सच्चाई बर्दास्त नहीं होती – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

अमृता जी की देवरानी, पुष्पा जी, शाम के वक़्त उनके घर पर आई और अमृता जी की बहू से पूछा कि तुम्हारी बुआ सास जब तुम्हारे यहाँ आई थीं तो तुम्हारी सास ने उनसे ऐसा क्या कह दिया है कि वह यहाँ से खूब गुस्से में घर गई?

” अमृता जी की बहु थोड़ा अचरज में पड़ गई। पुष्पा जी वाकया बताते हुए कहा “घर जाकर ननद जी, पापा और माँ जी से कह रही थी “बड़ी भाभी सास क्या बन गईं है उन्होने तो ननद से बात करने का सलिका ही भुला दिया है। उनके यहाँ मैं उनसे मिलने गई थी तो उन्होंने मुझे क्या-क्या ना सुनाया।

बहू के सामने ही मेरी और माँ की बेइज्जती कर रही थी। एक बार भी नहीं सोचा कि बहू मेरे और माँ के बारे मे क्या सोचेगी। अपने को अच्छा दिखाने के चक्कर में हमें नीचा दिखा रही थी। मुँह पर ही जबाब दे रही थी।

अब तो मैं कभी बड़ी भाभी के यहाँ नहीं जाउंगी। अलग रहने लगी है तो कुछ ज्यादा ही ज़ुबान खुल रही है।” पुष्पा ने आगे कहा “वे और भी ना जाने क्या क्या कह रही थी। मैं तो काम करने के लिए रसोई में आ गई थी इसलिए ज्यादा कुछ नहीं सुन सकी। जेठानी जी ने दीदी जी को जबाब दिया होगा या ऐसा कुछ कहा होगा जिससे उनका अपमान हुआ हो,

मुझे तो इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैने तो उन्हें ऐसा करते कभी देखा ही नहीं है। इसलिए सोचा कि चलकर पूंछू कि आखिर बात क्या है जो दीदी घर मे इतना हंगामा मचाई है। मेरा मन तो उसी समय से यह जानने को बेचैन था,

पर यदि उस समय आती तो पता चलता मुझे भी अच्छा खासा सुना दिया जाता। अब जब मेरी सास और ननद घर से बाहर गईं है तो सोचा तुमसे पूछकर आती हूँ। जेठानी जी से तो पूछने की मुझमे हिम्मत भी नहीं है इसलिए तुमसे ही पूछने चली आई।” यह कहते हुए पुष्पा जी अपनी बात खत्म की।

अमृता जी के पति दो भाई और एक बहन है। सभी का विवाह हो गया है। ननद अपने ससुराल में रहती है। अमृता जी के ससुर जी का तीन कमरे का फ्लैट है जिसमें अमृता जी के सास-ससुर, अमृता जी और उनके पति तथा उनके देवर-देवरानी रहते थें

परन्तु जब दो माह पूर्व अमृता जी के बेटे का विवाह हुआ तो घर छोटा पड़ने लगा। तब अमृता जी के पति ने सामने का फ्लैट में रहने लगे जिसे उन्होंने पहले ही खरीद लिया था और किराए पर चढ़ा रखा था। बेटे की शादी के वक़्त मेहमानों के रहने के लिए उन्होंने उसमे से किरायदार को हटा दिया था। शादी के बाद फिर से दूसरा किरायादार नहीं रखा।

उसमें वे लोग बेटा बहू के साथ स्वयं रहने लगे। कल अमृता जी की बड़ी ननद राखी बाँधने के लिए आई और अपने माँ पापा के और छोटे भाई भाभी के पास रुकी। आज जब वह सुबह अपनी बड़ी भाभी और उनकी बहू से मिलने के लिए उनके घर आई तभी की यह घटना है जिसके विषय में अमृता जी की देवरानी(पुष्पा) जानने के लिए आई थी।  

“ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था जैसा आप कह रही है। माँ ने तो बुआ जी को कुछ नहीं कहा और जो भी कुछ कहा वह उनका अपमान करने के लिए तो नहीं कहा और इसमें दादी जी कहा से आ गईं, मुझे तो यह समझ ही नहीं आ रहा है।” बहू हैरान होते हुए बोली।

“उन्होंने कहा क्या था यह तुम मुझे बताओ मैं समझने की कोशिश करती हूँ कि दीदी गुस्सा क्यों हुई।” पुष्पा जी ने कहा। बहु ने आगे कहा “जी यह ठीक है चाची जी मैं एकदम शुरू से बताती हूँ कि हुआ क्या। उसने आगे बताया “सुबह नाश्ते में छोले भटूरे बने थे। मैंने छोले और भटूरे बना कर पापा को और आपके बेटे को फिर माँ को गर्म गर्म खिला दिया। जैसा कि हमारे यहाँ प्रतिदिन होता है।

