सिर्फ़ नाम के रिश्ते हैं : short moral story in hindi

 ” सुनिये, मैं कल सुबह ही सूर्यांश को लेकर अपने घर आ रही हूँ।” सुमन ने भर्राये गले से अपने पति से कहा

” लेकिन हुआ क्या? तुम तो एक-दो महीने तक रुक…।”

” कहा था, पर अब यहाँ मैं एक पल भी नहीं रुक सकूँगी।” कहकर उसने अपने पति की बात सुने बिना ही फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया और अलमारी से अपने और बेटे के कपड़े निकाल कर ट्रॉली बैग में रखने लगी।

         शहर के एक बड़े बिजनेस की बेटी थी सुमन।उससे बड़े दो भाई और एक दीदी थीं।घर भर की लाडली और अपने पिता की दुलारी थी वह।उसके पिता ने अपने बच्चों को विद्या रुपी धन देने में ज़रा-सी भी कटौती नहीं की थी।उसके दोनों भाई पिलानी के बोडिंग स्कूल में पढ़े और अपनी दीदी के साथ उसने भी शहर के बेस्ट स्कूल-कॉलेज़ से अपनी पढ़ाई पूरी की थी।

      पढ़ाई पूरी करके दोनों भाई अपने पिता के बिजनेस में हाथ बँटाने लगें।बीए करते ही उसकी दीदी की शादी एक डाॅक्टर से हो गई और वो अपने ससुराल जाकर अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गईं।वह भी अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने लगी।

            उसके पिता ने कभी भी धन को महत्व नहीं दिया।वे जो भी कमाते,अपने परिवार की सुख-सुविधाओं और बच्चों की खुशियों पर खर्च कर देते थें।उनके लिए अपने रिश्ते और अपनों का प्यार महत्वपूर्ण था लेकिन उसकी माँ….,उनके लिए तो पैसा ही सबकुछ था।

वे अपने रिश्तेदारों पर पैसे लुटाकर उनपर अपना रौब दिखाती रहतीं जिसकी वजह से कभी-कभी उसके पिता को आर्थिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ता था। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हमारी बहू वो सबकुछ करेगी जो उसे अच्छा लगता है – गुरविंदर टूटेजा : Moral Stories in Hindi

     उसके बीए पूरा होने से पहले ही घर में दो भाभियाँ आ गईं थीं।दोनों ही धनाड्य परिवार से संबंध रखती थीं परन्तु दोनों का ही व्यवहार बहुत अच्छा था।बीए की परीक्षा देते ही उसके पिता ने अपने बचपन के मित्र घनश्याम जी के बेटे निखिल जो पीडब्ल्यूडी में कार्यरत था,से उसका विवाह करा दिया।

         निखिल के पिता एक सरकारी कर्मचारी थें।सादा जीवन, उच्च विचार’ उनकी विचारधारा थी।निखिल भी जितना है,उसी में संतुष्ट रहने वाला लड़का था।फ़िज़ूलखर्ची और दिखावा करने में वह ज़रा भी विश्वास न था।

इसीलिए सुमन की शादी में उसके ससुराल से जो भी कपड़े-गहने आये थें,वो उसकी भाभियों को पसंद नहीं आये।उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सुमन के ससुराल वालों को ताने मारे जो निखिल को बहुत बुरा लगा परन्तु उन्होंने सुमन से कुछ नहीं कहा।

      विवाह के बाद जब सुमन पहली बार मायके आई तो उसने सबको उपहार दिये जिसे देखकर उसकी दीदी बोलीं, ” ये क्या उठाकर लाई है तू,इससे अच्छे तो मेरे घर के नौकर पहनते हैं।”

” पहनते होंगे दी लेकिन मेरे ससुर ने भी तो अपनी तरफ़ से अच्छा ही दिया है।घर में सास है नहीं तो उन्हें जैसा समझ आया, दिया।” उसने अपनी दीदी को समझाने का प्रयास किया।तभी वहाँ माँ आ गईं और उन्होंने भी उपहार देखकर उसके ससुर का खूब मज़ाक बनाया।

उसे अच्छा नहीं लगा,वह अपने पिता के पास जाकर रोने लगी तो उन्होंने उसे समझाया,” देखो बेटी,अपनी माँ और दीदी के स्वभाव को तो तुम जानती ही हो,कमियाँ निकालना तो उनकी पुरानी आदत है।तुम्हारे लाये सभी उपहार मुझे तो बहुत पसंद है।” फिर तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

        अगले दिन वह नाश्ता करने बैठी तो बड़ी भाभी बोलीं, ” सुमन, पेट भर के सैंडविच खा ले,तुम्हारे ससुराल में तो ये बनने से रहा।” सुनते ही दीदी और छोटी भाभी हा-हा करके हँसने लगीं।वह रुआँसी हो गई तो छोटे भईया बोले,” हमलोग तो तेरे से मज़ाक कर रहें थें।”

