न्याय – मंजू ओमर
आज बहू के व्यवहार से शांता बहुत दुखी थी वोकुर्सी पर बैठीं बैठीं सोंच रही थी मैंने भी तो अपनी सास के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं किया था ।फूटी आंख न सुहाती थी सास मुझे।और आज वही सब मेरी बहू मेरे साथ कर रही है ।सच ही कहा है ऊपर वाला न्याय जरूर करता है । जैसा मैंने किया था अपनी सास के साथ वैसा ही तो मेरे साथ हो रहा है । इसलिए कर्म ध्यान से करें।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
3 फरवरी
वीआईपी क्यों!! – लतिका श्रीवास्तव
ए रमिया उस सड़क पर क्यों जा रही है इधर आ !मां जोर से चीखी।
मां तू भी आ जा ये वाली सड़क तो बिल्कुल खाली है उधर कितनी भीड़ है मैं दब कर मर जाऊंगी इस सड़क से घाट जल्दी पहुंच कर कुंभ स्नान कर लूंगी रमिया चहक उठी।
नहीं वह सड़क वीआईपी लोगों के लिए है उनके घाट भी अलग है हम गरीब लोग हैं। हम लोग भीड़ हैं हमारे नसीब में ये सब नहीं है मां ने उसका हाथ खींच कर भीड़ में शामिल करते हुए डपटा ।
अंग्रेज भी चले गए छूत अछूत भी खत्म है फिर हमारे ही देश में हमारे साथ ये कैसा भेदभाव ये कैसा न्याय!! नन्हीं रमिया भीड़ में खुद को बचाती सोच रही थी।
लतिका श्रीवास्तव
प्रकृति का न्याय – शिव कुमारी शुक्ला
कैलाश अपनी पत्नी गंगूबाई के साथ एक खेत के आसरे जीवन यापन कर रहा था। उनके औलाद नहीं थी सो दो आदमी का गुजारा उसी खेत से उपजी फसल से हो जाता था।
एक दिन एक भूमाफिया की नजर उस खेत पर पड़ी और उसे अपने कब्जे में लेने की योजना बना ली।साम, दाम, दण्ड ,भेद सब नीती अपना कर वह खेत लेने पर आमादा हो गया।
कैलाश ने सब जगह गुहार लगाई किन्तु उसे कहीं से भी न्याय नहीं मिला। नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता। हताश-निराश हो दोनों पति-पत्नी रो धोकर बैठ गये।अब कैसे गुजारा होगा भगवान तेरा ही आसरा है।खेत में फसल खड़ी लहलहा रही थी, उसे रौंदने को बुलडोजर आ चुका था। कैलाश और गंगूबाई अपनी मेहनत से उगाई फसल को यों रौंदते देख जार-जार रो रहे थे।उस भूमाफिया ने उन्हें मात्र कुछ ही कीमत चुकाई थी और खेत पर अतिक्रमण कर लिया।
अभी बुलडोजर चलना शुरु ही हुआ था कि तभी तमाशबीनों में एक ओर से शोर उठा भागो भागो सांप है तब तक सांप अपना काम कर चुका था। भूमाफिया जमीन पर बेसुध पड़ा था, सर्प दंश से उसकी मृत्यु हो चुकी थी।
जो न्याय इंसान नहीं दिला पाए वह प्रकृति ने कैलाश और गंगूबाई को दिला दिया।
अब वे फिर अपने खेत के मालिक थे।
शिव कुमारी शुक्ला
2-2-25
स्व रचित
शब्द****न्याय। गागर में सागर
न्याय – विधि जैन
