समझदारी से रिश्ते बनते है – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” सुगंधा कल राखी है क्या कैसे करना ?” माधव ने अपनी पत्नी से पूछा।

” क्या करना है मतलब ? अरे जो अब तक होता था वही करना हैं!” सुगंधा बोली।

” पर अभी तक तो मां थी अब बहने आयेगी तुम्हे भी मायके जाना है अपने तो कैसे होगा सब … मैं नीला और नीलम ( माधव की बहने ) से बात कर लेता हूं और उनके घर चला जाता हूं तुम मायके चली जाना बच्चों को लेकर !” माधव ने कहा।

” अरे ऐसे कैसे मम्मीजी के जाने के बाद पहला त्योहार है और बेटियां अपने घर न आएं ऐसा कैसे हो सकता है भले मेरी शादी बाद में हुई पर हूं तो मैं बड़ी भाभी ही ना तो अपने फर्ज निभाऊंगी मैं!” सुगंधा मुस्कुरा कर बोली।

” फिर तुम अपने भाई के राखी कैसे बंधोगी ?” माधव हैरान हुआ जो सुगंधा सब कुछ छोड़ राखी पर सुबह से भाई के जाने को मचलती थी वो अचानक से इतनी समझदारी की बात कैसे करने लगी।

” आप मुझपर छोड़ दीजिए सब बस आप दुकान जाइए बाकी मुझपर छोड़ दीजिए सब !” सुगंधा बोली।

अगले दिन नीला और नीलम के आने से पहले ही सुगंधा ढेरों पकवान बनाने के लिए रसोई में जुट गई तभी बाहर से शोर की आवाज आई तो सुगंधा ने बाहर आकर देखा नीला नीलम दोनो अपने परिवार के साथ आ भी चुकी थी।

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” अरे दीदी आप दोनो इतनी जल्दी ?” नमस्ते करने के बाद सुगंधा ननदों से बोली।

” क्यों भाभी हम अपने मायके भी घड़ी देखकर आएं क्या ?” नीला बोली।

” नही नही मेरा वो मतलब नही था !” सुगंधा नीला के जवाब से थोड़ा खिन्न होते हुए बोली।

” अरे मेरी प्यारी भाभी हम जल्दी आ गए जिससे अपनी भाभी की खाने में मदद कर सकें ये नीला तो मजाक कर रही है आपसे !” नीलम उठकर सुगंधा को गले लगाती बोली।

” नही दीदी बस खाना तो बनने वाला है आप बैठो इतने मैं चाय नाश्ता लाती हूं !” सुगंधा ये बोल रसोई की तरफ बढ़ गई पीछे पीछे नीला और नीलम भी चल दी।

” लाओ भाभी मैं इतने चाय बनाती हूं आप नाश्ता लगाओ !” नीला बोली।

” और हां मैं इतने सब्जी छोंक देती हूं सब कुछ जल्दी से हो जाएगा फिर चाय पीते हुए गप्पे मारेंगे!” नीलम बोली और सब्जी छोंकने लगी।

” दीदी आप दोनो रहने दो मैं कर लूंगी आप त्योहार पर आई हो अपने भाई साथ समय बिताओ  !” सुगंधा बोली।

” भाई क्यों भाभी साथ भी तो समय बिताना है हमें अब ज्यादा बात नहीं पहले काम खत्म करते हैं इतने भैया अपने जीजाओं के साथ बात कर रहे हैं !” नीलम बोली और मटर पनीर की सब्जी छोंक दी साथ ही आटा भी लगा दिया छोले और खीर सुगंधा बना चुकी थी। फिर सबने साथ बैठ कर चाय नाश्ता किया और ढेरों बातें की । सुगंधा को भी अच्छा लग रहा था परिवार के साथ बैठकर वरना हर त्योहार वो अपने पीहर जाती थी और ननदें अपने पीहर आती थी। बच्चे भी साथ खेल कर खुश थे। नाश्ते के बाद बहनों ने भाइयों के राखी बांध दी।

” चलो भाभी रसोई में गप्पे मारते हुए खाना निपटा लेते है !” नीला उठते हुए बोली।

” अरे दीदी आप लोग बैठो बस पुड़िया ही तो तलनी है मैं तल दूंगी !” सुगंधा उठते हुए बोली।