  ” मज़ाक!…इसी घर की तो बेटी थी वह और एक ही दिन में वह मज़ाक की वस्तु बन गई।” न जाने क्यों…उसे वह घर अब पराया-सा लगने लगा।ये तो अच्छा हुआ था कि निखिल ‘ज़रूरी काम’ कहकर तुरंत लौट गयें थें वरना ये सब देखते-सुनते तो उन्हें ….।

एक मन तो उसका किया कि कल ही वापस चली जाए,लेकिन फिर वहाँ पापाजी (ससुर) को क्या कहती।मायके की शिकायत… नहीं-नहीं, उसे तो अपने पिता और ससुर, दोनों के ही सम्मान को बचाना था।आखिर दोनों ही तो उसके अपने थें।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक नई शुरुआत – मधु झा,, : Moral Stories in Hindi

           दो दिनों के बाद जब वह अपने ससुराल जाने लगी तो किसी ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की।न माँ ने और न ही भाभी ने,शायद अब वह उनके लिए एक बोझ बन गई थी।हाँ, उसके पापा की आँखें ज़रूर नम थीं।

अपनी आँखों से बहते आँसुओं को छिपाती हुई वह गाड़ी में बैठ गई और रास्ते भर यही सोचती रही कि क्या सभी का मायका ऐसा ही होता है।कितने उत्साह से वह यहाँ आई थी लेकिन…।क्या रिश्तों से अधिक हैसियत का महत्व है? उसने सोच लिया कि अब वह यहाँ कभी नहीं आयेगी।

            लेकिन मायके का मोह किसी लड़की से कभी छूटता है क्या? कुछ महीनों के बाद उसे मालूम हुआ कि उसके पिता को पक्षाघात(लकवा मारना) हुआ है,तब वह अपने को रोक न सकी।सोचा कि अपनों से नाराज़गी कैसी?वह पिता से मिलने निखिल के साथ अपने मायके आ गई।

पिता ने बेटी-दामाद को साथ में देखा तो जैसे उनके शरीर में जान आ गई हो।इशारे से ही अपनी बेटी से बात करके वे बहुत खुश हुए।रात को डिनर के लिये घर के सभी लोग डाइनिंग टेबल पर खाने बैठे थें।डिनर के बाद छोटी भाभी सभी को स्वीडिश में रसमलाई देने लगी।निखिल के हाथ में भी रसमलाई का बाउल दिया गया।

उसने रसमलाई का पहला टुकड़ा मुहँ में डाला ही था कि बड़ी भाभी ने उसे टोक दिया, ” जी भर के खा लीजिए निखिल, आपकी सैलेरी में तो यह खाना संभव ही न होगा। बेचाऽऽऽरी हमारी सुमन, उसे तो रसमलाई बहुत पसंद है ले…।” व्यंग्य से वो मुस्कुराई।

” बड़ी भाभी, ये क्या कह रहीं हैं आप!।” गुस्से-से सुमन चीख पड़ी।तब तक तो निखिल बाउल टेबल पर रख चुका था।मुँह का निवाला भी वाॅशबेसिन में निकालकर वह कमरे में जाकर अपना बैग लिया और सुमन से बोला,” मैं जा रहा हूँ, तुम्हारा जब जी आये, चली आना।”

” इतनी रात को….सुबह चले जाइ…।” लेकिन निखिल सुमन की बात सुने बिना ही बाहर निकल गया।

        पति का अपमान सुमन से बर्दाश्त नहीं हुआ।वह माँ से बोली कि निखिल भी तो इसी घर के दामाद हैं माँ।भाभी जीजाजी का बड़ा आदर करती हैं,फिर निखिल का क्यों नहीं? मुझे भी वो लोग जब-तब किसी न किसी बात पर ताने देती हैं।ऐसा क्यों माँ?”

  ” तेरी गलतफ़हमी है।सलहज-ननदोई के बीच तो हँसी-मज़ाक चलता ही रहता है।और फिर देख, तेरी भाभियाँ और तेरे जीजाजी निखिल से उम्र और हैसियत में बड़े हैं।कुछ कह भी दिया तो निखिल को तो गुस्सा नहीं करना चाहिए था”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी बेटी ने ही मुझे जख्म दिया – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    माँ ने भी निखिल को ही गलत ठहराया,यह उसके लिये असहनीय था।ये कैसे रिश्ते हैं जो इंसान की हैसियत के अनुसार बदल जाते हैं।मेरी ही माँ है ,मेरी ही बहन है,इन्हीं के साथ मेरा बचपन बीता है और आज इन्हें मेरे से तनिक भी लगाव नहीं।

