# अपना पराया – दीपा माथुर
नागफनी आज दूब से अकड़ कर बोली ;” मुझे लोग शोक से सजाते है।
तुम्हारी तरह बाहर पटक कर नहीं रखते नम्रता की मूरत बनी फिरती हो? जोर से झटक कर बोली” हु”
दूब मुस्कुरा कर कहने लगी ;” बहन मैं अपना पराया नहीं जानती जो मेरे पास आता है उनके पैरो को सहला देती हु।”
थोड़ा तरो ताजा हो जाता है किसी का भला हो तो मुझे अच्छा लगता है।
सब अपने ही तो है तो तुम क्यों प्रतिशोध की बाते करती हो?
इससे जलन की बू आती है।
याद रखो नम्रता रखोगी तो पीढ़ियां याद रखेंगी और ऐसे ही सबको काटती रहोगी तो एक दिन समूल नष्ट हो जाएगा।
कोई नहीं पूछेगा।
सुनकर नागफनी फिर अकड़ी ओर मुंह चढ़ा आगे बढ़ गई।
दूब हाथ बांध मुस्कुरा रही थी और मन ही मन बुदबुदा रही थी ” ना जाने कब समझ आएंगी इन आजकल के लोगों को ?”
दीपा माथुर
विन्रम – शिव कुमारी शुक्ला
हर्ष बहुत ही खूबसूरत एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाला बालक था उसे इस बात का अहसास था सो इस बात का बहुत अंहकार भी था। बचपन से ही वह स्वभाव से उदंड, एवं बड़ों का अपमान करना , साथियों की खिल्ली उड़ाना, एवं शारीरिक कमी के आधार पर नीचा दिखाना,दिव्यांगों को परेशान करना उसके शगल थे। छोटे में तो बच्चा समझ माता-पिता कुछ नहीं बोले किन्तु बड़े होने पर जब उसकी आदतें और बढ़ने लगीं तो उसे समझाया, अब डांट भी पड़ने लगी किन्तु वह बाज नहीं आया।
पापा की डांट से नाराज़ बैठा था तब मां ने उसे प्यार किया फिर पूछा बेटा क्या तुम जो करते हो वह सही है।
वह चुप रहा।
बेटा समझने की कोशिश करो अंहकार से किसी का भी भला नहीं होता जीवन में विनम्र बनो सब तुम्हें चाहेंगे। तुम्हारे पापा कितने विन्रम, दूसरों की मदद करने वाले हैं जब उन्हें दूसरे लोगों से तुम्हारे बारे में सुनने को मिलता है तो कितना दुःख होता है। बेटा समझो बड़े -बडे ऊंचे-ऊंचे वृक्ष अंहकार में चूर सोचते हैं कि हम तो आसमान को छू लेंगे किन्तु एक आंधी उन्हें धाराशायी कर देती है जबकि विन्रम छोटे पौधे जो आंधी के रूख के साथ अपने को मोड़ लेते हैं उनका कुछ नहीं बिगड़ाता वे हिल -डुल कर अपने स्थान पर खड़े रहते हैं सो तुम छोटे पौधों की तरह विनम्र बनो फिर देखो सब तुम्हें कितना प्यार देंगे।
मां मैं सब समझ गया। अपने अंहकार को छोड़ आज से विनम्र बनने की पूरी कोशिश करूंगा।
मां ने प्यार से उसका सिर सहला दिया।
शिव कुमारी शुक्ला
20-12-24
स्व रचित
शब्द**अंहकार***गागर में सागर
अहंकार – कमलेश राणा
निधि पार्लर से पैडी क्योर, मैनी क्योर और फेशियल करा के घर लौटी तो सास को सहेलियों से घिरा पा कर उसके माथे पर सलवटें पड़ गई। वह भुनभुनाते हुए अपने कमरे में चली गई- लो अब इनसे चला नहीं जाता तो यह नया नाटक शुरू हो गया घर पर ही जमात इकट्ठा करने का। अब इनको चाय- पानी न पूछो तो अलग आफत।
सबके जाने के बाद सरिता जी ने पूछा- क्या हुआ निधि तुम्हारी तबियत तो ठीक है न।
आप ठीक रहने दें तब न रोज परेशान करने का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेती हैं आप।
इतना अहंकार ठीक नहीं बहू बुढ़ापा तो तुम्हारा भी आना है तब क्या तुम जीना छोड़ दोगी।
#गागर में सागर
कमलेश राणा
ग्वालियर
#अहंकार – संगीता अग्रवाल
” सीमा ये क्या हर वक़्त बहू को उल्टा सीधा बोलती रहती हो उसे प्यार से नही समझा सकती !”
