*रिश्तों की महक* पुष्पा जोशी
कल किसी परेशानी के चलते,राज ने सुमी की बहिन को बिना सोचे समझे उल्टा-सीधा बोल दिया,वह चली गई, सुमी को बहुत बुरा लगा, मगर वह कुछ नहीं बोली, उसके ऑंसू देखकर राज को अपनी गलती का एहसास हो गया। कल राज की दीदी पूरे पॉंच साल बाद विदेश से आने वाली थी, उसे डर लग रहा था कि कहीं सुमी उनसे कुछ कह न दे। वह झिझकते हुए सुमी से बोला सुमी मुझसे कल गलती हो गई, मुझे निशा से इस तरह बात नहीं करनी थी, कल दीदी आ रही है तुम….। आप बेफिकर रहैं मुझे रिश्ते का मान रखना आता है। उम्मीद करती हूँ आप भी इस बात का ध्यान रखेंगे, रिश्तों को मान देने से वे महकते हैं।राज ने स्वीकृति में सिर हिलाया।
प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
रिश्तों का मान – डाॅ संजु झा
कोमल की धूम-धाम से शादी हुई। उसने शादी में अपनी पसन्द से हीरे के गहने खरीदे थे। ससुराल में कुछ दिनों तक उसे पहने रखा, परन्तु जब दफ्तर जाने का समय हुआ तो उसने उस जेवर को आलमारी के अंदरूनी बाक्स में रख दिया। दो-चार दिन के बाद जब उसने जेवर पहनने के लिए आलमारी खोली,तो सारे जेवर गायब थे।
जेवर गायब होने के कारण कोमल सदमे में आकर रो-रोकर जेवर गायब होने की बात अपनी माॅं को बताई।उसकी माॅं ने उसे भड़काते हुए कहा -“घर में तुम्हारी सास है और मेड आती है,तो इन दोनों पर ही शक जाता है।”
कोमल -“माॅं!मेड तो बीस साल पुरानी है।”
कोमल की माॅं-“फिर तो बेटी के लिए तुम्हारी सास ने ही चुराए होंगे।”
माॅं की बातें मानकर कोमल ने सास के रिश्तों को तार-तार करते हुए चोरी का इल्ज़ाम लगा दिया।
कोमल के इल्ज़ाम से आहत उसके ससुर ने पुलिस बुलाई। पुलिस की सख्ती के कारण मेड ने सारा जेवर निकालकर दिऍं,जो उसने उस घर में ही छुपाकर रखें थे।जेवर की बरामदगी के बाद कोमल के ससुर ने कहा -बहू! तुमने रिश्तों का मान नहीं रखा।आज से तुमलोग अलग घर में जाकर रहो।”
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित
रिश्ते का मान – रंजीता पाण्डेय
रामप्रसाद जी ,अपने परिवार के सबसे बड़े बेटे थे। पढ़ाई में सबसे कमजोर होने के कारण वो गांव में रह कर ,खेती का काम करते थे ।रामप्रसाद जी के छोटे भाई , सुभाष, और सुरेश शहर में नौकरी करते थे । ।होली ,दिवाली , में सुरेश और सुभाष अपने परिवार को ले के गांव आते थे । सब साथ मिलकर ही त्योहार मनाते थे।इस बार जमीन जायदाद को ले के सुरेश से थोड़ी कहा सुनी हो गई थी । जिस कारण थोड़ा मनमुटाव हो गया था। सुरेश के बच्चे का पहला जन्मदिन था। सुरेश मन ही मन सोचने लगा बड़े भईया राम प्रसाद जी को बुलाऊं की नहीं ? पता नहीं वो आयेंगे की नहीं ? फिर भी उसने बिना मन के ही जन्मदिन का कार्ड व्हाट्सएप कर दिया । रामप्रसाद जी मैसेज देखते ही,बहुत खुश हो गए और ट्रेन पकड़ सुरेश के घर आ गए । सुरेश भईया को देख खुश तो बहुत हुआ, लेकिन ठीक से बात नहीं कर रहा था। पार्टी बड़े से होटल में थी । पार्टी में ऑफिस के बड़े बड़े लोग आए थे ।