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” भाभी क्यों पराया बना रही हो हमे जब हम एक परिवार है तो काम का बोझ आप पर अकेले कैसे डाल दें हम !” नीलम प्यार से बोली उसका प्यार देख सुगंधा की आंख नम हो गई।

रसोई में आकर चावल चढ़ा दिए गए सुगंधा इतने सलाद काट रही थी नीला ने फटाफट मेज पर सब्जियों के डोंगे लगा दिए और नीलम ने चाय नाश्ते के बर्तन धो दिए हालाकि सुगंधा ने बहुत मना किया फिर भी।

फिर सबने मिलकर बच्चों और सभी पुरुषों को खाना खिला दिया उसके बाद सुगंधा, नीला और नीलम ने साथ खाना खाया। फिर सब काम निपटा सब साथ में बैठ गए सुगंधा खुश थी कि उसने भाभी का फर्ज निभाया वरना वो मायके चली जाती तो इन अनमोल पलों को कैसे जीती।

” अच्छा भाई भाभी अब हम चलते है !” नीलम बोली।

” अरे नीला नीलम तुम लोग तो रात तक रुकते हो ना हर बार फिर इस बार इतनी क्या जल्दी है ?” माधव हैरानी से बोला।

” भाई भाभी को मायके ले जाइए अब आप उनको भी तो राखी बांधनी है अपने भाई को …उन्होंने यहां रुककर हमे मां की कमी महसूस नहीं होने दी तो हमारा भी तो फर्ज है अपनी भाभी की सहूलियत का ख्याल रखें।” नीलम बोली।

” नही दीदी आप लोग आराम से रात में चले जाना मैने भाई को बोल दिया था वो थोड़ी देर को यहां आ जायेगा राखी बंधवाने !” सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली।

” भाभी आप भी तो हमारे लिए रुकी हैं ना जिससे हम अपने मायके आ सकें। हमारा इतनी जल्दी आने का मकसद ही यही था कि जैसे हम अपना त्योहार मना रहे वैसे आप भी मना सको। रही रुकने की बात हम फिर कभी आ जायेंगे और आपको खूब परेशान करेंगे अभी आप तैयारी कीजिए निकलने की हम लोग चलते हैं।” नीला प्यार से बोली।

” मेरे लिए इतना सोचने के लिए धन्यवाद दीदी!” सुगंधा की आंख ननदों के प्यार से भीग गई थी।

” भाभी आपने भी तो हमारे बारे में सोचा ना अपने मायके ना जा हमे बुला लिया तो हमारा भी तो फर्ज था ना की जल्दी आ जाए जिससे जल्दी चले भी जाए और आप अपने मायके जा सकें। मां नही है अब तो आप ही हमारी भाभी आप ही मां है । हम सभी एक दूसरे की सहूलियत का ख्याल रखेंगे तभी तो हमारा मायका सलामत रहेगा मां से भले ना पर भाभी मां से !” नीलम आंख में पानी लाते बोली।

” दीदी आपका मायका हमेशा सलामत रहेगा यहां मां का आशीर्वाद हमेशा आपके साथ रहेगा और ये भाभी तो एक दोस्त के रूप में होगी ही तो बेझिझक कभी भी आ जाना !” ये बोला सुगंधा दोनो ननदों के गले लग गई। 

” चलो भई अब चले वरना भाभी को देर हो जायेगी !” नीला के पति बोले।

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सुगंधा ने सबको उपहार दे विदा किया आज उसे एहसास हुआ  की खुद से पहले किसी और के बारे में सोचना कितनी खुशी देता है।

दोस्तों ननद भाभी का रिश्ता ऐसा रिश्ता होता है जो बेहद खास होता है मां के बाद ननदों के लिए पीहर का द्वार भाभी से ही खुला रहता। अगर ननद और भाभी दोनो समझदारी दिखाएं तो ना तो भाभियों को ननदों का आना बोझ लगे ना ननदों का मायका छूटे या वो उपेक्षित हों पीहर में।

क्या आप मेरी कहानी से सहमत है??

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

#बहन

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