राधिका संयुक्त परिवार में पली बढ़ी।उसके परिवार में दादा-दादी,ताऊ-ताई ,उनके तीन बेटे ,राधिका के माता-पिता ,राधिका और उसका भाई सब मिल-जुलकर रहते थे।
राधिका घर में सबसे छोटी थी और सबकी लाड़ली।
उसके दादा -दादी की तो उसमें जान बसती थी।
जहाँ चार बर्तन हों वे बजते ही हैं।छोटी-छोटी तकरार तो कहाँ नहीं होती लेकिन आपसी प्यार,समझदारी और अनुशासन परिवार को हमेंशा जोड़े रखता है ।
यदि परिवार का मुखिया धैर्य-त्याग-समर्पण जानता हो तो परिवार एक सूत्र में बंधा रहता है।
घर की स्त्रियों का परिवार की एकता बनाये रखने में बहुत योगदान होता है क्यों कि वे अलग-अलग पारिवारिक माहौल से आती हैं तो उनकी सोच और संस्कारों पर अधिकतर निर्भर करती है, परिवार की दिशा और दशा।
राधिका की ताई माँ और माँ दोनों ही बहुत समझदार थी।
तो परिवार का माहौल हमेंशा सौहार्द पूर्ण रहा।
राधिका ने नेट परीक्षा उत्तीर्ण की और कालेज में पढ़ाने लगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बहुत से भी बहुत मीठी चाय – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi
इसी बीच राधिका की शादी उसके कालेज में ही पढ़ाने वाले उसके दोस्त संस्कार से हो गई । वह कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर था।
जब राधिका ससुराल पहुँची तो ससुराल का माहौल उसके घर के एकदम विपरीत था। उसके ससुर तो कुछ बोलते न थे या यूँ कहिए कि उनकी घर में चलती न थी।
पूरे घर पर राधिका की सासू माँ का एकछत्र राज था।
संस्कार और उसके पिता माँ से बहुत ड़रते थे।माँ के आगे वे चूँ भी न करते। कारण था संस्कार के पिता नौकरी नहीं करते थे और माँ सरकारी नौकरी में थी तो वही घर चलाती थी।सब अपनी जरूरतों के लिए उन पर ही निर्भर थे।
हाँ ननद सुनिधि बिल्कुल अपनी माँ की तरह बिल्कुल दबंग और चापलूस थी। वह न तो पढ़ाई में तेज थी नाहीं कुछ घर का काम करती।
राधिका से भी माँ-बेटी ऐसे बात करती मानों वह उनकी नौकरानी हो। राधिका को उनकी बातें बहुत बुरी लगती लेकिन उससे भी बुरा उसे ये लगता कि संस्कार भी माँ के सामने कुछ नहीं बोल पाता।
राधिका सोचती कि वह सास और ननद को अपनी अच्छाइयों से बदल देगी लेकिन उसे जल्दी ही पता चल गया कि उन दोनों के लिए अच्छाई का मतलब है दब्बूपन।
राधिका के हर कार्य में मीन-मेख निकालना उसकी सास की आदत बन गई थी।पहले तो राधिका ने सोचा कि वह अपनी अच्छाई से धीरे-धीरे उनका मन जीत लेगी लेकिन कुछ समय बाद उसको अहसास हो गया कि सास का मन जीतना उसके बस की बात नहीं।क्योंकि वह तो जानबूझकर ही उससे बुरा व्यवहार करतीं हैं।
राधिका बहुत कोशिश करती कि उनकी बात को इग्नोर करे लेकिन अति तो उस दिन हुई जब राधिका दूध चूल्हे पर रखकर भूल गई और दूध उफनकर जल गया तो उसकी सास ने गुस्से में राधिका पर हाथ ही उठा दिया।
उस दिन संस्कार ने पहली बार गुस्से में माँ का हाथ रोकते हुए कहा “माँ आपने राधिका पर हाथ उठाया तो मुझसे बुरा कोई न होगा।”
यह सुनते ही उसकी सास ने संस्कार को ऐसे देखा मानो वह कोई अजनबी हो।उनको यकीन ही नहीं हुआ कि उसका बेटा उनको जवाब दे रहा है।उसके ससुर ने भी पत्नी का विरोध करते हुए राधिका का पक्ष लिया।
इस कहानी को भी पढ़ें:
राधिका से माफी मांगते हुए संस्कार बोला कि “मुझे माफ कर दो राधिका मैं अपनी माँ के सम्मान में या ड़र से आज तक तुमको अपमानित होते देखकर भी चुप रहा लेकिन अब नहीं।”
राधिका की सास के तो पैरों तले से जमीन खिसक गई जब बाप -बेटे दोनों बहू के साथ खड़े हो गए।
उसे राधिका पर बहुत गुस्सा आ रहा था।वह गुस्से में बोली “कल की आई लड़की के लिए तुम दोनों मुझे आँखें दिखा रहे हो?”
संस्कार ने माँ से कहा “माँ आपका अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं लेकिन अपनी पत्नी के मान-सम्मान की रक्षा करना भी मेरा कर्तव्य है।अगर राधिका की जगह आपकी बेटी होती तो उसके साथ भी आप ऐसा ही व्यवहार करती?”
उसके ससुर बोले “तुमने तो न जाने कितनी बार ऐसी गलती की है लेकिन मेरी माँ ने तो तुम पर कभी भी हाथ नहीं उठाया।”
बहू के सामने अपनी पोल खुलते देख राधिका की सास अपने कमरे में चली गई। लेकिन मन-ही-मन उसको अपनी गलती का अहसास हो चुका था। हां स्वीकारने में समय लगनेवाले था।
मीरा सजवान ‘मानवी’
स्वरचित मौलिक