विश्वासघात – मंजू ओमर

आज अनूप अपने बड़े भाई का कालर पकड़कर घर से बाहर निकाल रहा था ,चले जाओ यहां से कुछ नहीं है तुम्हारा यहां। आसपास खड़ी अनूप की दोनों बड़ी बहनें अनूप को समझा रही थी क्या कर रहे हो अनूप बड़ा भाई है तुम्हारा।

देखो अनूप ज़र, ज़मीन, पैसा में किसी का हक नहीं मारना चाहिए ,ये फलता नहीं है भाई । जैसे तुमने किसी का हक मारा है तो वो पैसा रूपया सब ऐसे ही चला जाता है। तभी बड़े भाई सुदीप अनूप से अपना कालर छुड़वाते हुए बोले जाने दो बहन ये पैसे के गुरूर में अंधा है गया है ।

हम लोगों का हक मारकर ये कभी सुखी नहीं रहेगा, कुत्ते की मौत मरेगा। मां बाप की प्रापर्टी में सब भाई बहनों का हक होता है ।इसने विश्वास घात किया , पापा की सारी प्रापर्टी अपने नाम करा ली । भगवान से भी डर ।यूं गुस्से में बड़बड़ाते हुए सुदीप अनूप के घर से बाहर निकल गए ।

                शिवानंद जी और पत्नी सुनंदा दो बेटे अनूप और सुदीप और दो बेटियां कमल और नयन थी। दोनों बहनें बड़ी थी और अनूप सबसे छोटा था। बहनों की शादी हो चुकी थी वे अपने अपने घर में सुखी थी।बड़ा बेटा सुदीप किसी फैक्ट्री में सुपरवाइजर था

वो दूसरे शहर में रहता था।छोटा बेटा अनूप रेलवे वर्कशाप में काम करता था।अनूप की बहुत आराम की नौकरी थी आफिस जाता साइन करता और जबतक मन होता काम करता नहीं तो घर आकर आराम से पड़ा रहता। शिवानंद जी वकील थे उनके पास खुद का अच्छा बड़ा घर था।

शिवानंद जी अपने पिता की इकलौती लड़का संतान थे ।पांच बहनें थीं तो पूरा बड़ा घर अकेले शिवानंद जी को ही मिला हुआ था। पहले के समय में घर की प्रापर्टी में लड़कियों को हिस्सा नहीं दिया जाता था।तो सबकुछ शिवानंद जी का ही था।

शिवानंद जी के पास पैसा था तो जिस घर में रहते हैं वो काफी पुराना हो गया था तो एक नया घर बनवा लिया था और साथ में पुराना घर भी था।दो तीन प्लाट और भी खरीद कर डाल रखे थे ।उस समय सस्ते मिल रहे थे।

               अब अनूप की भी शादी हो गई थी ।एक बेटा और एक बेटी थे । लेकिन अनूप की संगत अच्छी नहीं थी। कुछ दोस्त उसके पीने पिलाने वाले थे जिससे अनूप को भी शराब की लत लग चुकी थी।

            शिवानंद जी अब वृद्ध हो गये थे तो उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस करनी छोड़ दी थी। पत्नी सुनंदा का अभी पिछले साल ही देहांत हुआ था। शिवानंद जी घर पर ही आराम की जिंदगी बसर करते थे।बड़ा भाई सुदीप कभी कभी घर आ जाता था।

वो कहते थे कि पिताजी चलो हमारे साथ रहो लेकिन शिवानंद मना कर देते। नहीं बेटा अब इतनी उम्र हो गई है यहां रहते रहते,अब कहां इधर उधर भागता फिरूंगा यही रहूंगा ।अब शरीर इसकी इजाजत नहीं देता।

             शिवानंद जी के पास जो भी प्लांट और घर पैसा था इसकी जानकारी चारों बच्चों को थी ।वो कहते मेरी प्रापर्टी में बेटियों का भी हिस्सा लगेगा।

इतनी सारी प्रापर्टी है अकेले लड़कों को ही क्यों दे ।और फिर समय के साथ पुराने घर और प्लाट की कीमत बढ़ने लगी। शिवानंद जी ने सबको जानकारी में दे दिया कि क्या क्या किसको किसको मिलेगा।

कानूनी तौर पर नहीं बस खुद ही एक पेपर पर लिखकर रख लिया था। शिवानंद जी का शरीर अब शिथिल होता जा रहा था।उनको अब सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी कम देता था ।

इधर अनूप की पीने की लत बढ़तीं ।जा रही थी ,और वो बहुत शराब पीने लगा था। पत्नी मना करती  तो कभी कभी उसपर हाथ उठा देता था।

            अब शिवानंद जी की अवस्था धीरे धीरे खराब होने लगी थी ।वो अब चलने फिरने में भी असमर्थ हो रहै थे ।और इधर अनूप के मन में सारी प्रापर्टी हड़पने का प्लान बनने लगा। उसने एक दिन एक स्टाम्प पेपर पर सारी प्रापर्टी अपने नाम लिखकर पिता जी के साइन करवा लिए ।

