Moral Stories in Hindi : राहुल और रीना दोनों का पारिवारिक जीवन सामान्य रूप से व्यतीत हो रहा था। राहुल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और रीना गांव के मध्य विद्यालय में शिक्षिका थी।इनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी तो खराब भी नहीं थी।रामू,राजू पुत्र थे तो रितु नाम की एक खूबसूरत पुत्री भी थी। पढ़ने लिखने में बहुत तेज थी।वह सुशील थी। मां के कामों में हाथ बंटाने में उसकी रुचि थी। मां के मना करने पर भी वह रुकती नहीं थी।
बेटे तो पढ़ने के नाम पर घरेलू कामकाज को निपटाने में आनाकानी करते रहते। बहुत कहने सुनने से बेमन कोई काम आधे अधूरे ढंग से करके जल्दी ही वहां से भाग जाते।ऐसी बात नहीं कि वे पढ़ने में बहुत तेज तर्रार थे। औसत दर्जे के ही विद्यार्थी थे।
दोनों बेटे ग्रैजुएशन करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे थे। लगातार तीन चार साल तक परीक्षा देते रहे किन्तु कोई भी परिणाम अनुकूल नहीं आया। इधर बेटी भी इंटरमीडिएट की परीक्षा दे चुकी थी। वह डॉक्टर बनना चाहती थी और इसके लिए वह किसी कोचिंग
में नामांकन कराना चाहती थी।
एक दिन उसने अपनी मां से कहा —” मेरी इच्छा है किसी कोचिंग में मेडिकल की तैयारी करने की।”
मां ने कहा” अपने पापा से पूछना। वे इस संबंध में क्या कहते हैं? उनकी जो इच्छा होगी, वह होगा।”
रितु ने कहा” मां पापा जी से तुम ही कहना। तुम्हारी बातें अधिक सुनते हैं।”
इधर रितु भी अच्छे अंकों के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा में सफल हो गयी। वह बहुत खुश थी। वैसे पूरा परिवार खुशी मना रहा था। मिठाइयां बांटी जा रही थीं। घर में जश्न का माहौल था।
इसी बीच रीना ने राहुल से कहा ” रितु डाक्टर बनने के लिए कोचिंग में नाम लिखवाना चाहती है।”
कुछ देर तक सोचने विचारने के बाद उसने ने कहा। “
रीना इधर आओ। तुमसे बहुत जरूरी बातें करनी है। रीना बोली” हां हां अभी आती हूं कहती हुई हाज़िर हो गयी।”
बात यह है कि” मेडिकल की तैयारी में कम से कम सात आठ साल लग जाएंगे। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि यदि सरकारी कालेजों में नामांकन नहीं हुआ तो प्राइवेट कालेजों में हम लोगों को पढ़ा पाना कठिन होगा।”
रितु ने मां से पूछा”पापा जी ने क्या कहा?”
बेटी “तुम्हारे पापा जी ने कहा कि सरकारी कालेजों में पढ़ाना आसान होगा लेकिन प्राइवेट कालेजों में पढ़ाना बहुत महंगा होगा।”
” मां , पहले तो मैं तैयारी करुंगी। परीक्षा दूंगी फिर कैसा रिजल्ट आयेगा इसके बाद ही तो नामांकन की बात होगी।” रितु ने कहा।
कोचिंग में नामांकन हो गया। वह छात्रावास में रहने लगी और क्लास करने लगी।
साल भर का कोर्स पूरा हो गया था। मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में दो दो बार सम्मिलित हुई थी किन्तु सफल नहीं हुई।
एक दिन पति -पत्नी आपस में बातचीत कर रहे थे। रितु अब तक दो बार परीक्षा दे चुकी है लेकिन सफल नहीं हुई। क्या अब इसका नाम बीएस सी क्लास में अंकित करवा दिया जाय? अच्छा होगा बेटी से भी क्यों नहीं पूछ लिया जाय?