मोहन जी के चार बेटे चारों ही पढ़ने में बहुत होशियार चारों ने अपनी मेहनत से नौकरी की जिसमें दो बेटे प्राइवेट नौकरी में और दो बेटे सरकारी नौकरी में दूसरे नंबर के बेटे ने अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती करके अपनी सारी कमाई का पैसा बर्बाद करता था एक दिन उसके परिवार में पैसों की जरूरत पड़ी बच्चों की फीस जमा करने थी उसने सोचा क्यों ना हम मां-बाप से लेकर आ जाते हैं पापा भी रिटायर्ड हो चुके उनके पास बहुत पैसा है लेकिन मोहन जी ने साफ मना कर दिया कहा की तुम चारों अच्छा पैसा कमाते हो तो मैं जब भी अपनी जमीन जायदाद का बंटवारा करूंगा तो तुम चारों का एक साथ दूंगा तब दूसरे बेटे विपिन को बहुत बुरा लगा और वह गुस्सा होकर चला गया मोहन जी को बिल्कुल भी अफसोस नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने चारों बेटों के साथ न्याय किया विपिन अपनी गलत आदतों के कारण अपना पैसा बर्बाद कर रहा था इस कारण से मोहन जी को बिल्कुल भी दुख नहीं हुआ आज मेरा बेटा सुधर जाए उसको सुधारने का मेरा यही तरीका सही है
विधि जैन
न्याय – डाॅ संजु झा
रीता जी के पति की छोटी -सी दुकान कचहरी में थी, जिसमें रजिस्ट्री से सम्बन्धित बहुत सारे काम होते थे।उसी दुकान के सहारे उन्होंने दोनों बेटियों की शादी कर दी थी । सोसायटी में अपना घर था , ज़िन्दगी आराम से चल रही थी।
अकस्मात् पति की मृत्यु हो गई और बड़े दामाद दुकान पर बैठने लगें।छोटी बेटी-दामाद को उनसे कोई सम्बन्ध नहीं था। बड़े दामाद भी रीता जी को कोई पैसे नहीं देते थे।काफी कशमकश के बाद सोसायटी के अध्यक्ष की मदद से गुजर-बसर के लिए रीता जी ने दामाद पर केस कर दिया।आज जज साहब ने उनके पक्ष में न्याय करते हुए कहा -” रीता जी के दामाद उमेश को न्यायालय आदेश देती है कि रीता जी को भरण-पोषण के लिए या तो तीस हजार रुपए महीना दें या तत्काल दुकान खाली कर दें।”
फैसला सुनकर रीता जी की ऑंखें भर आई ं।ये ऑंसू खुशी के थे या बेटी-दामाद के खिलाफ कोर्ट जाने के? उन्हें समझ नहीं आ रहा था,शायद यही नियति थी!
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित।
न्याय – सीमा गुप्ता
माँ की मृत्यु के पश्चात माँ की राज़दार बेटी करीना ने माँ के सभी गहने चुपके से अपने कब्जे में कर लिए। एक पतली चेन और अँगूठी भाभी प्राची की अलमारी में छिपाकर, बाकी के गहने अपने ससुराल ले गई।
शोक खोलने के कुछ दिन बाद सब जगह छानबीन की गई, तो घर की निर्दोष बहू सब की नजरों में गिर गई।
अपने बेटे को पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश दिलवाने हेतु करीना सुनार को गहने बेचकर घर जा रही थी, तो नकाबपोश लुटेरे उससे रुपयों का थैला छीनकर फरार हो गए। उसका सपना धरा रह गया l
उधर, प्राची का बेटा फ्री सीट पर प्रवेश पा गया। कैम्पस प्लेसमेंट प्रक्रिया में एक बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में लाखों के पैकेज पर उसका चयन हो गया l प्राची ईश्वर के #न्याय के आगे नतमस्तक हो गई l
– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
#न्याय
#गागर में सागर
अपना पराया – रंजीता पाण्डेय