पिता जी ने पूछा भी कि क्या है तो कहने लगा कि सबको सबका हिस्सा देना है न बस उसी के पेपर है जिसमें आपके साइन होने थे ।उन्हें क्या मालूम ये सबके साथ विश्वासघात कर रहा है। शिवानंद जी को ऐसा कुछ भी आभास नहीं था कि अनूप इस तरह भाई बहनों के साथ धोखा करेगा।

             आजकल शिवानंद जी की हालत बहुत खराब  थी । पता नहीं कितनी सांसे उनकी बची है किसी को नहीं पता। बड़ी बेटी पापा से मिलने आई थी तो उसने अनूप से कहा अनूप पापा ने हम दोनों बहनों को बताया है

कि हम लोगों के हिस्से में भी प्रापर्टी का कुछ हिस्सा है ,तो मैं अपनी बेटी की शादी के लिए लड़का देख रही हूं । हमारे हिस्से का पैसा दे दो तो शादी में काम आ जाएगा।उस समय तो अनूप कुछ नहीं बोला और बहन भी अपने घर चली गई। लेकिन पंद्रह दिन बाद शिवानंद जी की मृत्यु हो गई।

            अब बड़े भाई उनका परिवार और दोनों बहनें आई हुई थी । पापा के मृत्यु के पांच दिन बाद जब भाई और बहनों ने कहा कि पापा जो प्रापर्टी का कागज लिखकर गए हैं वो दिखाओ सबका हिस्सा उनको दे दिया जाए ।

लेकिन अनूप चुपचाप बैठा रहा ,की बार कहने पर अनूप उठ कर गया और‌ जो स्टाम्प पेपर पर पापा के साइन करवाए थे वो पेपर सबके सामने लाकर रख दिया। सुदीप ने जब पेपर पढ़ा तो दंग रह गया ये क्या हैं

इसमें तो सारी प्रापर्टी तुम्हारे नाम पर लिखी है तो अनूप बोला,अरे वो पेपर कहां है जो पापा लिख गए थे। पापा कोई पेपर नहीं लिख गए थे कैसी बात कर रहा है तू उन्होंने मुझे बताया था कि मैं सबके हिस्से की प्रापर्टी लिख रहा हूं सुदीप बोला।

आखिरी तक हमारे पास रहे और आखिरी तक हमने सेवा की उनकी खुश होकर पापा ने सारी प्रापर्टी मेरे नाम कर दी ।झूठ बोल रहे हो तुम, विश्वास घात कर रहे हो हम सब के साथ। ऐसा कैसे हो सकता है हम सब अपना हिस्सा लेकर रहेंगे।

               घर का गमगीन माहौल लड़ाई झगडे का मैदान बन गया था।रोज कहा सुनी होती। दोनों बहनें और सुदीप एक तरफ थे ‌। लेकिन अनूप किसी हाल में प्रापर्टी का हिस्सा देने को तैयार नहीं था। आखिर में नौबत मारपीट और गाली गलौज पर आ गई।और अनूप ने बड़े भाई को धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया।

              अब तो अनूप अपने आपको राजा समझने लगा इतनी सारी प्रापर्टी मिल जाने पर। खूब शराब पीने लगा। फालतू पैसा खर्च करने लगा।घर को पूरा तुड़वा कर नये सिरे से बनवाने लगा।घर के पुराने सामान को हटाकर नये नये सामान आने लगे घर में। लेकिन अनूप को नहीं मालूम कि किसी का हक मारने का क्या नतीजा निकलता है।

            अनूप बीमार हुआ और उसको पीलिया हो गया ।खाने पीने का शौकीन था।इस बीमारी में तेल मसाला से परहेज़ होता है तो घर में पत्नी नहीं देती तो बाहर खा लेता । शराब पीना भी नहीं बंद हो रहा था। पीलिया दवा देने के बाद भी कंट्रोल में नहीं आ रहा था बिगड़ता जा रहा था। डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए ये कहकर कि दिल्ली ले जाओ और दिल्ली ले जाते हुए रास्ते में ही अनूप की मौत हो गई।

              अब घर बिखरने लगा । बच्चे अभी छोटे थे । लड़का हाई स्कूल में था और बेटी इंटर कर रही थी। बेटा अभी नौकरी लायक नहीं हुआ था। छोटी सी उम्र में अनूप दुनिया छोड़ गए ‌अब घर में कुछ दिन अनूप के जाने का ग़म करके सबकुछ पुराने ढर्रे पर आ गया । पैसे की कोई कमी थी नहीं जब बेटा नौकरी करेगा तब करेगा। कबतक कोई ग़म मनाएगा जाने वाले का।

           सब दबी जुबान से यही कहते हैं देखो कैसी मौत मरा है भाई बहन का हिस्सा मारकर। खुद भी न रह सका जिंदा पैसे को भोगने के लिए।अब जो कुछ भी है उसका सुख तो पत्नी और औलाद ही भोगेंगी।उसको क्या सुख मिला ।

         दोस्तों तभी बड़े बुजुर्ग कहते आए हैं कि पैसे रूपया और जमीन जायदाद में अपनों का हक कभी न मारें ।इनका नतीजा बुरा होता है । इंसान कभी सुखी नहीं रह पाता हैं।ये एक ज़हरीला दंश है जो जिंदगी भर चुभता रहता है ।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

18 सितंबर

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