तिरस्कार – मनीषा सिंह
राहुल एक आलसी लड़का था । “पिता राम कृपा जी ” शहर के जाने-माने पंडित थे। आमदनी अच्छी होने के कारण घर में किसी चीज की कमी नहीं थी।
” पंडिताइन राहुल को अक्सर बोला करती बेटा अगर पढ़ाई में कैरियर नहीं बनानी है तो कम से कम पूजा पाठ तो पिताजी से सीख ले ।
“मां—- ये भी कोई सिखने की चीज है जब चाहूं पोथी खोलकर पूजा-पाठ शुरू कर सकता हूं—! कहते हुए पंडिताइन की बात को टाल जाता ।
एक दिन राम कृपा जी की किसी दुर्घटना में पैर टूट गई । अब घर चलाने की जिम्मेदारी राहुल पर आ गई। अपने जजमान के यहां “सत्यनारायण भगवान” की पूजा करानी थी सो पंडित जी ने राहुल को भेजा ।
मगर पूजा के बाद “अरे बेटा—! तुम्हें पूजा कराने का ढंग तो दूर तुम्हारे द्वारा किया हुआ संस्कृत उच्चारण भी अशुद्ध था । जाओ— पहले पढ़ना सीखो ! जजमान द्वारा किए गए इस
तिरस्कार से राहुल को अपनी गलती का एहसास हुआ ।
मनीषा सिंह
मां का अपमान – शिव कुमारी शुक्ला
जैसे ही काम वाली बाई ने घर में प्रवेश किया सुमिता जी एकदम उसपर चिल्ला पड़ीं ।अब हो रहा है तेरा आने का समय कब से राह देख रही हूं। आजकल तो यह तेरा रोज का हो गया देर से आने का।
नहीं दीदी वो अभी बोल भी नहीं पाई थी कि सुमिता जी फिर बोलीं चल रहने दे अब बाहना मत बना जा फुर्ती से लग जा काम पर।
आज कान्ता के साथ उसका दस वर्षीय बेटा भी आया था सब सुनकर उसे गुस्सा आ रहा था।
वह बर्तन मांज रही थी कि सुमिता जी फिर चिल्ला उठीं जरा जल्दी -जल्दी हाथ चला एक तो देर से आई है और काम भी धीरे -धीरे कर रही है।
यह सुन बेटा बोल पड़ा आंटीजी आप मेरी मम्मी को इतना क्यों डांट रहीं हैं।
अच्छा तेरी जबान तो बहुत चलती है डांटू नहीं तो क्या करुं।
आंटीजी मेरी मम्मी की तबीयत खराब है इसलिए देर हो गई।अब वो काम कर तो रही है।
कांता तेरा बेटा तो बहुत जबान चलाता है।
दीदी बुरा न मानें तो एक बात कहूं आपके यहां काम करती हूं और आप हमेशा मेरा ऐसे ही तिरस्कार करतीं हैं मैं तो सह लेती हूं किन्तु वह मेरा बेटा है अपनी मां का अपमान सहन नहीं कर पा रहा।
यह सुन वे सकुचा गईं।
शिव कुमारी शुक्ला
25-11-24
स्व रचित
शब्द तिरस्कार*****गागर में सागर
*तिरस्कार* – पुष्पा जोशी
रामबाबू के तीन बेटे थे जीत, मीत, और गीत। जीत और मीत शरीर से बलिष्ठ थे और कुशाग्र बुद्धि के थे। उनकी अच्छी नौकरी लग गई थी और उनकी पत्नियाँ भी धनाड्य परिवार की थी। छोटा बेटा गीत शरीर से कमजोर था और उसमें बुद्धि भी कम थी, उसका विवाह एक गरीब कन्या मीरा से हो गया।माता-पिता की मृत्यु के बाद भाइयों के व्यवहार में अन्तर आ गया वे बात-बात में गीत का तिरस्कार करते, उसका मजाक बनाते । मीरा को अच्छा नहीं लगता ,उसने इसके विरूद्ध आवाज उठाई तो भाइयों ने कह दिया अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाओ। मीरा ने कहा ठीक है। उसने गीत के मन के डर को निकाला,मीरा के प्यार भरे व्यवहार से गीत का आत्मविश्वास बढ़ गया। उन्होंने एक किराने की दुकान खोली, दोनों मेहनत करते। मीरा खुश थी पति का तिरस्कार उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
तिरस्कार – मंजू ओमर
मम्मी सुहानी का हार्निया का आपरेशन कराना है आप आ जाओ कुछ दिन को बच्चों की और घर की देखभाल हो जाएगी सीमा के बेटे रोहित ने मां से कहा। नहीं बेटा मैं ंनहीं आऊंगी तुम सुहानी की मम्मी को बुला लो ।दो बार तुम्हारे घर आ चुकी हूं सुहानी बार बार मेरा तिरस्कार करती है ।और उसको मुझ पर विश्वास नहीं है कि बच्चों को मेरे भरोसे छोड़े, मेरे भी नाती पोते है क्या मैं कोई नुक्सान पहुंचाऊंगी। दादी हूं मैं बच्चों की । सुना था न तुमने पिछली
