विश्वास की डोर – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

माॅं का अपने बच्चों के साथ विश्वास की डोर किसी भी परिस्थिति में ढ़ीली नहीं पड़ती है।उसे अपनी संतान पर पूर्ण विश्वास रहता है,भले ही उसकी संतान उसके विश्वास पर खरा उतरे या न उतरे।

कथा नायिका सीमा को सुबह से ही चक्कर और उल्टियाॅं हो रहीं थीं। उसकी शादी के आठ वर्ष बीत  चुके थे।इन आठ वर्षों में संतान की चाहत में हर बार डॉक्टर के पास जाने पर उसके दिल में आशा की लौ जगती,पर निराशारूपी ऑंधी उसकी लौ को निर्ममता से बुझा जाती।

आज अचानक से  भगवान के प्रति उसके विश्वास की डोर और मजबूत हो गई,जब डॉक्टर ने  जाॅंच के बाद उसे माॅं बनने की खबर सुनाई। अचानक से रूठे हुए ख्वाबों के साकार होने पर सीमा दम्पत्ति को विश्वास नहीं हो रहा था।

मातृत्व‌ की खबर से सीमा को ऐसा  एहसास हुआ,मानो उसकी जिंदगी की सूखी बंजर धरती पर अचानक से हरियाली छा गई। माॅं बनने की खबर से ही  सीमा मातृत्व के समंदर‌ में डूबने -इतराने लगी। डॉक्टर के यहाॅं से वापस लौटकर उसका पति नीरज अपने माता-पिता को खुशखबरी सुनाता है।

उसकी माॅं को तो इस खबर पर विश्वास ही नहीं होता है।वह खुशी से बहू को एकटक निहारे जा रही है।फिर उठकर बहू की बलैया लेती हुई कहती है-” आखिरकार ईश्वर ने मेरे विश्वास की डोर नहीं टूटने दी।उनके प्रति मेरी आस्था और अधिक दृढ़ हो गई है।”

 मनोकामना पूर्ण होने की खुशी  में वह 

श्रद्धा से सिर झुकाकर ईश्वर को धन्यवाद देती है।बहू सीमा को कोई काम न करने तथा अनेक तरह की हिदायते देती है।इतने लम्बे इंतजार के बाद माॅं बनने की खुशी में सीमा को सारी दुनियाॅं हसीं लगने लगती है।कल तक उसके दिल में उदासी इस कदर घर कर गई थी कि घर के  बगीचे के खिले फूल -पौधे,झूमती खुशबूदार बेलें भी उसके मन को न लुभा पातीं थीं।

आज अचानक से उसे सारा वातावरण सुखद लगने लगा।उसे महसूस हो रहा था कि उसकी खुशी में सारी प्रकृति भी शामिल हो गई है।सभी फूल-पौधों की खुशबू और कोयल की कूक उसके कानों में हौले-हौले शहनाईयों -सी मधुर संगीत घोल रहीं हों।

सचमुच अगर व्यक्ति का मन उदास हो तो उसे सारी जगह मनहूसियत ही दिखती है और खुश होने पर उसे अपने साथ सारी सृष्टि झूमती हुई प्रतीत होती है।

जीवन में कुछ बदलाव ऐसे होते हैं,जो वर्षा की पहली सोंधी फुहारों -सा तन-मन भिंगो जाते हैं।सीमा के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। अचानक से रूठी हुई खुशियों का उसके दरवाजे पर दस्तक देना उसे आनंद से विभोर कर रहा था।

सब कुछ उसके लिए नया-नया महसूस हो रहा था। मातृत्व के एहसास से वह पूर्णतया बदल चुकी थी।उसकी सभी इच्छाऍं,खुशियाॅं आनेवाले बच्चे की खुशियों में सिमट चुकी थी।ये बात पूर्ण सत्य है कि  संपूर्ण सृष्टि से टक्कर लेने की इच्छा रखनेवाली स्त्री माॅं बनते ही मातृत्व के संसार में ही सिमटने लगती है।

वक्त पूरे होने पर सीमा ने एक प्यारी -सी बच्ची को जन्म दिया।बच्ची के आगमन की महक फिज़ा में फैली खुशियों के संकेत दे रही थी। परिवार के सभी सदस्य हर्षित थे।सीमा और नीरज की तो दुनियाॅं‌ ही बदल चुकी थी।उनके आपस की विश्वास की डोर और अधिक सुदृढ़ हो चुकी थी।