उनलोगों के बीच रामप्रसाद जी अपने आप को असहज महसूस कर रहे थे,इस कारण एक किनारे जा के बैठ गए । जब केक काटने ,और बच्चे को टीका लगाने का समय आया तो,सुरेश अपने , भईया को इधर उधर खोजने लगा ,सुभाष ने बोला भईया आप किनारे क्यों बैठे है? आइए ,आप सबसे पहले बच्चे को टीका लगाए और अपना आशीर्वाद दे ।फिर क्या था रामप्रसाद जी सबसे आगे आए और बच्चे को टीका किया ,बहुत सारा आशीर्वाद दिया।सभी लोग केक खाने , नाच गाने में लग गए।सुरेश अपने बड़े भईया के पास आया और बोला भईया हमको माफ कर दीजिए ।आज आप आ गए हमको बहुत अच्छा लगा ।रामप्रसाद जी ने छोटे भाई सुरेश को गले लगाते हुए बोला ,तू बुला के तो देख , मैं हमेशा तेरे सुख दुख में भाग के आ जाऊंगा ।अब तीनो भाई बहुत बहुत खुश थे ।
हर घर में मनमुटाव होता है ,लेकिन , बड़ों को सम्मान देकर , और छोटों को प्यार देकर “रिश्ते का मान “रखा जा सकता है ।
रंजीता पाण्डेय
रिश्तों का मान – अमिता कुचया
सुरेंद्र जी को आफिस जाना था, तो अपनी पत्नी सुनीता को बोले- मुझे सफेद शर्ट देना, आज वही पहनूंगा। तभी सुनीता जी देती है तभी शर्ट की सलवटें देखकर बोलते – कैसी शर्ट है, तुमसे एक काम ढंग से नहीं होता तुम सास बन गयी हो फिर भी…इतने में उनकी बहू प्रिया चिल्लाते हुए देख लेती है तब उसे बहुत बुरा लगता है….
अब प्रिया सोचती है कि पापा को अहसास कराना ही होगा तो वह एक दिन क्रीम लाने कहती है, फिर साधारण सी क्रीम लाने पर कहती -क्या पापा आपको एक क्रीम लानी नहीं आती है, कम से कम इतना तो पता होना चाहिए विंटर में कोल्ड क्रीम लगाते हैं….तब सुनीता जी को बुरा लगता है और वह कहती -अरे प्रिया कैसी बात कर रही हो….ये तुम्हारे ससुर है, तुम्हें कोई लिहाज नहीं है कि ससुर से कैसी बात करनी चाहिए। तो प्रिया कहती- देखा पापा जी ,,मम्मी जी को एक बार भी आपका अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाई उन्होंने रिश्तों का मान महसूस किया और वो तुरंत ही बोल पडीं और एक आप है कि मम्मी की हमेशा कमी देखते हैं, जैसे आपसे गलती हुई वैसे ही अनजाने में उनसे भी गलती हो जाती है उम्र होने से ,या सास बनने से गलती न हो ऐसा नहीं होता पापा जी….तब वो कहते – हां बहू हमेशा मेरे ऐसे व्यवहार से सुनीता आहत होती होगी और मैं ही रिश्तों का मान नहीं रख पाया। इस तरह उन्हें अपनी गलती से समझ आ जाती है।
मौलिक स्वरचित रचना
अमिता कुचया
मां बेटी – लतिका श्रीवास्तव
आंधी की तरह शिल्पा घर में घुसी थी।कमबख्त ऑफिस की मीटिंग और बस दोनों को आज ही लेट होना था जब उसके सास ससुर पहली बार उनके घर आने वाले हैं।सोचा था ऑफिस से जल्दी आकर सोफे के कवर बदल देगी, गरम नाश्ता बनाने के लिए पनीर पकोड़े की तैयारी करके गई थी ।अब तक तो आ गए होंगे चाय चढ़ाऊंगी सबसे पहले सोचती वह जैसे ही घर पहुंची बाहर से ही पति रुद्र के हंसने और बात करने की तेज आवाजें सुन समझ गई वे लोग आ चुके हैं। ग्लानिभाव लिए जल्दी से चरण स्पर्श के लिए झुक गई थी।