” हमने भी तो खुद से सब किया और देखो कितने अच्छे से सब किया जबकि बहू से बहुत छोटी उम्र थी हमारी पर इसे तो लगता है कोई अक्ल नही !”
” इतना अहंकार किस बात का अपने सास होने का या सब काम आने का । मत भूलो तुम्हारी सास ने कभी तुम्हारी गलतियों पर सुनाया नही। और बहू भी ऑफिस बहुत अच्छे से संभालती है वो भी बिना अहंकार जल्द ही घर भी सीख जाएगी तुम साथ नही दोगी तो मैं हूँ उसके लिए उसका पिता !”
दरवाजे के पीछे खड़ी बहू नम आँखों और खामोश जुबान से पिता तुल्य ससुर को धन्यवाद दे रही थी।
संगीता अग्रवाल
अहंकार – सुभद्रा प्रसाद
” मम्मी, सुधीर अंकल का बेटा राजेश ने अपनी इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली और उसे मेरी ही कंपनी में नौकरी मिल गई है |” सुमन से उसका बेटा शरद बोला |
” चलो अच्छा है | अब तुम राजेश पर खूब रौब दिखाना | खूब डांटना | उसका पिता सुधीर ड्राइवर होकर चला था हमसे बराबरी करने | कितनी बार कहा था कि बेटे को ग्रेजुएशन करवाकर कोई नौकरी पकडा दो , पर नहीं उसे तो शौक चढा था, हमारी देखादेखी बेटे को इंजीनियर बनाने की | ” सुमन अहंकार से बोली |
” पर मम्मी,राजेश तो हमारा बॉस बनकर आया है | मुझे तो उसके अधीन काम करना है |” शरद गंभीरता से बोला |
” ये तुम क्या कह रहे हो ? ” सुमन आश्चर्य से बोली |
” यह सच है |” शरद के इतना कहते ही सुमन का अहंकार चूर हो गया |
# अहंकार
स्वरचित और मौलिक
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |
*अन्न का अपव्यय* – पुष्पा जोशी
रामबाबू सोना चांदी के बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्होंने अथाह दौलत ईमानदारी से कमाई।उन्हें अहंकार नहीं था। उन्हें अन्न का अपव्यय बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता था। रविवार का दिन था,वो और राजू साथ में भोजन करने बैठे।उन्होंने भोजन करने के बाद अपनी थाली धोकर पानी पी लिया।राजू ने अपनी थाली में झूठा छोड़ा। उन्होंने पूछा तो कहने लगा-‘पापा हमें किस चीज की कमी है।’ ‘बेटा यह तुम्हारा अहंकार बोल रहा है। जिस दिन अन्न खाने को नहीं मिलेगा तब उसकी कदर जानोगे। राधा जब तक यह थाली का अन्न न खाए,इसे दूसरा कुछ खाने के लिए मत देना। ‘राजू उस दिन भूखा रहा तो अन्न की कीमत मालुम हुई, उसने फिर कभी झूठा नहीं डाला।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
अहंकार
मीरा को अपने ऊपर बहुत गर्व था उसके पति अच्छी पोस्ट पर थे बच्चे भी पढ़ाई में हमेशा अव्वल आते थे इसलिए वह कॉलोनी में किसी से अच्छे से बात नहीं करती थी जब भी किसी से बात करती थी और उनको नीचे दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी एक दिन अपनी सहेली नीता से कहती है तुम्हारे बच्चे इतने गंदे हैं तुम्हारे पास अच्छे कपड़े भी नहीं है तुम अच्छे से रहती क्यों नहीं हो नीता कहती थी मीरा ज्यादा अहंकार मत रखो एक दिन हो सकता है मैं ही तुम्हारे काम आऊंगी और सच हुआ भी घर में कोई भी नहीं था पति ऑफिस गए हुए थे बच्चे स्कूल गए हुए थे अचानक मीरा की तबीयत बहुत खराब हो गई कमर में इतना दर्द हो गया कि वह उठ भी नहीं पा रही थी मीरा के घर में जो बाई काम कर रही थी वह जल्दी से जाकर नीता को बुलाकर लाई नीता को कर चलाने आती थी उसने तुरंत ही मीरा को एडमिट कराया सारे टेस्ट कराए और फिर मीरा ने झुक कर नीता से माफी मांगी।
