Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

न्याय – नीलम शर्मा 

आज सुदीप की जायदाद की कुर्की हो रही थी। क्योंकि वह बैंक का लोन वापस नहीं कर पाया था। लेकिन पास-पड़ोस और रिश्तेदारों के मन में उसके लिए सहानुभूति होने के स्थान पर बस एक ही बात थी कि भगवान ने आज सही मायने में न्याय किया है। क्योंकि संदीप ने धोखे से अपने छोटे भाई की जायदाद अपने नाम कराकर उसे घर से बाहर निकाल दिया था। और तो और उसने अपनी मां का सारा जेवर भी धोखे से हड़प लिया था। सच कहा है किसी ने भगवान के यहाँ देर है अंधेर नहीं।

नीलम शर्मा

 

  न्याय मिल गया –  विभा गुप्ता 

        ” तमाम गवाह और सबूतों से स्पष्ट है कि मुकेश की गाड़ी की स्पीड बहुत कम थी, लड़के ने शराब पी रखी थी ,वो लड़खड़ा कर गाड़ी के सामने आ गया और दुर्घटना हो गई।” जज साहब के फ़ैसला सुनाते ही राजेश्वर चिल्लाया,” साब..मुकेश ने शराब पी हुई थी..मेरा बेटा तो..।” लेकिन उस गरीब की फ़रियाद किसी ने नहीं सुनी।दो दिन पहले उसका बीस वर्षीय बेटा सड़क किनारे खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था।तभी रईसजादे मुकेश ने कार से उसे टक्कर मार दी।

       राजेश्वर के बेटे ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।उसके मन से आह निकली।कुछ समय बाद मुकेश की कार का एक ट्रक से भिड़ंत हो गया।इलाज से उसकी जान तो बच गयी लेकिन रीढ़ की हड्डी टूट जाने के कारण वो हमेशा के लिये अपाहिज़ हो गया।महीनों व्हीलचेयर पर रहने के कारण वो कई मानसिक बीमारियों का भी शिकार हो गया।इस प्रकार ईश्वर के दरबार से राजेश्वर को न्याय मिल गया था।

                               विभा गुप्ता 

                           स्वरचित, बैंगलुरु 

# न्याय

 

#न्याय – रश्मि प्रकाश 

ज़िन्दगी के तमाम दुःख तकलीफ़ों को सहते हुए रमा इस उम्मीद पर जी रही थी कि एक ना एक दिन उसे न्याय ज़रूर मिलेगा… पति की मौत के बाद उसके देवर ने उसकी और उसको बच्चों की ज़िम्मेदारी उठा तो ली पर बातों में उलझा कर कब उसके हिस्से की जमीन अपने क़ब्ज़े में कर लिया उसे पता भी नहीं चला ।

बेटे के कॉलेज में दाख़िले के बाद पैसों की तंगी ने रमा को अपनी जमीन बेचने को मजबूर कर दिया पर ये क्या जमीन पर अब देवरानी का हक हो गया था।

रमा बहुत रोई पर देवर देवरानी ने उसे जमीन नहीं दिया.. बेटे ने ट्यूशन करके अपना कॉलेज पूरा किया और नौकरी करने लगा…

एक दिन देवर देवरानी शहर से कही बाहर जा रहे थे तभी उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया… ऑपरेशन के लिए पैसों की जरूरत पड़ी.. देवर के बेटे ने हाथ खींच लिए और रमा के बेटे ने नाराज़गी जताते हुए भी मदद की रमा ने अपने गहने और जमा रकम सब लगा कर उनकी जान बचाई।

ठीक हो कर जब दोनों घर आए तो रमा को एक पेपर थमाते हुए बोले,” हमने आपके साथ बहुत अन्याय किया है फिर भी आपने हमारी जान बचाई ये रहे आपकी जमीन के काग़ज़ और इस घर पर भी अब से आपका अधिकार है।”

रश्मि प्रकाश 

 

 न्याय – रंजीता पाण्डेय

दीनानाथ जी  की पांच बेटियां थी |पांचों बेटियों की शादी भी हो गई थी |सब अपने, अपने परिवार में  व्यस्त थी | दीनानाथ जी अपनी बड़ी बेटी ,सीता को ले के थोड़ा परेशान रहते थे ,क्यों की उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी | सीता थोड़ा गुस्सैल स्वभाव की थी ,लेकिन सभी लोग उसको बहुत प्यार करते थे |समय समय पर सब उसकी मदद भी करते | सीता ने सोचा की पिता जी के रहते ही , पिता जी से कुछ जायदाद अपने नाम करवा लेती हूं |

