Moral stories in hindi: “ जानकी जी के एक साथी के जन्मदिन की तैयारी चल रही थी।
यहाँ जन्म की तिथि वो नहीं होती जिस दिन आपका जन्म हुआ हो, बल्कि वो होती है जिस दिन आप यहाँ आते हो ।
यहाँ जन्मदिन बच्चो के जैसे मनाया जाता है। गुब्बारे लगाए जाते है, केक काटा जाता है। एक लडी जगमग जगमग करती है।… दीवाली सा माहौल होता है उस दिन। लंच में आज उसी की पसंद की खाना बनता है। तब बर्थडे बाय ने केक काटा। सब तालिया बजा बजा कर बोले- “हैप्पी बर्थडे टू यू” …जैसे छोटे बच्चे मनाते है ना बर्थडे बिलकुल वैसे। बस ऐसे ही एक दुसरे को खुश करने में लगे रहते है, एक दूसरे के सुख दुःख में साथ निभाते नजर आते है सब।
जानकी जी याद करती है कि चार दिन बाद उनके पोते कुश का जन्मदिन है।
वो याद करती है कि कैसे उनके बेटे व बेटे बहु ने विदेश में वसने के चक्र में उसे यहाँ लाकर रख दिया। कितना रोइ थी वो, ख़ास कर जब आपने पोते कुश से बिछड़ रही थी। पोता कुश भी दादी दादी कह चीख रहा था। पर बेटा बहु को कोई फर्क नहीं पड रहा था। शायद पत्थर हो गए थे वो।
जानकी जी को आज भी अपने पोते की बहुत याद आती, सोचती काश एक बार मिल जाये।
जानकी जी जब आई आई थी तब खूब रोती थी। अकेलापन महसूस करती थी। पर अब उनमे बहुत बद्लाव आया है ।वो अपने साथियों के साथ बाग़वानी करती, खाना बनाने में हेल्प करती, दूसरे कई लोगो की उनके काम में हेल्प करती। अब वो खुश रहने लगी थी। हस्बैंड के जाने के बाद वो अकेली हो गयी थी पर अब वो फिर से हंसने- खेलने लगी थी। आश्रम के लोगो को अपना सुख दुःख सुनाने लगी और उनका सुख दुःख बांटेने लगी थी ।
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लेकिन आज सुबह से ही वो उदास थी। उनका मन कहीं भी नहीं लग रहा था। ना जाने कितनी बार आँखे भर चुकी थी वो। उनके साथी उनका मन बहलाने की कोशिश कर रहे थे। पर वो कई बार रो चुकी थी क्युकि आज उनके पोते का जन्मदिन था। कितना बड़ा हो गया होगा, पता नहीं मुझे याद करता होगा या नही।
यही सोचते सोचते उनकी आँख लग गयी । उन्हें दादी दादी की आवाज आयी। जैसे उनका पोता उन्हें पुकार रहा हो। वो भी लल्ला लल्ला कर रही थी कि अचानक किसी के हिलाने से वो उठ खड़ी हुई। साहमने खड़े लोगो को देख वो हैरान हो गयी। उनके बेटा बहु खड़े थे और उनका पोता सच में दादी दादी बोलकर उठा रहा था। दादी पोता आपस में चिपक गए, दोनों तरफ अश्रुधारा का सैलाब सा उमड़ पड़ा।सबकी आँखे यह अद्भुत दृश्य देख नम हो रही थी।
बेटा बहु ने पाँव छुए।
पोता बोला दादी हम आपको लेने आये है जानकी जी ने बेटे बहु की तरफ देखा ।
उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो जानकी जी ने लंबी सांस ली पर फिर बोली अचानक यह फैसला क्यों?
तब बेटा बहु पैरों में झुक कर बोले माँ हमे माफ़ करदो, हमें अपनी करनी का फल मिल गया है। आपका पोता आपके बिना हंसना-खेलना- खाना-पीना सब भूल गया है। अपने जन्मदिन पर आपको मांगा है इसने । आज 2 साल बाद उसके चेहरे पे हंसी आयी है। मां आप साथ चलो।
जानकी जी नहीं अब यही मेरे साथी है यही ठिकाना। मेरा तुम लोगो पे मुझे कोई भरोसा नहीं।
तभी बहु बोली माँ अबकी बार ऐसा कुछ ना होगा। हम आपके मान सम्मान का पूरा ध्यान रखेंगे।
जानकी जी अब बभी खामोश थी।
तभी पोते ने हाथ पकड़ा, चलो ना दादी मेरे लिए , मैं आपके बिना नहीं रह सकता। अब मैं बड़ा हो गया हूँ ,आपका ख्याल मैं रखुँगा।
अबकी बार जानकी जी पिगल गई। पर उन्होंने शर्त रखी कि हर शनिवार इतबार वो अपना सुख -दुःख बांटने अपने साथियों से मिलने आएगी। पोता बोला दादी मैं भी आपके साथ आया करुगा ।इस तरह ख़ुशी -ख़ुशी अपने दोस्तों से विदा ले,पोते का हाथ थाम घर चल दी।
रीतू गुप्ता
स्वरचित
अप्रकाशित