बार वो क्या कह रही थी । इतना तिरस्कार मैं नहीं सह
सकती ।तुम सुहानी की मां को बुला लो सीमा बोली ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
23 नवंबर
” तिरस्कार” – पूजा शर्मा
देखो मां भैया की शादी को 1 साल हो गया है , सारे घर की जिम्मेदारी कितने अच्छे से निभाती है वो,आप क्यों हर बात में उन्हें नीचा दिखाती रहती हो आज नहीं तो कल तिरस्कार के बदले तिरस्कार ही मिलेगा आपको, आखिर भैया भी अपनी पत्नी का अपमान कब तक सहन करेंगे आज अपनी मनमानी करके आप अपना बुढ़ापा खराब मत कीजिए, नंदिनी अपनी मां ममता जी से बोली, सोचो आपके जैसा व्यवहार ही अगर मेरी सास मेरे साथ करेंगी तो आप पर क्या बीतेगी वह भी तो किसी की लड़की है, शकुंतला जी के अपनी बेटी की बात समझ में आई या नहीं लेकिन वह गहरी सोच में पड़ गई थी शायद अपने आने वाले कल को लेकर, वहीं बैठे उनके पति रमेश जी मुस्कुराते हुए , बोले भाई दुनिया की रेट है यह तो एक दिन सास का तो एक दिन बहू का, आखिर वो भी तो कब से यही समझाना चाह रहे थे।
पूजा शर्मा
वरदान – विभा गुप्ता
” फिर तूने शिखा की किताब उठा ली…पढ़ाई-लिखाई तेरे बस की बात नहीं है..अपनी माँ के साथ झाड़ू-बरतन कर..वही तेरे काम आयेगा..।” झिड़कते हुए मानसी ने अपनी कामवाली चंदा की बेटी पायल के हाथ से किताब छीन ली।बेटी को तिरस्कृत होते देख चंदा खून का घूँट पीकर रह गई।
समय बीता..पायल सयानी हो गई थी।एक दिन चंदा ज़रा देर से आई तो मानसी उसे डाँटने ही वाली थी कि चंदा उसे मिठाई का डिब्बा देते हुए बोली,” दीदी…मिठाई खाईये…मेरी पायल परीक्षा में बहुत अच्छा नंबर लाई है..अखबार में उसका फोटू भी छपा है..।” कहते हुए उसने मानसी के हाथ में अखबार दे दिया। बीपीएसी की परीक्षा में पायल को अच्छा रैंक मिला था, इसीलिये उसकी तस्वीर और इंटरव्यू छपा था।मानसी ने उसे बधाई दी और बोली,” मुझे माफ़ करना चंदा..मैंने हमेशा तेरी बेटी का तिरस्कार किया और..।”
” नहीं-नहीं दीदी…आपकी डाँट से तो उसके इरादे और भी मजबूत हुए…उसने दिन-रात पढ़ाई की…किताबों में खूब सिर खपाया…तभी तो…।अरे दीदी…आपका तिरस्कार तो हमरी पायल के लिये वरदान साबित हुआ।”
विभा गुप्ता
# तिरस्कार स्वरचित, बैंगलुरु
तिरस्कार – जागृति वैदेही
रेवती का आज अंतिम संस्कार हो गया। रिश्तेदारों के कहे अनुसार रेवती की पुरानी चीजें बहू जानकी और पोते
सौरभ ने दान करने के लिए निकालनी शुरू कर दी । सौरभ दादी की इस्तेमाल की हुई टिन की पिचकी हुई थाली
और टूटी हुई स्टील का ग्लास उठाने लगा तो जानकी बोल पड़ी “ अरे अब इनकी जरूरत नहीं है इन्हें कूड़ेदान में
डाल दो”। सुनकर सौरभ बोल पड़ा “ दादी की ये चीजें मुझे अपनों द्वारा उनके तिरस्कार की याद दिलाता है। इसे मैं
आपके बुढ़ापे के लिए संभाल कर रखना चाहता हूं”। जानकी अवाक अपने बेटे को देखते रही।
जागृति वैदेही
दृष्टिकोण – लतिका श्रीवास्तव
रिटायर्ड सख्त मिजाज प्रोफेसर मुकुंद सर के घर के बाहर दो युवक मिलने के लिए प्रतीक्षारत थे।
मुकुंद सर का आशीर्वाद लेने आया हूं मेरी नौकरी लग गई अजित ने कहा तो सुनील चिढ़ गया मैं तो जताने आया हूं इन खड़ूस मुकुंद सर को जो क्लास में हमेशा तुम गांव के लोग गांव में ही रहोगे जिंदगी में कभी गांव से बाहर निकल कर कुछ नहीं कर पाओगे कह कर तिरस्कार करते रहते थे।
नहीं सुनील …सर का वही तिरस्कार तो हमारे लिए पुरस्कार बना,हर फटकार ने अलसाते प्रयासों को जागृत किया ,तानों ने पीछे जाते कदमों पर चाबुक प्रहार कर आगे बढ़ने को बाध्य किया , तिरस्कृत वाणी ने हर बार और बेहतर करने को उकसाया और यहां तक पहुंचा दिया..!