शिल्पा बेटा जल्दी आ पनीर पकोड़े ठंडे हो रहे हैं.. रुद्र चाय ले आएगा सासू मां की स्नेहिल आवाज सुन चौंक गई।
सॉरी मां वो बस इतनी लेट हो गई आज शर्मिंदगी से शिल्पा की आंखों में आंसू आ गए थे।
अरे बेटा मैं तेरी मां हूं तेरे ऑफिस की खूसट बॉस नहीं । हमारे स्वागत की सारी तैयारी तो तुमने पहले से ही कर रखी थी।हमारा रिश्ता मां बेटी का है ना फिर कैसी औपचारिकता …ममत्व पूर्ण स्वर सुन शिल्पा हां मां कहती हुलसकर मां के गले लग गई।
लतिका श्रीवास्तव
रिश्तों का मान – सिम्मी नाथ
आज रश्मि मैम का स्कूल में आखरी दिन था, उनके साथ लगातार आठ वर्षों तक साथ शिल्पी काम की थी , स्टाफ रूम में साथ बैठना, साथ कॉपी चेक करते हुए बच्चों की उल्टी पलटी हरकतों पर चर्चा करना दोनों की दिनचर्या थी ।
अब ?? कैसे रहूंगी , क्योंकि हमारी जोड़ी काफी प्रसिद्ध थी ।
कब किसे क्या हो जाए ? कहा नहीं जा सकता ।
एक सप्ताह पहले ही मम्मी की दवाई लेन गए पापा गिर गए ,जिससे उनको डॉ ० ने बेड रेस्ट कह दिया , मम्मी तो पिछले साल से ही ब्रेन डेड पड़ी हैं ,ऐसी हालत में रश्मि मैम ने अपना स्कूल छोड़ने का फैसला किया, उसके बड़े भैया ने यह कहकर साफ इंकार कर दिया कि तुम्हारी भाभी के पैरों में दर्द रहता है, मैं भी हार्ट पेशेंट हूँ क्या करूं? भाभी की मर्जी के आगे वो मस्तक थे । रश्मि ने कहा तो कुछ भी नहीं ,किंतु उसे याद आया ,पापा अक्सर कहते थे , बचपन में तेरे भाई को मेनिनजाइटिस हो गया था, तुम मां के पेट में थी ,हम दोनों डॉ की सलाह पर मद्रास ले गए ,महीने भर अस्पताल में रहा ,तभी ठीक हुआ ।इसे कभी दिमाग पर जोर न पड़ने देना , कभी साथ न छोड़ना , वो बचपन से कमजोर *है । तुम रिश्तों का मन रखना ।पापा को दवा पिलाती हुई रश्मि खुद ब खुद बडबडा रही थी, हां! पापा वो कमजोर है ,तभी तो पत्नी को सही गलत बता नहीं पाए , किंतु मुझे आपकी जरूरत है ,आप ठीक हो जाएंगे।
सिम्मी नाथ
तकदीर – रंजीता पाण्डेय
आज रमाकांत जी बहुत खुश थे |उनके बेटी दामाद आने वाले थे,पूरे चार सालों बाद | रमाकांत जी बार बार घड़ी देख रहे थे | तभी पैरों की आहट आई रमाकांत जी ने दौड़ के दरवाजा खोला | बेटी दामाद को सालों बाद देख उनकी आंखे नम हो गई | दामाद जी का व्यवहार कुछ अलग लगा | रमाकांत जी समझ नहीं पाए |
रमाकांत जी ,पूनम से बोले बेटा तुम कुछ उदास लग रही हो? दामाद जी तुम्हारा ख्याल तो रखते है ना? पूनम की आंखों में आंसू आ गया बोली पापा मै ठीक हुं |बस आपके दामाद थोड़ा मानसिक रूप से बीमार है | रमाकांत जी ने बोला हमसे गलती हो गई बेटा,तुम्हारी शादी गलत इंसान से करा दिया है मैने | पूनम अपने पापा के गले लग गई और बोली पापा बिल्कुल ऐसा नहीं है ,मेरी” तकदीर “में यही लिखा था | मै सब संभाल लूंगी | आप परेशान नहीं हो |
वैसे भी कोई भी पिता अपनी बेटी की जिंदगी खराब कर ही नहीं सकता | सब मेरी तकदीर का लिखा है | जो कोई बदल नहीं सकता | लेकिन हा, पापा आप मेरे साथ है तो ,सब दुख कट जाएगा | बिल्कुल पूनम बेटा मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ |
