सफलता का शॉर्टकट – रश्मि सिंह

पंकज-आज मैं ये “बिज़नेस मैन ऑफ़ द ईयर” का अवार्ड पाकर बेहद खुश हूँ, अपनी ख़ुशी को शब्दों में बयान नहीं कर सकता, पर ये सब आप लोगो की वजह से हुआ है। इससे ज़्यादा मैं कुछ कह नहीं पाऊँगा। धन्यवाद।

पंकज के स्टेज से उतरते ही सब पंकज पंकज चिल्लाते हुए उसके पीछे चल पड़ते है।

पंकज गाड़ी में बैठ जाता है और हाथ बाहर कर जय हिन्द करता है और ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए कहता है।

रीमा (पंकज की माँ)-पंकज उठ जा जल्दी, कोचिंग का टाइम हो गया है, संदीप (पंकज का दोस्त) भी आ गया है।

पंकज बड़बड़ाते हुए धत्त तेरी की, सपना था ये, पर कोई नहीं एक दिन पूरा ज़रूर होगा। माँ पता है आज मैं “बिज़नेस मैन ऑफ़  द ईयर” बन गया।

रीमा (पंकज की माँ)-ऐसे सपने देखने से कुछ नहीं होता है, और अभी मन लगाकर पढ़ ले शायद तेरी भी सरकारी नौकरी लग जाए।

पंकज-माँ कर दी ना छोटी बात। सरकारी नौकरी में क्या रखा है बिज़नेस में जो पैसा और शोहरत है वो और कहा। भैया सरकारी नौकरी में है पाँच साल हो गये, कुछ कर पाए, उसी खटपटिया में जाते है स्कूल पढ़ाने। मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता, अब बस पापा थोड़ा पैसा लगाकर मेरा बिज़नेस खुलवा दे।

महेश (पंकज के पिता)-कोई बिज़नेस नहीं कर रहा तू, मैं तो एक कौड़ी नहीं दूँगा, और क्या अपने भैया की कह रहा है, जो भी कमाता है मेहनत से कमाता हैं, तेरी तरह मेरे पैसों पर नज़र नहीं गड़ाए है।

पंकज हर बार ये सब सुनता पर चिकने गड़े की तरह सब उसके ऊपर से सरक जाता, क्योंकि वो अपने दोस्त राहुल की संगत में था, जो एक बड़ा बिज़नेस मैन था, इसलिए उसे भी बिज़नेस की सुध लगी हुई थी।

पंकज-माँ कल राहुल के यहाँ पार्टी है, बड़े बड़े लोग आएँगे, मुझे कुछ पैसे चाहिए नये कपड़े लेने है, पापा से लेकर दे दो।

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रीमा (पंकज की माँ)-तुझे शर्म नहीं आती रोज़ पैसे माँगता है, राहुल वैसे भी मुझे और तेरे पापा को फूटी आँख नहीं सुहाता, उसके यहाँ नहीं जाएगा तू। अभी भी सुधर जा वरना बाद में पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

पंकज-माँ तुम परेशान बहुत होती हो, देखना अगले साल मैं राहुल की कंपनी में इन्वेस्ट करूँगा। एक साल के अंदर मर्सिडीज़ घर के बाहर खड़ी दिखेगी, बस पापा की रिटायरमेंट से जो पैसा मिलेगा उसने से 5 लाख मुझे दिला देना फिर देखना मैं कैसे लखपति से करोड़पति बनता हूँ।

नीरज (पंकज का भाई)- सुन पंकज मेरे भाई, मैं अपनी सैलरी पर तुझे लोन लेकर  दूँगा पैसे, पर तू राहुल के साथ नहीं अपना ख़ुद का बिज़नेस करेगा।

पंकज-आप तो रहने ही दो, भाभी की ख्वाहिशें पूरी करिए पहले फिर मेरे बारे में सोचना। मैं तो बिज़नेस राहुल के साथ ही करूँगा, उसने ख़ुद को एस्टेब्लिश कर लिया है, उसके साथ लगूँगा तो दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करूँगा। बस पापा से पैसे का बंदोबस्त करा दो, फिर धीरे धीरे पापा के पैसे भी लौटा दूँगा।

नीरज और महेश, पंकज को समझा समझाके हार गए, पर एक जवान लड़के के आगे झुकना पड़ा क्योंकि उम्र ही ऐसी है अभी कही कुछ कर ले या घर छोड़कर चला जाये तो समाज में क्या इज़्ज़त रह जाएगी। ये सब रोककर महेश (पंकज के पिता) पाँच लाख पंकज को दे देते है।

शुरुआत में तो सब बहुत बढ़िया चल रहा था, घर में भी सब केचआग थे कि पंकज भी कामधाम में लग गया है। फिर एक दिन अचानक महेश जी के फ़ोन पर कॉल आती है कि आपके बेटे पंकज को गिरफ़्तार कर लिया गया है, तुरंत पुलिस स्टेशन पहुँचिए।

नीरज, रीमा और महेश सब घबराए हुए पुलिस स्टेशन पहुँचते है, वहाँ जाकर पता चलता है कि पंकज को फल के बीच ड्रग्स रखकर बेचने के जुर्म में पकड़ा गया है। महेश जी ये सुनकर बेसुध हो जाते है, इतने इज़्ज़तदार इंसान के घर में ये सब। समाज में मच दिखाने लायक़ नहीं छोड़ा पंकज ने।

पंकज-माँ मुझे सच में नहीं पता था राहुल ये काम करता है, वो मुझे कहता था ये एक्सपोर्ट इंपोर्ट का बिज़नेस है, मैं बस वही करता था मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि फलों के बीच ड्रग्स रखकर बेचे जा रहे थे। माँ मुझे बचा लो, आप लोगो की बात ना मानने और शॉर्टकट तरीक़े से पैसा कमाने के चक्कर में आज मैंने इज़्ज़त, पैसा सब मिट्टी में मिला दिया। एक बार मुझे बचा लो, अब जो आप लोग कहेंगे वो करूँगा।

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महेश, नीरज ने कई वकीलों से बात की पर सबका कहना था कि पंकज को 7 साल की सजा और 3 लाख जुर्माना देना होगा। 

पंकज ये सब सुन बावला हो जाता है, पर कहते है जैसी करनी, वैसी भरनी। पंकज सात साल बाद घर वापस आता है, और भैया के कहे अनुसार अपनी कपड़ों की दुकान खोल लेता है, समय पर दुकान जाना, मेहनत से काम करना और समय से घर वापसी ये पंकज की दिनचर्या बन चुकी है।

आज पंकज अपने परिवार के साथ खुश है पर बिना किसी जुर्म के जेल में बिताये सात साल अभी भी उसे याद आते है तो सिहर जाता है वो। अब उसने ठान लिया है अपने बेटे को उच्च शिक्षा दूँगा और ग़लत संगत से हमेशा दूर रखूँगा।

आदरणीय पाठकों,

आप सभी जानते होंगे, पहले के समय में जो हमारे बड़े कहते थे, उसे हम पत्थर की लकीर समझ स्वीकार कर लेते थे, पर आज की पीढ़ी घर परिवार से ज्यादा अपने दोस्तों पर यक़ीन करती है, ग़लत नहीं है क्योंकि कई बार दोस्त अपनों से बढ़कर होते है, पर सही दोस्त की पहचान मुश्किल है, और हमारे परिवार वाले कभी हमारा अहित नहीं सोचते है तो हमे उनकी बात को सर्वप्रथम तवज्जो देनी चाहिए।

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#पछतावा

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

लखनऊ।

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