उड़ान – सरिता कुमार : Moral Stories in Hindi

वर्दी का आकर्षण बचपन से ही मेरे मन को लुभाता रहा है । मैंने सिर्फ स्कूल ड्रेस के पसंद आने से दो क्लास जंप करके तीसरे कक्षा से छठे कक्षा में प्रवेश लिया था ।  दूसरी कक्षा में प्रथम आई थी इसलिए घर वालों को कोई आपत्ती नही थी । लिखित जांच परीक्षा के बाद ही नामांकन की प्रक्रिया पूरी हुई थी ।

इसलिए मेरी काबिलियत में संदेह नहीं किया गया । स्कूल की वर्दी में बहुत प्रसन्नचित होकर स्कूल जाने लगी । बहुत अच्छा रहा स्कूली जीवन उसके बाद शुरू हुआ  महाविद्यालय का जीवन । महाविद्यालय में पसंदीदा कपड़े पहनने की आजादी थी । बहुत यादगार और सफल रहा महाविद्यालय का जीवन ।

मैं खासकर वो फिल्में देखती थी जिसमें हीरो वर्दी में भुमिका निभा रहा हो मुख्यता पुलिस और सैनिकों की फिल्में होती थी । पुलिसकर्मियों की छवि कुछ अच्छी नहीं नहीं थी इसलिए मेरा आकर्षण सैनिकों के प्रति बढ़ती गई । 1989 से 1990 के बीच दूरदर्शन पर एक सिरियल आया करता था “फौजी ” जिसे देखकर मुझे बहुत अच्छा महसूस होने लगा

और एक बड़ा ही अजीब इत्तेफाक हुआ मुझे तभी एक फौजी मिला और मेरी शादी हो गई । शादी के बाद शुरू हुआ एक नया सफ़र नये साथी और नये सपनों के साथ । मैं अक्सर पति से पूछती रहती थी सैन्य जीवन के बारे में और धीरे-धीरे मुझमें एक परिवर्तन आने लगा मैं भी सैनिकों की तरह जीवन व्यतीत करने लगी ।

जब भी कोई कार्यक्रम का आयोजन होता मैं बड़े उत्साह और उमंग से जाती थी । रेजिमेंट के स्थापना दिवस समारोह से लेकर युद्धाभ्यास तक । तीज़ त्यौहारों से लेकर किसी के आगमन-प्रस्थान के कार्यक्रम तक । पहले सिर्फ दर्शक बनी फिर उन कार्यक्रम में अपना योगदान भी देने लगी थी । 

स्वंय की नौकरी , घर परिवार और बच्चों की देखभाल के साथ साथ आर्मी वाइप्स वेलफेयर एसोशिएशन में भी सहयोग और योगदान दिया । काफी वक्त गुजरने के बाद मुझे महसूस हुआ की मैं भी एक सैनिक बन सकती हूं । समय‌ की पाबंदी , व्यवस्थित , सुनियोजित , सुनिश्चित और पूर्णतः अनुशासित जीवन बसर कर रही थी । मैंने आत्मविश्लेषण किया तो पाया सिर्फ वर्दी की कसर रह गई है बाकी मैं पूर्ण रूपेण एक सैनिक बन गई हूं । 

2012 अगस्त में अचानक हमारा तबादला आगरा पैराशूट मिलिट्री फोर्स स्टेशन में हुआ । जाते वक्त बहुत दुःख हो रहा है । पुराना रेजिमेंट हमेशा-हमेशा के छुटने वाला था । क्योंकि 23 राजपुताना राइफल्स अब 23 पैराशूट मिलिट्री फोर्स के रूप में स्थानांतरित हो चुका था । खैर हम आदेश का पालन करते हुए आगरा पहुंचे ।

भव्य स्वागत हुआ , क्र्वाटर में सुख सुविधाओं के सभी साधन मौजूद थें और अगले बारह घंटे में ही उस क्वाटर ने घर का शक्ल ले लिया । सभी कमरों को व्यवस्थित और सुसज्जित कर दिया गया । कुछ पुराने लोग भी मिलें थोड़ी राहत महसूस हुई और दूसरे दिन से ही शुरू हुआ एक और नया सफर । बच्चों के लिए पैरासेलिंग का आयोजन हुआ ।

मैंने अपने तीनों बच्चों को भेजा । बड़ा ही अद्भुत नजारा था आसमान में उड़ते हुए मेरे बच्चें । मैं इन लम्हों को कैद कर लेना चाहती थी इसलिए कैमरा से रिकार्डिंग करना शुरू किया एक के बाद दूसरा और फिर तीसरे बच्चें की बारी आई ।इशू ने तो कमाल ही कर दिया आसमान में पहुंच कर दोनों हाथों को छोड़ दिया

और उड़ने लगी । रोमांच से भरपूर यह दृश्य देखकर सभी ने खूब सराहा और उसका लगातार उत्साह बढ़ाते रहें । बस यहीं से मेरे मन को बल मिला और मैं बन गई पैराशूट मिलिट्री फोर्स की जांबाज “पैरा कमांडो “। 

