तुलना – अर्चना सक्सेना  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “ओहो… तेवर तो देख जरा अपनी बहुरिया के! सास और ताई सास सामने बैठी रह गयीं और सुबह की चाय पूछना तो दूर फ्रिज में से ठंडा दूध निकाल कर खुद पी लिया और बाय बोलकर हाथ हिलाती चली गयी पति के साथ। और रितेश ने भी तो खुद ही कॉर्न फ्लेक्स बनाया अपना, सास का ना सही पति के नाश्ते का ही ध्यान रख ले।” 

कमला की जेठानी हाथ नचाकर बोली तो कमला ने शर्म से नजरें नीची करके जवाब दिया-

“वो क्या है न जीजी, नौकरी वाली है बहू, नौ बजे दफ्तर पहुँचना पड़ता है और आधा घंटा पहुँचने में भी लगता है उससे पहले जैसे तैसे खुद तैयार हो जाती है यही बहुत है। हमारी तरह मुँह अंधेरे उठने की आदत भी तो नहीं आजकल की लड़कियों को जीजी। और रितेश को तो शुरू से ही आदत है अपना काम खुद करने की। आप चिंता मत करो हम दोनों की चाय मैं बना देती हूँ फिर महाराजिन आ जायेगी थोड़ी देर में।”

“रोज ऐसा ही चलता है क्या तेरे घर में? कल से देख रही हूँ, बहू ने रात को भी खाना मेजपर लगाने के सिवा कुछ काम नहीं किया। और तू भी तो कितना बदल गयी है… हमेशा सारे काम अपने हाथ से किये और अब महाराजिन लगा ली। माना अच्छा खाना बनाया था उसने लेकिन अपने हाथ के बनाये भोजन की बात ही अलग है ये तो तू भी मानती थी।”

“मानती तो अब भी मैं यही हूँ जीजी पर क्या करूँ रितेश नहीं मानता। अब बहू को न तो फुर्सत है न ही उसकी मंशा ही होती है रोज खाना बनाने की। शुरू शुरू में समझाया था मैंने कि दोनों सास बहू मिलजुलकर घर सँभाल लेंगी, मिल बाँटकर काम कर लेंगी, मैं कौन सा सारा बोझ उसपर अकेले डालना चाहती थी, पर रितेश ही बीच में बोल पड़ा कि नीतू कामकाजी है, सुबह आठ साढ़े आठ बजे घर की गयी हुयी शाम को थकीहारी घर आकर कैसे रसोई में जुट पायेगी? और आपने भी सारी जिंदगी रसोई सँभाली है तो अब आपके भी आराम करने के दिन हैं।”

“मैं देख रही हूँ कि तेरी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो गयी है पहले के मुकाबले, दो दो कमाने वाले हो गये न अब घर में! इसीलिये तू कुछ नहीं कहती होगी बहू को। अरे पर जरा सोच, ऐसा पैसा भी किस काम का जो घर परिवार की जिम्मेदारी भूलकर कमाया जाये। कितनी औरतें दोनों जगह की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाती ही हैं। तू भी न एकदम संस्कारहीन बहू चुनकर लायी है अपने रितेश के लिये।”

जेठानी ने उलाहना दिया तो कमला मायूसी से बोली-

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“मैं कहाँ चुनकर लायी जीजी? मुझे भी क्या मिला? जानती तो हो मैं तो हमेशा से एक घरेलू संस्कारी लड़की ही चाहती थी जो मेरे साथ घर में भी वक्त बिताये। नीतू को तो रितेश ने चुना है अपने लिये। हाँ मैं विरोध जरूर नहीं कर पायी, ममता के आगे समझौता कर लिया। अब इसके पापा तो रहे नहीं, मेरा तो जो है वो यही है इसीलिये इसकी हमेशा सुनती हूँ। वैसे जितना मैं उसे समझी, बहू भी दिल की बुरी नहीं है। मेरी छोटी से छोटी जरूरत का भी ख्याल रखती है। छुट्टी वाले दिन कभी कभी खाना भी बढ़िया बनाकर खिलाती है। होटल के खाने जैसा स्वाद है इसके हाथ में जीजी।”

“रहने दे तू लीपापोती करना कमला! कल से आयी हुई हूँ, मैं भी देख ही रही हूँ अपनी आँखों से। सोचा था रितेश के ब्याह में तो ज्यादा रुक नहीं पायी थी,अब उसकी बहू के साथ कुछ समय बिताकर आती हूँ पर इसे तो फुर्सत ही नहीं। मेरी बहू ऐसी संस्कारहीन होती तो मैं तो अक्ल ठिकाने लगा देती उसकी।”