उसने अपने पिता जी के सामने अपनी बात रखी ,तब दीनानाथ जी ने बोला बेटा सब तो तुम बेटियों का ही है ,जब जरूरत पड़े तब दे देगे ,सीता को बहुत खराब लगा और गुस्से में रोते हुए अपने घर आ गई |सीता की मां , दीनानाथ जी को बहुत बुरा भला बोलने लगी |और बोली आपके पास इतना सब जमीन जायदाद हैं, सीता को दे देते तो क्या हो जाता ?आपने मेरी बेटी के साथ “न्याय” नहीं किया |

दीनानाथ जी ने बोला मैने सही किया है, क्यों की अभी सीता और उसके पति को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए | सीता पढ़ी लिखी है ,कुछ करे| मै अगर थोड़ा सा जमीन जायदाद उसके नाम कर भी दूं तो क्या होगा ,उससे उसकी जिंदगी आसान नहीं हो जाएगी |आज मैने ऐसा इस लिए किया ताकि मेरी बेटी अपने आपको मजबूत बना के, खुद कुछ करे |और वैसे भी मेरा कोई बेटा तो है नहीं मैने अपने पांचों बेटियों के नाम अपनी सारी जायदाद कर दिया है |बस अभी किसी को बताया नहीं है, ताकि मेरे ना रहने पर भी मेरी पांचों बेटियों में प्यार बना रहे। दीनानाथ जी  की पत्नी बहुत बहुत खुश हुई ,और बोली आपने बिल्कुल सही “न्याय” किया है मेरी बेटियो के साथ |

रंजीता पाण्डेय

 

न्याय – स्वाती  जितेश राठी

नन्ही  सी पीयू  रोते  रोते अपना गृहकार्य  कर रही थी।
पास ही बैठी उसकी मम्मी अनु बहुत देर से यह सब देख रही थी।  आखिर में अनु ने पूछ ही लिया कि पीयू जब भी तुमको लिखने के लिए बोला जाता है  तुम्हारा रोना शुरू हो जाता है क्यों बेटा?

   पीयू रोते हुए ही बोली क्योंकि लिखने से हाथ दर्द  होते है।
वही बैठे उसके दादाजी ने कहा  अरे !थोड़ा सा तो लिखना होता है तुम्हे,  नर्सरी  कक्षा में भला कहाँ ज्यादा काम दिया जाता है।
उसके पापा ने भी कहा  कि इतना सा लिखने पर हाथ दर्द  होता है ,और जो पूरा दिन  बिना रूके बोलती रहती हो तब मुँह दर्द  नहीं करता तुम्हारा?

नहीं  ! क्योंकि  हाथ मुँह  नहीं है। हाथ थकते है लेकिन मुँह कभी नहीं थकता क्योंकि मुँह हाथ नहीं है।
आप सब इतने बड़े होकर  भी यह बात  नहीं जानते और मेरी जैसी छोटी बच्ची पर रोज अत्याचार  करते हो।
दादाजी मुझे न्याय चाहिए अब आप ही इस अन्याय के खिलाफ मेरा साथ दिजिए।

उसकी बात सुनकर  एक बार तो सब चुप हो गए  पर जब पूरी बात समझ आई तो वहाँ हँसी के गुब्बारे फूट पड़े।

स्वरचित
स्वाती  जितेश राठी

 

तकदीर – मनीषा सिंह

रामगढ़ राज्य में सोमवीर नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था, जिसकी शादी एक सुंदर सुशील लड़की पार्वती से हुई ••। 2 साल बात पार्वती को एक बेटा हुआ लेकिन प्रसव के दौरान, उसकी मृत्यु हो गई। अब बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी सोमवीर ने अकेले करने का फैसला किया ••  दूसरी शादी के लिए लोगों ने समझाया परंतु वह इनकार कर गया 

 एक दिन••  जंगल में लकड़ी काटने के दौरान किसी जहरीले सांप ने उसे डस लिया•••जिससे उसकी मृत्यु वहीं पर हो गई— ।अब  बच्चा भी अनाथ था।

  धीरे-धीरे यह खबर रामगढ़ के राजा उदय सिंह के पास पहुंची  । उदय सिंह संतानहीन थे जिससे वह काफी दुखी रहते•• जब उन्हें पता चला कि वह बच्चा अनाथ है तो उन्होंने उस बच्चे को गोद लेने का फैसला किया। इस तरह एक गरीब लकड़हारा का बेटा आगे चलकर रामगढ़ का राजा बन गया। तकदीर का लिखा कोई नहीं बदल सकता।

धन्यवाद।

मनीषा सिंह

 

#किंकर्तव्यविमूढ़ – डॉक्टर संगीता अग्रवाल

जज साहिबा घोर आश्चर्य से अभियुक्त शौर्य को देखे जा रही थीं..ये क्या हुआ?

