Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

अपना पराया – मनीषा सिंह

बेटा यह दूध की बोतल और दो, चार बाबू के पैंट है जा•• साफ करके ले आ••!

पर चाची••! बाहर तो बहुत ठंड है••! तो क्या— आकर अंगेठी में हाथ सेक लियो•••अभी जा••!

 ठीक है चाची •••! 9 साल की लाली बोतल और कपड़े लेकर वहां से चली गई। बगल में सावित्री की 7 साल की बेटी बैठ•• अपने छोटे भाई से खेल रही थी ।कमला जी बहू की इस हरकत को देख बहुत दुखी हुईं।

 शाबाश बहू••! आज तूने “अपने पराए” की अच्छी परिभाषा सिखाई••!कहते हुए उन्होंने लाली के हाथ से बोतल और पैंट छीन लिये ।

सावित्री शर्मसार खड़ी रही ।

मनीषा सिंह

अपना पराया – डा. शुभ्रा वार्ष्णेय 

स्नेहा के पास समय ही नहीं था। बड़ी कंपनी की मैनेजर बन चुकी थी। माँ का फोन आया, “बेटा, दीवाली पर घर आओगी?”

स्नेहा ने व्यस्तता जताते हुए कहा, “माँ, मेरे पास छुट्टी नहीं है। वैसे भी, दीवाली तो हर साल आती है।”

उसी शाम, कंपनी के बॉस ने पार्टी रखी। स्नेहा ने सब काम छोड़कर उसमें शिरकत की। माँ ने तस्वीरें देखीं और सिर्फ एक मैसेज किया, “अपने घर में दीवाली मनाने का समय नहीं मिला, लेकिन गैरों के लिए वक्त निकाल ही लिया। शायद अपना-पराया अब रिश्तों से नहीं, सुविधाओं से तय होता है।”

स्नेहा खामोश रह गई।

प्रस्तुतकर्ता

डा. शुभ्रा वार्ष्णेय 

अपना पराया – सुनीता माथुर 

सुमन ऑफिस से आते समय कुछ फल खरीद कर लाती है और अपने कमरे में जाकर अपने बेटे यश को खिलाती है, रोज ही ऐसा करती है ,यह देखकर ,गायत्री सुमन की सास उससे बोलती हैं ,“छोटी बहू तुम कम से कम बड़ी बहू सरला के बेटे विनायक का तो ध्यान रखा करो” उसको भी कुछ फल दे दिया करो ! दोनों भाई तो हैं।

सुमन अपनी सास से बोलती है ,मां आप हमेशा बड़ी भाभी के बच्चे का ही पक्ष लेती हैं, और उसके खाने पीने का ध्यान रखती हैं ,”गायत्री को गुस्सा आ जाता है ” क्या? 

वह बोलती हैं तुम्हें पता भी है तुम तो ऑफिस सुबह चली जाती हो, तुम्हारे बेटे का बड़ी बहू माया “अपने बेटे की तरह ध्यान रखती है और उसके खाने पीने का, नहाने धोने का, पूरा ध्यान रखती है”। मुझसे तो बनता भी नहीं है, वह तो कभी “अपना पराया” नहीं करती, तुम क्यों “अपना पराया” करती हो ?

सुमन को अपनी सास की बात समझ में आ जाती है, और लज्जा से उसका सिर झुक जाता है।                                                                                            

सुनीता माथुर 

मौलिक रचना    

पुणे महाराष्ट्र

# अपना पराया               

# गागर में सागर

# गागर में सागर

अपना पराया – रश्मि प्रकाश 

“ देख रहे हो ना जी….आखिर माँ जी ने जता ही दिया कौन अपना कौन पराया है…..आप तो बस मिट्टी का माधो बन कर बैठे रहो।” तल्ख़ स्वर में कामिनी ने मनोहर जी से कहा 

“ भाग्यवान…मुझे तो पहले से ही इस बात का पता है बस तुम्हें कहने में हिचक रहा था… क्या करूँ जब छोटा था तभी पिता ने माँ को जाने के बाद इनसे ब्याह कर लिया.. मौसी को माँ तो बना दिया पर वो मेरी माँ कभी बन ही नहीं पाई …अपना बच्चा होते ही इन्होंने अपना पराया का बोध करवा दिया अपना अपना ही होता हैं मुझे ये हरपल एहसास करवाया मैं उनका अपना नहीं पर वो भाई बहन तो मेरे है ना.. पिता भी मेरे ही हैं इसलिए सब बरदाश्त करता रहा… बहन की विदाई पर शायद उन्हें लगा हो अपना भाई सारे नेग करे तो ठीक है बस तुम इस बात पर ज़्यादा ध्यान मत दो…रहोगी तो दामोदर  जी की ही बहू।” एक आह मनोहर जी के सीने में भी थी पर समाज की मर्यादाओं में वो अपना पराया भूल परिवार को अहमियत देना महत्वपूर्ण समझते रहे।

रश्मि प्रकाश 

“अपना पराया” – पूजा शर्मा 

हमारे बीच में अपना पराया कहां से आ गया जीजी नंदिता जैसी मेरी बेटी है वैसी तुम्हारी भी तो है। इसने तो हमेशा आपको बड़ी मां माना है। इसका कन्यादान भी आप ही करोगी। सपना की बात सुनकर भरी आंखों से रोशनी बोली, तुम और देवर जी नहीं होते तो मुझ अभागन का क्या होता नसीब में औलाद का सुख तो था ही नहीं, पति को भी खो दिया। बिटिया ने मुझे 

