समयचक्र – हिमांशु जैन : Moral stories in hindi

अरे सीमा, ये क्या कर रही हो? आज ऑफिस नहीं जाना है क्या? सासू मां ने सीमा को देर तक लेटे हुए देखा तो पूछने लगीं।

जी मां.. आज तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी तो सोचा घर पर ही थोड़ा आराम करती हूं।

अच्छा, ठीक है। तुम कुछ देर सो लो, तब तक मैं कमली से काम करवा लेती हूं।

कहकर राधा जी बाहर आ गईं और सीमा सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी…

अकेलापन उसे मन ही मन खाए जा रहा था…

न जाने कब मैं अपने बेटे बहू से मिल पाऊंगी…

मन में रह रह कर वही ख्याल उमड़ घुमड़ रहे थे।

अभी कल ही की तो बात है जब वो इस घर में अमर की दुल्हन बनकर आई थी….

इकलौता लड़का और अच्छी नौकरी देखकर पिता ने अपने से कुछ कम दौलतमंद घर में उसे ब्याह दिया था।

अच्छे रहन सहन की तो खैर कोई कमी नहीं थी लेकिन 

फिर भी मध्यमवर्गीय परिवार में कुछ न कुछ कमी बनी रहती थी।

यूं तो सीमा भी नौकरी करती थी और सासू मां घर की देखभाल में उसका साथ भी देती थीं लेकिन पुराने दिनों को सीमा भुला नहीं पा रही थी जब उसे पैसे खर्च करने के लिए सोचना नहीं पड़ता था….

बेटे के होने के बाद सीमा अब अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गई और देखते देखते बेटा बड़ा होकर पढाई के लिए बाहर चला गया….

वक्त पंख लगा कर उड़ता हुआ प्रतीत हो रहा था…

लेकिन नए बदलावों की लहर का असर सीमा पर भी दिखने लगा था अब उसे अपनी सास बोझ सी लगने लगी थी…. और फिर वही हुआ जो आजकल समाज के बड़े हिस्से में देखा जा रहा है…

बुजुर्गों को वृद्धाश्रम की राह दिखलाना…

यही सीमा के घर में भी हुआ…

अब सीमा ने उन्हें वृद्धाश्रम भिजवा दिया….

अपनी नौकरी के बाद जब सीमा घर में अकेली होती तो अपने बेटे की शादी के सपने देखती…

बहू बेटे के साथ एक खुशहाल परिवार का सपना देखती उसकी आंखों में अद्भुत सी चमक आ जाती…

लेकिन वक्त की यह एक बहुत बड़ी विशेषता होती है कि समय-चक्र स्वयं को दोहराता है…

पढ़ाई लिखाई के लिए बाहर गए बेटे की बहुत ही बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई और जब बेटा  मनपसंद नौकरी और अपनी पसंद की दुल्हन लेकर आया तो सीमा के पैरों तले की ज़मीन दरक गई…

अपने सपनों का महल उसे ढहता हुआ नज़र आया…

यह क्या…?

आज उसकी बहु को भी अपना सुसराल मायके से कुछ कमतर लग रहा था….

बड़े घर में बहुत ही लाड़ प्यार से पली बढ़ी बहू के अपने घर में नौकर चाकर की कोई कमी नहीं थी…

शायद ही कभी कोई काम उसने अपने हाथों से किया हो..

लेकिन यहां तो नजारा ही अलग है…

यहां तो बर्तन वाली महरी के अलावा कोई नौकर था ही नहीं…

कुछ ही दिनों में उसने अलग रहने की जिद पकड़ ली और बेटा बहू अलग हो गए..

सीमा ने उन दोनों को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन बहु ने उसे अपनी करनी का आईना दिखा कर उसकी कोशिशों को नाकाम कर दिया…

उसे भी अपनी सास और ससुर के साथ रहना नहीं भाया…..

कुछ ही दिनों में वह अपने पति के साथ उच्च स्तरीय कॉलोनी में जाकर बस गई… जहां सभी लोग उसे अपने बराबर के महसूस होते थे…

आज सीमा को अपनी सास के दर्द का अहसास हो रहा था। ऐसे में पति ने भी मौन धारण कर लिया…

सीमा पछतावे की आग में जलने लगी …

सीमा को वक्त ने आईना दिखाया और आज उसे अपनी करनी का अहसास हुआ…

सीमा ने सोचा अब भी देर नहीं हुई है….

वक्त रहते उसे अपनी गलती का अहसास हो गया…

जल्द ही उसने अपनी भूल सुधार करने का निर्णय लिया और अपनी सासू मां को फिर से घर वापिस ले आई।

सीमा… ओ सीमा …सो गईं क्या…?

बहुत देर हो गई तुमने कुछ नहीं खाया..अब आकर नाश्ता कर लो ताकि दवाई भी ले सको…

सासू मां ने दरवाज़े पर दस्तक देते हुए कहा तो सीमा विचारों के झंझावात से बाहर आ गई….

आती हूं मां… कहते हुए उसने प्रभु से मन ही मन अपने    बेटे बहू के लौट आने की प्रार्थना की।

और कमरे के बाहर चल पड़ी…

हिमांशु जैन मीत

इंदौर

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