अंदर बैठे मुकुंद सर ये सुनकर भावविव्हल हो गए और सुनील शर्मिंदा..!!
लतिका श्रीवास्तव
तिरस्कार – अमिता कुचया
आज नीलिमा भाभी भैया के घर बिना बुलाए पहुंचती है ,तब भाभी अंदर से कहती है- अब क्यों आई हो! जब तुम्हारे मम्मी पापा ने घर से अलग कर रहे थे। तब तो कुछ नहीं किया ,अब क्या लेने आई हो! तब भतीजा भतीजी अंदर की ओर खींचते हुए कहने लगे-” बुआ कितने दिनों बाद आई हो अंदर आई हो अंदर आओ ना…. “
तब भरी और डबडबाई आंखो से भाभी से नीलिमा बोली- भाभी मैं क्या बीच में बोलती तो वो नित दिन आपकि मम्मी पापा से बहस होती रहती थी। वो ना होती,मम्मी हमेशा तुम्हारी गलतियां निकालती रहती थी। यही तुम्हें लगता था।
पता है तो तुम लोगों के अलग रहने के बाद घर में रौनक ही न रह गयी है। इसलिए तुम्हें समझाने आई हूं। पर तुमने ही मेरा तिरस्कार कर दिया ,अब तुम्हारे पास कभी नहीं आऊंगी। अगर तुम्हें एहसास हो जाए कि तुमने गलती की है बस एक फोन कर लेना। अगर तुम वहां जिम्मेदारी निभाती थी तो यहां अलग से रहने में क्या जिम्मेदारी निभाती नहीं हो। पहले मम्मी पापा के भरोसे कहीं निश्चिन्त होकर चली जाती थी। परअब सोचो क्या निश्चिन्त हो। इस तरह वह भाभी के घर तिरस्कृत होकर चली जाती है।
दोस्तों -सास बहू के झगड़े में नन्द की क्या गलती!!
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया ✍️
#गागर में सागर प्रतियोगिता
तिरस्कार – खुशी
शिवी अपनी ससुराल की पहली बहू जो हर काम में माहिर थी।परंतु उसे हमेशा तिरस्कार ही मिला क्योंकि उसका पति रजत उसका सबके सामने अपमान करता था।रजत को देख घर के सभी सदस्य भी शिवी के साथ वैसा ही व्यवहार करते।एक दिन रजत का बॉस बाहर से आया हुआ था। रजत के काम में गलती निकलने पर उसने सभी स्टाफ के सामने रजत को खरी खोटी सुनाई।आज रजत को समझ आया कि कैसे मैं रोज अपनी पत्नी का तिरस्कार करता हूं। मैं कैसे उसका अपमान करता हूं।रजत घर आया तो देखा उसका भाई महेश शिवी पर चिला रहा था।रजत बोला महेश ये तुम भाभी से कैसे बात कर रहे हो।महेश बोला जैसे आप करते हैं। रजत ने आगे बढ़ शिवी से माफी मांगी और सबको कहा ये मेरी पत्नी है इसका कोई भी तिरस्कार नहीं करेगा
दोस्तो हर किसी को सम्मान चाहिए।
आपकी सखी
खुशी