रामनाथ जी ने शादी नहीं किया था , क्योंकि उनके बड़े भाई भाभी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी |बड़े भाई के दो लड़के थे |भाई के दोनो बच्चों को पढ़ना लिखना शादी व्याह सब रामनाथ जी ने ही किया था |
दोनो लड़के भी अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हो गए | रामनाथ जी बहुत खुश होते दोनों बच्चों को देख के | वो अचानक बहुत बीमार हो गए | बच्चो को परेशानी ना हो, इस कारण ,अपने लिए नर्स रख लिया | जो देख भाल करे | अब बहू बेटे रामनाथ जी का हालचाल तक नहीं पूछते थे | उनके कमरे में तक नहीं जाते थे | नर्स ने पूछा रामनाथ जी ,ये आपके अपने है , या पराए ? रामनाथ जी ने आंखों में आंसू लिए बोले “बेटा जब तक पैसा और ताकत था | तब तक तो ये अपने थे | अब ना ही पैसा है, ना ही ताकत | अब ये पराए हो गए है |
रंजीता पाण्डेय
#न्याय – संगीता अग्रवाल
“बेटा ये क्या कर रहा है तू कानून पर भरोसा रख !” बेटे के हाथ से ज़हर की बोतल छीनती माँ बोली।
” माँ पुरुषों को कभी न्याय नही मिलता इस देश मे क्योकि यहां औरतों की सुनी जाती है । मैं तंग आ गया हूँ इस एक साल की शादीशुदा जिंदगी से , पत्नी के झूठे इलज़ाम , ससुराल वालों के हाथो बेइज्जती और समाज की नफरत भरी निगाहेँ इन सबसे आसान मौत है !” बेटा फ़फक कर बोला।
माँ ने जहर की शीशी छीन दूर फेंक दी पर वो ये समझ नही पा रही थी पत्नियों के द्वारा सताये पतियों के पक्ष मे कब कोई कानून बनेगा ।
संगीता अग्रवाल
न्याय – अमित रत्ता
गांव में एक शिकारी था एक रात शिकार खेलने गया तो गांव की लावारिस गर्वबती कुतिया भी उसके पीछे पीछे चल दी आगे झाड़ियों में कुतिया के चलने की आवाज सुनकर शिकारी ने गोली चलाई जो कुतिया को लगी। कुतिया मर गई मगर मरने से पहले आठ बच्चों को जन्म दे गई। बिन मां के तरसते पिल्लों की चीखें पूरे गांव वालों के लिए असहनीय थीं कुछ ही दिन में वो पिल्ले भूख प्यास से मर गए।
कुछ महीने बाद शिकारी को गले का कैंसर हो गया बहुत इलाज करवाया सब बेकार अब बो चारपाई पे लेटा न खा पाता न पी पाता और गले से आवाज भी उन पिल्लों की तरह कर्कश और मार्मिक ही निकलती। पूरे आठ महीने तड़प तड़प कर उसकी सांसे रुक गईं। दबी जुबान में लोग यही कहते थे कि कभी कभी कुदरत खुद ही न्याय कर देती है।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश
हिम्मत ! – उमा महाजन
‘मां, पुरुषों के घरेलू,राजनैतिक,धार्मिक विवादो में ‘निर्दोष’ बेटियों के साथ ही अन्याय क्यों किया जाता है ? मुझे नहीं जीना ऐसी व्यवस्था में’ कुछ दरिंदों द्वारा अपने स्त्रीत्व-हरण पर आत्मघात को तत्पर निकिता सिसक रही थी।
माँ ने उसे आलिंगनबद्ध किया ‘बेटा दंड ‘दोषी’ को मिलना चाहिए निर्दोष को नहीं ! समस्या से भागकर नहीं, अपितु इसके विरुद्ध आवाज उठाने से ही तुम्हें न्याय मिलेगा। हम कानून का आश्रय लेकर न केवल तुम्हें बल्कि तुम्हारी जैसी अन्य बेटियों के लिए भी ‘न्याय’ का मार्ग प्रशस्त करेंगे।’
मां से हिम्मत पाकर निकिता की आंखों से विद्रोह झलकने लगा।
उमा महाजन