बरसों से सुनती आ रही थी पैरा कमांडो के कारनामे । केदारनाथ के भयानक हादसे में पैरा कमांडो आगरा से ही गये थें । मुंबई के ताज होटल में हुए हादसा में भी पैरा कमांडो ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था । मैं पैरा कमांडो के रूप में अपने आप को देखने लगी । अक्सर सपनों में छलांग लगाती और मुसीबतों के मारे लोगों को बचाती । एक अजीब सा जूनून सवार हो गया और मैं अपने पति के बैज को लगा कर सो जाती और सपनों में उड़ती फिरती कभी भी कहीं भी लैंड कर जाती । 

उस दिन प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था जब श्रीमान जी ने सूचना दी कि दो दिन बाद महिलाओं के लिए भी पैरासेलिंग का आयोजन हुआ है । मैंने अपना नाम लिखवा दिया , मेडिकल चेकअप भी हो गया मुझे परमिशन भी मिल गई । कार्यक्रम शुरू होने के मात्र दो घंटे पहले किसी जरूरी काम से मुझे आवा में जाना पड़ा कुछ कागजातों पर दस्तखत करने थें करने के बाद जब मैं कुर्सी से उठने लगी तो भयानक दर्द हुआ और मैं तड़प उठी ।

उस वक्त यह बिल्कुल समझ में नहीं आया कि क्या हुआ अचानक से । अच्छी भली पैदल चल कर आॅफिस आई थी । कुर्सी पर बैठकर पंद्रह बीस पन्नों पर दस्तखत किया । हॉस्पिटल पहुंचने के बाद पता चला रीढ़ की हड्डी में जो चोट लगी थी उसका असर शुरू हो गया । मैं एडमिट हो गई मेरा दाहिना हाथ और दाहिना पांव सुन्न पड़ गया ।

आवाज़ लड़खड़ा गई और मैं खामोश हो गई । शरीर  बेजान हो गया मगर मन रुका नहीं उड़ान भरता रहा वर्दी पहने सिने पर पैरा कमांडो का बैज चिपकाए निरंतर उड़ान भरती रही  । “पैरा कमांडो ” की वर्दी बैज और लाल कैप से सुसज्जित मैंने एक जीवन जरूर बचाया था मौत के मुंह से और वो जीवन मेरे खुद का है ….

जी हां मैंने उसी उड़ान से प्रेरित होकर अपने जीवन को बचाया है अपने उसी तरह के आत्मविश्वास से जिस तरह का आत्मविश्वास लेकर पैरा कमांडो हवाईजहाज से छलांग लगाते हैं औरों के जीवन के रक्षा के लिए । मैं शारिरिक रूप से असमर्थ थी उड़ान भरकर दूसरे के जीवन की रक्षा के लिए मगर मानसिक रूप से उड़ान भरती रही

और मैं फिर से जी उठी । मेरे सारे रिपोर्ट मेरे खिलाफ थें दो चार हॉस्पिटल्स में दिखाया जा चुका था । डॉक्टरों की राय थी कि मैं कभी चल नहीं सकूंगी और ना ही बात कर पाऊंगी । रोड एक्सीडेंट में कमर और गर्दन की हड्डी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी । दिमाग पर भी असर हो गया था बातें भूल जाती थी । लोगों को पहचानने में भी बड़ी उलझन होने लगी थी । 

एक बात अच्छे से याद थी कि औरतें दिन में नहीं सोती हैं और मुझे तो चौबीस घंटे लेटे ही रहना था । मेरे द्वंद को समझते हुए मेरे लिए एक सेठी बनवाई गई जिस पर सारा दिन लेटी रहती थी और सामने अपनी छोटी बेटी की बेख़ौफ़ उड़ान की तस्वीर लगा रखी थी । अपने मोबाइल का वॉलपेपर पर भी वही तस्वीर थी । बेख़ौफ़ बहादुरी भरी उड़ान की ।

नतीजा बेहद सुखद निकला । मैं पूरी तरह ठीक हो गई सात आठ वर्ष का समय जरूर लगा लेकिन आत्मविश्वास और आत्मबल से एक बड़ी जीत हासिल हुई । इस जीत का श्रेय मेरी छोटी बेटी को ही जाना चाहिए और । मेरे पति कुपवाड़ा बार्डर पर चलें गये थें । बड़ी बेटी और बेटा  अपने केरियर की खातिर दिल्ली चलें गये थें तेरह साल की बच्ची के साथ मैंने यह कठिन दौर गुजारा था । अपनी कल्पना शक्ति , साकारात्मक सोच और साहस से  मैं बन गई “पैरा कमांडो ” और हर रोज भरती रही एक बेख़ौफ़ उड़ान ।

स्वरचित

लिटरेरी जनरल सरिता कुमार , Saritakumar 954 , फरीदाबाद

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