रंजीता पाण्डेय
अपनेपन की महक – रंजीता पाण्डेय
अमिता संयुक्त परिवार में रहने वाली बड़ी बहू थी | आज सुबह जल्दी जल्दी घर का सारा काम खतम कर के ,अपने बेटे को ,ले के निकल गई | बेटे का एडमिशन छठवीं में करना था | उसी की प्रवेश परीक्षा थी | जब बेटा गेट के अंदर चला गया तब अमिता ग्राउंड में बैठ गई | बहुत ठंड थी | अमिता ने सुबह जल्दी जल्दी में चाय तक नहीं पिया था | एक पति पत्नी उसके पास आ के बैठे|और बोले ,नमस्ते ,जी मै रिया ,आप? मै अमिता , रिया ने बोला मै भी अपने बच्चे को परीक्षा दिलवाने ही आई हूं | रिया पानी की बोतल ,चाय नाश्ता सब ले के आई थी | रिया ने चाय की बोलत जैसे ही खोला ,अमिता वहां से उठने लगी , रिया ने बोला बैठिए क्यों जा रही है? अमिता ने बोला ,आप लोग चाय नाश्ता कर लीजिए मै थोड़ा टहल के आती हू | रिया ने बोला रुकिए ,पहले ये अदरक इलायची वाली चाय पी लीजिए, फिर टहलने जाइयेगा | रिया ने इतने प्यार से बोला की अमिता मना नहीं कर पाई | और चाय ले के पीने लगी | रिया ने बोला कैसी लगी चाय? बोली ,चाय में अदरक इलायची से ज्यादा “अपने पन की महक , थी | दोनो हसने लगी |बहुत बहुत धन्यवाद | बोल के अमिता वहां से निकल गई |
रंजीता पाण्डेय
ईश्वर का न्याय – रूचिका
नहीं, मुझे नही जाना उस घर में सरिता ने अपने माँ से कहा।
माँ के बार-बार पूछने पर उसने बताया कि उसके साथ नौकरों से भी बदतर व्यवहार होता।
माँ ने समझाया बेटा ईश्वर सब देख रहा,तुम अपना कर्म करो वह न्याय जरूर करेगा।
सरिता को यकीन नही होता था मगर फिर भी वह माँ की बात मानने के लिए विवश थी।
और जब उसकी ननद के साथ भी उसके ससुराल में इसी तरह व्यवहार होने लगा तब सबकी आँखें खुलीं।
और सबका व्यवहार सरिता के साथ बदल गया।
कुछ ही दिनों में सबकी चहेती बहू बन गयी।
रूचिका, सिवान बिहार
तकदीर – रंजीता पाण्डेय
आज रमाकांत जी बहुत खुश थे |उनके बेटी दामाद आने वाले थे,पूरे चार सालों बाद | रमाकांत जी बार बार घड़ी देख रहे थे | तभी पैरों की आहट आई रमाकांत जी ने दौड़ के दरवाजा खोला | बेटी दामाद को सालों बाद देख उनकी आंखे नम हो गई | दामाद जी का व्यवहार कुछ अलग लगा | रमाकांत जी समझ नहीं पाए |
रमाकांत जी ,पूनम से बोले बेटा तुम कुछ उदास लग रही हो? दामाद जी तुम्हारा ख्याल तो रखते है ना? पूनम की आंखों में आंसू आ गया बोली पापा मै ठीक हुं |बस आपके दामाद थोड़ा मानसिक रूप से बीमार है | रमाकांत जी ने बोला हमसे गलती हो गई बेटा,तुम्हारी शादी गलत इंसान से करा दिया है मैने | पूनम अपने पापा के गले लग गई और बोली पापा बिल्कुल ऐसा नहीं है ,मेरी” तकदीर “में यही लिखा था | मै सब संभाल लूंगी | आप परेशान नहीं हो |
वैसे भी कोई भी पिता अपनी बेटी की जिंदगी खराब कर ही नहीं सकता | सब मेरी तकदीर का लिखा है | जो कोई बदल नहीं सकता | लेकिन हा, पापा आप मेरे साथ है तो ,सब दुख कट जाएगा | बिल्कुल पूनम बेटा मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ |
रंजीता पाण्डेय