नीरज अपनी माॅं के साथ मिलकर बच्ची के लालन-पालन में ‌पूर्ण सहयोग करता। परिवार की खुशी का केन्द्र -बिन्दु बच्ची ही थी।सीमा और नीरज ने बेटी का नाम आशा रखा। आशा उनके जीवन की  उम्मीद थी।

समय अपनी गति से व्यतीत हो रहा था। देखते-देखते आशा छः महीने की हो गई।सीमा बच्ची के बगल में लेटी हुई थी और बच्ची हाथ-पैर फेंककर खेल रही थी‌ ।एक-दो बार आवाज देकर सीमा ने बच्ची को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की, परन्तु बच्ची ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।इससे अचानक से सीमा के मन में संशय जागृत हो उठा कि शायद बच्ची सुनती नहीं है!

सीमा ने अपने संशय को पति से कहा -“नीरज!आज मुझे ऐसा महसूस हुआ कि आशा को सुनाई नहीं देती है!”

नीरज ने आश्चर्य से कहा -“सीमा!तुम भी कमाल करती हो!मात्र छः महीने की बच्ची क्या तुमसे बातें करने लगेगी?अभी बहुत छोटी है। तुम चिंता मत करो,मुझे तो सब ठीक लगता है।”

पति की आश्वासन भरी बातें सुनकर सीमा को महसूस हुआ कि शायद उसे ही भ्रम हो गया था। परन्तु जैसे-जैसे बच्ची बड़ी हो रही थी, वैसे -वैसे परिवार को एहसास हो रहा था कि बच्ची के साथ सब कुछ शायद सामान्य नहीं है!

कुछ समय बाद सीमा पति के साथ डाॅक्टर के यहाॅं गई।सभी तरह की जाॅंच के बाद डॉक्टर ने कहा -“आपकी बच्ची जन्मजात गूॅंगी और बहरी है।चूॅंकि बीमारी जन्मजात है,इस कारण इसका कोई खास इलाज नहीं है!”

डॉक्टर की बातें सुनकर सीमा दम्पत्ति पर मानो पहाड़ टूट पड़ा।कुछ दिनों पहले उनकी जिंदगी में जो खुशियों की नेमत आई थी,पल भर में ही सारी खुशियाॅं क्षत-विक्षत हो गईं।बच्ची के भविष्य को लेकर सीमा के दिल का सुकून और रातों की नींद गायब हो गई।

उसे  बेटी का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। विपत्ति की इस घड़ी में नीरज भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।उसे भी सदमा लगा गया था। बेटे -बहू की स्थिति देखकर हिम्मत बॅंधाती हुई

नीरज की माॅं ने कहा -“तुमलोग इस प्रकार निराश होकर बच्ची का भविष्य अंधकारमय मत करो। मन में एक सुदृढ़ विश्वास की डोर  पकड़कर  बच्ची के लिए नए सिरे से सोचो।क्या पता बच्ची के लिए भगवान ने कुछ और सोचा होगा?”

वक्त बहुत बड़ा मलहम का काम करता है।समय के साथ परिवार भी उस दुख से उबरने लगा।बच्ची भी विशेष तरह के स्कूल जाने लगी। इच्छा न होते  हुए भी बहुत दिनों बाद सीमा ब्यूटी पार्लर गई।उस समय पार्लर में कोई नहीं था।पार्लर वाली रेखा के हाथों की लयबद्ध थाप और उसकी खुबसूरत बातों से काफी दिनों बाद सीमा को सुकून महसूस हो रहा था।

अचानक से उसे अंदर से कुछ अस्फुट आवाजें सुनाई दी।रेखा उसे साॅरी बोलकर झट से अंदर चली गई।कुछ देर बाद आने पर रेखा ने  उसे बताते हुए कहा -“मैम!मेरा दस वर्ष का बेटा दिव्यांग है।उसे मेनेजाइटिक्स की बीमारी है।उसका सिर बढ़ता जाता है, परन्तु शरीर नहीं। दिन-रात बिस्तर पर लेटा रहता है,इसी कारण नौकरी छोड़कर घर पर ही पार्लर खोल लिया है।”

सीमा ने पूछा -” क्या डॉक्टर के पास इस बीमारी का इलाज नहीं है?”

