आराधना की प्रथम पोस्टिंग महानगर में हुई। वह बड़ी-बड़ी इमारतें, मॉल, सिनेमा घर, और पार्क और भीड़ भाड़ देखकर अवाक थी । उसने यह सब टेलीविजन में देखे था। एक छोटे से गांव की बाला …कम उम्र में ही उसका विवाह हो गया।
विवाह के पश्चात उसने पढ़ाई करने की ठानी,और यह संकल्प लिया कि वह नौकरी करेगी। इसके बाद खूब मन लगाकर पढ़ाई की। ग्रेजुएशन करने के कुछ महीनों के बाद ही सरकारी नौकरी मिल गई । वह बहुत खुश थी, कि उसने अपने मेहनत से एक मुकाम हासिल किया।
खुशी-खुशी अपने पति तनिष्क को लेकर वह नौकरी ज्वाइन करने के लिए शहर पहुंची। तनिष्क अच्छे स्वभाव के साथ-साथ बहुत गंभीर व्यक्ति है ।
आराधना ने सोचा कम से कम हम पति-पत्नी के बीच एक की नौकरी तो लग गई ।अब उसका परिवार अच्छी तरह से जीवन यापन करेगा।
दोनों मिलकर घर का काम करते, आराधना दोपहर का खाना पैक कर के साथ ले जाती। शाम को छ:बजे तक वापिस घर आ जाती थी। दोनों हंसी-खुशी से झूमते, गाना गाते, अन्ताक्षरी खेलते और कभी साथ-साथ बाहर घूमने जाते। दिन मानो पंख लगा कर निकल रहे थे।
पता नहीं उनके हंसते-खेलते परिवार को न जाने किसकी नजर लगी। एक दिन ऑफिस से लौटी, तनिष्क की बातचीत बहुत बदली- बदली लग रही है। वह कुछ भी पूछती तनिष्क चिढ़कर उत्तर देते।
आराधना पास बैठकर पूछने लगी- क्या बात है?
तबीयत तो ठीक है न?
वह पलट कर बोला- तुम्हें इससे क्या?
तुम तो सारा दिन मौज-मस्ती करके आती हो। मैं तो घर का नौकर हूं जो घर मे पड़ा रहता हूंँ।
उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि तनिष्क ऐसा क्यों बोल रहा है?
आराधना ने खाना बनाया लेकिन तनिष्क बिना खाए ही सो गया। उस रात आराधना सो नहीं पाई, पूरी रात करवटें बदल कर निकाल दी ।आराधना कुछ समझ नहीं पा रही थी कि इतना सुलझा हुआ व्यक्ति,इस तरह की बातें क्यों कर रहा है?
आराधना के बगल में उनके पड़ोसी रमाकांत जी रहते थे। जो आते- जाते अक्सर आराधना को घूरते रहते ।
आराधना को उनका इस तरह से देखना, बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। ऑफिस आते- जाते समय अक्सर वह अपने दरवाजे पर खड़े रहते और गुड मॉर्निंग जी …. कहकर आंखों में झांकने की कोशिश करते ।आराधना भी उनका जवाब हल्के में देते हुए आगे बढ़ जाती।
एक दिन रमाकांत जी उसे रास्ते में मिले,और बात करने की कोशिश करने लगे… कहने लगे अरे भई, हम तो पड़ोसी हैं … कभी खाने पर,अपने घर बुलाओ… उनकी निगाहें कुछ ठीक नहीं लग रही थी।
कहते हैं कि- औरत के अंदर एक इंद्रिय ऐसी होती है जिससे उसे पता चल जाता है, कि सामने वाला व्यक्ति किस नियत से बात कर रहा है? आराधना ने कहा- ठीक है,आप अपनी पत्नी को साथ लेकर छुट्टी के दिन आइए।
सोचा- इसी बहाने वह उसकी पत्नी से उसकी शिकायत भी करेगी । रमाकांत जी दांत निपोरते हुए बोले- पत्नी यहां नहीं रहती, वह गांव में रहती है। आराधना ने गुस्से में, थोड़ा सख्त लहजे में बोला-ठीक है, तब आपको आने की जरूरत नहीं ?
