दोनों परिवार अपने हैं – विभा गुप्ता
” क्या…! तुमने मुझे उसी समय क्यों नहीं बताया…मैं उसका हाथ तोड़ देती…।” मालिनी अपनी ननद आरती को चीखते हुए बोली तो वो बोली,” भाभी..मेरे लिये तो दोनों परिवार अपने हैं।बंटी के जन्मदिन पर घर मेहमानों से भरा हुआ था..उस समय आपको बता देती कि आपके छोटे भाई ने मेरे साथ बत्तमीज़ी करने की कोशिश की है तो आप गुस्सा करतीं..भईया शायद विनय पर हाथ भी उठा देते…लोगों को आपके परिवार पर ऊँगली उठाने का मौका मिल जाता..।”
मालिनी सोचने लगी, सास-ससुर के जाने के बाद से आरती को मैंने हमेशा बोझ समझा..उसे बात-बात पर तिरस्कृत करके ननद-भाभी के # रिश्ते का मान नहीं किया लेकिन आज इसने मेरे भाई की दुर्व्यवहार को मुझे अकेले में बताकर हमारे रिश्ते का मान रखा और दोनों परिवारों की इज्जत भी बचाई।उसने आरती से अपने पिछले बर्तावों की माफ़ी माँगी।भाई के व्यवहार की भी माफ़ी माँगते हुए बोली,” फिर कभी ऐसा हो तो बिना हिचक के तुरंत कहना..मेरे लिये तुम्हारे सम्मान से बढ़ कर और कुछ नहीं है।”
विभा गुप्ता
# रिश्ते का मान स्वरचित, बैंगलुरु
“रिश्तो का मान” – हेमलता गुप्ता
बड़ी बहू यह क्या तरीका है हर समय छोटी बहू को नीचा दिखाने की ! पिछले महीने जब तीन दिनों के लिए तुम और तुम्हारे भाई का परिवार गोवा घूमने गया था तब तुम्हारे पिताजी अस्पताल में भर्ती हुए थे उस समय इस बेचारी ने तुम्हारे माता-पिता के लिए घर से खाना भिजवाया था और उनकी हर संभव मदद की थी, इसने अगर यह रिश्तो का मान ना रखा होता तब तुम क्या करती? बजाए इसका एहसान मानने कि अभी भी तुमको इसमें कमी नजर आती है! हां मा जी मैं अपने घमंड में अंधी हो गई थी और इसका किया मुझे दिखाई ही नहीं दिया इसने तो रिश्तों का मान रखा किंतु मैंने रिश्तो के मान को शर्मिंदा कर दिया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित (गागर में सागर)
“रिश्तो का मान”
रिश्तों की सीख – शिव कुमारी शुक्ला
विमला जी साठ की उम्र पार कर चुकीं थीं किन्तु अभी भी जब भी बड़े भाई की याद आती वे अपना झोला लेकर निकल पड़तीं भाई से मिलने जिसमें दो-तीन जोड़ी कपड़े होते एवं भतीजों भतीजीयों के लिए कुछ खाने का सामान ।भाई चार साल से ज्यादा चलने -फिरने में असमर्थ थे।
नीम के पेड़ के नीचे खाट डाल कर बैठे दोनों भाई बहन घंटों बतियाते रहते। बच्चों को बड़ा अच्मभा होता इस उम्र में भी भाई बहन में इतना प्यार होता है।
भतीजे की शादी थी उन्हें एवं उनके पति यानि फूफा जी को पूरा मान-सम्मान दे सब रीति रिवाजों में आगे कर दिया जाता। पापा हर काम में फूफा जी को साथ रखते तो मम्मी बुआ जी से पूछ पूछ कर हर काम करतीं। फिर जाते समय उन्हें सम्मान पूर्वक विदाई दे, विदा किया गया। बच्चे ये रिश्ते का मान देख सोच रहे थे कि अपनों से रिश्ता कैसे निभाया जाता है।
परोक्ष रूप से उनके माता-पिता उन्हें रिश्तों का मान सीखा रहे थे ताकि भविष्य में वे भी अपने रिश्तों को ऐसे ही मान देकर सम्हाल सकें।
शिव कुमारी शुक्ला
13-2-25
स्व रचित
रिश्तों का मान****गागर में सागर
रिश्तों का मान – मंजू ओमर
मम्मी वर्षा के बहन की शादी है आप चलोगी क्या वहां , नहीं बेटा । कुमुद जी बोली ये शगुन का लिफाफा लेते जाओ मेरी तरफ से दे देना मैं वहां ंनहीं जाऊंगी। तेरे ससुराल वालों ने मेरा ज़रा भी मान नहीं रखा ।जब मैं उस दिन वर्षा को पूजा के लिए घर पर बुलाने गई थी तो कितना अनाप-शनाप बोल रही थी मुझसे अपनी मम्मी के सामने। वर्षा की मम्मी ने एक बार भी बेटी को मना नहीं किया कि अरे बेटा कैसे बोल रही हो सास है तुम्हारी और बड़ी है तुमसे । ज़रा भी रिश्ते का मान नहीं रखा न तेरी बीबी ने और नहीं तेरी सास ने । इसलिए मैं तो वहां नहीं जाऊंगी ।और तुम्हें नहीं रोक रही हूं तुम जाना चाहते हो तो जाओ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
13 फरवरी
रिश्ते का मान – रजनी रियाल
एक छोटे से गाँव में एक बूढ़ी माँ रहती थी। उसका एक बेटा था जो शहर में नौकरी करता था। माँ और बेटे के बीच का रिश्ता बहुत प्यारा था।
एक दिन बेटे को शहर में एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा। उसकी नौकरी चली गई और उसके पास पैसे नहीं थे। वह बहुत परेशान था।
उसकी माँ ने जब यह बात सुनी, तो वह तुरंत अपने बेटे के पास शहर आई। उसने अपने बेटे को गले लगाया और कहा, “बेटा, तुम्हारी माँ हमेशा तुम्हारे साथ है। तुम्हारी समस्या मेरी समस्या है।”
माँ ने अपने बेटे की समस्या को सुलझाने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी। उसने अपने बेटे को एक नई नौकरी दिलाने में मदद की।
बेटे ने अपनी माँ को धन्यवाद दिया और कहा, “माँ, तुम्हारा प्यार और समर्थन मेरे लिए सबसे बड़ी पूंजी है।”
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि रिश्तों का मान बहुत महत्वपूर्ण है। माँ और बेटे के बीच का रिश्ता इस बात का प्रमाण है कि रिश्तों का मान कभी नहीं टूटता है।
स्वरचित…
रजनी रियाल
रिश्तो का मान — संध्या त्रिपाठी
बेटे बहू की मनमानी,जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही से परेशान शर्मा जी ने घर में खाना पीना ही बंद कर दिया और आदेश दिया दोनों बेटे अपना अलग-अलग रहने की व्यवस्था कर ले ! पत्नी ने काफी समझाया , खाने का आग्रह किया पर शर्मा जी इस बार मानने को तैयार ही नहीं थे..दो दिनों तक घर में मातम सा छाया रहा ।
अगले दिन हिम्मत करके छोटी बहू ने सुबह-सुबह चाय का प्याला ले जाकर शर्मा जी के सामने रखते हुए क्षमा याचना पूर्वक चाय पीने का आग्रह किया आगे से गलती ना होने का आश्वासन भी दिया , बिना कुछ बोले शर्मा जी ने चाय का प्याला अपने हाथ में उठा लिया सारा घर सुखद आश्चर्य से स्तब्ध रह गया.. शर्मा जी ने ससुर बहू के रिश्तों का मान रखकर आदर्श स्थापित किया ।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी अंबिकापुर ,छत्तीसगढ़
” रिश्तो का मान” – पूजा शर्मा
रिश्तो का मान रखना चाहिए बेटा लेकिन अपना आत्म सम्मान गवाकर नहीं, बेशक अजय हमारे दामाद हैं।