ऐसा ही हुआ। इस विषय पर उसकी राय ली गयी। वह
स्नातक वर्ग में नामांकन के लिए तैयार हो गयी और ससमय उसका दाखिला भी हो गया ।
वह नियमित रूप से कालेज जाने लगी। वह पढ़ने में तेज तो थी ही। प्रथम श्रेणी में स्नातक उत्तीर्ण हो गयी। अब वह एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच गई थी जहां से उसके लिए दो रास्ते निकल रहे थे। एक आगे की पढ़ाई पूरी करने की ओर जा रहा था और फिर दूसरा वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने की तरफ ले जाने वाला।
इस मोड़ पर आकर द्वन्द्व छिड़ गया। रितु आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती थी, मतलब वह स्नातकोत्तर और पीएच डी करना चाहती थी और माता पिता सहित भाइयों की इच्छा थी कि वह विवाह के योग्य हो गई है, इसलिए सामाजिक दृष्टि से विवाह कर दिया जाना चाहिए। विवाह संबंधी जानकारी जब उसे मिली तब वह तिलमिला उठी और रोने लगी।
उसने कहा ” मां मेरी पढ़ाई पूरी कर लेने दो, तब मेरी शादी के बारे में सोचना। अभी तो दोनों बड़े भाइयों की शादी कहां हुई है? “
मां ने कहा ” रितु क्या तुम नहीं जानती कि आज भी बेटे बेटियों में अंतर है? मैं तुम्हारी बातों से सहमत हूं किंतु समाज अपनी कुदृष्टि से हमें देखेगा और तरह तरह से घृणित आलोचना तथा टिप्पणी करेगा।हम कहां कहां, किससे किससे सफाई देते रहेंगे। इसलिए बेटी इस पर सही ढंग से एक बार विचार कर लो। अगर तुम पढ़ना ही चाहती हो तो शादी के बाद भी पढ़ाई पूरी कर सकती हो।”
रितु ने किसी की एक भी नहीं सुनी। अपनी ज़िद पर अड़ी रही। माता पिता ने लाखों समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि उसके स्वर में कुछ रुखड़ापन, कुछ तीखापन और थोड़ा सा प्रतिक्रियावादी तेवर दिखाई देने लगा।
रितु अचानक ही कुछ उदास भी रहने लगी। किसी से भी कम से कम बोलना चाहती।उसकी ऐसी स्थिति देखकर माता पिता सोच में पड़ गये और उन्होंने यह निर्णय किया कि उससे अब इस विषय पर बातचीत करने की आवश्यकता नहीं है। समय के साथ सब कुछ सामान्य हो जायेगा और शायद वह भी कहीं शादी के लिए तैयार हो जाय।
दो तीन दिनों के बाद माता पिता ने रितु को बुलाकर यह जानकारी लेने की कोशिश की ” हमारे प्रति तुम्हारे मन में कोई शिकवा शिकायत हो तो उसे बताओ।हम तो तुम्हारी हर बात मानने वाले हैं।”
उन लोगों के प्रति रितु के मन में जो आक्रोश था वह तो था ही उससे कहीं अधिक उसे स्वयं के प्रति था।उसके मन में एक हलचल थी,एक बेचैनी थी कि” मैं बेटी हूं तो क्या?बेटी होना कोई अपराध है क्या? आज तो बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा हर जगह गूंज रहा है फिर हमारे माता-पिता हमारी शादी करने पर क्यों तुले हुए हैं? शादी के बाद तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लेना । इसका क्या मतलब? ऐसा भी कहीं होता है क्या? मुझे तो नहीं मालूम ।
मेरी शिकायत इस समाज से है जो किसी की बहू बेटियों पर कीचड़ उछालता है, मेरी शिकायत वैसे अभिभावकों और माता पिता से है जिनमें दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव है, जो वैसे निकृष्ट विचार रखने वाले समाज का सामना नहीं कर सकते और सबसे अधिक शिकायत तो मुझे स्वयं से ही है, ऐसा सोचते सोचते उसने बैग से उस्तूरा निकाला और दर्पण के सामने अपने सिर के खूबसूरत बालों का मुंडन संस्कार संपन्न कर गंजेपन को जीवन भर के लिए धारण करके बार बार अपनी शिकायत सबके सामने दर्ज कराती रही।”
अयोध्या उपाध्याय, आरा
मौलिक एवं अप्रकाशित।