रमाकांत जी अपनी दाल न गलते देख खिसिया गए, उन्होंने मन ही मन बदला लेने की ठानी। आराधना के ऑफिस जाने के बाद, वह आराधना के घर आ धमकते…उसके पति के साथ बैठकर बातें करते । तनिष्क को भी उनका आना अच्छा लगता था क्योंकि उन्हें भी बातचीत करने के लिए कम्पनी मिल जाती।
धीरे-धीरे उन्होंने तनिष्क को आराधना के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। तनिष्क उसके बहकावे में आ गए, नतीजा यह निकला कि आराधना जब भी ऑफिस से आती, घर में खूब लड़ाई- झगड़ा होता ।
आराधना यह समझ पाने में असमर्थ थी, कि ऐसा क्यों हो रहा है।उसके पति तो ऐसे नहीं थे … झगड़ा दिन पर दिन बढ़ता गया।हमेशा तू तू -मैं मैं से वह परेशान रहने लगी। उसका पति उसे खूब जली कटी सुनाता,और कभी-कभार हाथ उठाने मे भी पीछे नहीं हटता। । रोज-रोज के झगड़े से तंग आकर अब दोनों ही अलग होना चाहते थे।
एक दिन वह अपने ऑफिस मे गंभीर और उदास बैठी थी, तो उसकी सहकर्मी खुशबू पूछने लगी-कि क्या बात है…काफी दिनों से देख रही हूं,कि तुम कुछ परेशान सी रह रही हो।
तजुर्बे में उनसे खुशबू सीनियर थी ।वह कुछ नहीं बोल पाई और अपनापन पाकर उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। आराधना रूआसे मन से बोली – मैं क्या करूं? और अपना पूरा घटनाक्रम बताया। ऐसा ही रहा तो मैं उसको तलाक दे दूंगी।
खुशबू ने पूरी बात को ध्यान से सुना और बोला- देखो, अपने पति के पास बैठकर आराम से बात करो, नहीं तो कुछ दिन की छुट्टी लेकर कहीं बाहर जाओ । मैं एक बड़े होने के नाते एक सलाह देना चाहती हूं –
“अगर आपका बेटा खराब हो जाए,कुसंगत में पड़ जाए या कुछ गलत व्यवहार करने लगे, तो क्या तुम अपने बेटे को छोड़ दोगी,उसे सही राह पर लाने के लिए हर संभव कोशिश नहीं करोगी ?”
उसी प्रकार तुम्हारा पति भी भटक गया है। उसे समझने की कोशिश करो और यह गलतफहमी क्यों बढ़ रही इसकी जड़ तक जाने की कोशिश करो।
उसे विश्वास दिलाओ कि-पति,पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं । पति पत्नी के रिश्ते को निभाने के लिए कितना त्याग और बलिदान देना पड़ता है, तब जाकर कहीं सुखद छांव नसीब होती है।
आराधना कुछ दिन की छुट्टी लेकर, पास की किसी जगह में घूमने के लिए पति के साथ गई ।एक दिन निकल गया, तनिष्क ने कोई बात नहीं की…वह जब भी बात करने की कोशिश करती …तो पति दूसरी तरफ देखने लगता। ऐसे ही दो दिन निकल गए ।
एक दिन वह घूमने के लिए तैयार हुई, अपने कपड़ों से मैच करता हुआ शर्ट उसने तनिष्क के लिए निकाला। घूम कर आए,तो ठंडी लगने के कारण आराधना को बुखार हो गया। तनिष्क जा कर दवा ले आए और रात भर अपनी पत्नी की देखभाल करते रहे ।
सुबह तक बुखार कम हो गया।आराधना अपने पति के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोली -कि आप बहुत अच्छे इंसान है…फिर आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करने लगे । तनिष्क चुप रहा, बहुत पूछने के बाद… तनिष्क ने बताया -कि तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद अक्सर रमाकांत जी घर आ जाते थे और मुझे तुम्हारे खिलाफ हमेशा भड़काते रहते थे। शुरू-शुरू में मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे वह सब कुछ मेरे दिमाग में घर करते गया।
आराधना को अब समझ में आया …कि रमाकांत ने बदला लेने के लिए, उसके घर को तुड़वाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आराधना ने रमाकांत जी के बारे में सब कुछ बता दिया । तनिष्क ने बोला यह बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई ?
आराधना बोली- नहीं तनिष्क,पति-पत्नी की डोर एक विश्वास से बंधी होती है। जब विश्वास नहीं रहता तो उसे कोई भी व्यक्ति तोड़ने की कोशिश करेगा। यह समझदारी हम पति-पत्नी के बीच में होनी चाहिए।
जब किसी का परिवार सुख शांति पूर्वक रहते हुए उन्नति करता है तो जलने वालों की कमी नहीं होती। तनिष्क को यह बात समझ में आ गई कि- रमाकांत जी ने मेरे घर में आग लगाने की भरपूर कोशिश की, और मैं भी….कैसा नासमझ,जो अपने ही घर को जलाने चला था..!
तनिष्क आराधना के गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगा… और कहने लगा -मुझे माफ कर दो आराधना । अब चाहे कुछ भी हो जाए,हम पति-पत्नी के बीच कोई भी दरार नहीं डलवा सकता।
दोनों ने एक दूसरे से वादा लिया, कि – कभी भी,कोई बात आपस में नहीं छुपायेगे एवं कोई समस्या होगी तो मिलकर सुलझायेंगे । उस रात दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखते हुए बिता दी। सारे गिले शिकवे खत्म हो गये ।दोनों बहुत खुश थे।
छुट्टी खत्म होने के बाद दोनों खुशी-खुशी अपने घर वापस आये । आराधना ने ऑफिस जाकर खुशबू को धन्यवाद दिया, और कहा -तुम्हारी “सीख ” ही मेरे काम आई । तुमने मेरे उजड़ते हुए चमन को बचा लिया।
आराधना के ऑफिस जाते ही तुरंत रमाकांत उनके घर पहुंचा और खींसे निपोरते हुए बोला, भई बहुत दिन बाद…. दिखाई नहीं दिए… कहीं बाहर गए थे क्या..?
बोलते हुए बैठने लगे, तभी तनिष्क ने टोका। रमाकांत जी माफ करना …अभी मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ,अगले महीने मेरी परीक्षाएं हैं। रमाकांत जी ने देखा कि अब यहां ज्यादा देर खड़े रहना ठीक नहीं….और वापस दरवाजे की तरफ मुड़ गए।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति “
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल