शक और शिकायत – गीता वाधवानी   : Short Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : एक मध्यम आय वाला आदमी था। नाम था उसका रामलाल। वह किसी  ऑफिस में क्लर्क था। वह ईश्वर पर बहुत विश्वास रखता था लेकिन कभी-कभी मंदिर जाकर भगवान से बहुत शिकायतें करता था और उनके सामने ऐसी बातें करने लगता था कि ईश्वर भी सोच में पड़ जाते थे कि यह मुझ पर विश्वास रखता है यह मुझ पर शक करता है। 

एक दिन सुबह सुबह रामलाल मंदिर आया और बोला-“हे ईश्वर! आज ऑफिस में मीटिंग है। बस समय पर पहुंच जाऊं। संभाल लेना प्रभु।” 

उस दिन वह ऑफिस पहुंच ही नहीं पाया। बस वालों की हड़ताल थी और ऑटो वाले उस तरफ जाने को तैयार नहीं थे जिधर उसका ऑफिस था। बेचारा रामलाल थक हार कर, बॉस की डांट की कल्पना करते हुए घर लौट आया। घर आकर देखा तो हैरान रह गया कि घर का मेन गेट खुला हुआ है और उसकी पत्नी रसोई में बेहोश पड़ी है। गैस चूल्हा जल रहा था और उस पर रखी सब्जी जलकर राख हो चुकी है। उसने फटाफट गैस बंद की और पत्नी के चेहरे पर पानी के छींटे मारे। जब वह होश में आई तब उसे रिक्शा में बिठाकर डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर साहब ने बताया कि ब्लड प्रेशर बहुत लो हो जाने के कारण चक्कर आए हैं। गनीमत है की जान बच गई। आइंदा ध्यान रखना और दवाइयां समय पर लेती रहना।  

अगले दिन रामलाल मंदिर जाकर भगवान से बोला-“वाह भगवान जी वाह! मैंने कहा था कि ऑफिस समय पर पहुंच जाऊं आपने तो ऐसा चक्कर चलाया कि ऑफिस से छुट्टी ही करवा दी। आपको क्या पता ,आज मुझे बॉस से कितनी बातें सुननी पड़ेगी। मुझे तो लगता है आप मुझे जानबूझकर तंग करते हैं।” 

एक बार रविवार को रामलाल और उसकी पत्नी ने अपनी बेटी प्रिया सहित मेले में जाने का प्रोग्राम बनाया। उन्होंने सोचा दिन में थोड़ा आराम करके शाम को मेले में जाएंगे। जब वे लोग दोपहर का खाना खा कर आराम कर रहे थे तभी रामलाल का एक दोस्त परिवार सहित उनसे मिलने आ गया और रात में 10:00 बजे रात का खाना खाकर वापस गया। रामलाल को उससे मिलकर अच्छा तो लगा, और मेले में ना जा सकने के कारण उन सब का मूड खराब भी हो गया था। 

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अगले दिन रामलाल मंदिर जाकर भगवान से बोला-“हमारी तो छोटी सी भी इच्छा पूरी होने नहीं देते हो, पता नहीं क्या चाहते हो?”भगवान  रोज चुपचाप उसकी बातें सुनते रहते। 

अब 1 दिन उसके ऑफिस के कुछ लोग मिलकर बातें कर रहे थे। रामलाल ने कहा-“अरे यारों! हमें भी कुछ बताओ, कौन सी गुपचुप बातें चल रही है?” 

उन्होंने कहा-“भाई रामलाल, हम लोग सोच रहे हैं कि सारा खर्चा शेयर करके, कैब से कहीं आसपास घूम आएं, थोड़ा मूड फ्रेश हो जाएगा।” 

रामलाल-“हां सही कह रहे हो इसमें तो ज्यादा खर्चा भी नहीं आएगा। मैं भी चलता हूं।” 

दोस्त-“सॉरी यार, तो अगली बार चलना इस बार तो 4 लोग पूरे हैं, और एक ड्राइवर, टोटल पांच।” 

रामलाल-“अच्छा ठीक है।” 

3 दिन बाद रामलाल मंदिर में-“मेरी तो कोई खुशी आपसे बर्दाश्त नहीं होती, कितना मन था मेरा घूमने का दोस्तों के साथ, मुझे तो पूरा शक है कि आप ही अड़ंगा लगाते हो मेरे काम में।” 

अब तो भगवान से उसके ताने और शक बर्दाश्त नहीं हुए और वह उसके सामने प्रकट हो गए। रामलाल उन्हें देखकर आश्चर्यचकित रह गया और बोला-“हे ईश्वर! आप मेरे सामने?” 

ईश्वर हंसते हुए बोले-“हर बात में तुम मुझ पर शक करते हो, अब मेरे प्रकट होने पर भी तुम्हें शक है?” 

रामलाल-“तौबा -तौबा, नहीं भगवान जी नहीं।” 

भगवान जी-“तुम हमेशा मुझसे नाराज रहते हो, शिकायतें करते हो। चलो आज मैं तुम्हारा शक और शिकायत दूर कर देता हूं। इस महीने की तुम्हारी पहली शिकायत कि तुम ऑफिस टाइम पर नहीं पहुंच पाए। याद है तुम्हें, जब तुम घर वापस आए थे तो क्या हुआ था?” 

रामलाल-“जी, मेरी पत्नी बेहोश थी।” 

ईश्वर-“तुम ऑफिस ना जाकर, समय पर घर वापस आ गए और उसे डॉक्टर के पास ले गए और उसकी जान बच गई। अगर तुम उस दिन ऑफिस जाते तो शाम को ही वापस लौटते, तब तुम्हारी पत्नी का क्या होता, उसे कौन देखता?” 

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    रामलाल-“यह तो मैंने सोचा ही नहीं था, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रभु। लेकिन और भी बहुत सी बातें हैं।” 

ईश्वर मुस्कुराते हुए बोले-“हां, मेले में जाना चाहते थे पर जा नहीं पाए। अगले दिन समाचार सुना था की मेले में एक टेंट में आग लग जाने के कारण अफरा-तफरी मच गई थी और बहुत से लोगों को गंभीर चोटे आई।” 

रामलाल-“हां मैंने सुना था, प्रभु आपने तो मेरे परिवार को बचा लिया।” 

ईश्वर-“दोस्तों के साथ घूमने जाना था पर जा नहीं पाए, जानते हो आगे क्या हुआ?” 

रामलाल-“जी, उनके थोड़ी दूर जाने पर ही उनकी गाड़ी एक पेड़ से टकरा गई और उनको काफी चोटें आई। कहा जा रहा है कि शायद ड्राइवर नशे में था।”फिर रामलाल गौर करता हुआ बोला-“मैं जाता तो मुझे भी चोट लग जाती, आपने तो मुझे बचा लिया भगवान जी। तभी तो सब लोग कहते हैं कि भगवान पर भरोसा रखो। भगवान जो करता है अच्छा करता है। उसमें हमारी भलाई छिपी होती है जो हमें उस समय समझ ना आ कर ,बाद में समझ आती है।” 

अब भगवान अंतर्ध्यान हो गए और रामलाल ने आंखें खोली तो खुद को भगवान की मूर्ति के सामने बैठा हुआ पाया। वह उठा भगवान के चरण स्पर्श किए और घर चला गया फिर उसने कभी भगवान की लीला पर शक नहीं किया और ना ही कभी शिकायत की। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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