समय की मार- डाॅ उर्मिला सिन्हा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

तेल की धार और समय की मार दोनों में एक समानता है… तेल नीचे की ओर बहता है और समय की मार जब पडती है तो अच्छों अच्छों की बुद्धि कुंद हो जाती है। 

   हरिबाबू और उनकी पत्नी रमादेवी एक-दूसरे को देखते और आहें भरते। 

 रमा जो अपने पति की ऊंची हैसियत ऊंचे पद और बेशुमार येन-केन-प्रकारेन काली कमाई के दम पर दौलत की ढेर पर बैठी थी आज दोनों पति-पत्नी जेल के सींखचों के पीछे है। 

 हरिबाबू भी कानून के शिकंजे में छटपटा रहे हैं… हताश निराश, “हमारा कोई जमानत क्यों नहीं कराता “आहें भरते। 

   इधर रमादेवी भी अपनी किटीपार्टी की सहेलियों उनके पैसों  पर ऐश करने वाली सहेलियों का रास्ता देखती “शायद कोई  मदद के लिये आ जाये। “

    लेकिन कहा जाता है कि  “सुख के सब साथी दुःख के न कोई। “

सो चाटुकार मतलबी यार दोस्त ऐसे गायब हुए जैसे रौशनी पाकर कालिमा। 

  जब पास में पैसे थे तब दोनों रसूखदार पति-पत्नी ने अपने परिवार को निकट फटकने नहीं दिया। भूलकर भी कभी किसी की एक पैसे से भी मदद नहीं की। सभी से जलनभाव रखते थे। कोई हमसे आगे न निकल जाये। 

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   हवेली सारी संपत्ति जब्त हो गई थी।लोग बातें बनाने से कब चुकते। 

  “बेटा, बेटा”रमादेवी  उन्मादिनी  सी चीख उठती। 

 “तुम्हारा बेटा नशे का सौदागर भी तुम्हारी तरह जेल में है। “

“और बिटिया। “

“वह अपने अवारा निकम्मे प्रेमी संग भाग गई।”

  कहने को इतना बड़ा परिवार है लेकिन उनके लिये कोई नहीं। 

इसके जिम्मेदार भी हरिबाबू और उनकी पत्नी रमादेवी ही है। अपनी ऊंची हैसियत और ओछी सोच के कारण उन्होंने किसी को कुछ समझा ही नहीं। जबतक माता-पिता जीवित थे समझाने का प्रयास करते, “तुम घर के बड़े हो… अच्छी तनख्वाह है… सबको साथ लेकर चलो। “

 “बहू तीजत्यौहारों में घर पर आया करो या हमें बुलाया करो।”

लेकिन कैसा रंगत तेरा। 

   समय पंख लगाकर उड़ता गया। माता-पिता रहे नहीं… छोटे भाई ने जैसे तैसे संभाला। दोनों बहने भी अपनी साधारण घर-गृहस्थी में रम गई। 

   हरिबाबू अपनी पत्नी बेटे बेटी के साथ शहर में बस गये। उन दोनों पति-पत्नी  का खराब स्वभाव  सभी को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति  …अच्छे लोग दूर ही भागते थे बस चाटुकार लोभ में आगे-पीछे करते थे। 

     नेता, व्यापारी, उच्च अधिकारियों के साथ उठना -बैठना था। सभी को खिला-पिला गलत सही तरीके से अकूत संपत्ति जमा कर ली। अपने खून के रिश्ते को नकार दिया। हां… रमादेवी अपने शोहदों निकम्मे भाइयों को यदा-कदा मोटी रकम दे अपना तुष्टिकरण करती। 

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 पहला झटका उस दिन लगा जब अकूत संपत्ति वैभव पाकर बेटा कुसंगति में पड़ नशा करने लगा फिर नशे के सौदागिरी में शामिल हो जेल पहुंच गया। 

 “अब हम क्या करें “पति-पत्नी सिर पीटने लगे। 

  उधर फैशन की पुतली बदमिजाज़ बेटी को उसका छंटा हुआ बदमाश प्रेमी ले उडा़।

अब दोनों की आंखें खुली। यहाँ वहां… कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा। बदनामी अलग से… दोनों सिर पकड़कर बैठ गये। आज तक बिटिया का कोई सुराग नहीं मिला… वह जिंदा है  या मर गई। 

    फिर विजिलेंस का छापा… ताश के पत्ते की तरह उनका साम्राज्य ढह गया। 

   इर्दगिर्द चमचागिरी करने वालों हुजूम दारों की भीड़ पल भर में गायब। 

“कौन इस झंझट में पड़े। “

दोनों पति-पत्नी  अपनी ही बुरी नीयत क्रूर स्वभाव इर्ष्या द्वेष…दुसरों  सो जलन का दुष्परिणाम देख होश ठिकाने आ गया “हे भगवान हम क्या करें ,किसे कहें। “

न कोई पूछने वाला न पैरवीकार। 

 अचानक वकील के साथ अपने छोटे भाई को देख हरिबाबू अचकचा गये, “छोटे तुम” आवाज रुंध गई, अश्रुधारा बह निकला। 

“माफ करें भैया, हमें टीवी, समाचार पत्र से जानकारी मिली… भागा-भागा आया हूँ। “

“ये वकील साहब आप दोनों की जमानत और सहायता के लिए आये हैं। “

“पर छोटे पैसे। “

“आप चिंता न करें सब इंतजाम हो जायेगा… बस आप और भाभी बाहर एकबार बाहर आ जाये। “

“मैं हूं न ” छोटे भाई का आश्वासन पा दोनों पति-पत्नी बिलख उठे। 

 मां-बाबूजी कहते थे, “तुम्हारा मानना है कि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे जैसा प्रतिभावान नहीं है… किंतु मैं कहता हूं, आखिर है तुम्हारा छोटा भाई ही न… तुम सामर्थ्यवान हो… इसका हाथ तंग रहता है.. .रुपये पैसे से कुछ मदद कर दिया करो। “

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सुनते ही पत्नी चिल्ला पड़ती थी, “जैसे यहाँ पैसों का पेड़ लगा हुआ है। “

 मैं भी अनसुना कर देता था। 

दुखी हृदय से मां कहती, “स्वार्थी हो गये हो तुमदोनो… याद रखो  …यह जलन का भाव  ठीक नहीं  है । “वह जोरू का गुलाम मां का भी कद्र नहीं किया ।

  सच में आज अपना सहोदर भाई ही दुत्कारे जाने पर भी इस घोर विपत्ति में मदद को आया… लगुआ-भगुआ मौज उडा़ये  …बुरे वक्त में मुंह फेर लिया। 

   दोनों पति-पत्नी बुदबुदा उठे, “ठीक कहती थी अम्मा… अपना  ही काम आया ,हमारे  इतने खराब व्यवहार के बाद भी । “

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा©®

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