सबके खाने के बाद रोटी, पुड़ी या पराठा जो भी बनता है वह माँ मेरे लिए गर्म बनाती है और कहती है तुम भी खा लो। मैंने तो कितनी बार कहा भी है कि माँ आप क्यों परेशान होती है मैं ठंडा ही खा लुंगी, पर माँ कहती है कि ठंडा क्यों खाओगी? अभी मैं इतनी बूढ़ी भी नहीं हुई हूँ

कि बहू के लिए दो चार रोटी पराठे ना बना सकू। आज भी वही हुआ। सभी के खाने के बाद माँ मेरे लिए भटूरे बनाकर मुझे देने के लिए डाइनिंग हॉल में आई। उसे देने के बाद वह रसोई मे जाने के लिए जैसे ही मुड़ी तभी दरवाज़े की घंटी बजी। मैं उठकर दरवाजा खोलने जाने लगी,

तो माँ ने मुझे उठने से मना करते हुए कहा तुम आराम से खाओ, मैं दरवाजा खोलती हूँ। जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने बुआ जी थी। उन्होंने बुआ जी को बुलाते हुए कहा कि आईए बहुत अच्छे समय पर आई है। मैं बहू के लिए भटूरे बना रही थी, आपके लिए भी बना कर लाती हूँ।

आप डाइनिंग टेबल पर बैठिये। इस पर बुआ जी ने कहा “बहू के लिए कौन भटूरे बनाता है भला। आप भी न भाभी बहू को बहुत सर पर चढ़ा रखी है। उसे गर्म खाना बनाकर देती है। उसके साथ मिलकर घर के सारे काम भी करवाती हैं। आपने तो बहू को एकदम से बिगाड़ रखा है।” अमृता जी की बहु ने सास की तरफ से सफाई देते हुए

आगे कहा “माँ ने एक बार कहा भी कि छोड़ीए इन बातों को, आप बैठिये मैं आपके लिए भी नाश्ता लाती हूँ। इसपर मैंने कहा भी कि माँ आप बुआ जी के साथ बैठिये, मेरा खाना हो ही गया है, मैं बुआ जी के लिए भटूरे बनाकर लाती हूँ। पर बुआ जी ने बोलना बंद नहीं किया और कहने लगी कि इस तरह से तो आप घर की सभी बहुओं को बिगाड़ देंगी।

तब माँ ने बस इतना ही कहा कि माना कि हमारे समाज मे सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती है। चाहे बहू को बच्चा होने वाला हो, उसे प्रेग्नेंसी में कितनी भी तकलीफ हो, चाहे उसके बच्चे को बुखार हो और वह माँ को छोड़ना नहीं चाहता हो, बच्चे की बीमारी के कारण बहू की रात में नीद नहीं पूरी हो रही हो, पर बहू को तो हर परिस्थिति में घर के सारे काम करने ही पड़ेंगे।

घर के सारे काम तो बहू की जिम्मेदारी है, उसके काम में कोई हाथ नहीं बटाएगा। पर ननद रानी मैं ऐसी सास नहीं बनूंगी। मुझे तो अपनी बहू के दुख सुख की समझ रखनी है।” यह कह कर अमृता जी की बहु ने अपनी चाची सास से पूछा “अब आप ही बताइये इससे दादी या बुआ का अपमान कैसे

हुआ?” अमृता जी की देवरानी ने हँसते हुए कहा “तुम नहीं समझोगी बहु।” “क्यों क्या हुआ? बोलिए न चाची जी, आप हँस क्यों रही है?” बहू ने उत्सुकता से पूछा। पुष्पा जी ने कहा “तुम जानना चाहती हो तो सुनो बहू, जेठानी जी को इन माँ बेटी ने इतना परेशान किया है कि उसे बताया भी नहीं जा सकता।

मेरे आने के वक़्त तो तुम्हारी बुआ सास की शादी हो गई थी इसलिए मुझे तो उनका शासन नहीं ही सहना पड़ा। माँ जी को भी जेठानी जी मुझे कुछ नहीं बोलने देती थी, पहले ही कह देती कि आपको काम से ही न मतलब है वह तो मैं

कर ही रही हूँ तो फिर छोटी को क्यों परेशान करना है। इस तरह से जेठानी जी मुझे बचा लेती थी। अब जब उन्होंने दीदी से यह सब कहा तो दीदी को लगा होगा कि जेठानी जी उन्हें और माँ जी को ही सुना रही है। अब मैं जब सारी बात समझ गई तो हँस रही हूं।

चलो जाती हूँ नहीं तो बाजार से आ गई होंगी और समय पर चाय नाश्ता नहीं दूंगी तो माँ बेटी अब तुम्हारी सासु माँ का सारा गुस्सा मुझ पर उतार देंगी।” यह कहते हुए पुष्पा जी इस वाकया से मज़े लेती हुई अपने फ्लैट की तरफ चल दी।

वाक्य — सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती है

लतिका पल्लवी 

Leave a Comment

error: Content is protected !!