सीता हार – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बड़ी सी कोठी के एक भव्य कमरे में प्रेमलता जी अकेली शून्य में देख रही हैं… कितना टीवी देखें,मोबाइल देखें, भजन सीरियल सत्संग सब कुछ आजमा लिया पर अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है.. लगता है बहु और बच्चे थोड़ी देर पास आकर बैठे या मैं चली जाऊं उनके पास पर.…. मैने कोई रास्ता कहां छोड़ा है वापस लौट के जाने का.. मरघट सा सन्नाटा घर में छाया हुआ है..नौकर माली सब हैं, टाइम से नाश्ता खाना यंत्रवत मिल जाता है, पर इस उम्र में जो प्यार अपनापन सुरक्षा चाहिए वो नही मिलता…

                ओह कितना गलत किया मैने नेहा विवेक और दोनो छोटे छोटे बच्चों के साथ. आंखों से आसूं निकल पड़े और अतीत में खो गई प्रेमलता जी..

                पति किशन जी  अकूत संपत्ति पत्नी के लिए छोड़ कर दुनिया से गए थे… बड़ा बेटा वैभव  बहू   तन्वी के साथ      कानपुर में रहता था…तन्वी को प्रेमलता जी के साथ रहना पसंद नही था क्योंकि उसे सास के दौलत की धौंस सहन नही होती ..गाहे बेगाहे प्रेमलता जी जिक्र कर देती.. तन्वी ने फैसला कर लिया यहां मुझे नही रहना..और फिर वैभव अपना तबादला करा वहां से कानपुर चला गया . विवेक डीपीएस में टीचर था..  सीधी शांत स्वभाव की नेहा से विवेक की शादी हो गई.. नेहा प्रेमलता जी का खूब ख्याल रखती.. पर प्रेमलता जी कोई न कोई कमी निकाल खरी खोटी सुना हीं डालती, कभी मायके वालों पर भी निशाना साधती.. नेहा का चेहरा देख विवेक दुखी हो जाता.. नेहा भी विवेक की मजबूरी समझती थी…

                     समय बीतने के साथ नेहा दो बच्चों की मां बन गई.. बच्चों के कारण जिम्मेवारियां बढ़ गई.. अब प्रेमलता जी अक्सर नेहा को सुनाती चार परिवार में जितना खर्च होता है मेरा अगर आदमी रखती उतने में तो महारानियों वाले ठाठ होते मेरे.. दिनभर चूल्हा जलता है, महीने में दो सिलिंडर तो लग हीं जाते हैं . मैं अकेली पेट कितना खाती हूं… नेहा के लिए ये रोज की बात हो गई थी..

                   तभी एक दिन प्रेमलता जी का सीता हार जिसे वो तिजोरी में रखती थी गायब हो गया.. वैभव और तन्वी भी किसी दोस्त की बहन की शादी में आए थे, तो एक दिन के लिए मां से मिलने आ गए.. घर में खूब हंगामा हुआ सब नेहा को हीं दबे जुबान चोर ठहरा रहे थे.. प्रेमलता जी ने तो साफ कहा मैं और नेहा दो जन हीं रहते हैं.. साफ है हार नेहा ने हीं लिया है.. तन्वी बोली सास का गहना था बोल के ले लेती इतनी घिनौनी हरकत… हां छोटे घर से आई लड़की हीं ऐसा कर सकती है, ये प्रेमलता जी का स्वर था… विवेक दरवाजे के उस पार खड़ा सब सुन रहा था नेहा अपराधी की तरह खड़ी रोए जा रही थी.. विवेक के अंदर जाते हीं फफक पड़ी मैंने नही लिया है..

                विवेक नेहा को रोता छोड़ बाहर चला गया वापस आया गाड़ी लेकर नेहा से बोला चलो समान रखो हम यहां नही रहेंगे अब.. प्रेमलता जी थोड़ा बड़े बेटे बहु को देखकर और इतराने लगी और कहा जाओ जब ये सुख सुविधा खलेगा तो उल्टे पांव वापस आओगे.. मैं दस आदमी रख लुंगी.. सारा धन वैभव और तन्वी के नाम कर दूंगी.. और विवेक नेहा घर छोड़ कर चले गए.. अगले दिन वैभव तन्वी भी चले गए… विवेक दूसरे शहर में अपना ट्रांसफर करवा लिया है उड़ते उड़ते खबर मिलती है… और फसाद की जड़ वो सीता हार प्रेमलता जी ने कबर्ड में साड़ी के साथ रख दिया था,.. एक पार्टी से लौटते समय ज्यादा रात हो गई थी, सोचा अगले दिन तिजोरी में रख दूंगी…

          निर्दोष मासूम नेहा की हाय मुझे लगी है.. मैने उसकी कदर नही की…

                       नही मै जाऊंगी नेहा विवेक और बच्चों के पास.. उनसे माफी मागूंगी… शायद मुझे माफ कर दें… आसुओं के सैलाब को रोकने की असफल कोशिश करती प्रेमलता जी उम्मीद से मुस्कुरा दी..

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

#सासु जी तुने मेरी कदर ना जानी

Veena singh

 

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