हाथ में पकड़े, सिद्धार्थ के अंतिम पत्र को देखते हुए सरिता की नजरें अपने क्वार्टर के लॉन में खिले गुलाब के फूलों पर स्थिर हो गई ।
“मैम हम एक गुलाब तोड़ना चाहते हैं। ” किसी लड़की की आवाज सुनकर वह पीछे मुड़ी।
लड़कियों का पूरा एक समूह था शायद अपनी हॉस्टल वार्डन से कुछ कहने आया था।
” क्यों ? तोड़ना क्यो है?”
“वेलेंटाइन डे”-शिल्पा के मुँह से निकल गया।
” हाँ तो क्या हुआ? रोज कोई तोड़ने की चीज है ?चलो भागो यहाँ से ! ” सरिता ने डांट दिया।
लेकिन अगले ही पल कुछ सोच कर वह मुस्कुरा दी और उन लड़कियों को रोका ।
” और भी कोई काम था?” उनके रुकते ही सरिता ने सवाल किया।
” मैम !शाम को हम लोग बाहर जाना चाहते हैं”– भीड़ में से कोई लड़की बोली।
” हाँ तो जाओ ,टाइम का ध्यान रखना, टाइम से आ जाना” सरिता ने कहा।
” मैम हम परमीशन माँगने आए हैं कि हम आज छः बजे से थोड़ा लेट आएं ,मैम प्लीज !मैम!”- लड़कियों ने एक साथ एक स्वर में कहा।
“अच्छा तो कितने बजे आने का इरादा है तुम लोगों का?”
” आठ बजे तक पक्का आ जाएंगे मैम। प्लीज!”– आरती बोली।
” देखो बच्चों यह घूमना -फिरना मित्रता सब ठीक है, लेकिन इन सब के चक्कर में पढ़ाई को कभी नजर अंदाज मत करना और अभी से ही इस प्रेम ,प्यार के बारे में मत सोचना अभी तुम सब बहुत छोटे हो समझे
और हमेशा कभी भी कहीं भी जाओ अपने घर और संस्कारों को ध्यान में रखो और दायरे में रहो। अगर तुम इन सब बातों को ध्यान में रखने का वादा करती हो तो आज, सिर्फ आज के लिए मैं तुम लोगों को आठ बजे तक बाहर घूमने की अनुमति देती हूँ।
“जी मैम ध्यान रखेंगे”- सब एक साथ बोली।
” एक बात और कहनी है “-सरिता ने कहा
“जी मैम”
“कोई भी मेरी बातों को प्रवचन और उपदेश का नाम नहीं देगा”
सब सर झुका कर हँस पड़ीं और खुशी से चली गईं क्योंकि घूमने जो जाना था।
लड़कियों के जाते ही सरिता हाथ मे कारगिल युद्ध में जाने से पहले लिखा हुआ सिद्धार्थ का अंतिम पत्र , जिसमें उस ने लिखा था अगर मैं शहीद हो जाऊँ तो तुम अपना परिवार बसा लेना यही मेरी अंतिम इच्छा है , पकड़े हुए खिले गुलाब के पास गई “हैप्पी वैलेंटाइन डे मेरे सिद्धार्थ”- बोलते हुए उसने गुलाब को बड़े प्यार से छुआ।
नौकरी मिलने के बाद सबसे पहले सरिता एक अनाथ आश्रम से बच्चे को गोद ले आई थी उसका नाम रखा सिद्धांत। उसको सिद्धार्थ की अंतिम इच्छा जो पूरी करनी थी परिवार बसाने की अब वह एक फौजी की बिन ब्याही विधवा अपने बेटे सिद्धांत के साथ रहती है ।भला हो फोटोशॉप का कि आज उसके पास एक फैमिली फोटो भी है जिसमें तीनों एक साथ हैं।
शालिनी दीक्षित
मौलिक
वैलेंटाइन डे और वीर सैनिको की याद में मेरी रचना ( पुलवामा बरसी)