Moral stories in hindi: समर्पण, यहीं तो किया है मैंने अपनी जिंदगी में!
मैं श्रुति, आज भी वो दिन नहीं भूलती जब दीदी की आकस्मिक मौत ने हम सबको जीते जी मार दिया था। दीदी तो चली गई पर पीछे छोड़ गई नन्हीं से परछाई। लाड़ली परी तो हमेशा से ही मेरी जान थी, और अब दीदी के जाने के बाद वो मासूम, मुझे अपनी मां समझने लगी थी। मैने भी मौसी होने का फ़र्ज़ दिल से निभाया। हम लोग धीरे–धीरे अपनी जिंदगी में वापस लौट रहे थे, तभी एक दिन मैंने मां–पापा की जो बातें सुनी, वो किसी भी विस्फोट से कम नहीं थी। मेरे और जीजा जी की शादी? परी की माँ तो बन गई पर जीजा जी की पत्नी नहीं बन पाऊँगी। मैंने कितना भी समझाया पर, किसी ने भी मेरी बात नहीं मानी। सब मुझे ही समझने लगे,
क्या तुम अपनी बहन के लिए इतनी भी नहीं कर सकती, सोच- सौतेली माँ परी का क्या हाल करेगी? अगर वो परी की देखभाल ठीक से नहीं करेगी तो क्या तुम कभी अपने आप को माफ़ करोगी?
और वही हुआ, जो सब चाहते थे.परी के मौसी से मैं, परी की माँ बन गई। ये था मेरा पहला समर्पण….
मैं दीदी की ससुराल आ गई (हां वो अभी भी मुझे दीदी की ही ससुराल लगी)। मैं वो दुल्हन थी जिसने बच्चे को गोद में लेकर अपने ससुराल में पहला कदम रखा, और फिर वो घड़ी आई, जिसके लिए एक लड़की ना जाने कितने सपने देखती है, मेरी सुहागरात.
मैं दीदी के कमरे में उसके बिस्तर पर दुल्हन बनी थी, और मेरे सामने खड़े थे, मेरे पति, मेरे जीजा जी। दिल बहुत तेजी से धड़क
रहा था, तभी आवाज आई, “ये शादी मैंने सिर्फ और सिर्फ परी के लिए की है“। तुम परी की माँ हो, पर मेरी पत्नी नहीं। तुम्हें यहां सभी सुख सुविधाएं मिलेंगी, दुनिया के सामने हम दोनों पति पत्नी होंगे, लेकिन मैं तुम्हें अपनी जिंदगी में पत्नी का स्थान नहीं दे पाऊंगा।
आँसू उनके आँखों में थे, और मेरी आँखो में भी। ना जाने किसका दर्द ज्यादा था? हम अपने–अपने दर्द के साथ रात भर जागते रहे, कब नींद आयी और कब सुबह हुए, पता नहीं चला। ये था मेरा एक और समर्पण….
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सुबह बाहर से आती आवाज़ों ने मुझे जगा दिया। मैं तैयार हो कर बाहर आई, घर में सत्यनारायण भगवान की पूजा थी, और इस तरह मेरा गृहस्थ जीवन प्रारम्भ हुआ। धीरे धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। देवर कब , देवर से छोटा भाई, और ननद मेरी प्यारी सहेली बन गई, पता ही नहीं चला।
सास–ससुर वी मुझे बहुत प्यार करते हैं। जब भी सास–ससुर मुझे अपने, परिचित और रिश्तेदारों से ये कह कर मिलवाते “मिलो हमारे घk4र की रौनक, हमारी बहू से” तो मन ख़ुशी से झूम उठता। मेरे देवर ननद, जब भी मुझसे अपना राज साझा करते और कहते, प्लीज भाभी, मां–पापा से नहीं कहना, तो मुझे लगता, मैंने इस घर में अपनी जगह बना ली, पर कुछ था जो बिल्कुल नहीं बदला, वो था– पति पत्नी का रिश्ता. हमारी शादी को लगभग 7 महीने हो गए थे और कुछ ही दिनों में मेरी प्यारी परी का जन्मदिन आने वाला था।
मैं अपनी परी का जन्मदिन बहुत धूम–धाम से मनाना चाहती थी। बहुत इच्छा हुआ, अपने दिल की बात अपने पति को बताऊ, पर बोल ना सकी। किस अधिकार से कहते ? उन्होने तो देंने से पहले ही, सारे अधिकार छीन लिए थे। मैंने अपनी मां को फोन लगाया और अपनी इच्छा बताई। मां ने पापा को भेज कर मुझे और परी को कुछ दिन पहले ही बुला लिया। आज परी का जन्मदिन है, सुबह से शाम हो गई, इनका एक फोन नहीं आया।
मुझे पत्नी नहीं मानते, पर परी तो इनकी बेटी है, क्या उनको परी का जन्मदिन याद नहीं?
फ़ोन तो मैं कर सकती थी, पर मन ही नहीं किया। शाम होते ही हम लोग होटल चले गए। पूरा हॉल मेहमानों से भरा था, पर मेरी आंखे उनको ढूंढ रही थी, जिसका यहां होना असंभव था। तभी माइक पर एक आवाज गुंजी
“दोस्तों आज हमारी बच्ची का पहला जन्मदिन है” अरे, और मैं तुरंत पल्टी, ये तो ……
उनका बोलना जारी था. हमारी बच्ची परी के जन्मदिन के साथ ही, आज हमारे रिश्ते का भी नया जन्म हुआ।
श्रुति, मैंने तुमसे समर्पण मांगा, पर अधिकार नहीं दिया, तुम हर रिश्ते के प्रति समर्पित रही, पर हमारा रिश्ता…, वो तो मैंने बनने ही नहीं दिया। तुम माँ–पापा की लाडली बहू, मेरे भाई बहन की प्यारी भाभी और मेरी परी की माँ तो कब से हो, और आज मैं सबके सामने सच्चे दिल से कहता हूँ, तुम मेरी पत्नी हो, सिर्फ और सिर्फ तुम… मैं अपने आप को तन–मन–धन से तुम्हें समर्पित करता हूं।
हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा। आज हमारे आंखों में आंसू थे, पर ये आंसू खुशी के थे, एक दूसरे के प्रति समर्पण के थे……
Arpana Kumari
Bokaro Steel City, Jharkhand.
#समर्पण
Very nice, heart touching story..