सुख-दुख – संगीता श्रीवास्तव   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “उठ बेटा ,कब तक यूं पड़ी रहेगी। चल हाथ मुंह धो ले ,कुछ खा ले। ऐसे कैसे चलेगा। अमन तो अमर हो गया, मरा कहां है!! तुम अपने आप को संभालो नहीं तो अमन को बहुत कष्ट होगा। अपनी सास- ससुर को तो देख, तुमने अमन खोया है तो उन्होंने भी अपना एकलौता बेटा खोया है। अमन ने कहा था ना, “हमेशा खुश रहना! नहीं तो सीमा पर मैं कमजोर पड़ जाऊंगा।”  “उसकी खातिर तुम्हें खुश रहना है बेटा।”श्रेया की मां ने कहा।

  तभी सासू मां कमरे में आई। “हां ,अब उठ जा श्रेया, तू ही तो अब हमारे जीने का सहारा है।”  बैठते हुए उन्होंने कहा,”तुम्हें याद है न, कितने गर्मजोशी के साथ तुमने अमन की हिम्मत बढ़ाई और खुशी-खुशी विदा किया था उसे। तुम्हें तो गर्व होना चाहिए, अमन देश की सेवा करते हुए भारत माता की गोद में शहीद हो गया पर देश के झंडे की शान को धूमिल नहीं होने दिया ,मेरे लाल और तुम्हारे अमन ने! अमर हो गया रे श्रेया, हमारा अमन!” कह अपने आंसुओं को संभाल न पाई और श्रेया भी पुक्का फाड़कर रोने लगी।

‌ कुछ देर के बाद श्रेया उठी और अपने आंसुओं को पोंछते हुए कहा,”सही कहा मां, मैं अपने आंसू बहा कर अमन को कष्ट नहीं पहुंचाऊंगी।” श्रेया ने कह तो दिया आंसू नहीं बहाउंगी लेकिन पुनः मां को पकड़ रोने लगी। मां भी अपने आंसुओं को रोक न पाई।

श्रेया आंखों में आंसुओं को दमित कर तो देगी लेकिन हृदय में दर्द का जो टीस है उसको कैसे रोक पाएगी! सोच सोच कर मां का हृदय का कचोट रहा था।

कहते हैं,समय हर दर्द को कम कर देता है।

समय के साथ श्रेया का दर्द भी कम हो ही जाएगा।  इतनी जल्दी अमन को भूल जाए, याद ना करें यह संभव है?

इस दुख से उसके जीवन में, सन्नाटा…. घनघोर अंधकार……. भयावह त्रासदी पसर गया था….।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

तुम्हारे सहारे की नहीं ,साथ की दरकार थी। – स्मिता सिंह चौहान

बालकनी में खड़ी श्रेया के उदास मन पर तरह-तरह के प्रश्नों की बौछारें उसे छलनी कर रहीं थीं जिसे सहना असह्य हो रहा था। श्रेया के सास ससुर उसे देख अपने दर्द को जेहन में दबा रखे थे जिससे कि वह आहत न हो और इधर श्रेया ने अपने आप को बहुत संयमित  कर रखा था जिससे कि सास-ससुर को कष्ट ना हो।

उस घर से उसके अमन की यादें जुड़ी थी इसलिए वह मां पापा के साथ मायके जाने से मना कर दी। जैसे तैसे समय बीत ही रहा था।

एक दिन सास ससुर के कमरे की ओर से गुजरते हुए श्रेया को फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। अपना नाम सुन उसके कदम रुक गए। “श्रेया को हम क्यों घुटते रहने दे। अमन तो मिलेगा नहीं, क्यों नहीं एक अच्छे लड़के से हम उसकी शादी कर दें। पूरी जिंदगी पड़ी है बेचारी की! इस संबंध में श्रेया के मां -पापा से भी हमें बात करनी चाहिए।”

सुनते ही श्रेया कमरे के अंदर आ सासू मां की गोद में सिर  रख रोने लगी। रोते हुए कहने लगी,”नहीं करनी मुझे शादी!कहीं नहीं जाऊंगी मैं,यही रहूंगी अमन की यादों के साथ जो मेरे जीने का सहारा है। अमन नहीं तो क्या? मैं यही रहूंगी आप दोनों के साथ वरना अमन मुझे माफ नहीं करेगा।”

बहुत समझाने पर भी वह अपनी बात पर अड़ी रही। समय अभी दुख का ही साथ दे रहा था जो उसके पीछे -पीछे चल रहा था।

