सुनो सबकी करो मन की – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

फोन की घंटी बजते ही मुग्धा भाग कर जाती है तो दूसरी तरफ से मां की आवाज सुनकर उसके चेहरे पर रौनक आ जाती है।और सुनाओ बेटा….”कब से घंटी बज रही थी कहां व्यस्त थी तू? तुझे तो फुर्सत ही नहीं होती की मां को फोन लगा लिया करे” संगीता जी बिटिया से गुस्से में बोली।

मां ” दो दिन पहले तो बात किया था आप से, पता है ना मम्मी जी की तबीयत इन दिनों ठीक नहीं चल रही है और ऊपर से दुलारी ने भी इसी समय छुट्टी ले ली है, तो थोड़ी व्यस्तता हो जाती है । आगे से ध्यान रखूंगी आप परेशान नहीं हो” मुग्धा ने मां को दिलासा देते हुए कहा।

बेटा ” तू तो अपने ससुराल में ऐसी रम बस गई है की मायका ही भूल गई।कितने वक्त से तेरा आना नहीं हुआ है। समय निकाल कर आ जा कुछ दिनों के लिए और तेरी ही अकेले की जिम्मेदारी नहीं है सास की।देवर – देवरानी क्या करते हैं, उनकी भी तो मां हैं शांति बहन जी” संगीता जी नाराजगी जताते हुए बोली।

मम्मी ” मैं तो अपना धर्म निभाना जानती हूं फिर कोई क्या करता है क्या नहीं उससे मुझे लेना – देना नहीं है। रही बात देवरानी की तो वो जाने उसका काम जाने।उसके भरोसे मैं मम्मी जी को नहीं छोड़ सकतीं हूं ” अब मुग्धा थोड़े गुस्से में बोली।

बेटा” जितना जिम्मेदारी उठाएगी, उतना लोग तुझ पर बोझ डालते जाएंगे‌। ‌कहावत सुना है ना ‘ गधे पर लोग बोझ लादते हैं, घोड़े पर नहीं।’

“कोई बात नहीं मम्मी… अपने परिवार के लिए गधा ही सही ‌

मैं इस हाल में अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकती। आपने भी तो सबके लिए कितना किया है”।

” इसीलिए तुझे समझा रहीं हूं कि क्या मिला मुझे पूरी जिंदगी सबके लिए करके। तूने देखा कोई अहसान नहीं है ,ना तो तेरे पापा की तरफ से ना ही उनके परिवार की तरफ से।”

” सही कहा मम्मी लेकिन अगर हम किसी के लिए कुछ करते हैं तो उम्मीद नहीं करना चाहिए की दूसरा हमारे लिए क्या करता है। ऊपरवाला सब देखता है।आज देखिए आपका भईया – भाभी कितना ख्याल रखते हैं। ये भी तो आपके अच्छे कर्म का ही फल है।”

” तुझे तो कुछ भी समझाना भैंस के आगे बीन बजाना जैसे है।तू भी एक दिन जरूर पछताएगी फिर मां को याद करेगी “

संगीता जी ने फोन रख दिया।

बहू” समधन जी क्या कह रहीं थीं? मेरी वजह से तुझे बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है।कितने महीनों से तू मायके भी नहीं गई है बेटा ” शान्ति जी के कानों तक कुछ बातें आ गई थी।

मम्मी जी!” आपने ही तो कहा था ना ‘ सुनो सबकी करो मन की ‘। मां हैं वो बेटी की फ़िक्र होती है।आप परेशान नहीं होना और जल्दी से स्वस्थ हो जाइए फिर मैं मायके जा कर रह आऊंगी। परिवार किस दिन काम आएगा, अगर हम एक-दूसरे के सुख-दुख में काम ना आए तो भला क्या फायदा इन रिश्तों का।आप मेरी मां जैसी हैं, मैं आप पर कोई अहसान नहीं कर रही हूं।आप भी तो मेरा कितना ख्याल रखती हैं। बहुत प्यार दिया है आपने मुझे। शादी करके आई थी कितनी नासमझ थी लेकिन आपने बिना कुछ कहे हर कदम पर मुझे सिखाया और समझाया है मम्मी जी।बस अब कोई भी फालतू बात नहीं सोचिए और सूप पीजिए उसके बाद दवाइयां और थोड़ा एक्सरसाइज भी करना है आपको।”

सचमुच में मुझे बहू नहीं बेटी मिली है जो हक भी जताती है और डांट भी लगाती है। जरूर मैंने पिछले जन्म में कुछ अच्छे कर्म किए होंगे जो इतनी प्यारी  बहू मिली। संगीता जी ने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं बेटी को जिसमें समझदारी के साथ – साथ इंसानियत भी है।जो अपने – पराए में भेद नहीं जानती है। सबकुछ दिल से करती है बिना चेहरे पर शिकन लाए।

सास बहू का रिश्ता हमेशा बेहतर हो सकता है अगर सास समझदारी से बहू को अपनाए और बहू भी अपना परिवार समझ कर हर रिश्ता बिना बोझ के दिल से निभाए। खट्टा मीठा होता है ये रिश्ता बस बैलेंस बनाकर रखना है दोनों को।

शांति जी जल्दी ही स्वस्थ हो गई मुग्धा की सेवा और देखभाल से।जब संगीता जी उनसे मिलने आईं तो उन्होंने बहुत सारा धन्यवाद दिया समधन जी को कि,” मैं धन्य हो गई जो आपकी बेटी मेरे घर बहू बनकर आई। बहुत ही अच्छे संस्कार दिए हैं आपने बहन जी” ।

संगीता जी फूले नहीं समा रहीं थीं कि बेटी के ससुराल में सब कितना प्यार देते हैं उसे। सभी एक जैसे नहीं होते हैं, अच्छा हुआ कि मुग्धा ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

                                प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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