदगी के बचे हिस्से जीना।
उसने बाय मां भी कहा था मगर इसने ध्यान नही दिया।इसका फोन तक उसी के पास था।सबसे बड़ी बात आज #विश्वास की डोर टूटी थी।
देख सुनंदा,तेरे बेटे को सिर्फ पैसे चाहिए थे वह ले गया।यह प्यार,अपनापन, मुहब्बत ये सारी किताबी चीजें बच्चों को नहीं भाती।आपने पेट काटकर पढ़ाया या पालने के लिए क्या- क्या किया,इससे उन्हें कोई मतलब नहीं।उसने वृद्धाश्रम के द्वार पर छोड़ दिया था।
तुम पुरानी मां हो सो इंतजार करती रही।वह आधुनिक बेटा है अपना मतलब पूरा कर चला गया।
सो छोड़ो किसी के आने जाने से काम नहीं रूकता,जब तक जिंदा हो कमाना होगा।चलो तैयार हो जाओ श्रीराम स्कूल चलना है।
वह भी आंसू पोंछती हुई तैयार हो गई और नहाने चली गई।
#विश्वास की डोर
(शब्द संख्या -कम से कम 700)
(भेजने का समय-30जून से6जुलाई मध्य)
(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।