खून के रिश्तों का रंग सफ़ेद होते देख उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।उसने सोचा था कि डिनर के बाद सभी को अपनी प्रेंग्नेंसी की खुशखबरी सुनायेगी तो सभी उसे बधाई देंगे लेकिन अब तो….।

      अगली सुबह ही वह पिता से मिलकर अपने घर चली आई।मायके की याद तो उसे बहुत आती लेकिन अपने दर्द को वह पी जाती।उम्मीद तो उसे अभी भी थी।

       उसके ससुर ने पोता होने की खुशखबरी अपने समधी- समधिन को भिजवायी लेकिन वहाँ से कोई नहीं आया।उसके पिता तो लाचार थें लेकिन बाकी…।एक स्टाफ़ के हाथ जच्चा-बच्चा के लिए कपड़े-खिलौने भेजकर उन लोगों ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी थी।उस वक्त उसने अपने मन को कैसे समझाया था,ये तो वही जानती थी।

         अब उसका बेटा नौ महीने से ऊपर का हो रहा था।चाहती थी कि उसके पिता अपने नाती से मिले लेकिन पिछला अनुभव यादकर वह मन मसोसकर रह जाती थी।उसकी इच्छा को निखिल और उसके ससुर ने महसूस किया।एक दिन निखिल ने ही कहा,” चलो,तुम्हारे पापा से मिल आते हैं।”

 ” लेकिन भाभी…।” उसने आपत्ति जताई तो निखिल मुस्कुराये जैसे कह रहा हो ” इट्स ओके”

      इस बार मायके में उसे देखकर सभी बहुत खुश हुए।सूर्यांश को सबने हाथोंहाथ लिया था।निखिल जाने लगे तो वह हँसते हुए बोली थी कि महीने भर से पहले मैं यहाँ से हिलूँगी नहीं।उस दिन वह बहुत खुश थी।भाभियों ने कोई कटाक्ष नहीं किया और माँ भी चुप थी।

      अगले दिन जब वह सूर्यांश को पिलाने के लिए दूध लेने किचन में जाने लगी तो उसने सुना- ” भाभी,आप तो कह रहीं थीं कि सुमन टिकेगी नहीं पर देखिये…,लगता नहीं कि महीने भर से पहले जायेगी।पहले तो अकेली थी और अब तो उसका पिल्ला…।

” छोटी भाभी बोलीं तो बड़ी कहने लगी,” अरे मेरी किटी का क्या होगा? कमरे में अगर आ धमकी तो इसका मिडिल क्लास परिचय देकर मुझे अपनी हँसी उड़वानी पड़ेगी।

यार, इसके जाने का कोई इंतजाम….।” इसके आगे वह सुन न सकी।भाभियों के शब्दों ने उसके कलेजे को छलनी कर दिया था।खोखले रिश्तों की सच्चाई सुनकर उसकी आँखों पर से मायके के मोह का आवरण उतर गया।

        इसीलिये उसने कमरे में आकर निखिल को फ़ोन करके अपने आने की सूचना दे दी और फूट-फूटकर रोने लगी।आज वह सचमुच में पराई हो गई थी।उसके सभी रिश्ते जो कभी अपने थे,अब सिर्फ़ नाम के रह गये थें जिन्हें ढ़ोते-ढ़ोते अब वह थक चुकी थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हर रिश्ते में प्यार और अपनापन होना जरूरी है – अंजना ठाकुर : Moral Stories in Hindi

उसने एक हाथ से बेटे को संभाला और दूसरे से ट्रॉलीबैग को खींचती हुई बाहर जाने लगी तभी उसे पिता का ध्यान आया।वह धीरे-से उनके कमरे में गई और पिता के चरण-स्पर्श करते हुए बोली,” पापा,मुझे क्षमा कर दीजिये, मैं इन नाममात्र रिश्तों को अब नहीं ..।” उसकी आँखों से अश्रुधार बहने लगी।अपनी लाडली की आँखों में आँसू देखकर उसके पिता भी रो पड़े।पिता के आँसू पोंछकर वह बाहर निकल गई।

        इतनी जल्दी बहू को मायके से वापस आते देख सुमन के ससुर सब समझ गये थें।रात को निखिल कुछ पूछते, सुमन ने उसके कंधे पर अपना सिर रख दिया और बोली,” निखिल, मायके के मृतप्राय रिश्तों को मैं हमेशा के लिए छोड़ आई हूँ।” उसकी आँखों से निकले आँसू की दो बूँद उसके गालों पर आकर लुढ़क गये।

                                     विभा गुप्ता

     #खोखले रिश्ते             स्वरचित 

           मायके का मोह तो हर लड़की को होता है लेकिन जब मायके के उन्हीं रिश्तों का रंग सफ़ेद हो जाये और उनसे दर्द का रिसाव होने लगे तो उसे छोड़ देना ही उचित है जैसा कि सुमन किया।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!