“अरे मैं तो हूँ न जीजी, हमें भी तो कब से साथ में वक्त बिताने का मौका नहीं मिला है। मैं मन लगाकर रखूँगी न आपका।”

“हाँ तू तो है पर तू तो अपने ही घर में खुद ही बेचारी सी लग रही है मुझे। खैर चल चाय बनाकर पिला दे, मेरा तो दिमाग ही घूम गया।”

कमला चाहकर भी जेठानी की बातों का विरोध नहीं कर सकीं। वैसे वह जितना समझ पाती थीं उनकी बहू दिल की बुरी नहीं थी और शायद बनावटीपन से भी दूर ही थी लेकिन ये भी सच था कि इकलौते बेटे के लिये जैसी बहू का सपना वे प्रारंभ से देखती आ रही थीं नीतू वैसी तो बिल्कुल भी नहीं थी। दूसरी ओर जेठानी की दोनों बहुयें गृहकार्य में दक्ष थीं। जब तक संयुक्त परिवार में थीं

दस पंद्रह मेहमानों को तो दोनों मिलकर बड़ी अच्छी तरह सँभाल लेती थीं। हाँ पिछले दो सालों से जरूर दोनों की रसोई अलग हो गयी है और जीजी सुबह का खाना बड़ी बहू के यहाँ तो शाम का छोटी बहू के यहाँ खाती थीं। पर इसमें भी तो मजा ही आता होगा उन्हें। एक तो दोनों समय घर का ताजा खाना और दोनों बहुओं के हाथ का स्वाद भी मिल जाता था। कमला तो तबसे वहाँ जा ही नहीं पायीं हैं। पर इस बार जीजी के साथ ही निकल जायेंगी। अपने घर में न सही जीजी के यहाँ जाकर ही कुछ दिनों ये सुख उठा लें।

शाम को जब नीतू ऑफिस से आयी तो उसके हाथों में गर्मागर्म जलेबी व समोसे के लिफाफे थे। उसने बैग एक ओर रखा और झटपट प्लेटों में नाश्ता डालकर ताई और सासुमाँ को पकड़ाया।

प्लेट हाथ में लेते हुए ताई ने ताना मारा-

“बहू तेरे हाथ का भी कुछ मिलेगा खाने को या मेरे लौटने तक बाजार का और महाराजिन के हाथ का ही खाना पड़ेगा बस?”

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“जरूर मिलेगा ताई, कल शनिवार है, दो दिन की छुट्टी है मेरी। बताइये क्या पसंद है आपको?”

“कह तो ऐसे रही है जैसे सबकुछ बनाना जानती है। अरे जो अच्छा बनाती है वही बना दे बस। ब्याह में तो खीर में चावल डालकर ही शगुन पा गयी थी, अब कुछ खुद पकाकर खिलाये तो दोबारा शगुन दूँगी।”

“आपका आशीर्वाद ही बहुत है ताई।”

ताई उसके मीठे बोलों से जरा भी प्रभावित नहीं दिख रही थीं।

अगले दिन सुबह के नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक तीनों समय के भोजन की जिम्मेदारी नीतू ने बखूबी निभाई। कमला को भी उसने रसोई से दूर रखा। हाँ महाराजिन ने अवश्य उसका हाथ बँटा दिया था।

ताई मन ही मन उसकी पाककला से प्रभावित थीं, शगुन भी पकड़ाया परंतु खुलकर प्रशंसा नहीं कर सकीं, अहं जो आड़े आ रहा था।

अगले दिन सवेरे ही रविवार को रितेश अपने दोस्त की शादी में शहर से बाहर चला गया। दोपहर से कमला को ठंड लगकर तेज बुखार चढ़ गया। ताई तो बहुत घबरा गयीं थीं लेकिन नीतू ने फौरन डॉक्टर को बुला लिया। समय पर दवाई खिलाने से लेकर ठंडे पानी की पट्टियाँ रखने तक सारी जिम्मेदारी उसने बखूबी निभायी। वैसे ताई कमला के कमरे में ही सोतीं थीं लेकिन रात को ताई के सोने की व्यवस्था दूसरे कमरे में करके नीतू ही कमला के पास सोयी। कमला का  बुखार कम हो गया था परंतु रात को भी नीतू ने कई दफा उनका माथा छूकर अपनी तसल्ली की। अगले दो दिनों की छुट्टी भी उसने ले ली थी। ताई हर बात पर नजर रखे हुए थीं और मन ही मन उसकी तुलना अपनी दोनों बहुओं से कर रहीं थीं। हाँलाकि वह अब भी नहीं कह सकीं परंतु मन ही मन अब वह नीतू को उनसे इक्कीस पा रही थीं।

पंद्रह दिन बाद जब ताई लौटीं तो कमला भी कुछ दिनों के लिये उनके साथ उनके घर आ गयीं।

