शह और मात – कीर्ति रश्मि

  हमेशा की तरह आज भी छोटी बहू आभा की साड़ी का सेट ब्लाऊज़ गायब था। उसे कल सुबह तड़के ही घर से अपने गंतव्य की ओर निकल जाना था । वह डिनर के बाद पैकिंग में जुट गई… पर ये क्या उसकी सबसे कीमती साड़ी का ब्लाऊज़ ही नहीं मिल रहा था ।

    ये तो अब आम बात हो गई थी वह जब भी शहर से गांव अपने ससुराल आती उसका कुछ न कुछ नुकसान जरूर होता था … कभी ब्लाऊज़ गायब कभी मंगल सूत्र या जेवर तो कभी कभी उसकी पसंदीदा साड़ी फटी मिलती थी।

     वह जानती थी ये सब कौन करता है… उसके साथ साथ बड़ी बहू किरण को भी पता था कि छोटी को परेशान कौन कर रहा है। किरण को आभा से सहानुभूति थी… एक वक्त था जब आभा इस घर में नहीं आई थी तो ये सब वो ही झेलती थी… और अब छोटी…।

    उनकी सास सरस्वती देवी जब भी बहुएं घर आती वे इसी तरह परेशान करती थीं ।कहने को तो उनके तीन बेटे, तीन बेटी दामाद और दो बहुएं हैं , एक तरह से भरे पूरे घर की महिला हैं वो , फिर भी उन्हे संतुष्टि नहीं होती थी। अक्सर बहुओं का पहनना ओढ़ना उन्हे नागवार गुजरता था।

उन्हे लगता था कि मेरे बेटे की सब कमाई ये लोग उड़ा रही है और उन्हे कुछ नहीं मिल रहा है। जबकि ऐसा कुछ न था… उनके बेटे संस्कारी और समझदार थे।

     सरस्वती देवी ऐसा इसलिए भी करती थीं, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि बेटे और बहुएं एकजुट होकर रहें …उनको डर था कि ये दोनों एक हो जाएंगी तो उन्हे मान सम्मान नहीं मिलेगा… पता नहीं बुढ़ापे में लोगों की सोच ऐसी क्यों हो जाती है।

सरस्वती देवी भी त्रिया चरित्र स्वभाव दिखला रही थीं …पहले किरण के सामानों को नुकसान पहुंचा कर उसकी लापरवाही की करतूत बताती थी तो अब आभा का सामान का नुकसान कर अपने अहम् की तुष्टि कर रही  थी और किरण पर सारा इल्जाम लगा कर उनमें झगड़ा भी लगाने का प्रयास करती थी।



     घर में इन छोटी छोटी बातों के लिए कलह हो ये वो दोनों बहुएं नहीं चाहती थी। कुछ न बोलने का नतीजा था कि गुनहगार सरस्वती देवी खुद को शतरंज का माहिर खिलाड़ी समझ रही थी और इस किस्म का तुच्छ हरकत करके उन्हे नुकसान पहुंचा रही थी।

उन्हे लग रहा था वो बहुत होशियारी से काम कर रहीं है हालांकि ये बात कुछ सत्य भी थी क्यूंकि घर के पुरुषों को इस बारे में कुछ पता नहीं था। पर बहुओं के लिए पानी अब सर के उपर जा रहा था।

     आज किरण ने आभा को अपना ब्लाउज हर जगह खोजने और सास से भी पूछने को कहा।आभा को हिम्मत नहीं हो रही थी परन्तु किरण के सांत्वना देने पर वह तैयार हो गई… और जैसे ही आभा ने डरते डरते बस पूछा भर कि सरस्वती देवी ने सारा घर सर पर उठा लिया कि आभा उस पर चोरी का इल्जाम लगा रही है …

ससुर रामपाल जी और दोनों बेटे भी सरस्वती देवी के पक्ष से नाराज़ हो गए बहुओं पर …और जिसका डर था… घर में कलह का माहौल शुरू हो गया।

सब एक तरफ और दोनों देवरानी जेठानी एक तरफ।

   किरण ने अब एक चाल चली। सास ससुर का पक्ष लेते हुए सबके साथ साथ उसने भी आभा को कोसना शुरू किया और अपने ससुर जी से कहा मां ऐसा काम कर ही नहीं सकती है परन्तु ये आभा को संतुष्टि कहां… वो तो इल्जाम लगाएगी ही…

ऐसा करिए पापा आप मां की संदूक ही खोल कर दिखला दीजिए तभी आभा को चैन पड़ेगा

     रामपाल जी को किरण की बात ठीक लगी…किरण का निशाना ठीक लगा… उन्होंने सरस्वती देवी से चाभी मांगी जो उसने गले में पहनी थी… अब सरस्वती को काटो तो खून नहीं उसने चाभी देने से इनकार कर दिया। तब रामपाल ने उसे धक्का देकर जबरदस्ती चाभी गले से खींच ली और गुस्से में संदूक खोल कर आंगन में उलेट दिया…

    जैसे ही संदूक खुला आभा के और इक्का-दुक्का किरण के भी… कपड़े गहने जमीन पर चारों ओर छितरा गए… रामपाल और दोनों बेटों की बोलती एकाएक बंद हो गई… बहुओं के आगे बेइज्जत होकर अपना सा मुंह लेकर बाहर निकल गए क्यूंकि बेटे मां को कुछ बोलते नहीं और रामपाल का गला रूंध गया । इस तरह की घटना से तिलमिलाई सरस्वती देवी सभी को कोसने लगी।

   आज किरण की चालाकी ने उसे शह दिला दिया और सरस्वती देवी को मात ।

            —– समाप्त —–

मौलिक व स्वरचित~ कीर्ति रश्मि             ( वाराणसी)

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