रेखा -” नहीं!अभी तक तो नहीं है। डॉक्टर ने तो इसकी उम्र मात्र बीस वर्ष ही बताई‌ है। फिर भी मेरे मन में एक विश्वास की डोर है कि विज्ञान  दिनों-दिन उन्नति कर रहा है,शायद तब तक मेडिकल साइंस में कोई इलाज निकल जाऍं! मेरा दिल कहता है कि एक-न-एक दिन मेरा बेटा अवश्य ठीक हो जाएगा!”

सीमा ब्यूटिशियन रेखा की सकारात्मक बातों से काफी प्रभावित होकर घर आती है।उसे महसूस होता है कि रेखा का बेटा बिस्तर पर पड़ा है, फिर भी उसकी सोच कितनी सकारात्मक है और एक वह है जो हमेशा बच्ची को लेकर नकारात्मक विचारों से घिरी रहती है!उसी दिन  उसने बेटी की ऑंखों में नए-नए सपने भरने का संकल्प लिया।

बच्ची आशा धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी।उसकी मासूमियत और भोलेपन से मानो उसका घर खिलखिला उठा।आशा देखने में काफी सुंदर थी।उसकी शहद-सी रंगत,घुॅंघराले काले बाल,तीखे नैन-नक्श,सजग चेहरा देखकर किसी को भी उसके गूॅंगी-बहरी होने का भान नहीं होता था।

आशा इशारों द्वारा सभी बातें आसानी से समझ जाती।बेटी की समझदारी देखकर माता-पिता को अब महसूस होता कि उनकी बेटी कुछ खास है!

आशा  ने बारहवीं पास कर ली थी। पढ़ाई में उसकी विशेष रुचि नहीं थी। वहजैसे -जैसे बड़ी हो रही थी, वैसे-वैसे समाज में कुछ लोगों का व्यवहार उसे आहत कर जाता था। प्रेमचंद जी ने‌ गोदान उपन्यास में सही कहा है कि अगर दो ऑंख वाले को काना कह दिया जाऍं,

तो उसे उतनी तकलीफ नहीं होती,जितनी तकलीफ काने को काना कहने से होती है।किसी की शारीरिक कमियों का मज़ाक़ उड़ाना उसके मर्मस्थल पर चोट करने जैसा है।आशा को देखकर लोग उससे हमदर्दी जताते,जिससे उसका अन्तर्मन व्यथित हो उठता।उसके स्वाभिमान को ठेस पहुॅंचती।

बारहवीं के बाद आगे पढ़ने से आशा ने इंकार कर दिया एक बार फिर से सीमा को विश्वास की डोर टूटतीं नजर आने लगी।बेटी के  जीवन की डगर बीच रास्ते में ही डगमगाते हुए दिखने लगी।

उसके पति नीरज ने हिम्मत से काम लेते हुए कहा -“सीमा!अगर आशा आगे नहीं पढ़ना चाहती है,तो कोई बात ‌नहीं।बचपन से ही उसकी रुचि पेंटिंग में रही है,उसी में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।”

धीरे-धीरे सीमा दम्पत्ति ने उसके पेंटिंग के शौक को फिर से जाग्रत करने का प्रयास किया।कुछ समय बाद आशा की ऊॅंगलियाॅं रंगों और कूचियों से कैनवास पर जादूगरी बिखेरने लगीं।उसकी बनाई पेंटिंग्स की चर्चा दूर-दूर होने लगी।

बड़े -बड़े शहरों में उसकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती थी। उसके चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास आ गया था।उसने अपनी काबिलियत से सिद्ध कर दिया कि उसकी  शारीरिक कमियाॅं उसके ख्वाबों के पूरे होने में रुकावट नहीं बनी।

आज आशा‌ ने माता-पिता को विदेश मेंअपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी के बारे में इशारों -इशारों में बताया।सीमा ने खुशी से उसे गले लगा लिया 

दोनों को भावुक देखकर नीरज ने कहा -“सीमा आशा के प्रति तुम्हारे विश्वास की डोर काफी मजबूत थी।विपरीत परिस्थितियों में भी तुमने उसे ढ़ीली नहीं होने दी।

तुमने उसे खुद को साबित करने का अवसर देकर आसमान में उड़ना सिखाया। तुम्हारे विश्वास के कारण ही पेंटिंग्स की दुनियाॅं में उसका नाम उभरकर सामने आ रहा है। सचमुच एक माॅं का अपनी संतान के प्रति अगाध विश्वास ही उसकी जिंदगी सॅंवार सकता है!”

आशा माता-पिता  की भावनाओं को महसूस कर  नम ऑंखों से दोनों को गले  लगा लेती है।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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