आज रमा मुकदमा जीत गई उसके लिए यह खुशी की बात है । सभी उसे बधाईयां दे रहें हैं लेकिन वह निर्विकार भाव से सभी का अभिवादन में सर झुका दे रही है । उसके चेहरे पर रत्ती भर प्रसन्नता नहीं दिखाई दे रही है । सात वर्षों का मुकदमा में उसे जीत हासिल हुई थी और 35 वर्षों की लड़ाई खत्म हुई । अदालत से बाहर निकल कर उसने अपने पति को आखिरी बार देखना चाहा क्योंकि इसके बाद दोनों के रास्ते अलग होना सुनिश्चित हो चुका था । दोबारा फिर कहीं कभी मिलना नहीं होगा इसलिए
वह रूक गई । महावीर प्रसाद इस हार के लिए मानसिकता रूप से तैयार नहीं थें इसलिए उन्हें बहुत आघात पहुंचा था । छिन्न भिन्न मन , आत्मा और शरीर को समेटने की पुरजोर कोशिश की मगर संभाल नहीं पाएं और लड़खड़ा कर गिर पड़े । रमा ने देखा उन्हें गिरते हुए उसका मन व्यथित हुआ मगर उसने रोक लिया खुद को और आंखें मूंद ली । वह चाहती तो नहीं थी कि अपने पति परमेश्वर के साथ ऐसा सलूक करें मगर उसे अगली पीढ़ी के लिए एक संदेश छोड़ना था । उसे अगली पीढ़ी को
यह समझाना था कि अभिवादन हर किसी का करें लेकिन अधिक महत्व और विशेष सम्मान उन्हीं को दें जो सुपात्र हों । कुपात्रों , अहंकारी एवं अल्पबुद्धि के प्राणियों को अधिक महत्व देने से उन्हें अपनी गलतियों का एहसास नहीं होगा । बार-बार उन्हें क्षमा करते रहने से उनके अंहकारी मन को बल मिलेगा और वो खुद को शहंशाह और आपको गुलाम समझने लगेंगे । व्यभिचारियों का खिलाफ लड़ाई के अभियान में अगर आपका साथ छोड़कर दूसरे खेमें में खड़ा होने वाला आपका पति परमेश्वर
भी व्यभिचारी , अत्याचारी और अमानुषों के समान ही गुनाहगार हैं । प्रकृति की व्यवस्था और नारी जाति का सम्मान रखने की जिम्मेदारी निभाते हुए हर गुनाहगार को सज़ा देनी चाहिए । यह ख्याल आते ही रमा को संबल मिला और वो बिना देखे , बिना मिले चल पड़ी अपने पथ पर । उसने अपने पति को इसलिए नहीं त्यागा था कि व्यक्तिगत रूप से उनमें कोई बुराई थी , उनका व्यवहार या बर्ताव खराब था बल्कि सिर्फ और सिर्फ इसलिए त्यागा था कि अगली पीढ़ी को यह सबक दे सकें कि सत्य
असत्य , उचित अनुचित , न्याय और अन्याय को समझने के लिए निष्पक्ष होना आवश्यक है । अपने रक्त संबंधियों का साथ देने के लिए जो कि ग़लत है , अपराधी हैं उनके गुनाहों को जानते समझते हुए भी अपनी पत्नी के साथ खड़ा नहीं हुआ क्योंकि वो दूसरे घर से आई थी । अकेले में पांवों पर गिरना माफी मांगना और समाज के सामने अपने रक्त संबंधियों के साथ खड़ा होना यह दोयम व्यक्तित्व का पर्दाफाश होना आवश्यक था । बगैर रीढ़ की हड्डी वाला पति परमेश्वर उसे अपने लिए तो स्वीकार था
उसे परमेश्वर मानना मंजूर था मगर अगली पीढ़ी भी को इस तिल तिल जलते और झूठा सम्मान का मान रखने के लिए मजबूर नहीं करना चाहती थी ।
बहुत बार उसने माफ़ किया था बहुत बार अवसर दिया था मगर …. महावीर प्रसाद एक आदर्श पुत्र , आदर्श भाई , आदर्श चाचा , आदर्श मामा , आदर्श पिता बनें रहें मगर एक पूर्ण पुरुष नहीं बन सकें जो सच को सच कह सकें इसलिए रमा देवी ने यह दुस्साहस किया लेकिन रमा देवी को कोई पछतावा नहीं है बस यह दुःख है कि 35 वर्षों तक क्यों झेला बिना रीढ़ की हड्डी वाला परमेश्वर को ????
#कठोर क़दम
स्वरचित
लिटरेरी जनरल सरिता कुमार , फरीदाबाद ,