सही फैसला – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सीता और गीता दो सगी बहनें थीं। उनके कोई भाई नहीं था, लेकिन बहनों में ऐसा प्रेम था कि पूरा मोहल्ला उनकी मिसाल देता था। तीन साल का अंतर था उम्र में, पर मन से दोनों एक-दूसरे की परछाई थीं। बचपन से लेकर बड़ी होने तक कभी झगड़ा नहीं हुआ।

जब गीता की शादी हुई, सीता अंदर से टूट-सी गई। गीता भी सीता को बहुत याद करती थी, लेकिन ससुराल की जिम्मेदारियों में धीरे-धीरे रम गई। सीता अकेलापन महसूस करने लगी, उसका मन बुझ-सा गया। यह देखकर गीता के पति अमन ने सीता को कुछ दिन के लिए अपने घर बुला लिया ताकि वह खुश हो सके।

अमन बातों-बातों में सीता से मजाक करता, हँसी-ठिठोली करता जिसे सीता ने साली-जीजा के रिश्ते का सामान्य रूप मानकर नज़रअंदाज़ किया। मगर धीरे-धीरे वह मज़ाक मर्यादा लाँघने लगा। अमन कभी-कभी छूने की कोशिश करता, और सीता असहज महसूस करती, पर दीदी का घर टूटने के डर से वह चुप रही।

एक दिन जब गीता बीमार थी और सो रही थी, अमन ने मौका देखकर अपनी हद पार करने की कोशिश की। सीता के लिए अब सहना नामुमकिन हो गया। उसने अमन को सख्ती से डांटा और चेतावनी दी कि अगर उसने फिर ऐसा किया तो वह सब कुछ गीता को बता देगी।

जब अमन नहीं सुधरा, तो सीता ने ठोस कदम उठाया। उसने गीता को सारी सच्चाई बताई और उसे साथ लेकर मायके चली गई। दोनों बहनों ने मिलकर अमन के सामने साफ-साफ कह दिया — “या तो सुधर जाओ, वरना तलाक के लिए तैयार रहो।”

अमन ने सोचा कुछ दिनों में सब सामान्य हो जाएगा, लेकिन गीता और सीता अपने निर्णय पर अडिग रहीं। उन्होंने अमन को अकेला छोड़ दीया। गीता अपने साथ अपने छोटे से बेटे को भी लेकर आ गई थी।. 6 महीने बीत गए थे लेकिन गीता और सीता ने अमन से कोई कांटेक्ट नहीं किया। अमन फोन करता था तो भी नहीं उठाती थी, अब अमन को समझ में आने लगा था कि उसे सुधरना जरूरी है वह अपने बेटे से और गीता से मिलने ससुराल गया और चिकनी चुपड़ी बातें करके गीता को बरगलाने की कोशिश करने लगा ।लेकिन गीता समझ गई वह सिर्फ बाहरी दिखावा कर रहा है वह अभी सुधरा नहीं है।और उसे वापस कर दिया और बोली पहले सुधरो तब आना। अमन को यह चोट गहरी लगी कुछ महीने और बीत गए तब अमन ने अपने आप को बदलने का संकल्प लिया।

एक साल के बाद, जब गीता को यकीन हो गया कि अमन सच में बदल चुका है, तब उसने अपने परिवार को फिर से जोड़ने का निर्णय लिया।

इस तरह सीता की हिम्मत और गीता की सूझबूझ ने न केवल एक बहन की इज़्ज़त बचाई, बल्कि एक पूरे परिवार को टूटने से भी बचा लीया। कभी-कभी जिंदगी में ठोस कbदम उठाना बहुत जरूरी हो जाता है।

कठोर कदम

रेनू अग्रवाल

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