प्रकाश अमन का जिगरी दोस्त था। अमन के खोने का सदमा उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था। प्रकाश के माता-पिता अनाथालय से उसे गोद लिए थे। पापा तो बहुत पहले स्वर्ग सिधार गए थे, दुर्भाग्य बस 6 माह पहले मां भी नहीं रही। अमन के चले जाने से लगभग रोज ही प्रकाश आता था और हर जरूरत के लिए तत्पर खड़ा रहता था।

अमन के पापा के मन में कई दिनों से एक ख्याल आ रहा था कि क्यों ना प्रकाश से श्रेया की शादी कर दी जाए जिससे उसके अंधेर जिंदगी प्रकाश से प्रकाशित हो जाए। मगर वह डरते थे कि पता नहीं ,श्रेया कैसी प्रतिक्रिया करें, ये बातें उन्होंने अपनी पत्नी से कहा ।उन्हें भी  विचार अच्छा लगा।

पर उन्होंने कहा,”प्रकाश के मन को तो टटोल लें कि वह राजी है या नहीं!”

“बात तो तुम ठीक कह रही हो। मैं उससे बात करूंगा।”ससुर जी ने कहा। प्रकाश से जब उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की तो वह घबड़ा गया।”मैं भाभी से शादी! नहीं … नहीं।”बहुत समझाने बुझाने पर उसने हामी भरी ।

अब बारी थी श्रेया को राजी करने की।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक दूजे का सहारा – पुष्पा जोशी

एक दिन सास -ससुर ने  यह प्रस्ताव श्रेया के सामने प्रस्ताव रखा।  ‌ वह भड़क उठी।   “क्यों आप लोग मुझे यहां से हटाना चाह रहे हैं। मैंने कह दिया ना मुझे कहीं नहीं जाना। आप लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।”

“हां….हां तुम कहीं नहीं जाओगी । हम भी यही रहेंगे तब तो शादी करोगी?”ससुर जी ने कहा।

“क्या!”श्रेया के मुंह से अनायास निकला।

“तुम ही बताओ हमारे बाद तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा? हम तो हमेशा रहेंगे नहीं। बहुत सोच समझ कर मैंने ये फैसला लिया है। फैसले को अंजाम देना तुम्हारे ऊपर है।

मैंने लड़का भी देख रखा है,अपना ……प्रकाश ! जो तुम्हें हर तरह से खुश रखेगा और तुम कहीं नहीं जाओगी, हमारे पास रहोगी।”श्रेया ससुर जी की बात चुपचाप सुन ली। उसे समझ नहीं आ रहा था करें तो क्या करें!

सारी बातें सुन वह अपने कमरे में धम्म से बिस्तर पर जा गिरी और रोने लगी। ससुर जी की बातें उसे बेचैन करने लगी। सोचते- सोचते उसे कब नींद आ गई ,पता ही नहीं चला।

अक्सर रात में उसे लगता था जैसे अमन कह रहा है,”प्रकाश बहुत ही अच्छा लड़का है, यह तुम्हें बताना जरूरी नहीं क्योंकि तुम उसे भली-भांति जानती हो, समझती हो। तुम मुझे प्यार करती हो न? तो मेरी बातें तुम्हें माननी पड़ेगी। बना ले उसे अपना जीवन साथी! मैं तुम्हें घुटते हुए नहीं देख सकता श्रेया! मैं जानता हूं मेरे नहीं रहने से तुम्हारे ऊपर दुख पहाड़ टूट पड़ा और आज सुख अपनी बांहे फैलाए तुम्हारा इंतजार कर रहा है। ना मत करो श्रेया! मां -पापा की बात मान लो। तुम्हारी मन:स्थिति को समझता हूं, कितना मुश्किल होगा निर्णय लेना। ना मत कहो श्रेया…… ना मत कहो…. बात मान लो….., की गुंज उसके कानों में गूंजती रहती थी। वह परेशान हो अमन की फोटो के सामने खूब रोती थी। उधर सास ससुर को दुखी देख उसका हृदय अलग ही कचोटता  था। द्वन्द वाली स्थिति थी श्रेया की।

अंततः अपने हृदय पर पत्थर रख आखिर एक दिन वह हां कर दी। उसके सास -ससुर और मां पापा उसके निर्णय से बहुत खुश हुए ।

प्रकाश और श्रेया शादी के बंधन में बंध तो गए लेकिन  मन के बंधन में बंधने में उन्हें बहुत लंबा समय लगा। प्रकाश, श्रेया की हर छोटी -बड़ी इच्छाओं का ख्याल रखता था। समय जरूर लगा लेकिन धीरे-धीरे वे अच्छे जीवन साथी बन गए।

अमन के जाने से जो दुख के बादल थे अब प्रकाश के आने से श्रेया का जीवन सुख से आलोकित हो गया था।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!