शीर्षक: अभिमान टूट गया – अर्चना कोहली ‘अर्चि’
“देखना नैना, मिस यूनिवर्स का ताज तो मैं ही जीतूँगी, मेरी सुंदरता के सामने तेरी हार निश्चित है।” फाइनल राउंड में निर्णय की घोषणा का इंतज़ार करती सुंदरी ने के कान में फुसफुसाते हुए कहा।
“सुंदरी इतना अभिमान अच्छा नहीं। इतिहास गवाह है, जिसने भी अभिमान किया उसका बुरा ही हाल हुआ है।”
तभी हॉल में निर्णय की घोषणा हुई, इस साल की मिस यूनिवर्स हैं मिस नैना साहनी। यह सुनते ही जहाँ सुंदरी का सारा गर्व चूर चूर हो गया, वहीं नैना का चेहरा खुशी से दमक रहा था।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)
विषय: अहंकार
अहंकार – मंजू ओमर
सुषमा जी को अपने रूपये पैसे का बड़ा अहंकार था। सुषमा के पति राजेन्द्र जी का बिजनेस चलता था । राजेन्द्र जी का एक छोटा भाई था वो किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था उसके पास उतना नहीं था जितना बड़े भाई के पास था। सुषमा जी हमेशा अपने देवर और देवरानी रेणुका का अहंकार वश अपमान कर देती थी।
दिपावली पर सुषमा और राजेंद्र जी कुछ मिठाई के डिब्बे मिलने मिलाने वालों को और नौकरों को देने के लिए लाते थे ।उसी में से एक डिब्बा छोटे भाई को भी दे देते थे । दूसरे दिन सुबह-सुबह सुषमा जी का रेणुका के पास फोन आया कि सुनो तुम्हारे मिठाई के डिब्बे बदल गए हैं गलती से काजू कतली का डिब्बा तुम्हारे पांच पहुंच गया है ।वो बड़ी महंगी मिठाई है ।मैं अपने नौकर को तुम्हारे घर भेज रही हूं वो डिब्बा वापस कर देना और दूसरा मैंने भेजा है वो रख लेना। रेणुका को बहुत बुरा लगा ।अब आ ही गया था तो मंगवाने की क्या जरूरत थी । फिर भी रेणुका ने दोनों ही डिब्बे नौकर के हाथ वापस कर दिए और कहा भाभी को ये दोनों डिब्बे ही दे देना ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
21 दिसंबर
दुष्परिणाम – विभा गुप्ता
” दूर हट..तेरे साथ स्कूल जाकर मुझे अपनी इंसल्ट नहीं करानी..।” कहते हुए नीति ने अपनी चचेरी निशि को दुत्कार दिया।
नीति को बचपन से ही अपने गोरे रंग और सुंदरता पर बहुत अहंकार था।इसीलिये वो हमेशा अपनी चचेरी बहन निशि जिसका रंग साँवला था,को अपमानित करती रहती थी।समय के साथ दोनों बड़ी हो गई और काॅलेज़ जाने लगी।निशि तो मन लगाकर पढ़ती लेकिन नीति कहती,” मैं पढ़कर क्या करुँगी..इतनी सुंदर हूँ कि मेरी शादी के लिये लड़कों की लाइन लग जायेगी।” एक दिन काॅलेज़ में गलती से एक लड़के की उससे टक्कर हो गई।लड़का साॅरी बोलता,तब तक में नीति ने उसको थप्पड़ मार दिया। अगले दिन उस लड़के ने नीति पर एसिड फेंक दिया।नीति की जान तो बच गई लेकिन उसका खूबसूरत चेहरा विकृत हो गया।अस्पताल में निशि मिलने आई तो नीति उसका हाथ पकड़कर रोने लगी,” मुझे माफ़ कर दो निशि..#अहंकार का दुष्परिणाम इतना भयानक होगा..ये मैंने कभी नहीं सोचा था।” निशि उसे सांत्वना देने लगी,” सब ठीक हो जायेगा नीति..।”
विभा गुप्ता
# अहंकार स्वरचित, बैंगलुरु