स्वावलम्बी बेटियां – नेमीचन्द गहलोत, : Moral Stories in Hindi

बालिकाएं अपने सिर पर जल से भरे कलश रख पन्द्रह दिन तक चलने वाले पर्व पर गीत गाते गणगौर पूजने जा रही थी ।  पुराने खेजड़े के नीचे वे कलश रख कर शिव पार्वती के रूप में गवर व ईसर की पूजा करती थी । हरी हरी दूब से पानी की छींटे बरसाकर वरदान मांगती  “काळे घोड़े काको मांगू, काजळ वाली काकी ऐ……!” मुन्नी आज नया ही वरदान मांग बैठी  ” पढने का संस्थान देना, खेलने का मैदान ऐ…..” संजू कहती “तुम तो अपने मन से बोल रही हो। सब कुछ ऐसे थोड़े ही मिलता है?” मुन्नी ने तपाक से जवाब दिया “मन के जीते जीत है, मन के हारे हार!” 

               बालिका विद्यालय ढींगसरी में कुछ दिन पहले ‘केरियर डे’ के अवसर पर “खेलों से स्वर्णिम जीवन के अवसर” विषय पर परिचर्चा हुई व मुख्य अतिथि ने मार्गदर्शन देते हुए अपने उद्बोधन में कहा था- “खेलों से   बलिष्ठ तन व स्वस्थ मन होता है ।  बालक पढाई में कुशाग्रता पाते हैं । खेलों में देश का नाम रोशन करने वाले व्यक्ति उच्च पदों पर आसीन होकर धन व यश दोनों कमाते हैं ।” 

उसी दिन से मुन्नी के मन में खेल और शिक्षा घर कर गये थे । 

         दूर से पिताजी ने पुकारा “ऐ मुन्नी! जल्दी आओ! इन भेड़ बकरियों को खूंटे से बंधे ही रखोगी क्या ? इनको भूख नहीं लगती ?” चेष्टा ने किलकारी करते हुए प्रत्युत्तर दिया “ऐ…..ऐ……पा..पा ….आ..ई..,  आ..ई… ।” और वो अपने कलश का जल  खेजड़े की जड़ों में उड़ेल कर अपने घर की ओर भाग गयी । 

                लोहे के एक डिब्बे में कंकड़ डालकर खण-खण,खण-खण बजाते हुए बाजरे की घनी फसल में चिड़ियों के झुण्ड को उड़ाने दौड़ पड़ी ।  मार्ग में आने वाले अवरोधों को बड़ी चतुराई से अपने पैरों के बल हटाते हुए आगे बढती गयी । 

बकरियाँ फसल न चर जाये इस बात से भी वो स्तर्क रहती । कभी पानी के पाईप का जाइंट् दुरुस्त करने तो कभी ट्युबवेल की लाईट का बटन आन आफ करने दौड़ती । खेत में पड़े ढेले पैर से चलाकर दूर फैंकती, वे फूटकर उपजाऊ मिट्टी में परिवर्तित हो जाते । पुराने कपड़ों को डोरी से गूंथ कर बनाई गई गेंद को ऊपर उछाल कर पैर से किक मारती । कभी कभी गेंद पास के प्राथमिक विद्यालय की चारदीवारी में जाकर गिरती या मिश्रा जी सर की टेबल पर ।  एक दिन तो गुरु जी ने प्रार्थना सभा में कह ही दिया “मुन्नी एक दिन बहुत बड़ी फुटबॉल प्लेयर बनोगी।”  उस समय वह 9 वर्षीय बालिका तीसरी कक्षा में पढती थी । 