दोनों बहुओं ने फीकी सी मुस्कुराहट के साथ चाची सास का स्वागत किया। बहुत जल्द वो समझ गयीं कि जेठानी के घर में सबकुछ पहले जैसा नहीं रहा। दोनों भाइयों के बीच वो हँसी मजाक नहीं बचा था। दोनों बहुएँ आपस में जरूरत भर का बोलतीं। चचेरे भाई बहन के बीच प्रेम कम और प्रतियोगिता अधिक थी।

सुबह का खाना बड़ी बहू ने कमरे में ही भिजवा दिया तो कमला से रहा नहीं गया

“जीजी आप मेज पर सबके साथ खाना नहीं खातीं अब?”

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“अरी कमला घर में होता ही कौन है दिन में! बच्चे देर से आते हैं और सोमेश तो सीधा शाम को ही आता है। बड़ी बहू मुझे समय पर खाना दे देती है फिर खुद जब मर्जी होती है तब खाती है।”

कमला ने कोई उत्तर नहीं दिया। शाम को कमल पिज्ज़ा लेकर कमरे में आया। कमला उस समय बाथरूम में थीं परंतु उन्हें सुनायी सब दे रहा था। कमल अपनी माँ से कह रहा था-

“माँ गीता के सिर में दर्द है इसीलिए आज पिज्जा मँगवा लिया है। आपके और चाची के लिये यहीं ले आया हूँ।”

जीजी फुसफुसाकर बोलीं

“कमल जब तक तेरी चाची यहाँ हैं थोड़ा ध्यान रखलो तुम लोग। पिज्ज़ा मँगवाया है वो तो ठीक पर साथ बैठकर ही खा लेते।”

“माँ बच्चों के इम्तिहान चल रहे हैं। उनको डिस्टर्ब नहीं कर सकते। चाची तो अभी रहेंगी। कभी बाहर खाना खिलाने ले चलेंगे।”

“अरे पर बच्चे भी तो खाना खाने उठे ही होंगे…”

“माँ पिज्जा ठंडा हो रहा है कहते हुए कमल बाहर निकल गया।

कमला बाथरूम से निकलीं तो अनजान बनते हुए बोलीं-

“अरे वाह पिज्जा! बहुत दिनों से नहीं खाया, चलो जीजी शुरू करो ठंडा हो जायेगा।”

जीजी आँखों में आँसू भरकर बोलीं-

“कमला मैं अपने परिवार को जोड़कर नहीं रख पायी। शायद मेरा कड़ा अनुशासन और एक की दूसरे से तुलना करते रहना ही इसकी वजह है। आज मेरे अनुशासन को मानना तो दूर मेरी बात कोई सुनता तक नहीं है। तू ऐसी गलती कभी मत करना, तुझे नीतू के रूप में हीरा मिला है। बहुत संस्कारी बहू है तेरी, यहाँ वहाँ उसकी तुलना करके उसके दिल में अपनी इज्ज़त कम मत कर लेना। और सुन क्या कुछ दिनों के लिये फिर से तेरे घर चल सकती हूँ, नीतू से सामने से वो कहना है मुझे जो मुझे कह देना चाहिए था पर मेरे अहंकार ने नहीं कहने दिया।”

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“कैसी बातें कर रही हो जीजी? आपका ही घर है वो, जब तक जी चाहे रहिये।

“भाग्यवान है तू, इस बुढ़ापे में मैं तो तुझसे ये भी नहीं कह सकती। पर मैंने नीतू के साथ अच्छा व्यवहार तो नहीं किया था, क्या तब भी नीतू ऐसा ही कह सकेगी?”

“जरूर कहेगी जीजी, भरोसा है मुझे उसपर।”

कमला का दिल अपने बेटे बहू के पास लौटने के लिये मचलने लगा था। खाना समाप्त करते ही उन्होंने नीतू को फोन लगा दिया-

“नीतू बेटा तेरे बिना मन नहीं लग रहा है मेरा और तेरी ताई का भी।

वो भी कुछ दिन और तेरे साथ रहना चाहती हैं। उन्हें कुछ कहना भी है तुझसे पर फोन पर नहीं, सामने से।”

“ये भी कोई पूछने की बात है मम्मी? वो घर की बड़ी हैं, उन्हीं का घर है। वैसे मुझे भी घर खाली खाली लग रहा है आपके बिना। मैं जल्दी से जल्दी आप दोनों की टिकट बुक कराती हूँ।”

कमला ने फोन रखते हुए जेठानी की ओर देखा। उन्होंने भी पूरा वार्तालाप सुना था और उनके चेहरे पर संतोष था।

                 अर्चना सक्सेना

#संस्कारहीन

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