Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

आईना – लतिका श्रीवास्तव 

…सुन बहुरिया अपनी सास की इतनी खिदमत ना कर वर्ना दस दिनों में जाने की जगह यहीं ठौर बना लेंगी तो तू कर चुकी अपनी नौकरी …सहेली सविता की सास ने गरम फुल्के ले जाती नेहा से फुसफुसा कर कहा।

आंटी..  आप चिंता ना करिए जैसे मेरी सहेली आपके साथ अपनी नौकरी कर रही है वैसे ही मैं भी कर लूंगी..मुस्कुराती नेहा ने दरार #बनाने को उत्सुक आंटी के मन की दरारों को आइना दिखा फुल्के अपनी सास की थाली में परोस दिए। 

लतिका श्रीवास्तव 

दरार – महजबीं

ना जाने उनके रिश्ते में कहां से दरार आ गई।  एक दिन अचानक अयान ने समीरा से बोला ,”मैं  सुजैन से दूसरी शादी करना चाहता हूं जो मेरा पहला प्यार थी। उसने आज तक अपनी शादी नहीं की  है।अपनी मां की जोर देने पर मैंने तुमसे शादी कर ली थी पर अब मैं  सुजैन को खोना नहीं चाहता हूँ।” समीरा ने कहा ,” फिर आप मुझे भी मेरी जिंदगी के पिछले बीस वर्ष लौटा दिये ताकि मैं  भी अपने वो सपने पूरे कर सकूँ जो मम्मी पापा के कहने पर आपसे शादी कर लेने पर अधूरे रह गए थे।”समीरा के इस उत्तर ने अयान को सोचने पर विवश् कर दिया। और उसने तुरंत अपना फैसला बदल लिया।  

लेखिका : महजबीं

दरार – मनीषा सिंह

अवनी बहुत खुश थी  उसके  सास-ससुर उसके पास दिल्ली आए।

   ससुर रमेश बाबू की पिछले साल हुई सर्जरी‌ की वजह से उन्हें डॉक्टर को दिखाना था और रूटिंग चेकअप भी करवानी थी। अब आदमी बढ़ने से काम तो बढ़ता ही है—

  ये सोच अतुल अवनी की किचन में जल्दी-जल्दी हाथ बटाने लग गया। तभी माताजी का प्रवेश हुआ,जब वो बेटे को सब्जी काटते देखीं तो उन्हें बड़ा कष्ट हुआ, बोलीं ” तू तो अब जोरू का गुलाम बन  गया” ऐसी बात और विचार सुनकर, अवनी के दिल को ठेस पहुंची और कहीं ना कहीं उनके रिश्तों में दरार  का कारण बन बैठा।

धन्यवाद। 

मनीषा सिंह

 

दरार – अर्चना खंडेलवाल

सुजाता, नई नवेली बहू का इतना ध्यान रखने की क्या जरूरत है? अभी से सिर पर चढ़ जायेगी, तो उम्र भर तुझे नचायेंगी, गोमती जी ने अपनी बहू से कहा।

सासू मां, मै बहू का मां बनकर ख्याल रख रही हूं, मै नहीं चाहती कि मेरी किसी भी बात से बहू के मन में दरार उत्पन्न हो, और वो समय के साथ बढ़ती जाएं, ससुराल में बहू अपने साथ किया गया व्यवहार कभी नहीं भुलती है, ये सुनते ही गोमती जी अपनी बहू के साथ किये गये दुर्व्यवहार को याद करके शर्मिंदा हो गई। 

अर्चना खंडेलवाल

नोएडा 

दरार – संध्या त्रिपाठी

       जबसे बंटवारे की बात चली, मैं यहां लूंगा मैं वहां लूंगा, के चक्कर में आकाश और प्रकाश दोनों भाइयों में मनमुटाव चलने लगा, अच्छे खासे रिश्ते में दरार आ गई थी ! रुचि (बहन) जब भी मायके जाती उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता अगल-बगल रहते हुए भी दोनों परिवारों में बातचीत बंद थी..  रुचि को एक युक्ति सूझी , एक दिन उसने खबर भिजवाई कि प्रॉपर्टी में वो भी हिस्सा लेने की सोच रही है बस फिर क्या था.. दोनों भाइयों ने बिना देर किए आपस में बात कर बंटवारे की सहमति बना ली.. रुचि मायके पहुंच कर भाइयों को आपस में बात करते देखी तो बोली मुझे हिस्सा नहीं आप दोनों भाइयों का आपस में प्यार चाहिए था ।

 ( स्वरचित ) संध्या त्रिपाठी अंबिकापुर, छत्तीसगढ़

 