लेकिन अपनी बहू की बेइज्जती भी मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती, इतनी आवभगत करने के बावजूद भी जाने किस अकड़ में रहते हैं हम तुम्हारी तरफ से कुछ कहते हैं तो हमसे गुस्सा हो जाते हैं। तुम्हें अपने लिए खुद बोलना सीखना होगा। किसी की अच्छाई का नाजायज फायदा उठाना भी गलत है, मैं तुम्हारे साथ हूं गलत बात पर जवाब देना गलत नहीं है। फिर चाहे मेरी बेटी भी मेरे खिलाफ हो जाए। अपनी बहू सुनीता के हाथ पर हाथ रखकर कमल जी ने कहा। अपनी पत्नी के प्रति मां का प्यार देखकर अभिभूत हो उठा राजन।
पूजा शर्मा स्रवचित
पिता पुत्र – एम पी सिंह
अशोक के माता पिता जरा पुराने ख्यालो के थे ओर लव मैरिज के सख्त खिलाफ थे। अशोक का आफिस में अपने सहकर्मी से अफेयर चल रहा था और दोनो शादी करना चाहते थे। अशोक ने एक बिचोलिये को अपनी शादी की बात करने अपने पिता जी के पास भेजा, वो उनका परिचित निकला और बात आगे बड़ा दी और जल्दी ही शादी हो गई।
पिता ने “रिस्ते का मान” रखा और अशोक की लव मैरिज का राज अपने दिल में छुपा लिया।
याद रहे, रिश्तों में सम्मान देने से ही सम्मान मिलता है
गागर में सागर
(रिश्ते का मान)
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
13 Feb 25
मायका तेरा ही है – रश्मि प्रकाश
“ जाने दे बहू…भाभी ने जो किया उसके लिए अपनी जान से प्यारी भतीजी को तो दुख नहीं दे सकती है ना… मिठ्ठी ने कितने प्यार से तुझे बुलाया है भाई ने भी तो कहा है तुझे आना होगा… बुआ का नेग तो तुझे ही करना है चली जा पुरानी बातें सोचेगी तो बस जी खट्टा होगा और रिश्ता खराब… रिश्ते का मान तो यही कहता है ना जो ना समझे उसे छोड़ दे पर जो मान दे रहे उनकी भावनाओं को तो समझो ।”रचना की सास उसे समझाते हुए बोली
रचना जब भी मायके जाती भाभी के दो चार ताने उसे आहत कर देते फिर उसने बच्चों की पढ़ाई और काम की व्यस्तता बता जाना कम कर दिया पर इकलौती भतीजी की शादी का न्योता उसके मन को डावाँडोल कर रहा था ये देखते हुए सास ने उसे समझाते हुए जाने को कहा।
रचना जब मायके गई लाड़ली भतीजी के अपनत्व ने उसे भाभी के कृत्य को कम कर रिश्तों के मान को बनाए रखने का संदेश दे दिया ।
रश्मि प्रकाश
# रिश्तों का मान
सीख — संध्या त्रिपाठी
क्या बात है कमली , तू दुखी है ? क्या बताऊं मेमसाहब,कल बहू से मेरी तू – तू ,मैं – मैं हो गई थी फिर बहू ने ना मुझे खाने को कहा ना ही मुझसे कोई बात की, खुद खा पीकर सो गई!
मुझे बहुत गुस्सा आया और दुख भी बहुत हुआ । आज रोज की भांति सुबह उठकर खाना बनाकर थाली में परोस कर मेरे सामने लाकर रख दिया ।
एक बार मुझे लगा थाली सरका दूं .. और उठ जाऊं , पर दूर की सोचकर , घर की भलाई के लिए ..खून का घूंट पीकर चुपचाप मैंने खाना खा लिया था मेमसाहब !
तू तो मुझसे भी ज्यादा समझदार निकली कमली और मुझे एक सीख भी मिली , मैंने तो अपने घर में सास होने के अहंकार में कितनी दफा माहौल खराब किया है ।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी, अंबिकापुर ,छत्तीसगढ़