 हमेशा मां का दर्जा दिया है। बस बड़ी मां अब आगे कुछ मत बोलो कहकर नंदिता दौड़कर रोशनी से लिपट गई।

पूजा शर्मा 

अपने पराये – डॉ बीना कुण्डलिया 

     दहशत सी भर गये जिगर के टुकड़े..ओढ़ली खामोशियां सुनना सुनाना सब भूल गए, ( वृद्ध दम्पति बतिया रहे)

    बरसों पहले बेटी गोद ली..बाद में दो जुड़वां बेटे हुए विवाह हुआ अच्छी नौकरी पा विदेश जा बसे…. (“ जिनके लिए सारी उम्र खपते रहे”… )

बेटी विवाह दी वही आकर दोनों की आँखों की तकलीफ़ झांककर परख मदद को चली आती है।

मैं थक चुकी हूँ…”खामोश रहते, सब्र करते, रिश्ते निभाते”!!!

“मुझे भी जिन्दगी ने सिखाया हम हमेशा किसी के खास नहीं रह सकते “…।

 इंसान दुख घड़ी में अकेले संघर्ष करता तब उसके लिए अपने पराये में कोई अंतर नहीं रह जाता।

                                   डॉ बीना कुण्डलिया 

                                        अपने पराये 

                                       गागर में सागर 

अपना-पराया – डाॅ संजु झा

  कहीं सेअपने बेटे सूरज  के इन्जिनियरिंग में दाखिले के लिए आर्थिक मदद न मिलने पर हताश होकर विनय जी ने अपनी  पत्नी से कहा -” मीना!अब मुझे लगता है कि सूरज को पढ़ने बाहर नहीं भेज पाऊंगा!”

मीना “एक बार आप अपने छोटे भाई से कहकर देखिए। अपना भाई है।”

पत्नी की बात मानकर उन्होंने अपने छोटे भाई अजय को अपनी समस्या बताई।

सुनते ही अजय ने कहा “भैया!पिछली बार मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी,इसी कारण आपकी मदद नहीं कर पाया था।अब मैं चार साल सूरज की पढ़ाई की जिम्मेदारी लेता हूं। एक सदस्य ‌और पढ़ -लिखकर काबिल बन जाएगा,तो परिवार का ही नाम रोशन होगा।”

अजय की बात सुनकर उन्हें एहसास हो गया कि सचमुच खून पानी से गाढ़ा होता है!”

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा(स्वरचित)

 

अपना- पराया – अर्चना कोहली ‘अर्चि

“सुनैना, यह देख साड़ी कैसी है? तेरी भाभी के लिए लाई हूँ। उसका जन्मदिन आनेवाला है न।” माँ मालती ने पूछा।

“माँ‌ आजकल आप बहुत बदल गई हैं। भाभी ने आते ही मुझे पराया कर दिया। आप सारा प्यार भाभी पर ही लुटाती हैं। मैं आपकी अपनी हूँ या भाभी।” 

“क्या हो गया है तुझे। तुम दोनों ही मेरे अपने हो। फिर भाभी ने क्या तुझे पराया समझा जो मैं समझूँ। अपना- पराया तो बस मन  के भाव हैं। सोच बदलो।”

यह सुन सुनैना का सिर लज्जा से झुक गया और बहू  वत्सला का गर्व से।

अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)

*माँ की सोच* – पुष्पा जोशी

     ‘माँ जबसे सुमी घर में आई है,तुमने मुझे तो जैसे पराया ही कर दिया है।हर समय पहले उसका ध्यान रखती हो।’ ऐसी बात नहीं है राजू, तुम मेरे बेटे हो,जन्म से साथ हो, मेरे अपने हो। सुमी अपने माता-पिता को छोड़कर आई है,उसे इस घर में पराया पन नहीं लगे, इसलिए उसका ज्यादा ध्यान रखती हूँ, उसे अपनापन देंगे तभी तो वह हम सबको अपना समझेगी। बेटा! मैं चाहती हूँ, घर मे हर प्राणी के मन में एक दूसरे के प्रति अपनापन का भाव हो।जब मन में कोई मैल आ जाता है तो,अपने भी पराए हो जाते हैं और मन निर्मल हो तो पराए भी अपने।’ ‘माँ अब मैं समझ गया हूँ,मुझे माफ कर दो।’ माँ ने राजू को सीने से लगा लिया। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

अपना पराया ( गागर में सागर) – के कामेश्वरी

विनोद ऑफिस में काम करते हुए खिड़की से बड़े भाई को आते हुए देखा उसे लगा कि वे पैसे माँगने आ रहे हैं । उसे पता था कि बड़े भाई ने उसे पाल पोसकर बड़ा किया है अपने स्वार्थ के चलते जब भी वे आते बहाने बनाकर बिना उनकी ज़रूरत पूछे भगा देता था । आज भी कुछ कहता उसके पहले ही बड़े भाई ने बैग से पैसे निकालकर कहा छोटे मैं पैसे लेने नहीं देने आया हूँ मुझे पता है तुम्हें पैसों की ज़रूरत है ज़रूरत के समय ही अपना पराया का पता चलता है। यह पैसे ले और बेटे का एडमिशन करा ले कहकर बिना पीछे देखे चले गए विनोद का सर शर्म से झुक गया ।

 के कामेश्वरी

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