दरार – सोनिया अग्रवाल 

साधारण सी हसीं मजाक कब बड़ा रूप ले लेगी यह न तो रोमिल को पता था और न ही राशि को। सच या हिम्मत जैसे मामूली से खेल ने उनके चार साल पुराने रिश्ते में एक शक पैदा कर दिया था। पहले आप और पहले आप ने दोनो को ही पहल करने से रोके रखा। समय जख्म तक भर देता है तो यह तो छोटी सी बात थी। मगर उस बात का इतना गहरा असर था की शादी के 12 साल बीतने पर भी जरा जरा सी बात पर वोही बात उठाई जाती । आज दोनो को इस बात का मलाल था की क्यों वो खेल खेला जिसने दोनो के रिश्ते में दरार डाल दी थी। 

सोनिया अग्रवाल 

 

रिश्तो की मिठास – सांची शर्मा 

मां, देखो ना नेहा को कितनी बार समझाया है कि अपनी दादी मां से प्यार और आदर के साथ बात करा करें पर वह सुनती नहीं मेरी बात कभी।

 जब भी समझाना चाहती हूं उसे हमेशा बोलती है की दादी मां हमें प्यार नहीं करती और आपसे भी कभी अच्छा व्यवहार नहीं करा उन्होंने तो मैं क्यों करूं उनसे बात।

क्या करूं मैं कुछ समझ नहीं आता मां 

तब शर्मिला जी अपनी बेटी को समझाती है कि तभी तो तुझे कहती थी मैं अपने और अपनी सास के रिश्ते की दरारों को बच्चों के सामने मत लाया कर। अगर उनके मन में दरारें आ गई तो कभी भी नहीं भर पाएगी तू उन दरारों को और तेरे बच्चे हमेशा के लिए रिश्तो की मिठास से दूर हो जाएंगे।

अब समझ आया मैं क्यों ऐसा कहती थी 

चल अब  परेशान मत हो, नेहा को मैं समझाती हूं रिश्तो की मिठास और उसके मन की दरारों को भरने की कोशिश करती हूं

सांची शर्मा 

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

  #दरार – डॉ हरदीप कौर

 देश विभाजन के समय समूह के बाकी बचे एक हिस्से में गुरदीप कौर और उसके दोनों बेटे खूनी खेल के रास्ते से भारत पहुंचे थे। कोटा भूकंप में पति और फैक्ट्री धरती में समा गए थे। पति का शव तक नहीं मिला था।

                          उनके इकलौते मामा जी काला जादू जानते थे। इसलिए उन्हें भारत नहीं आने दिया गया। इस दरार ने गुरदीप से उनका नानका परिवार जीते जी छीन लिया। मरे हुए लोगों का तो सबर हो जाता है पर जिंदा का नहीं। 

            सोचती हूं क्या मामा जी की विद्या ही उनके और उनके परिवार के बीच दरार बन गई?

स्वरचित और मौलिक रचना

डॉ हरदीप कौर (दीप)

दरार – मंजू ओमर 

बेटा शिवम ताईजी नहीं रहीं आओगे क्या अंतिम संस्कार में , नहीं मैं ंंनहीं आ  पाऊंगा रिजर्वेशन का  चक्कर पड़ेगा । अच्छा शोभित को एक फोन ही कर लो । नहीं मम्मी मैं फोन वगैरह नहीं कर रहा हूं इतने समय से बात नहीं हुई ।अब क्या फोन करना रिश्ते तो दोनों तरफ से निभते है न ।जब करोना में निशा नहीं रही थी ,(शिवम की बहन) तब शोभित ने फोन किया था क्या ।अब रिश्तों में गहरी दरारें पड़ चुकी है आठ साल से मिलना नहीं हुआ । मुझसे अब नहीं होगा मम्मी आप लोग देख लो जाना चाहती हो तो चली जाओ । लेकिन मेरी तरफ से तो अब कुछ नहीं बचा है ।

          मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश

4अगस्त 

 

*ज्वार भाटा*- बालेश्वर गुप्ता

          अरे,सागर कहाँ रहते हो,मिलते ही नही।सुनो भाई, बच्चे बड़े हो गये है,समय आ गया है, मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का।आज आ जाओ घर,सब बात तय कर लेंगे।

      लगभग 20 वर्ष पूर्व दोनो मित्रो सागर और गगन ने अपने बच्चों के बड़े होने पर दोनो की शादी करने का बात बात में निश्चय किया था।इस अंतराल में सागर तो सामान्य स्थिति में ही रहा जबकि गगन एक बड़ा उद्योगपति बन गया।सागर उससे कतराने लगा था।आज जब गगन ने शादी की बात तय करने को बुलाया तो सागर को लगा उसका उपहास ही बनेगा,वह गगन की हैसियत का नही है।सागर नही गया।

      अगले दिन गगन स्वयं सागर के घर पहुंच गया और सागर की बिटिया का हाथ अपने बेटे के लिये मांग कर गगन ने सागर की लहरों को अपनी ओर आने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।सागर के मन मे आया वहम भी बह गया।

  बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

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