अतीत की स्मृतियों में डूबी जज साहिबा रेखा जी को ध्यान आया अपना बचपन जहां तीन बहिनों के बाद

उनका भाई आया था जिसे प्यार से उनके मां बाप ने शौर्य नाम दिया था।

अत्यधिक लाड़ प्यार ने शौर्य को बिगाड़ दिया और वो तीनों बहिनें उसकी तकदीर से रश्क करतीं,काश!अगले

जन्म में उन्हें भी बेटा बना कर पैदा करे भगवान!

आज, इतने बरसों बाद,उस भाई को कटघरे में खड़ा देखकर रेखा को अपनी ही तकदीर पर गर्व हो

आया,लेकिन वो किंकर्तव्यविमूढ़ थी जजमेंट सुनाते हुए।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

 

लोहार – एम. पी. सिंह

एक लोहार दिन भर मेहनत करके बर्तन बनाता ओर अपनी तकदीर को कोसता।उसकी पत्नी हाट बाजार में बरतन बेचती ओर भगवान का धन्यवाद करती। घर खर्च  मुश्किल से चलता था। जब भी खाना खाने बेठते तो लोहार की पत्नी खाने से पहले भगवान का धन्यवाद करती ओर लोहार बोलता, आज फिर सूंखी रोटी और आचार? क्या तकदीर बनाई है ऊपर वाले ने।

एक दिन लोहार अपने साथी के साथ शहर सामान लेने जा रहा था कि रास्ते में एक हादसा हो जाता है ओर उसके साथी की मौत हो जाती है, पर लोहार को खरोंच भी नही आती। उस दिन लोहार को अहसास होता है उसकी पत्नी सही कहती थी कि हमारी तक़दीर खराब नही है, बस भगवान पर विश्वास होना चाहिये और जो मिला है उसके लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए। उस दिन से लोहार तकदीर को कोसना छोड़ दिया और खाने से पहले धन्यवाद करने लगा।

गागर में सागर (तकदीर)

लेखक

एम. पी. सिंह

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित

25 Jan. 25

 

दिशा – संगीता त्रिपाठी 

 “मेरी तकदीर में नहीं था , मैं प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाया ..”बेटे की निराशा ने कहीं मालती को भी छू लिया । बेटा हार जाए लेकिन एक मां कभी हार नहीं मानती. ,।

  “बेटे ,तकदीर तो खुद बनानी पड़ती है , ..हो सकता तुम्हारी मेहनत सही जगह नहीं हो रही “बेटे को समझाया ।।

  बेटे ने चेक किया तो पाया  ..वो सिर्फ गणित को कठिन समझ उसी पर ध्यान दे रहा ,बाकी विषय को आसान समझ उस पर ध्यान नहीं दिया ,गलती समझ में आते ही राघव ने सही दिशा में मेहनत कर प्रतियोगिता में उच्च स्थान प्राप्त किया ।,

               —-संगीता त्रिपाठी 

#तकदीर 

 

“तक़दीर” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

जेब में सिर्फ तीस रुपये थे अब क्या करूँ? सिटी बस के चक्कर में कहीं परीक्षा ना छुट जाए यही सोच कर मैंने एक ऑटो वाले को रोका। उसे अपने सेंटर का पता बताकर उसमें बैठ गया। मेन गेट बंद होने में सिर्फ पांच मिनट बाकी थे जब मैं सेंटर पर पहुंचा। ऑटो चालक ने चालीस रुपये माँगा। मैंने उसे तीस रुपये दिए और कहा कि भैया मेरे पास इतने ही हैं। लेकिन वह जिद्द पर अड़ गया कि नहीं चालीस रुपये से एक पैसा कम नहीं। मैं अपनी मजबूरी बताकर जाने को हुआ तो उसने गुस्से में मेरा एडमिट कार्ड छीन लिया। बेबसी के कारण मेरी आँखें भर आईं।

तभी सड़क के दूसरे किनारे खड़ी एक गाड़ी में से निकलकर एक सज्जन आये और ऑटो वाले के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया उसके हाथ से एडमिट कार्ड छीन कर मुझे देते हुए कहा-“जाओ बेटा तुम परीक्षा दो मैं इसके पैसे दे दूंगा।” 

आज मैं एक सिविल इंजीनीयर हूँ और जब भी अपने अतीत में झांकता हूँ तो उन्हीं महापुरुष का चेहरा सामने आता है जिनकी बदौलत मेरी “तक़दीर” बदल गई।🙏 

स्वरचित एवं मौलिक 

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

मुजफ्फरपुर  बिहार

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