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           तब सभी ने मिश्रा जी की बात का मजाक उड़ाया था । लोग आपस में बातें करते थे ” ये क्या जाने हमारे रीतिरिवाज, स्त्री के आभूषण तो पर्दा और लज्जा ही है । महिलाएं और लड़कियां  तो घर की चार दिवारी में ही शोभा पाती हैं । आन, बान, मर्यादा और शान ही हमारी सबसे बड़ी दौलत है ।”  कई बुजुर्ग आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछते थे “क्या हाफ पेंट और टीशर्ट  पहन कर हमारी बहन बेटियां चौगानों में दौड़ेगी….. लगता है मास्टर जी बुढापे में सठिया गये हैं ।” चौपाल में बैठे सभी लोग खिलखिलाकर हंस पड़ते । 

         मिश्रा जी सर प्रायः कहते ” हमारे स्कूल की बालिकाओं के श्रेष्ठ आचरण, विनम्रता व सदाचार की पूरा गाँव प्रशंसा करता है ।” 

          बालिकाओं में राष्ट्रीय प्रेम कूट कूट कर भरा था । पर्वों व उत्सवों पर छात्राओं द्वारा प्रस्तुत ओजस्वी कविताओं, शहीदों की स्मृतियों के नाटक व लोक संस्कृति के नृत्य देखकर सभी अभिभावक  अपनी बेटियों पर गर्व करते । 

         सैन्य अधिकारी के बड़े पद से सेवानिवृत्त होकर फुटबॉल कोच वी. सिह अपने गाँव आये । उन्होंने अपने गाँव की फुटबॉल परम्परा को पुनर्जीवित करने की पहल करते हुए लड़कियों की फुटबॉल टीम तैयार की । 

        कोच ने उस टीम का एडमिशन जाने माने शहर के स्पोर्ट्स स्कूल में करवा कर जगदम्बा मन्दिर के सामने खाली पड़ी समतल जमीन को फुटबॉल का मैदान बना लिया । खेलने के गुर सीखाकर अभ्यास प्रारम्भ कर दिया ।  जगदम्बा मन्दिर में  सभी बालिकाएं सुबह की आरती एक साथ करती । उनके शारीरिक व मानसिक विकास को देखकर महिला खिलाड़ियों की संख्या बढती ही गयी । यह टीम अपने गुण, निष्ठा व लग्न के कारण गाँव में ही नहीं पूरे जिले की श्रेष्ठ टीम बन गयी । 

        तहसील, जिले व राज्य में प्रथम स्थान पर रहने वाले खिलाड़ियों ने एक दिन राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब प्राप्त किया  ।

        जिला मुख्यालय पर जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों के साथ शहर के लोगों का हुजूम बालिकाओं के स्वागत में उमड़ पड़ा । चैम्पियन मुन्नी ने सभी का अभिवादन स्वीकार किया । कोच वी. सिंह का भव्य स्वागत किया व उनके श्रम, निष्ठा व लग्न की वक्ताओं ने भूरी भूरी प्रशंसा की । 

          लोगों की सोच बदल गई और रूढ़िवादिता व अन्धविश्वास को तिलांजलि देते हुए बालिका शिक्षा व नारी उत्थान का प्रण लिया । 

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                  बालिकाओं के माता पिता को बधाई देने वालों का तांता लग गया । सभी ने बेटियों पर गर्व करते हुए कोच को विश्व चैम्पियनशिप की तैयारी का आह्वान किया । 

                 पांच साल बाद  । 

                   मिश्राजी की छोटी बेटी मधु का विवाह था । विवाह के निमन्त्रण पत्र देने वे पूर्व कार्यस्थल गये । लोगों ने उन्हें बताया मुन्नी को आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल की मानद रैंक से नवाजा गया है । पानी पुलिस विभाग में उपनिरीक्षक, संजू भारतीय रेलवे में क्षेत्रीय अधिकारी, दिव्या डिप्टी एस पी के पद पर कार्यरत हैं ।  

       अपने विद्यार्थियों की कामयाबी के समाचार सुनकर गुरु जी फूले नहीं समाये । सबसे अधिक खुशी इस बात की हुई की बेटियां स्वावलम्बी हो गयी ।

    नेमीचन्द गहलोत, 

                 नोखा, बीकानेर (राज.)

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